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रविवार, 22 जुलाई 2012

साप्ताहिक महाबुलेटिन लिंकशतक एक्सप्रेस प्लेटफ़ार्म नंबर एक पर खडी है .....




रविवार का दिन फ़ुर्सत का दिन होता है बेशक ये अब सनडे से फ़नडे होता हुआ रनडे (यानि भागभाग वाला दिन ) होकर रह गया है लेकिन फ़िर भी इतनी फ़ुर्सत तो मिल ही जाती है कि आराम से पोस्टों को बांचा जा सके । चलिए अब आपको लिए चलते हैं ब्लॉग पोस्टों की चकाचक रोमांचक और बेहद दिलचस्प दुनिया में ....


1.

बुरा सुनो , बुरा देखो, बुरा कहो



बुरा सुनो , बुरा देखो, बुरा कहो
तभी सत्य की लड़ाई लड़ सकोगे
अन्यथा संस्कारों के पीछे
दांतों तले जीभ रख सोचते रह जाओगे
क्या कहें , कैसे कहें !
सुनने में ही जिस बात से मन खराब होता है
देखने से वितृष्णा होती है
उसके विरोध में उठने के लिए
कान खुले रखो
आँखें खुली रखो
मीठी बातों की चाशनी में लिपटे रहने से
कुछ हाथ नहीं आता


2.पाकिस्तान के साथ पहले खेल का माहौल तो बने

 -अरविंद जयतिलक
पांच साल बाद भारत-पाकिस्तान की क्रिकेट टीम फिर एक-दूसरे के आमने-सामने होगी। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने पाक क्रिकेट टीम को दिसंबर में तीन मैचों की वनडे और दो टी-20 मैचों की सीरीज की अनुमति दे दी है। सरकार के इस फैसले से नया वितंडा खड़ा हो गया है। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि आतंकवाद और क्रिकेट दोनों एक साथ कैसे चलेगा? लोग जानना चाहते हैं कि पहले रिश्ते सुधरने चाहिए या क्रिकेट होना चाहिए? लोग हतप्रभ हैं कि जब आतंकी जुंदाल हर रोज नया खुलासा कर रहा है, 26/11 का गुनाहगार कसाब पहले ही पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा कर चुका है और आतंकी डेविड हेडली द्वारा भी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की पोल खोली जा चुकी है,  तो फिर द्विपक्षीय खेल के बहाने भारत पाकिस्तान से गले क्यों लगना चाहता है? क्या यह माना जाए कि पाकिस्तान ने भारतीय संसद पर हमला और 26/11 की आतंकी हमले के लिए माफी मांग ली है? या उसने भरोसा दिया है कि वह अब जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की मदद नहीं करेगा?


3.


नया सा दिन

रात बारिश में धोकर


सुबह सूरज से पोंछ दिया


दिन नए शीशे सा चमक रहा है |


4.

नैनीताल भाग --11......रोप - वे




रोप - वे यानी केबल -कार 



"साथ हमारा पल -भर ही सही ...
इस पल जैसा मुक्कमल कोई कल नहीं ..
हो शायद फिर मिलना हमारा कहीं---
तू जो नहीं तो तेरी यादें संग सही ...."


5.

का न करै अबला प्रबल?.....(मानस प्रसंग-7)



अब आगे ....
बालकाण्ड में पहली बार नारी विषयक उदगार तब व्यक्त हुए हैं  जब वन में नारी विछोह में भटकते भगवान राम की  सती ने परीक्षा ले ली, शंकर जी की अनिच्छा के बावजूद -नारी के इसी दुराव छिपाव को लक्षित करते हुए  संतकवि कहते हैं -सती कीन्ह चह तहहूँ दुराऊ देखऊँ नारि सुभाव प्रभाऊ ..अर्थात जो सर्वज्ञाता है सती उससे भी छल कर रही हैं -नारी का स्वभाव तो देखिये .....और इसी दुराव को लक्षित कर शंकर जी ने सती का परित्याग किया -यहिं तन सती मिलन अब नाहीं ... खुद सती के ही अगले जन्म में पार्वती यह स्वीकारती हैं -"नारि सहज जड़ अज्ञ ... नारी स्वभाव से ही मूर्ख और बेसमझ होती है ..मैंने शिवजी से कपट किया था और उसका परिणाम भोगा"  -अयोध्या काण्ड में कैकेयी ने राजा दशरथ के साथ जो प्रपंच किया उससे भला कौन अपरिचित है ..वहां भी उल्लेख हुआ है -जदपि सहज जड़ नारि अयानी..नारी तो सहज ही मूर्ख और अज्ञानी है (मतलब जन्म से ही  मूर्ख) ..राजा दशरथ नीति निपुण होते हुए भी नारी मोह में पड़ गए -कारण? जद्यपि नीति निपुण नरनाहू नारि चरित जलनिधि अवगाहू ..बिचारे क्या करते? त्रिया चरित्र ही अथाह है उसका पार नहीं  पाया जा सकता . और राजा दशरथ नारी का विश्वास कर कहीं के नहीं  रहे ....गयऊँ नारि विश्वास.....!


