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बुधवार, 7 सितंबर 2016

नीरजा भनोट और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
नीरजा भनोट ( जन्म: 7 सितंबर, 1963 - 5 सितंबर 1986) मुंबई में पैन ऐम एअरलाइन्स की विमान परिचारिका थीं। 5 सितंबर 1986 के पैन ऐम उड़ान 73 के अपहृत विमान में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गईं थीं। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम वीरांगना है। आतंकियों से लगभग 400 यात्रियों को जान बचाते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया था। नीरजा भनोट अशोक चक्र पाने वाली पहली महिला थीं।

7 सितम्बर 1964 को चंडीगढ़ के हरीश भनोट के यहाँ जब एक बच्ची का जन्म हुआ था तो किसी ने भी नहीं सोचा था कि भारत का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान इस बच्ची को मिलेगा। बचपन से ही इस बच्ची को वायुयान में बैठने और आकाश में उड़ने की प्रबल इच्छा थी। नीरजा ने अपनी इच्छा एयर लाइन्स पैन एम ज्वाइन करके पूरी की। 16 जनवरी 1986 को नीरजा को आकाश छूने वाली इच्छा को वास्तव में पंख लग गये थे। नीरजा पैन एम एयरलाईन में बतौर एयर होस्टेज का काम करने लगी। 5 सितम्बर 1986 की वो घड़ी आ गयी थी जहाँ नीरजा के जीवन की असली परीक्षा की बारी थी। पैन एम 73 विमान कराची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था। विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे। अचानक 4 आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया। उन्होंने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि वो जल्द में जल्द विमान में पायलट को भेजे। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया कि वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिये। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया। धीरे-धीरे 16 घंटे बीत गये। पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बात का कोई नतीजा नहीं निकला। अचानक नीरजा को ध्यान आया कि विमान में ईंधन किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा। जल्दी उसने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा। नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं।

उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे। इसी बीच सभी यात्रियों ने आपातकालीन द्वारों की पहचान कर ली। नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ। विमान का ईंधन समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया। नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी। तुरन्त उसने विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये। योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे। वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी। किन्तु नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था। कुछ घायल अवश्य हो गये थे किन्तु ठीक थे अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी। दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे। उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया। इधर नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी। कि अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ। नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई। आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। नीरजा ने अपना बलिदान दे दिया। उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके।
नीरजा के बलिदान के बाद भारत सरकार ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया तो वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया। नीरजा वास्तव में स्वतंत्र भारत की महानतम विरांगना है। सन् 2004 में नीरजा भनोट के सम्मान में डाक टिकट भी जारी हो चुका है।

( चित्र और जानकारी के स्त्रोत - http://bharatdiscovery.org/india/नीरजा_भनोट )


आज भारत माता की इस वीरांगना बेटी की 53वीं जयंती पर पूरा भारतवर्ष उन्हें याद करते हुए श्रद्धापूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता है। सादर।। 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर  ..... 














आज की बुलेटिन में इतना ही, कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। जय हिन्द। जय भारत।।

11 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वीराँगना नीरजा भनोट को नमन । बहुत सुन्दर प्रस्तुति हर्षवर्धन ।

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

नीरजा भनोट की गाथा कर्तव्य के प्रति निष्ठा का अपूर्व उदाहरण है.
यह सब प्रस्तुत करने के लिये आपका आभार हर्वषर्धन जी.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

एक वीरांगना को दी गयी एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि!!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

वीरांगना को नमन, आप इस ब्लॉग द्वारा यह एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं , बधाई....मेरे आलेख के चयन हेतु आभार....

कविता रावत ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ..
वीरांगना भनोट को श्रद्धा सुमन!

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

Arun sathi ने कहा…

कर्म ही महान बनाता है..नीरजा पे आलेख प्रेरक...

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

नीरजा को नमन।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

नीरजा को नमन।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

नीरजा को नमन।

garima ने कहा…

Neeraja ji ko Naman bahut sunder prastuti

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