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रविवार, 25 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 7



तुम्हारे विचारों का आह्वान 
मेरी ज़िद है 
मेरा मानना है 
देवताओं के साथ विचारों की उपस्थिति 
देवताओं की आरती है … 
मंदिर के पट बंद भी होते हैं
ऐसे में विचारों का शास्त्रार्थ
देवताओं के संग न हो
तो पूजा अधूरी होती है !  ... 



11 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

भूली-बिसरी गलियों की सैर कराने हेतु बहुत बहुत आभार!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बिटिया के साथ व्यस्त रहा दो दिन... आज लौट गयी... और आज की कड़ियों में भी कई नाम ज़हन में तैर गए... कुछ नामों के साथ मुस्कराहट भी आई होठों पर...!

Maheshwari kaneri ने कहा…

भूली बिसरी गली में जाना अच्छा लगा

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह क्या बात है
"विचारों का शास्त्रार्थ देवताओं के संग"
हमारी तो ये सोचने की भी हिम्मत नहीं है ।

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

Amrita Tanmay ने कहा…

जिद को सलाम !

nayee dunia ने कहा…

बहुत -बहुत धन्यवाद रश्मि जी।

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

भूली बिसरी गलियां याद दिला दी । आभार

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

भूली बिसरी गलियां याद दिला दी । आभार

Parul kanani ने कहा…

meri rachna ko shamil karne ke liye hardik aabhar!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

आभार, रश्मि जी ।
इन गलियों में चहलकदमी करना अच्छा लगा ।

Asha Joglekar ने कहा…

देर से देखा माफी चाहती हूँ पर मेरी रचना को इस सुंदर चर्चा में स्थान देने का आभार। दर असल मेरी घुटने की सर्जरी हुई है।

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