जब छोटा थे तब एगो खेल खेलते थे हमलोग. दू गो टोली में से एगो टोली का
लोग कोनो जगह का नाम बोलता था, त दोसरा टोली का सदस्य को ऊ जगह का नाम से जुड़ा हुआ
कोनो नाम बोलना पड़ता था, जिससे ऊ जगह का पहचान जुड़ा हुआ हो. अब एगो कोई बोला आगरा,
त जवाब ताजमहल चाहे पेठा हो सकता है,
मथुरा से पेड़ा चाहे भगवान किसन महाराज. कहने का माने ई कि कुछ जगह का पहचान ओहाँ
पाया जाने वाला कोनो खाने का समान, ओहाँ बनने वाला कोई समान, ओहाँ का कोई ऐतिहासिक
अस्मारक से होता है. केतना बार त हमलोग कोई छोटा जगह के बारे में जानियो नहीं पाते
हैं, जबकि ऊ जगह का पहचान दुनिया भर में ओहाँ के उद्योग से होता है.
आज केतनो आधुनिक परिधान कोई काहे नहीं पहन ले, मगर लखनऊ के चिकन का
दुनिया भर में पहचान है. कोनो हर दिल अजीज के स्वागत में लाल कालीन बिछा देने का
मुहावरा से लेकर परम्परा तक सबको मालूम है, मगर हमरे उत्तर पर्देस का भदोही जैसा
छोटा सा जगह, ई कालीन के लिये दुनिया भर में जाना जाता रहा है, बहुत कम लोग जानता
है. महिला लोग का पटियाला सूट, बंगाल का ताँत का साड़ी, हैदराबाद का मोती, मधुबनी
का चित्रकला. हमलोग भले ई सब पुराना सिल्प अऊर कला को, जो हमलोग का पहचान था, सम्भाल
नहीं पाए, लेकिन दुनिया में आज भी ओही सब कला अऊर सिल्प के माध्यम से ऊ जगह का
पहचान रहा है.
अइसने एगो जगह हमरे पैदाइस के भी पहिले, एगो कॉलेज में कोई नौजबान कवि अपना ओजस्वी आबाज में एगो कबिता सुनाए – दिल्ली
की गद्दी सावधान! अऊर ई कबिता सुनाने का अंजाम ई हुआ कि पुलिस का जवान इस्टेज पर चढकर
ऊ नौजबान कबि के हाथ से माइक छीन लिया अऊर बोला कि खबरदार जो सरकार के खिलाफ कबिता
सुनाये. मगर पिक्चर अभी बाकी है वाला इस्टाइल में एगो पहलवान भी मंच पर चढ गया अऊर
ऊ पुलिस इनिसपेक्टर को धोबी-पछाड़ दिया. ऊ पहलवान बाद में पर्देस का मुख्य मंत्री हुए
- मुलायम सिंह यादव अऊर ऊ कबि थे दामोदर
स्वरूप ‘विद्रोही’.
ई घटना त जाने दीजिये, पृथ्वी राज चौहान भी जब संजुक्ता
का अपहरण करके भागे, त जयचंद उनको घेर लिया. मगर उनके तलवार के
आगे बेचारा को मुँह का खाना पड़ा. ऊ जगह भी एहीं था. एही नहीं आजादी के लड़ाई में सन
संतावन के क्रांति का लपट से ई जगह भी अछूता नहीं था. बहुत सा आजादी के लड़ाई अऊर देसभक्ति
का कहानी एहाँ के मट्टी में है.
चलिये एगो अऊर हिंट देते हैं. पहचानिये त तनी!! ई
जगह का कश्यप परिवार अपना कला का माहिर हैं पिछला 15-20 साल से. नहिंये पहचानियेगा
आप लोग. रामसनेही कश्यप,
उनकी बेटी पूनम अऊर मेघा, बेटा बिकास कश्यप... नहीं सुने होंगे
ई लोग का नाम. तई लोग कहाँ के रहने वाले हैं अऊर काहे हम इनका नाम ले रहे हैं ई कहाँ
से जानियेगा. यहाँ पढ़िए ई लोग का बारे में
सीसम के लकड़ी का टुकड़ा के ऊपर कागज के ऊपर कोनो सुंदर
डिजाइन बनाकर रख दिया जाता है. बाद में ऊ डिजाइन के ऊपर धातु (चाँदी, पीतल) का तार को बहुत बारीकी से बइठाकर
उसको हथौड़ा से एतना ठोका जाता है कि ऊ तार सीसम के छाती में धँस जाए. इसके बाद ऊ लकड़ी
को बहुत मेहनत से तरासा जाता है. एगो कहावत है हमरे बिहार में कि बात को छीलने से ऊ
रुखड़ा होता जाता है, मगर काठ को छीलने से ऊ चिकना होता है. बस
ई सीसम का टुकड़ा, अपना छाती में ऊ तार का आकार बइठाकर चिकना होता
जाता है अऊर उसका नया जीवन होता है एगो खूबसूरत कलाकृति के रूप में. ई आर्ट कहलाता
है – तारकसी! तार को काठ में कसने अऊर उससे एगो नायाब कलाकृति गढने का कला.
