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मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

स्वभाव नहीं बदलता


स्वभाव नहीं बदलता -
यह बुरे के लिए लागू है 
तो अच्छे के लिए भी  ... क्षणिक प्रलाप परिवर्तन नहीं 

हाँ प्रेम है तो परिवर्तन है, अन्यथा नक्कारखाने में तूती की आवाज़ और निष्कर्ष,
स्वभाव नहीं बदलता 


कभी देखी है क्या होती है " मृत्यु गंध"
युगों से बंद किसी जंग लगे ताले के पास से गुज़रो
तो महसूस करना कोई अवशेष सा रहा स्पन्दन....
प्रेम का नाम लेते किसी अविचलित व्यक्ति को देखना
जड़ होती सूखी बंजर आँखों की खरपतवार निकालते हुए....
निशानियाँ फेंकनें से पहले अशेष स्मृतियाँ गाड़ते हुए
दिवागंत सैनिक की माँ की भावहीन आवाज को सुनना.....
अंतिम साँसों से पहले
नाभि चक्र में अटके
हारा के शेष जुडाव को
झटक कर तोड़ने से ही
उपजती है ये विशेष गंध
अंतर्मन में स्वत:
सरस्वती सुखाने के पश्चात ही
निकलती है ये विशेष गंध
चिता दहकने से पहले ही कितना कुछ मर चुका होता है.......

छुओ ऐ हवा........
मेरे चेहरे को
कि मैं जानती हूँ तुम होकर आयी हो
उन्ही के देस-बाग़ से
जहां मेरे नाम की रजनीगन्धा 
उनकी मुंहलगी है
तुम रजनीगन्धा
रख लेना अपने पास
मुझे सिर्फ दे देना
उनकी उसाँस
कि वह अहसास
मेरे जीने का सबब बन जाएगा .................
उनके बालिश में रमी
वह खूशबू तो लेकर आ मेरे पास
कि उसे ही बना लूं
अपनी पहचान
ऐ हवा ......!!!
तू कर एक गुनाह मेरे लिए तो जरा
उनके ओंठों से गुजर
शायद कुछ लफ्ज प्यार के
घुल कर तुझमे
पहुँच जाएँ मुझ तक ....................
ऐ हवा ......!!!!
सुन न .....
छू ले एक बार मुझे
मेरा ज़िहन बनकर


2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर बुलेटिन सुन्दर प्रस्तुति ।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

बेहतरीन :)

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