6.

सखी सों सावन की बतियाँ .......!!


सखी रूम-झूम गाये  जियरा ...

लूम-झूम बरसे बुंदियाँ ....
सावन की ....
सावन की मनभावन की ....!!





7.

तकनीकी जानकार कृपया सहायता करें

साथियो, 

पिछले तीन-चार दिनों से मेरे ब्लॉग से "डिजाइन" का टैब, जो होमपेज पर "नया संदेश" टैब के ठीक बाद दिखता था,ग़ायब हो गया है। इसका मौजूदा स्वरूप कुछ यों हैः 


8.

जो चल रहा है अभी

नमस्कार!
रविवार की इस हलचल में आप सभी का स्वागत है। 
आनंद लीजिये इन खास लिंक्स का-

जो चल रहा है अभी

घट जाता है कालापन
आकाश नहीं रह जाता है पहले जैसा.
फिर भी यह एक बिलकुल सामान्य सा दिन है
और न ही कोई ख़ास समय वर्ष का.


9.

अतिथि क्यों आते हो ?


मेरे एक सहकर्मी के पिताजी की तबियत ख़राब थी। उनको पीएमसीएच में भर्ती कराया गया। जान पहचान ‎वाले सभी देख आये थे। मेरी भी जिम्मेवारी बनती थी उन्हें देखने की। सो एक दिन मैं भी उनका हालचाल ‎पूछने हॉस्पिटल पहुंच गया। वहां जब मैं अपने सहयोगी को देखा तो वो खुद अपने पिताजी से ज्यादा ‎बीमार दिख रहे थे। चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था। क्योंकि उनके पिताजी उम्र के उस दहलीज पर ‎थे, जहां बीमार होना किसी अनहोनी की अंदेशा को जन्म दे देती था। ‎
               मेरे मित्र ने बताया कि कई दिनों से ठीक से खाना नहीं खाया। ठीक से सो नहीं पाया। ‎बताया कि आज वो बहुत दिनों के बाद खुलकर बातें कर रहा है। लग भी रहा था। बातचीत के दौरान ‎उन्होंने एक क़ायदे की कहानी, जिसे उन्होंने पिछले सात दिनों में अनुभव किया था। ‎


10.

एक अजीब सा डर

वो बचपन से ही डरता था.बेवजह ही एक डर उसके अंदर समायी हुई थी.लेकिन वो अपने इस डर के बारे में किसी से कुछ नहीं कहता.स्कूल जाने में, नये दोस्त बनाने में, किसी नयी जगह जाने में, सफर पे जाने में वो बेवजह ही डरते रहता.उसे सबसे ज्यादा डर लगता था अँधेरे से और सुनसान रास्तों से..स्कूल में एक दफे जब उसने अपने दोस्तों से अपने डर के बारे में कहा तो सब ने उसका मजाक बना दिया और उसे अपने ग्रुप से डरपोक कह कर अलग कर दिया.घर में जब वो एक बार कहना चाहा की उसे अँधेरे से किस कदर डर लगता है तो सबने उसकी बातों को हलकी बात समझ टाल दिया.बचपन में राह चलते जब कोई तेज रफ़्तार की गाड़ी अचानक पास से गुज़र जाती तो वो बेहद डर जाता लेकिन फिर भी अपने साथ चल रहे किसी भी बड़े का हाथ नहीं पकड़ता या उनसे चिपकता नहीं, उसे डर था की उसके साथ चल रहे बड़े उसका कहीं मजाक न बना दें.


