प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
आज ३१ जुलाई है ... आज का दिन समर्पित है भारत देश की २ महान विभूतियों के नाम ... एक हैं अमर शहीद उधम सिंह और दूसरे हैं मुंशी प्रेमचंद |
लोगों
में आम धारणा है कि ऊधम सिंह ने जनरल डायर को मारकर जलियांवाला बाग
हत्याकांड का बदला लिया था, लेकिन भारत के इस सपूत ने डायर को नहीं, बल्कि
माइकल ओडवायर को मारा था जो अमृतसर में बैसाखी के दिन हुए नरसंहार के समय
पंजाब प्रांत का गवर्नर था।
प्रणाम |
आज ३१ जुलाई है ... आज का दिन समर्पित है भारत देश की २ महान विभूतियों के नाम ... एक हैं अमर शहीद उधम सिंह और दूसरे हैं मुंशी प्रेमचंद |
अमर शहीद उधम सिंह (२६/१२/१८९९ - ३१/०७/१९४०) |
ओडवायर के आदेश पर ही जनरल डायर ने
जलियांवाला बाग में सभा कर रहे निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई
थीं। ऊधम सिंह इस घटना के लिए ओडवायर को जिम्मेदार मानते थे।
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दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह ने
जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार का बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी, जिसे
उन्होंने अपने सैकड़ों देशवासियों की सामूहिक हत्या के 21 साल बाद खुद
अंग्रेजों के घर में जाकर पूरा किया। 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में ऊधम सिंह को फांसी पर चढ़ा दिया गया
जिसे उन्होंने हंसते हंसते स्वीकार कर लिया। ऊधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा
पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा
नहीं करते। 31 जुलाई 1974 को ब्रिटेन ने ऊधम सिंह के अवशेष भारत को सौंप
दिए। ओडवायर को जहां ऊधम सिंह ने गोली से उड़ा दिया, वहीं जनरल डायर कई तरह
की बीमारियों से घिर कर तड़प तड़प कर बुरी मौत मारा गया।
मुंशी प्रेमचंद (३१/०७/१८८० - ०८/१०/१९३६) |
वाराणसी शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर लमही गांव में अंग्रेजों के राज
में 1880 में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद न सिर्फ हिंदी साहित्य के सबसे महान
कहानीकार माने जाते हैं, बल्कि देश की आजादी की लड़ाई में भी उन्होंने अपने
लेखन से नई जान फूंक दी थी। प्रेमचंद का मूल नाम धनपत राय था।
वाराणसी
शहर से दूर 129 वर्ष पहले कायस्थ, दलित, मुस्लिम और ब्राह्माणों की मिली
जुली आबादी वाले इस गांव में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद ने सबसे पहले जब अपने
ही एक बुजुर्ग रिश्तेदार के बारे में कुछ लिखा और उस लेखन का उन्होंने
गहरा प्रभाव देखा तो तभी उन्होंने निश्चय कर लिया कि वह लेखक बनेंगे।
प्रेमचंद की कलम में कितनी ताकत है, इसका पता इसी बात से चलता है कि
उन्होंने होरी को हीरो बना दिया। होरी ग्रामीण परिवेश का एक हारा हुआ
चरित्र है, लेकिन प्रेमचंद की नजरों ने उसके भीतर विलक्षण मानवीय गुणों को
खोज लिया। प्रेमचंद का मानवीय दृष्टिकोण अद्भुत था। वह
समाज से विभिन्न चरित्र उठाते थे। मनुष्य ही नहीं पशु तक उनके पात्र होते
थे। उन्होंने हीरा मोती में दो बैलों की जोड़ी, आत्माराम में तोते को पात्र
बनाया। गोदान की कथाभूमि में गाय तो है ही। अमिताभ ने कहा कि प्रेमचंद ने
अपने साहित्य में खोखले यथार्थवाद को प्रश्रय नहीं दिया। प्रेमचंद के खुद
के शब्दों में वह आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के प्रबल समर्थक हैं। उनके
साहित्य में मानवीय समाज की तमाम समस्याएं हैं तो उनके समाधान भी हैं।
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
आज ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम इन दोनों महान विभूतियों को शत शत नमन करते हैं |
सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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भूमंडलीकरण के दौर में भी प्रेमचन्द के साहित्यिक और सामाजिक विमर्श, उतने ही प्रासंगिक
ठाकुर का कुंआ....प्रेमचंद ...(आज भी प्रासंगिक है प्रेमचंद का साहित्य)
Dr (Miss) Sharad Singh at Samkalin Katha Yatra
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!