प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
चित्र गूगल से साभार |
एक गाँव के बाहर बने शिवमंदिर मे चार-पाँच गंजेडी रोज गाँजा पीते थे, पिछले कई साल से जब भी वो गाँजा पीते थे तब "बम भोले" का जयकारा करते थे चिल्लम की हर फुँक के साथ,
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एक दिन खुद शिव जी उनके इस भक्ति माध्यम से प्रसन्न हो गये,
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वो एक साधारण मनुष्य के रूप मे उन गंजेडीयो के पास आ कर बैठ गये,
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गंजेडीयो ने चिल्लम बनाना शुरू किया तो एक गंजेडी ने शिव जी को गाँजा आफर किया,
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प्रायः गंजेडीयो मे मेहमानवाजी बडे उच्च स्तर की होती है, इसलिए गंजेडीयो ने पहला चिल्लम भोलेनाथ को ही दिया,
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एक फुँक मे ही शिव जी ने पुरा चिल्लम खाली कर दिया , गंजेडीयो को लग गया कि ये कोई उच्च कोटी का पीने वाला है, फिर उन्होने दुसरा चिल्लम बनाया और फिर पहला मौका भोलेनाथ को दिया...
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शिव जी ने फिर एक फुँक मे ही पुरा चिल्लम खाली कर दिया,
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हर फुँक के बाद एक गंजेडी, भोलेनाथ से पुछता रहा :
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एक दिन खुद शिव जी उनके इस भक्ति माध्यम से प्रसन्न हो गये,
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वो एक साधारण मनुष्य के रूप मे उन गंजेडीयो के पास आ कर बैठ गये,
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गंजेडीयो ने चिल्लम बनाना शुरू किया तो एक गंजेडी ने शिव जी को गाँजा आफर किया,
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प्रायः गंजेडीयो मे मेहमानवाजी बडे उच्च स्तर की होती है, इसलिए गंजेडीयो ने पहला चिल्लम भोलेनाथ को ही दिया,
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एक फुँक मे ही शिव जी ने पुरा चिल्लम खाली कर दिया , गंजेडीयो को लग गया कि ये कोई उच्च कोटी का पीने वाला है, फिर उन्होने दुसरा चिल्लम बनाया और फिर पहला मौका भोलेनाथ को दिया...
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शिव जी ने फिर एक फुँक मे ही पुरा चिल्लम खाली कर दिया,
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हर फुँक के बाद एक गंजेडी, भोलेनाथ से पुछता रहा :
"नशा आया" ?
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जवाब मे शिव जी केवल मुस्कुरा के 'ना' मे सर हिला देते,
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ऐसे कर के जब पाँच चिल्लम खाली हो गये तो गंजेडी आखिरी चिल्लम भरने लगे तभी उनमे से एक गंजेडी ने पुछा : " क्यों अभी भी नशा नही हुआ ? "
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तब शिव जी ने कहा : "जानते हो मै कौन हुँ ?"
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गंजेडी : "कौन हो भाऊ ? "
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शिव जी : " मै इस ससांर का सहाँरक, सभी भुत, प्रेत, यक्ष, असुर, गंधर्व का स्वामी, ब्रम्हाड का आदिवासी, हिमालय का निवासी हुँ, आदि अंत - प्रारंभ, नाश और नशा सब की सीमा मुझसे प्रारंभ होती है और मुझ पर ही खत्म, शकंर नाम है मेरा, जिसको तुम लोग रोज याद करते हो !!"
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गंजेडी जोर से चिल्लाया : " अब इसको और चिल्लम मत देना बे , गाँजा चढ गया इसको!!!"
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जवाब मे शिव जी केवल मुस्कुरा के 'ना' मे सर हिला देते,
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ऐसे कर के जब पाँच चिल्लम खाली हो गये तो गंजेडी आखिरी चिल्लम भरने लगे तभी उनमे से एक गंजेडी ने पुछा : " क्यों अभी भी नशा नही हुआ ? "
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तब शिव जी ने कहा : "जानते हो मै कौन हुँ ?"
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गंजेडी : "कौन हो भाऊ ? "
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शिव जी : " मै इस ससांर का सहाँरक, सभी भुत, प्रेत, यक्ष, असुर, गंधर्व का स्वामी, ब्रम्हाड का आदिवासी, हिमालय का निवासी हुँ, आदि अंत - प्रारंभ, नाश और नशा सब की सीमा मुझसे प्रारंभ होती है और मुझ पर ही खत्म, शकंर नाम है मेरा, जिसको तुम लोग रोज याद करते हो !!"
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गंजेडी जोर से चिल्लाया : " अब इसको और चिल्लम मत देना बे , गाँजा चढ गया इसको!!!"
सादर आपका
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
11 टिप्पणियाँ:
आज तो कण कण में शिव हो चुके हैं और शिव को पता भी नहीं है । बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
गंजेडियों की बेहतरीन कथा सुनाई आपने.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
उपयोगी लिंक्स के लिये आभार.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आज अधिकतर लिंक खोली,पढ़ी और कमेंट भी किये ब्लॉग पर,अच्छा लगा एक लिंक मेरी रुचि के विषय की नहीं थी सो पढ़ा पर समझ नहीं आया।
सुन्दर प्रस्तुती,शिव ही सत्य है|
मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार,
https://meremankee.blogspot.in/2017/07/nainital-trip.html
रोचक कहानी..भगवान को इंसान कब पहचान पाया है..सुंदर सूत्रों का संकलन.आभार मुझे भी इसमें शामिल करने के लिए.
शिवम जी,
आपकी इतनी मेहनत से एकत्र किए गए लिंक्स पर जब जाया जाता है तो अधिकाँश के दरवाजों पर कुण्डियां (मॉडरेशन) लगी मिलती हैं, जो हताश ही करती हैं !!
खामख्वाह ही गंजेड़ी भोले का नाम बदनाम करते हैं, किसी को नहीं छोड़ते !
रोचक कहानी के साथ बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आप सब का बहुत बहुत आभार |
बहुत रोचक कथा.....
भक्तों की भक्ति ऐसी ही होती है और प्रभु का स्नेह ऐसा ही! मज़ेदार!!!
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