11.

होंठ





भूक की कडवाहट से सर्द कसैले होंठ
खून उगलते, सूखे, चटके -पीले होंठ


टूटी चूड़ी , ठंडी लड़की, बागी उम्र
सब्ज़ बदन, पथराई आँखे, नीले होंठ

सूना आँगन, तन्हाँ औरत, लम्बी उम्र
खाली आँखे, भीगा आँचल, गीले होंठ


12.

डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये


नल का पानी
पूरे देश में बादल झलक दिखला के फ़ूट लिये हैं। सब लोग उसका इंतजार कर रहे हैं। लेकिन वह बरस के नहीं दे रहा है। लोग बादल के बारे में तरह-तरह की अफ़वाहें फ़ैला रहे हैं। कवि लोगों की कल्पनायें कुम्हला रही हैं। उनकी बारिश के बारे में लिखी कवितायें पन्नों पर सूख रही हैं। मन में बरसाती कवितायें कुड़बड़ा रही हैं। वे सोच रहे हैं कि जल्दी से झमाझम हो तो बरसाती कविताओं का स्टाक खपा कर जाड़े वाली कविताओं पर काम किया जाये।
जगह-जगह कालोनियों में हरियाली तीज का उत्सव मनाने के इंतजार में लोग सजधज रहे हैं। रेन डांस के लिये लोग बादलों का इंतजार छोड़कर लोग बोरिंग के पानी से कृत्तिम रेन डांस (बरखा नाच) का इंतजार कर रहे हैं। छातों और रेनकोट बनाने/बेचने वालों के चेहरे कुम्हलाये हुये हैं।
कुछ लोग बरसात के न आने को बादल-बदली के चरित्र से जोड़ रहे हैं और दोहाबाजी कर रहे हैं:
बदरा, बदरी के संग में, हुआ जाने कहां फ़रार,
बारिश के लाले पड़े, मचा है सबहन* हाहाकार

13.

बहुत हुआ आराम , अब कुछ काम किया जाए ---


पिछली दो पोस्ट्स पर हंसने हंसाने की खूब बातें हुई. देखा जाए तो हँसना भी नसीब वालों को ही नसीब होता है . अक्सर हमने देखा है , किसी भी हास्य कवि सम्मेलन में आम श्रोता तो खूब खुलकर हँसते हुए , ठहाके लगाते हुए हास्य कविताओं का मज़ा लेते हैं , लेकिन आगे की पंक्तियों में बैठे विशिष्ठ अतिथि हंसने में अपनी तौहीन सी समझते हैं . बस मुस्करा कर रह जाते हैं . बेचारे कितने गरीब होते हैं . हालाँकि यही लोग रजनीश आश्रम में जिब्रिश करते हुए बिल्कुल नहीं शरमाते . कितनी अजीब बात है --

गाँव की उन्मुक्त हवा में किसानों के ठहाके गूंजते हैं ,
यहाँ हंसने के लिए भी लोग , लाफ्टर क्लब ढूंढते हैं !


14.

खुश/उदास होने की प्रक्रिया पर संवाद

हे मानवश्रेष्ठों,

काफ़ी समय पहले एक मानवश्रेष्ठ से मेल के जरिए, उनके प्रश्न पर एक संवाद स्थापित हुआ था। यह संवाद खुश/उदास होने की प्रक्रिया को समझने के लिए इस बार यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रश्नकर्ता के स्तरानुसार ही यह थोड़ा सहज भी है।

वह कथन फिर से रख देते हैं कि आप भी इससे कुछ गंभीर इशारे पा सकते हैं, अपनी सोच, अपने दिमाग़ के गहरे अनुकूलन में हलचल पैदा कर सकते हैं और अपनी समझ में कुछ जोड़-घटा सकते हैं। संवाद को बढ़ाने की प्रेरणा पा सकते हैं और एक दूसरे के जरिए, सीखने की प्रक्रिया से गुजर सकते हैं।



खुश/उदास होने की प्रक्रिया पर संवाद

मैं जल्दी जल्दी खुश/उदास काहे हो जाता हूं....

