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बुधवार, 28 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 10




आँसुओं का बह निकलना 
मन की कमज़ोरी नहीं 
मन की दृढ़ता है 
जो दर्द को गहराई से जीता है 
सोचता है 
करवटें लेता है 
छत निहारता है 
कब आँखें भरीं 
कब दर्द छलका - पता भी नहीं चलता !


An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय

समालोचन





6 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सबके नहीं छलकते हैं आँसू
नमी हर जगह नहीं होती
आँखें रेगिस्तान भी होती हैं
आँसू दिखते हैं वहाँ
पर वो मरीचिकायें होती हैं ।

सुन्दर बुलेटिन ।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

इतनी लंबी होगी यह श्रृंखला ये कभी सोचा न था.

सदा ने कहा…

Behad sarahneey prayas......

Asha Lata Saxena ने कहा…

सकारात्मक प्रयास बहुत अच्छा लगा |

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

इसे और आगे बढ़ाइए.. :)

Unknown ने कहा…

बुलेटिन में शामिल करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

#ब्लॉग मालिक
ज़ीरोकट्ट्स http://zeerokattas.blogspot.com/

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