प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
आज फेसबुक पर अनुपम चतुर्वेदी जी की वाल पर एक बेहद उम्दा पोस्ट पढ़ने को मिली ... वही आप सब से आज की बुलेटिन के माध्यम से सांझा कर रहा हूँ |
एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ
ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे
बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है जल्दी पान लगा दिया
करो पर उसकी बात ख़त्म ही नही होती।
एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाभियाँ होती हैं।
एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाभियाँ होती हैं।
एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
अाप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी
लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि ईश्वर अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम
परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये!!
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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हर्ष फायरिंग की अनुमति है ही क्यों ?
निर्बाध,अनवरत ... प्रलाप
लो दिन बीता लो रात गयी -- हरिवंशराय बच्चन
कविता और छंद से ही कहना आये जरूरी नहीं है कुछ कहने के लिये जरूरी कुछ उदगार होते हैं
पनामा पेपर्स के उस्ताद बनाम पिता का ठेला
धन्य-कलयुग
ऊसर में प्रेम
राजनर्तकी की छवि से मुक्ति दिलाने की सार्थक कोशिश है-" एक थी राय प्रवीण"
महेश वर्मा की कविताएं
गर्मी की क्षणिकाएँ
दादासाहब फालके की १४६ वीं जयंती
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
8 टिप्पणियाँ:
अनुपम चतुर्वेदी जी की रचना, पानवाले का कथन बहुत सही है
अपने लिंक को देखकर खुश हूँ :)
सच में कुछ कहानियाँ वाकई में ताले खोल देती हैं ऐसा ही कुछ पान वाले की कहानी को पढ़कर महसूस हुआ । बहुत सुन्दर प्रस्तुति शिवम जी ।आभार 'उलूक' के सूत्र 'कविता और छंद से ही कहना आये जरूरी नहीं है कुछ कहने के लिये जरूरी कुछ उदगार होते हैं' को आज के बुलेटिन में जगह देने के लिये ।
बेहतरीन रचनाएं संकलित की आपने
आपके परिश्रम को सलाम
सादर
Aabhar shivam ji
सच है परिश्रम और भाग्य की चाबी दोनों का होना जरुरी है।
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार
आप सब का बहुत बहुत आभार |
वाह... शानदार लिंक. बधाई शिवम. मेरा लिंक शामिल करने के लिये आभार.
पानवाले की सुंदर कथा बहुत प्रेरक। सुंदर बुलेटिन. मेरी रचना को जगह देने का आभार। देरी के लिये क्षमा।
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