आपके इस प्रश्न में खुश/उदास होने को फिर भी सामान्य प्रक्रिया मान कर, आपकी जिज्ञासा इतनी है कि ‘जल्दी-जल्दी’ काहे। यही आपकी जिज्ञासा का सामान्य उत्तर भी है कि आप जल्दी-जल्दी में रहते हैं, इसीलिए खुश/उदास भी जल्दी-जल्दी होते हैं, इसको समझने में समस्या क्या है?




15.

 कोणार्क सूर्यमन्दिर : स्त्री-पुरुष - संयोग और स्थापत्य के कुछ पहलू - 1

जारी कोणार्क शृंखला की एक कड़ी में विचार शून्य ने मिथुन मूर्तियों से सम्बन्धित यह जिज्ञासा जताई थी:
… दूसरी बात जिसने मेरा ध्यान खीचा वो सम्भोग रत युगल की मूर्ति थी जो मुझे सभी मंदिरों में दिखाई दी. कोणार्क के सूर्य मंदिर में तो खुजराहो की ही तरह की मूर्तियों की भरमार है. मेरे साथ यात्रा कर रहे मेरे एक मेवाती सहयोगी ने बार बार मुझसे पूछा की भाई पंडित जी आपके मंदिरों में इस प्रकार की मूर्तियाँ क्यों होती है. मैं उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाया पर कभी ना कभी उसे जवाब देना जरुर चाहता हूँ. काश टाइम मशीन का अविष्कार हुआ होता.
खजुराहो और कोणार्क में कामक्रीड़ा एकदम नग्न रूप में बहुलता से चित्रित हुई है तो इतर प्राचीन मन्दिरों में भी इक्का दुक्का दबे ढके रूप में। प्रश्न यह उठता है कि देवालयों में इन्हें प्रदर्शित करते का क्या औचित्य? क्या तुक?


16.

लेखकों की राजनीति


मध्य प्रदेश का भारत भवन अपने स्थापना काल से ही विवादों में रहा है । हिंदी के वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी की पहल पर भोपाल में बना यह साहित्य और संस्कृति का केंद्र एक बार फिर से विवादों में घिर गया है । इस बार विवाद की वजह है हिंदी के प्रगतिशील और जनवादी लेखक संगठनों से जुड़े तीन लेखकों की वो अपील जो उन्होंने जनवादी-प्रगतिवादी लेखक संगठनों से जुड़े कॉमरेड लेखकों से की है । इस अपील में इन संगठनों और विचारधारा से जुड़े साथी लेखकों से अनुरोध किया गया है कि वो भारत भवन, मध्य प्रदेश साहित्य परिषद, उर्दू अकादमी समेत मध्य प्रदेश के कई सरकारी संस्थानों के कार्यक्रमों का बहिष्कार करें ।

17.प्रतिभा जी :एक आदर्श 


(From L - R) Prime Minister Manmohan Singh, Vice President Mohammad Hamid Ansari, Thailand's Prime Minister Yingluck Shinawatra and President Pratibha Patil stand behind a bullet-proof glass during India's national anthem at the Republic Day parade

२४ जुलाई २०१२ वह दिन है जब हमारे देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल जी अपने पद से सेवानिवृत्त होंगी .प्रतिभा जी का इस पद को सुशोभित  करना सम्पूर्ण विश्व  में महिलाओं  के  शीश  को उंचा  करता है कारण सभी जानते हैं जिस देश में महिलाओं  के ३३ %आरक्षण के मुद्दे पर राजनीतिज्ञ  जहर खाने या  गंगा में कूदने की बाते करते हों वहां संविधान के सर्वोच्च पद पर एक महिला का सुशोभित होना बहुत मायने रखता है और प्रतिभा जी ने इसी पुरुष सत्तात्मक समाज को अपनी काबिलियत द्वारा आइना  दिखाया  है  .प्रतिभा जी ने अपने कार्यकाल में बहुत से ऐसे   कार्यों को अंजाम  दिया है जिनके बारे में अधिसंख्य  जनता को ये  संदेह  था  कि एक महिला होने के कारण वे इन  कार्यों को नहीं कर पाएंगी  .


18.

"मिस समीरा टेढी की अदालत में ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र हाजिर हों !"

बहणों और भाईयो, मैं "ताऊ टीवी फ़ोडके" न्यूज चैनल का उदघोषक रमलू सियार आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र का साक्षात्कार आज तक कोई चैनल नही ले पाया था. पिछली बार हमारी खोजी संवाददाता मिस समीरा टेढी ने "ताऊ टीवी फ़ोडके " चैनल के लिये महाराज का एक छोटा सा साक्षात्कार लिया था.







