”हम्म्म!!”
”क्या समझूँ इसका मतलब? हाँ या ना?”
”पूछ ले! वैसे मैं जानता हूँ तू क्या
पूछना चाहता है, लेकिन तेरी ज़ुबान से सुननना चाहता हूँ!”
”तू मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. हमने साथ
में कितनी फ़्लाइट उड़ाई है. तुझे ट्रेनिंग के दौरान भी कितने ईनाम मिले. लेकिन
देखता हूँ कि जब भी तू इस देश की फ़्लाइट पर होता है, या इधर से गुज़रता है तो बहुत
सीरियस हो जाता है.”
”नहीं तो... ऐसा कुछ भी नहीं!”
”बहुत करीब से देखा है तुझे, महसूस कर
सकता हूँ!”
”इधर आकर मुझे किसी की याद आ जाती है.”
“याद आ जाती है से क्या मतलब? तेरी वो तो है ना तेरे घर पर?”
”मैं जिसकी बात
कर रहा हूँ, वो अमेरिकन नहीं है... वो इण्डियन है!”
“पहेलियाँ मत
बुझाओ! साफ़ साफ़ बताओ किस्सा क्या है!”
”लगभग तीस साल
पहले, इसी हवाई अड्डे पर एक हवाई जहाज आतंकवादियों द्वारा हाइजैक कर लिया गया था.”
”फिर क्या हुआ?”
”उस हवाई जहाज
में एक लड़की थी, जिसने चालक दल को आगाह किया और वे कॉकपिट के ऊपर से निकल गये ताकि
जहाज को उड़ाकर आतंकवादियों की मनचाही जगह तक नहीं ले जाया जा सके.”
”ये तो ठीक हुआ,
लेकिन पैसेंजर्स का क्या हुआ?”
”केबिन क्र्यू की
वो सदस्य आतंकवादियों के सामने थी. आतंकवादियों ने उसे सभी पैसेंजर्स के पासपोर्ट
ले लेने का हुक़्म दिया.”
”क्यों?”
”वे जानना चाहते
थे कि उनमें कितने अमेरिकी यात्री हैं. कुल 41 अमेरिकी थे. उस क्र्यू सदस्य ने सभी
के पासपोर्ट लेकर छिपा दिये.”
”.................”
”लगभग सत्रह
घण्टे तक अपनी माँग को लेकर बहस करने के बाद उन आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध गोलियाँ
चलाना शुरू कर दिया.”
”और वो लड़की जिसने
अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिये थे?”
”उसने इमरजेंसी
दरवाज़ा खोल दिया और यात्रियों को निकालने में मदद करने लगी.”
”जब दरवाज़ा खुला
तो वो ख़ुद भी तो निकल सकती थी?”
“नहीं दोस्त! वो
सबसे पहले निकल सकती थी, लेकिन अजीब जुनूनी शख्स थी वो. ऐसी भयंकर घटना में 41 में
से सिर्फ़ दो अमेरिकी की मौत हुई.”
”फ़्लाइट में
बच्चे भी तो रहे होंगे? उनका क्या हुआ?”
”बच्चों को भी
उसी ने निकाला.”
”अरे वाह! लेकिन
तुम्हें यह सब कैसे पता? वो भी इतनी बारीकी से?”
“उन बचाए गये बच्चों में एक
मैं भी था... सात साल का बच्चा.”
”अरे वाह!! तो क्या तुमने
कभी उस लड़की से मिलने या कॉण्टैक्ट करने की कोशिश की?”
”वही तो कर रहा हूँ. जब
भी इधर आता हूँ, इन रुई के फाहों से उड़ते हुये बादलों में उसे ढूँढने की कोशिश
करता हूँ.”
”इश्क़ तो नहीं हो गया उससे!”
”इश्क़ ही तो है. मुझसे 18
साल बड़ी लड़की से इश्क़. माँ है वो मेरी.”
”तू तो सीरियस हो गया
यार!”
”बात ही सीरियस है. उसने
मुझे दूसरी ज़िन्दगी बख्शी!”
”तो एक बार मिल ले उससे.
इण्डियंस तो वैसे भी बड़े प्यारे लोग होते हैं!”
”नहीं मिल सकता, तभी तो
बादलों में उसे ढूँढता हूँ. हमें बचाते हुये वो आतंकवादियों की गोली का शिकार हो
गयी. सिर्फ़ 23 साल की उम्र में.”
”हे भगवान!”
”नीरजा नाम था उसका.
नीरजा भनोत. मेरे एक इण्डियन दोस्त ने बताया कि उसके नाम का मतलब होता है पानी से
पैदा हुई. आज भी इन पानी भरे बादलों को देखता हूँ तो पूछने की तबियत होती है कि
मुझे पानी से जन्मी नीरजा से मिला दो जिसने मुझे जन्म तो नहीं दिया, पर ज़िन्दगी
दी!”
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यह एक काल्पनिक रचना है और इसका उद्देश्य नीरजा भनोत, अशोक चक्र की शहादत को
याद करना और भारतवर्ष की इस बहादुर बेटी को श्रद्धांजलि अर्पित करना है. अभी हाल
ही में सितम्बर 1986 की उस घटना पर एक फ़िल्म बनी है, जो मैंने नहीं देखी है. ब्लॉग
बुलेटिन टीम की ओर से दिये गये इस विषय पर लिखने का यह मेरा स्वतंत्र प्रयास है!
आशा है आपको पसन्द आया होगा.
- सलिल वर्मा
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