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शनिवार, 22 अक्टूबर 2016

ब्लॉग - जो अब बंद हैं - 5




मिलकर रोयें, फरियाद करें 

उन बीते दिनों की याद करें 

ऐ काश कहीं मिल जाये कोई 

जो मीत पुराना बचपन का  ... आनंद बक्शी जी की लिखी पंक्तियाँ यूँ ही नहीं, गुजरे वक़्त, रिश्तों को सोचकर गुनगुना उठता है वर्तमान 



6 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर यादगार बुलेटिन प्रस्तुति ...

इन्दु पुरी ने कहा…

बीते दिनों की यादें ....कभी साथ नही छोड़ा इन्होने. मैं अक्सर इन ब्लोग्स पर भटकती रहती हूँ पर हर तरफ सन्नाटा ...
आपका प्रयास व्यर्थ नही जायेगा. धीरे धीरे कर सब लौटेंगे एक. जरूरी है कि हम पहले की तरह जा कर कमेंट्स देना शुरू करे.उन्हें बताएं कि देखिये हम आपको पढने लगे हैं. आइये. लिखिए.

M VERMA ने कहा…

जज़्बात अब बंद नहीं है कपाट खुल गया है
http://ghazal-geet.blogspot.in/?m=1

M VERMA ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सुशील कुमार जोशी ने कहा…

असर होने लगा है । सुन्दर ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ तो असर है आपकी बातों का ...

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