ताऊ टीवी फ़ोडके चैनल का उदघोषक रमलू सियार


ताऊ  महाराज धॄतराष्ट्र  को अपने बुद्धि चातुर्य से अपने वाकजाल में फ़ंसा कर मिस समीरा टेढी ने ताऊ महाराज धॄतराष्ट्र को "ताऊ टीवी फ़ोडके " चैनल के खास कार्यक्रम "मिस समीरा टेढी की अदालत में" हाजिर होने के लिये तैयार कर ही लिया.

19.

योग्य

   जब मेरे बच्चे छोटे थे, तो मुझे लगता था कि वे मेरी उपलब्धियों से, चाहे वे कितनी भी थोड़ी या छोटी क्यों न हों, अवश्य ही प्रभावित होंगे - वे मेरे द्वारा लिखी पुस्तकें पढ़ेंगे और मेरे प्रवचन देने जाने के कार्यक्रमों को मान देंगे। फिर मुझे ज्ञात हुआ कि उन्होंने कभी भी मेरे द्वारा लिखी कोई पुस्तक नहीं पढ़ी और ना ही उन्हें मेरे प्रवचन के कार्यक्रमों में कोई रुचि थी। आखिरकर जब मेरे सबसे बड़े बेटे ने मेरी एक पुस्तक पढ़ी भी, तो उसने साथ ही पढ़ने के कारण को भी मुझे बता दिया - कि मैं लोगों को यह कहना बन्द करूँ कि मेरे बच्चों ने मेरी पुस्तकें नहीं पढ़ीं हैं!

20. पुण्य लाभ कथा 

तीर्थ स्‍थली पुरी में भगवान जगन्‍नाथ के उस बहुत बड़े मंदिर में जा कर उसने जहां -कहीं भी मूर्तियां, तस्‍वीरें, फल- फूल चढ़ाए हुए स्‍थान देखे, वह श्रद्धा और आदर से उन के आगे नत मस्‍तक हो कर अपना शीश झुकाता रहा । दरअसल, वह अपने एक प्रिय जन की अकाल मृत्‍यु के पश्‍चात मंदिर में दिवंगत आत्‍मा की शांति और अपने मन को संतोष देने और पुण्‍य कमाने के इरादे से आया था ।


21.

जीवन जीने के लिए मिला है खोने के लिए हमारे आपके पास बहुत कुछ है


ऱाष्ट्रपति चुनाव के दिन विधानसभा में डियूटी लगी हुई थी सुबह 9बजे विधानसभा पहुंचा और घर पहुंचते पहुंचते रात के 10बजे गये।इस दौरान हलात बिहार पुलिस के जबान से कम नही था लगातार खड़े रहो ।शुक्र रहा पत्रकार मित्रो का जिन्होने पूरानी याद को बया कर जमकर हंसाया, इतनी हंसी याद नही कब आयी थी।घर पहुचते पहुचते किसी काम के लायक नही रह गया था, लेकिन आदतन टीवी खोलकर पूरे दिन का हाल जानने बैंठ गया सभी चैनलो पर  राजेश खन्ना छाये हुए थे देखते देखते कब नींद आ गयी पता ही नही चला । अचानक मोबाईल की घंटी बजने लगा अमूमन देर रात मोबाईल की घंटी बजने पर एक से दो रिंग में उठा लेते हैं लेकिन लगता है शायद उस दिन अंतिम रिंग के दौरान मोबाईल उठाया सर मैं बर्डीगार्ड राजीव बोल रहा हूं मैंडम हाथ काट ली है और साहब का मोबाईल नही लग रहा है अचानक नींद में लगा कोई खोलता हुआ गर्मी पानी डाल दिया ।

