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शनिवार, 24 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 6



कलम जब आग उगलती है 
सत्य को बेनक़ाब करती है 
तो खुदा पे यकीन होता है 
... यकीन को यकीन दीजिये, आइये यहाँ फिर से पढ़िए 

8 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

कलम का सत्य
आग का सत्य
सत्य का सत्य
खुदा का सत्य
और यकीन
सच है
सीधा है कहीं
भूलभुल्लईया भी है ।

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह बहुत सुन्दर श्रृंखला जा रही इसी बहाने एक कोने पर आपने सभी कमाल के ब्लोग्स सूत्र पिरो कर एक तरह से आर्काईव भी बना दिया है रश्मि दीदी | मुझे यकीन है और पूरा यकीन है कि हिंदी ब्लॉग्गिंग जल्दी और बहुत जल्दी ही रफ़्तार पकड़ेगी , अब भी है | अच्छा बुलेटिन

Unknown ने कहा…

बहुत -बहुत आभार आपको और शुभकामनाएँ रश्मि प्रभा जी आपका अच्छा यह प्रयास है ।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

Aapka bahut bahut aabhar didi.... bahut dino baad dekha, bahut khushi hui dekh kar...

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया भूली-बिसरी सी गलियों के श्रंखला प्रस्तुति हेतु आभार!

Amrita Tanmay ने कहा…

दिल पा रहा है फिर वही फुरसत का पल ...

रचना ने कहा…

thanks

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर = RAJA Kumarendra Singh Sengar ने कहा…

इस बहाने शायद लोग फिर ब्लॉग की तरफ बढ़ें... सुन्दर प्रयास....
इसका पखवाड़ा या माह मना लेना चाहिए, हम लोगों को :)

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