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गुरुवार, 22 सितंबर 2016

भूली-बिसरी सी गलियाँ - 4



रात भर उधेड़ा था 
दिन भर बुना था खुद को 
फिर भी एक फंदा गिरा मिला … 
नसीहतों की सूई से उठाने के लिए 
जाने कितने हाथ बढे 
होड़ थी नाम की
और मुझे ख़ामोशी चाहिए थी
आज तक
एक फंदा गिरा हुआ लेकर चल रही हूँ  ... 

नसीहतों से हम जबरदस्ती नहीं कर सकते, 
ना ही नाम कमाना है 
बस जो भावनाओं की फसल आपने लगाई थी 
उसे समय समय पर सींचें 
नए बीज लगायें 



आज की यादें  ... 

15 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

कोशिश जारी है... अबकी जो आए तो :)

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

नमन प्रयास को
नमन लेखनी को
सदा की तरह निशब्द

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति
और
गीत ये गलियाँ ये गलियाँ .....
भी साथ में
याद आ रहा है :)

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

भावनाओं की फ़सल को सींचते रहें यह लाज़िमी है। मुमकिन कोशिश रहेगी। सुन्दर प्रस्तुति एवं मुझे शामिल करने के लिए आभार रश्मि जी।

Sadhana Vaid ने कहा…

अभिभूत हूँ 'सुधीनामा' को भी यहाँ देख कर ! आपका स्नेह अतुलनीय है रश्मिप्रभा जी ! बहुत-बहुत आभार आपका !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

दीदी! इनमें कितने ब्लॉग तो ऐसे हैं जिनसे पहली बार मिल रहा हूँ... यह श्रृंखला बुक मार्क करके रख लेने जैसी है... जब कभी पुराने लोगों की याद आए घूम आएँ... मेरा और चैतन्य का साझा ब्लॉग "संवेदना के स्वर" भी था...!!

Aadii ने कहा…

मेरा ब्लॉग "ये जीना भी कोई जीना है लल्लू" सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद. सभी एक से बढ़कर एक उम्दा ब्लॉग.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

लिंक तो छुट्टी में ही पढ़ पायेंगे हम।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

लिंक तो छुट्टी में ही पढ़ पायेंगे हम।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी यादें ..आभार

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत खूब |अब फिरसे इन ब्लोग्स पर जाने का मन हो रहा है |

शिवम् मिश्रा ने कहा…

यह सभी लोग अगर फ़िर से सक्रिय हो जाएँ तो हिन्दी ब्लॉग जगत मे फ़िर से रौनक लौट आए |

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

ब्लाग को शामिल करने का लाभ यह होता है कि कई अच्छे ब्लाग पढ़ने मिल जाते हैं इसलिये धन्यवाद रश्मि जी .

कविता रावत ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Amrita Tanmay ने कहा…

अभी यहाँ का मौसम बहुत सुहाना है और बादलों सा अस्तित्व उड़ा जा रहा है ।

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