22.आदित्य प्रकाश की पहली कहानी 

असुविधा पर मेरी कोशिश हमेशा से नए से नए रचनाकार को स्पेस देने की है. मुझे संतोष है कि आज प्रिंट तथा ब्लॉग, दोनों क्षेत्रों में अपनी जगह बना चुके तमाम रचनाकार सबसे पहले या अपने बिलकुल आरम्भ के समय में असुविधा पर छपे थे. आज इसी क्रम में आदित्य प्रकाश की यह पहली कहानी पेश करते हुए एक गहरा आत्मसंतोष हो रहा है, यह इसलिए और कि मैंने पिछले दो सालों में आदित्य के भीतर के मनुष्य और रचनाकार, दोनों को बनते हुए और बदलते हुए देखा है और इस कहानी की रचना-प्रक्रिया में कहीं न कहीं शामिल भी रहा हूँ. काल सेंटर में काम करने वाले एक संवेदनशील युवा की कशमकश को यह कहानी बहुत  सहजता से दर्ज करते हुए नवउदारवादी आर्थिक व्यवस्था के इन नए प्रेक्षागृहों के भीतर पनप रही उस नयी संस्कृति के उस भयावह चेहरे को बेपर्द करती है, जिसे सतरंगे रैपरों में लपेट कर पेश किया जाता है.


23.

मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता

राजेश खन्ना ने कुछ दिनों पहले ही एक पंखे की कंपनी के विज्ञापन में कहा
था कि मेरे फैन्स मुझसे कोई नहीं छीन सकता. कॉरपोरेट जगत में इस विज्ञापन
की बहुत खिल्ली उड़ाई गयी थी. विशेषज्ञों का मानना था कि अब राजेश खन्ना
में वह बात नहीं रही और उन्हें किसी प्रोडक्ट का ब्रांड अंबैस्डर बनाना
सही नहीं. लेकिन यह आर बाल्की की सोच का ही नतीजा था और उनके विश्वास का
कि उन्होंने किसी की बात नहीं मानी और राजेश खन्ना को श्रद्धाजंलि के रूप
में ही यह विज्ञापन दे दिया. यह सच है कि ग्लैमर की दुनिया में कुछ दिन
की जिंदगी का सफर तो सुहाना होता है. लेकिन यहां कल क्या हो, किसी ने
नहीं जाना है .

24.

जंगल में मंगल !

चित्र बनाते हुये खुद का चित्र !
चित्र बनाने में तल्लीन !



चित्र हो गया  तैयार !






















25.

रामचरित मानस से : सत्संगति दुर्लभ संसारा .....

सावन मास चल रहा है . काफी जगह भजन पूजन रामायण आदि कार्यक्रम चल रहे हैं . आज रामचरित मानस पढ़ने का अवसर मिला . रामायण में बहुत ही सुन्दर दोहे पढ़ने मिले . रामायण में सत्संगति के सन्दर्भ में तुलसीदास जी ने लिखा है -

मति कीरति गति भूति भलाई
जब जेहि जतन जहाँ जेहि पाई

सो जानव सतसंग प्रभाऊ
लोकहुँ वेद न आन उपाऊ

26.

सोनल मानसिंह:मानो खजुराहो का कोई मुसम्मम बतिया रहा है



उनसे मिलें तो लगता है कि भारतीय नृत्यकला का श्रेष्ठतम स्वरूप आपसे रूबरू है.गौरवर्ण,दमकता चेहरा, चपल नेत्र और भव्य भाल को सुशोभित तिलक जैसे भारतीय संस्कृति का एक अनोखा सोपान सिरज रहा है. उम्र तो बढ़ चली है लेकिन मानसिक चैतन्यता का ये आलम है उनकी वाणी,विचार और देह सब एक नृत्य वीथिका बनकर पूरे परिवेश को सुरभित कर रहे हैं.वे नृत्य के समग्र विन्यास और विधा का साक्षात्कार हैं.हर बात को गौर से सुनती और उसका सुलझा हुआ उत्तर देतीं ये हैं सोनल मानसिंह निजी प्रवास पर शहर में थीं और चंद लम्हे उन्होंने नईदुनिया से बतियाने के लिये निकाले.



27.

आज बस कुछ चीथड़े हैं हाथ में...


हर तरफ बर्बर शिकारी घात में, क्या करें
रास्ते पर ही चलें या ओट में, क्या करें

संवेदनाएं लुट गईं  उस महजबीं के साथ कल
आज बस कुछ चीथड़े हैं हाथ में, क्या करें

इक दिन पहनकर देखिए शर्म-ओ-हया
भूलकर सारी नसीहत पूछोगे, क्या करें

न छुई उंगली भी तो क्या फ़र्क है
तन-बदन नजरों से है छलनी किया, क्या करें

28.

