जावेद अख्तर साहब ने लिखा था, "पंछी, नदिया और पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके"। एकदम सच है यह। पिछले दिनों जब हम अमेरिका और कनाडा की सीमा पर स्थित नाइग्रा जलप्रपात देखने गए तो इस ऐतेहासिक पुल हो देखकर बड़ा रोमांच हुआ। आधी नदी अमेरिका में और आधी कनाडा में और यह नदी ही इन देशों की सीमा है। उस नदी पर बना हुआ पुल दोनों देशों को जोड़ता हुआ। आखिर सेतु होता ही जोड़ने के लिए है न। भारत इतना भाग्यशाली नहीं जो इस प्रकार का आनंद ले सके!! मित्रों आप इतिहास बदल सकते हैं लेकिन भूगोल नहीं और यह हमारा दुर्भाग्य है जो हमारे ऐसे पडोसी हैं जो अपनी भुखमरी, अशिक्षा, गरीबी और तमाम समस्याएं छोड़कर भारत विरोधी गतिविधियों में संलिप्त है। आप सोच कर देखिये यदि इस प्रकार की सीमा भारत में हो तब उसी रास्ते से हमारे पडोसी क्या क्या न अंदर कर दें!! हमारे इस भूगोल के कारण सीमा सुरक्षा बल को कितना कठोर परिश्रम करना पड़ता है। बहरहाल मैं आपको कुछ चित्र दिखाता चलूँ... देखिए दो संपन्न देश, विकसित देश एक दुसरे की संप्रभुता का सम्मान करते हुए एक दुसरे के साथ खड़े हैं, एक दुसरे की तरक्की में सहायक हैं। काश की इस ज़िन्दगी में भारत और भारत के पड़ोसियों को भी संपन्न और इसी स्थिति में देख पाता!!
नायग्रा नदी पर बना यह पुल |
देशों की सीमा |
वैसे यह पुल अपनी संरचना के लिए भी मशहूर है, अर्धचन्द्राकार ताकि जहाजो का आवागमन आराम से हो सके, ठीक इसी प्रकार का पुल जम्मू रेल मार्ग पर भारतीय रेल के लिए बनाया गया है। बहरहाल भारत की सीमा की बात करते हैं.… तो यह कुछ ऐसा होता है।
अब प्रश्न यह है कि ऐसा क्यों है? इसके पीछे कई कारण हैं.… मैं उन कारणों की विवेचना नहीं करना चाहता लेकिन मैंने जब इस अमेरिका कनाडा पुल को देखा तो सोचा आपसे भी यह शेयर करूँ।
चलिए अब आगे बुलेटिन की ओर चलते हैं.....
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मित्रों आज का बुलेटिन यहीं तक, आशा है कि आपको यह बुलेटिन पसंद आया होगा। कल फिर मिलेंगे बुलेटिन के एक नए अंक में।
जय हिन्द
देव
8 टिप्पणियाँ:
बढ़िया बुलेटिन सुंदर सूत्र और शानदार चित्रों के साथ सोचनीय विषय भी ।
बढ़िया बुलेटिन देव बाबू ... आभार आपका |
नियाग्रा का असली मजा कनाडा साइड से ही आता है।बढ़िया
नियाग्रा का असली मजा कनाडा साइड से ही आता है।बढ़िया
नियाग्रा का असली मजा कनाडा साइड से ही आता है।बढ़िया
नायग्रा नदी के खूबसूरत नज़ारे के साथ सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!
cool...
लज़ीज़ खाना को बुलेटिन में शामिल करने का हार्दिक आभार।
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