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बुधवार, 18 जुलाई 2012

नारी ब्लॉग या नारी को जागरूक करती छावनी ( दूसरा भाग )


जाने कितना रोई
कब सिसकियाँ जब्त हुईं सीने में
अब तो बड़े से बड़े हादसे
आँखों की कोरों पे जम जाते हैं
और लोग मुझे उदासीन समझते हैं !!!....

इस उदासीनता को एक राह देने का सशक्त कदम उठाया रचना ने , एक मुहीम चलाई और कई कदम साथ हो गए . कोई भी कार्य मुश्किल नहीं होता , बस देखने और दिखाने का नज़रिया होना चाहिए और बेशक निस्वार्थ !
ब्लॉग की विवेचना से पहले मैं पहले भाग से दिनेश राय द्विवेदी जी की कही बातों पर दृष्टि डालती हूँ -
" नारी ब्लाग को उन ऐतिहासिक परिस्थितियों का अध्ययन भी सामने रखना चाहिए जिस से नारियों को दूसरे नंबर का नागरिक बना दिया गया। और एक लंबे समय तक यह सब चलता रहा। इस ऐतिहासिक जानकारी से उन्हें आगे बढ़ने के मार्ग मिलेंगे। "
नारी-ब्लॉग जब तक इस विषय को लेगी , उससे पूर्व एक नारी की हैसियत से मैं कहना चाहूंगी कि समय कोई भी रहा हो - नारी ने अर्धनारीश्वर की ही भूमिका निभाई , अनादिकाल से चंद देवताओं और इंसानों के अतिरिक्त किसी ने इसका मान नहीं रखा , स्वतः स्त्री भी इस गरिमा से खंडित कर दी गई .
मनु स्मृति ने एक तरफ नारी को देवी कहा है , पर दूसरी तरफ उसे दासी कहा है ! क्या भगवान् मनु की ये सोच है या लिखनेवालों की .... क्या मूल ग्रन्थ हमारे बीच है ? और यदि है तो विरोधाभास क्यूँ ?
मनुस्मृति में क्या कहा गया है देखिये -

१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.

२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५

३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.

४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९

५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.

६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .

७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .

८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .

९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४

१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.

११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.

१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.

१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.

१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.

(२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.

इतिहास गवाह है कि रानी लक्ष्मीबाई की शादी के बाद झांसी की आर्थिक स्थिति में अप्रत्याशित सुधार हुआ. भारत में जब भी महिलाओं के सशक्तिकरण की बात होती है तो महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की चर्चा जरूर होती है. रानी लक्ष्मीबाई ना सिर्फ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं सोचती है कि वह महिलाएं हैं तो कुछ नहीं कर सकती.
देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई के अप्रतिम शौर्य से चकित अंग्रेजों ने भी उनकी प्रशंसा की थी और वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं.
पर इतिहास के प्रशंसित पन्नों के उदाहरण कम सामने आते हैं और यदि आते भी हैं तो स्त्रियों को सीख देते , पुरुषों को नहीं .... जैसे , सीता जैसी बनो, गंगा बनो .... कहा जाता है , पर नहीं कहता कोई कि राम बनो, पापनाशिनी गंगा के सब्र का इम्तिहान मत लो !!!

जयशंकर प्रसाद जी ने कामायनी में लिखा है....
नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास-रजत-नग-पल-तल में!
पियूष स्त्रोत सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में...

मैथिशरण गुप्त ने कहा -
अबला जीवन हाय! तुम्हारी येही कहानी--
आँचल में है दूध और आँखों में पानी!... क्यूँ ?

इतिहास के पन्ने ही यदि पलटने हैं तो धर्म का मुद्दा न बनायें , मानवीय रूप में देखें --- त्याग , तप, धर्म , कर्त्तव्य , प्रताड़ना , परीक्षा .... सतयुग में सिर्फ नारियों के हिस्से रहा . क्या प्रजा के सवाल पर अग्नि-परीक्षा का हवाला देना उपयुक्त नहीं था ? गर्भवती सीता को बिना कुछ कहे वन में रखना उचित कदम था ? प्रयोजन यदि ईश्वरीय था तो क्या उसमें देवी का योगदान सिर्फ देना था और तदुपरांत धरती में सामना !!!

सारे सवाल अनुत्तरित रहे और यातनाओं के बादल मंडराते गए , तब जयशंकर प्रसाद की इन पंक्तियों पर गौर करना पड़ा -
आँसू से भींगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा -
तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा।"
और तब नारी ने नारी-ब्लॉग ने यही किया . रंजना भाटिया की इस रचना के पहलू को क्या आप नज़रअंदाज कर देंगे
" तुम पुरुष हो इसलिए तोड़ सके सारे बंधनों को
मैं चाह के इस से मुक्त ना हो पाई
रोज़ नापती हूँ अपनी सूनी आँखो से आकाश को
चाह के भी कभी मैं मुक्त गगन में उड़ नही पाई

ना जाने कितने सपने देखे,कितने ही रिश्ते निभाए
हक़ीकत की धरती पर बिखर गये वह सब
मैं चाह के भी उन रिश्तो की जकड़न तोड़ नही पाई

बहुत मुश्किल है अपने इन बंधनों से मुक्त होना
तुम करोगे तो यह साहस कहलायेगा .....
मैं करूँगी तो नारी शब्द अपमानित हो जाएगा ..."

आप इस पोस्ट से मुखातिब हों , अगली यात्रा तक के लिए रामधारी सिंह दिनकर के इन विचारों को मंत्र की तरह जपें -
” छीनता हो स्वत्व कोई और तू - त्याग ताप से काम ले; यह पाप है,
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे, बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है.”



5 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी ने कहा…

पुरूष प्रधान समाज बनाए रखने के लिए ही स्त्रियों के अधिकारों में कमी की गयी ..

लेकिन आश्‍चर्य है कि कोई भी पीढी अपनी बच्चियों के अधिकारों के लिए आगे नहीं आयी ..

स्त्रियों की स्थिति में पहले की तुलना में अब सुधार तो देखा ही जा रहा है पर इसकी गति काफी धीमी है ..
कन्‍या भ्रूण हत्‍या के फलस्‍वरूप नारी पुरूष अनुपात में गडबडी का फल भी आने वाली पीढी की स्त्रियों को ही झेलना पड सकता है ..
इस विषय पर गंभीर चिंतन और तद्नुरूप कार्रवाई आवश्‍यक है !!
समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

Asha Lata Saxena ने कहा…

नारी जागृति पर चिंतन और सकारात्मक सोच बहुत आवश्यक है |आपने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया है इस लेख के माध्यम से

vijay kumar sappatti ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट. संघर करें योग्य . बधाई .

सदा ने कहा…

आपके लेखन की सशक्‍तता इस बात को सिद्ध करती है कि जल्‍द ही यह मंत्र अपना असर दिखाएगा
” छीनता हो स्वत्व कोई और तू - त्याग ताप से काम ले; यह पाप है,
पुण्य है विछिन्न कर देना उसे, बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है.”
आभार सहित शुभकामनाएं ...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बहुत बढ़िया रही चर्चा ... :)

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