देश से बाहर शहीद होने वाले पांच क्रान्तिकारियो में से एक - रहमत अली

हमत अली पंजाब के लुधियाना जिले के हलवासिया ग्राम के रहने वाले थे | सामान्य शिक्षा ग्रहण करके वे फ़ौज में भर्ती हो गये | अपने उत्साह और समझदारी के कारण शीघ्र ही फ़ौज में हवलदार हो गये | वे ' मलय स्टेट गाइड ' में तैनात थे | मलय - स्टेट गाइड की टुकड़ी ( सिंगापुर ) में तैनात थी |
प्रथम विश्व युद्ध का समय था | अमेरिका स्थित गदर पार्टी में कार्यरत प्रवासी भारतीय क्रांतिकारी स्वतंत्रता आन्दोलन में जुटे हुए थे | अपने प्रचार के लिए यह पार्टी क्रान्तिकारियो को हांगकांग , शघाई , बर्मा, रंगून, स्याम, आदि देशो में भेज रही थी | बर्मा भी अंग्रेजो के अधीन था | वहा भी भारतीय सैनिको वाली अंग्रेजी सैनिको के बल पर ही राज कर रहे थे |
गदर पार्टी के प्रचारको ने रहमत अली से सम्पर्क स्थापित किया | उन्हें अंग्रेजो से मुक्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों की सूचना दी और उन इस कार्य में सहायता मांगी | उनसे कहा ' अंग्रेज इस समय अपनी ही लड़ाई में फंसे हुए है | यही वक्त है , जब हम अपनी स्वतंत्रता पा सकते है | तुम इसके लिए अपने साथियो को तैयार करो | ' रहमत अली की देश प्रेम की भावना जाग उठी | उन्होंने वचन दिया की वे हर कुर्बानी देने के लिए तैयार है | थोड़े दिनों में उन्होंने अन्य साथियो को भी तैयार कर लिया |

29.

तुम्‍हारी हर ख्‍़वाहिश को ...






















कुछ बातों पर
यकी़न करना जैसे कील चुभोना होता है
सच की नोक इतनी पैनी
फिर भी झूठ के
आवरण उसे ढंकते रहते हैं
चुभ सकती थी ऐसे जैसे किसी ने
ठोक दिया हो जबरदस्‍ती
पर वह चुभती रही हर बार
एक नई जगह पर
और छलनी कर देती पूरा का पूरा


30.

सुषमा नैथानी के कविता संग्रह पर एक टीप

थोड़ी-सी निजता से बाहर ढेर सारी जगह
सुषमा नैथानी मूलत: जीन-विज्ञानी हैं। नैनीताल में उसी विश्‍वविद्यालय में पढ़ी हैं, जिसमें मैं भी पढ़ा हूं और अब पढ़ाने की जिम्‍मेदारी निभा रहा हूं। वे मेरी सीनियर हैं और अब दूर अमरीका में अध्‍यापन और शोध कर रही हैं। जगह का भी एक रिश्‍ता जुड़ता है और सुषमा से जुड़ा भी है। मेरा उनसे परिचय ब्‍लागिंग की शुरूआत करते हुआ। नैनीताल की अपनी स्‍मृतियों को समेटते हुए उन्‍होंने नैनीताली नाम से एक ब्‍लाग शुरू किया...जिसमें नैनीताल से रिश्‍ता रखने वाले कई लोग सहलेखक के रूप में जुड़े। नैनीताली से पहले से सुषमा स्‍वप्‍नदर्शी नाम का ब्‍लाग लिखती आ रही हैं...जिसका मैं नियमित पाठक रहा हूं। वहां उनकी लिखी टीपों और लेखों में  मेरे लिए उनका  लेखकीय व्‍यक्तित्‍व उभरने लगा था.....फिर उनकी कुछ कविताएं वहां देखीं और लगा कि कुछ तो है, जो अलग हो रहा है। ये कविताएं निजी अनुभवों से शुरू होकर एक विस्‍तार में स्‍थापित होती दीख रही थीं। इनमें स्‍त्रीकविता का चालू हिंदी मुहावरा कहीं भी मौजूद नहीं था...कुछ भी सायास नहीं था....सब कुछ जैसे घट रहा था और अपने लिए जगह बना रहा था। मैंने सुषमा की कविता में समय और स्‍थान के समीकरणों को पहचानना शुरू किया और आज की हिंदी कविता में उनका एक मुकाम भी देखने लगा। अब सुषमा नैथानी का कविता संग्रह उड़ते हैं अबाबीलछपकर आया है तो ये मुकाम और भी स्‍पष्‍ट होने लगा है।
***

31.

