नमस्कार मित्रो,
आज, 9 सितम्बर को दो
सितारों, शहीद विक्रम बत्रा का तथा साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्मदिन है.
दोनों ने ही अल्पायु में अपने-अपने हथियारों से अप्रत्याशित कारनामे किये. एक ने बन्दूक उठाकर देश
के दुश्मन को खदेड़ा तो दूसरे ने कलम के सहारे हिन्दी विरोधियों को परस्त किया.
आइये विनम्र श्रद्धांजलि सहित जाने अपने इन सितारों के बारे में.
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कैप्टन विक्रम बत्रा |
विक्रम बत्रा का
जन्म 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में हुआ था. जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के यहाँ
जुड़वां बच्चों के रूप में जन्म हुआ. माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा
होने के कारण विक्रम को लव और विशाल को कुश के नाम से पुकारा गया. अध्ययन हेतु विक्रम
चंडीगढ़ गए और विज्ञान विषय में स्नातक की पढ़ाई की. इस दौरान वह एनसीसी के सर्वश्रेष्ठ
कैडेट चुने गए और गणतंत्र दिवस की परेड में भी भाग लिया. स्नातक करने के बाद उनका चयन
सीडीएस के जरिए सेना में हो गया. शिक्षा समाप्त होने पर उन्हें 1997 को जम्मू के सोपोर नामक स्थान
पर 13 जम्मू-कश्मीर
राइफल्स में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली. 1999 को कारगिल युद्ध में श्रीनगर-लेह मार्ग
के ठीक ऊपर सबसे महत्त्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा उनकी टुकड़ी को दिया
गया. बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों सहित इस चोटी
को अपने कब्जे में ले लिया. जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष यह दिल
मांगे मोर कहा तो पूरे भारत में उनका नाम छा गया. इसी दौरान विक्रम के कोड
नाम शेरशाह के साथ ही उन्हें कारगिल का शेर की भी संज्ञा दी गई. मिशन लगभग
पूरा हो चुका था. लड़ाई के दौरान घायल लेफ्टीनेंट नवीन को बचाने के प्रयास में
विक्रम बत्रा की छाती में गोली लगी और वे जय माता दी कहते हुये वीरगति को प्राप्त हुये.
अदम्य साहस और पराक्रम के लिए कैप्टन विक्रम बत्रा को 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र से
सम्मानित किया गया.
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भारतेंदु हरिश्चंद्र |
आधुनिक हिंदी साहित्य
के पितामह कहे जाने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी में हुआ. उनके पिता गोपालचंद्र अच्छे कवि थे
और गिरधर दास उपनाम से कविता करते थे. बचपन में ही भारतेंदु माता-पिता
के सुख से वंचित हो गए थे. बनारस में उन दिनों अंग्रेजी पढ़े-लिखे
और प्रसिद्ध लेखक राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द थे. भारतेन्दु शिष्य
भाव से उनके यहाँ जाते रहते. उन्होंने उन्हीं से अंग्रेजी सीखी तथा स्वाध्याय से संस्कृत,
मराठी, बंगला, गुजराती,
पंजाबी, उर्दू भाषाएँ सीख लीं. हिन्दी साहित्य
में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेंदु से ही माना जाता है. भारतीय नवजागरण के अग्रदूत
के रूप में प्रसिद्ध भारतेन्दु ने देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण
को ही अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया. हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित
करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया. भारतेन्दु बहुमुखी प्रतिभा
के धनी थे. वे एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्यकार, सफल नाटककार,
जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे. इसके अलावा वे लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार,
एवं कुशल वक्ता भी थे. हिन्दी में नाटक उनके पहले भी लिखे जाते थे किंतु
नियमित रूप से खड़ीबोली में अनेक नाटक लिखकर भारतेन्दु ने ही हिन्दी नाटक को सुदृढ़
बनाया. उन्होंने हरिश्चंद्र पत्रिका, कविवचन सुधा और बाल विबोधिनी पत्रिकाओं का संपादन भी किया. भारतेन्दु जी का देहावसान मात्र
34 वर्ष की
अल्पायु में ही 7 जनवरी 1885 को हुआ. अल्पायु
में उन्होंने विशाल साहित्य की रचना की तथा मात्रा और गुणवत्ता की दृष्टि से इतना लिखा, इतनी दिशाओं में काम किया कि उनका
समूचा रचनाकर्म पथदर्शक बन गया है.
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शहीद विक्रम बत्रा
और भारतेंदु हरिश्चंद्र को ब्लॉग बुलेटिन परिवार की तरफ से हार्दिक श्रद्धांजलि
सहित आज की बुलेटिन.
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7 टिप्पणियाँ:
शहीद वीर विक्रम बत्रा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को श्रद्धांजलि । बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
हिंदी इंटरनेट की पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद.
बहुत ही यादगार बुलेटिन है यह . पढ़कर मन जैसे पवित्र होगया .
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ..आभार!
शहीद वीर विक्रम बत्रा और भारतेंदु हरिश्चंद्र को श्रद्धा सुमन!
Umda prastuti...
Rachna ko samil Karney ke liey dhanyawad.
Umda prastuti...
Rachna ko samil Karney ke liey dhanyawad.
शहीद विक्रम बत्रा और हिंदी के आधुनिक काल के अग्रदूत भारतेंदु हरिश्चंद्र को उनकी जयंती पर शतशः नमन.
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