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बुधवार, 26 अक्टूबर 2016

मन्मथनाथ गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
मन्मथनाथ गुप्त (अंग्रेज़ी: Manmath Nath Guptaजन्म: 7 फरवरी 1908 - मृत्यु: 26 अक्टूबर 2000) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रान्तिकारी तथा सिद्धहस्त लेखक थे। इन्होंने हिन्दी, अंग्रेज़ी तथा बांग्ला में आत्मकथात्मक, ऐतिहासिक एवं गल्प साहित्य की रचना की है। ये मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्वतन्त्रता संग्राम में कूद गये और जेल गये। बाद में वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य भी बने और 17 वर्ष की आयु में उन्होंने सन् 1925 में हुए काकोरी काण्ड में सक्रिय रूप से भाग लिया।

क्रांतिकारी और लेखक मन्मथनाथ गुप्त का जन्म 7 फरवरी 1908 को वाराणसी में हुआ था। उनके पिता वीरेश्वर विराटनगर (नेपाल) में एक स्कूल के हेडमास्टर थे। इसलिये मन्मथनाथ गुप्त ने भी दो वर्ष वहीं शिक्षा पाई। बाद में वे वाराणसी आ गए। उस समय के राजनीतिक वातावरण का प्रभाव उन पर भी पड़ा और 1921 में ब्रिटेन के युवराज के बहिष्कार का नोटिस बांटते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और तीन महीने की सजा हो गई। जेल से छूटने पर उन्होंने काशी विद्यापीठ में प्रवेश लिया और वहाँ से विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की। तभी उनका संपर्क क्रांतिकारियों से हुआ और मन्मथ पूर्णरूप से क्रांतिकारी बन गए। 1925 के प्रसिद्ध काकोरी कांड में उन्होंने सक्रिय रूप से भाग लिया। ट्रेन रोककर ब्रिटिश सरकार का खजाना लूटने वाले 10 व्यक्तियों में वे भी सम्मिलित थे। इसके बाद गिरफ्तार हुए, मुकदमा चला और 14 वर्ष के कारावास की सजा हो गई।

( साभार : http://bharatdiscovery.org/india/मन्मथनाथ_गुप्त )

आज मन्मथनाथ गुप्त जी की 16वीं पुण्यतिथि पर सारा देश उनको याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर....


यूपी-ये हो होना ही था...

मुलायम कुनबे की कलह में मौजूद है बॉलिवुड का पूरा मसाला

नास्तिकों से कौन डरे है !

गाँव नहीं रहा अब गाँव जैसा

टाटा के मुखिया की बर्खास्तगी से निकलने वाले सबक

सोशल मीडिया के बहादुरों जमीन पर आओ

हिंदी में एकांगी मीडिया मंथन

कहतें दीपक जलता है

अनंत से अनंत तक

यूँ ही कुछ कुछ

हमको तो दीवाली की सफाई मार गई


आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

4 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

यूँही थोड़ा थोड़ा मैं यहीं होती ही हूँ
कभी पढ़ भी लेना, सुकून मिल जायेगा

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन हर्षवर्धन ।

कविता रावत ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

Rohit Singh ने कहा…

धन्यवाद जी..पिताजी और बेटा जी के बीच की गहमाहमगी को जगह देने के लिए

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