यादों की खरोंचें
विकृत चीखें
लाख भूलना चाहो
हथौड़े की तरह यादों का दरवाज़ा पीटती हैं
फिर भी न खोलो
तो कोई बहुत अपना खोलने की कोशिश करता है
तब तक
जब तक पूरी दिनचर्या न बिगड़ जाए !
कोई शुभचिंतक ऐसा नहीं होता
हो ही नहीं सकता
उसकी पुरज़ोर कोशिश ही यही होती है
कि सारे ज़ख्म हरे हो जाएँ
आँखें सूज जाये
नींदें हराम हो जाये …
ऐसे लोगों से एक दूरी ज़रूरी है
3 टिप्पणियाँ:
जख्मों को हरा रखने का यही तरीका सलीका का लगता है लोगों को.
दूरी जख्म खाने वाला बनाये तो कितनी बनाये
कुरेदने वालों का काम ही जख्म सूंधना होता है ।
सुंदर बुलेटिन ।
बढ़िया बुलेटिन दीदी ... आपका आभार |
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