ई कश्यप परिवार एही तारकसी में माहिर है. माहिर का
कहिये,
खतम होने वाला कला का एकमात्र कलाकार. चौहान राजा के मार्फत ई कला राजस्थान से उत्तर
पर्देस में आया. एहाँ बिकसित हुआ अऊर अंग्रेज लोग के टाइम में एहाँ से निकलकर युरोप
में मसहूर हुआ. आज भी ई कलाकृति जिंदा है, मगर ऊ कलाकार – का
मालूम कऊन हाल में हैं.
अब कहाँ ऊ गली में सीसम के टुकड़ा पर हथौड़ा का चोट
से बजने वाला संगीत सुनाई देता है. अब त साल भर में एक बार नेता जी के सैफई महोत्सव
में बजता है संगीत. आँख चुँधिया देने वाला रोसनी अऊर आधुनिक साज से सजा हुआ संगीत
त सबलोग सुनता है,
लेकिन ऊ लोहा (हथौड़ा), पीतल (तार) अऊर काठ (सीसम) का बेसुरा होने
पर भी सुरीला संगीत का सिसकी कहाँ सुनाई देता है किसी को.
अभियो आपको ऊ जगह का नाम नहीं याद आया त हम का कहें...
तारकसी का ई दुनिया भर में मसहूर कला का भूमि है – मैनपुरी! मुलायम सिंह जी के परिबार
का चुनाव छेत्र अगर हम कहते त आप सब लोग पहिलहिं बूझ जाते, बाकी हम पॉलिटिक्स में पिछड़ जाते
हैं. लेकिन कला के दुर्दसा के नाम पर हमरे आँख में आँसू आ जाता है!
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16 टिप्पणियाँ:
गज़ब ढाले हैं शबद में! कला, कलाकारी अउर कलाकार तीनों जिन्दा हो गए!!!
सलिल भाई का पोस्ट हो और दिल बाग़ बाग़ न हो, केतना कुछ जानने को मिलता है, साथ ही सलिल भाई के नज़रिये का भी हाल मिलता है
1450वीं ब्लौगपोस्ट के लिये आप सभी ब्लौगबुलेटिन टीम के सद्स्यों को बधाई और शुभकामनाएं सलिल जी ले कर आये हैं मतलब सोने पर सुहागा :)
मुंह से आपके वास्ते बस 'वाह' और कला के लिए 'आह' के अलावा और क्या निकल सकता है!
हर बार चकित कर देते हैं आप दादा , उम्दा से भी जुल्मी ..बोलिए तो करेजा काट ....आनंदम आनंदम | पोस्ट को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और आभार
सच्चों कहेन बिहारी बाबू...
बहुत अच्छी जानकारी .. धन्यवाद
तारकसी का काम आजकल औद्योगिक रूप में कन्नौज में अधिक होता है । मैनपुरी तो कपूरी तम्बाख़ू से चलकर गुटखा तक की यात्रा करता हुआ पूरे विश्व में माउथ कैंसर की राजधानी बन गया है । यूँ ... बच्चों का यह खेल ज्ञान वर्द्धन का बहुत अच्छा माध्यम भी था ...शायद अब ऐसे खेल कोई नहीं जानता ।
जेकरा सभै लिखलका सेंचुरिया लायक होता है ओकरा 1450का बुलेटिन त लाजवाब होनै था, काहे से कि -"लोहा (हथौड़ा), पीतल (तार) अऊर काठ (सीसम) का बेसुरा होने पर भी सुरीला संगीत का सिसकी कहाँ सुनाई देता है किसी को सिवाय हमरे सलिल भाई के,
एक खुसी का सिकायत ई है कि जब सलिल भाई क बुलेटिन सुरु करने चलते हैं त पहिलही रूमाली नगीचे धरि लेते हैं नहीं त बीच बीच में सब गड्ड मड्ड होनेका अंदेसा सहिये साबित होता है, खूब सोचे के नाम धराया होगा सलिल. ह न ?
Hmesha ki tarah lajwaaab lekhan or links .......
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
सुन्दर, सार्थक एवं सारगर्भित सूत्रों से सुसज्जित आज का बुलेटिन ! मेरी रचना 'बह जाने दो' को आज के बुलेटिन में सम्मिलित करने के लिए आपका ह्रदय से आभार सलिल जी ! बहुत-बहुत धन्यवाद !
अब तो मैनपुरी सिर्फ एक परिवार के लिए जानी जाती होगी। इस कला और उनके कलाकारों के बारे में अच्छी जानकारी मिली।
बुलेटिन में पोस्ट शामिल करने का आभार !
आभार
सलिल दादा आपने तो मेरा ही शहर मुझे एक नए सिरे से दिखा दिया ... सिर्फ़ इतना कह अकता हूँ ... थैंक यू !!
प्रणाम स्वीकारें |
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम और सभी पाठकों को १४५० वीं पोस्ट की इस कामयाबी पर ढेरों मुबारकबाद और शुभकामनायें|
सलिल दादा और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से सभी पाठकों का हार्दिक धन्यवाद ... आप के स्नेह को अपना आधार बना हम चलते चलते आज इस मुकाम पर पहुंचे है और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने की अभिलाषा रखते है |
ऐसे ही अपना स्नेह बनाए रखें ... सादर |
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