शुभचिन्तक : सरोजकुमार

मेरा मित्र स्वस्थ होकर
अस्पताल से घर लौट आया!
मैं अफसोस मना रहा हूँ,
यह सोचते हुए
कि मैं उसकी मिजाजपुर्सी को
पहुँच पाता
उसके बाद वह स्वस्थ होकर
घर लौटता
तो कितना अच्छा होता!
-----

‘शब्द तो कुली हैं’ कविता संग्रह की इस कविता को अन्यत्र छापने/प्रसारित करने से पहले सरोज भाई से अवश्य पूछ लें।

सरोजकुमार : इन्दौर (1938) में जन्म। एम.ए., एल.एल.बी., पी-एच.डी. की पढ़ाई-लिखाई। इसी कालखण्ड में जागरण (इन्दौर) में साहित्य सम्पादक। लम्बे समय तक महाविद्यालय एवम् विश्व विद्यालय में प्राध्यापन। म. प्र. उच्च शिक्षा अनुदान आयोग (भोपाल), एन. सी. ई. आर. टी. (नई दिल्ली), भारतीय भाषा संस्थान (हैदराबाद), म. प्र. लोक सेवा आयोग (इन्दौर) से सम्बन्धित अनेक सक्रियताएँ। काव्यरचना के साथ-साथ काव्यपाठ में प्रारम्भ से रुचि। देश, विदेश (आस्ट्रेलिया एवम् अमेरीका) में अनेक नगरों में काव्यपाठ।

32.

गणितीय कला के कुछ शानदार नमूने

गणित और कला का पुराना नाता है। वैदिक यज्ञों में बनने वाली वेदियों और हवन कुंडों से लेकर  पिरामिड तक। पुराने से पुराने कला के नमूनों में गणितीय अनुपात देखे जा सकते हैं। 
इससे पहले इस ब्लॉग पर सुनहरा अनुपात (गोल्डेन रेशियो/सौंदर्य अनुपात), फ्रैक्टल, और एक गणितीय नेकलेस जैसी कुछ पोस्ट में ऐसी कलाओं का जिक्र मैंने किया था । पर पिछले दिनों ब्रिजेस गणितीय कला का लिंक मिला। यहाँ पर आप कुछ आधुनिक गणितीय कला के शानदार नमूने देख सकते हैं।
पिछले कुछ प्रदर्शनियों की कलाकृतियाँ और 2012 के कोन्फ्रेंस में दिखाई जाने वाली कलाकृतियाँ भी।

एक से बढ़कर एक ! जैसे ये दो नमूने देखिये। ये बर्कली स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के कम्प्युटर साइंस के प्रोफेसर कार्लो सेक्वेन की कलाकृति है।
नीचे वाली कलाकृति बैरी सिप्रा की है। इनकी कलाकृति 'लूपी लव' मोबियस स्ट्रिप पर लिखी गयी एक लघु प्रेम कहानी है। मोबियस स्ट्रिप की ये खासियत होती है कि उसकी सतह एक ही होती है। अर्थात आप जहां से चलें वहीं वापस आ जाते हैं... अर्थात जिस पन्ने से बनाया जाय उस असली पन्ने का दोनों हिस्सा तय कर लेते हैं - बिना कभी पन्ना पलटे !


33.

साल 2011 में 14 हजार से अधिक किसानों ने की आत्महत्या

द हिंदू के ग्रामीण मामलों के संपादक पी. साईनाथ विदर्भ और दूसरे राज्यों में किसानों की आत्महत्याओं पर लगातार लिखते रहे हैं. 3 जुलाई के द हिंदू में उनका यह नया लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र में लगातार बढ़ती आत्महत्याओं पर चिंता जताई है. मनीष शांडिल्य का अनुवाद.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार 2011 में कम से कम 14,027 किसानों ने आत्महत्या की है. इस तरह 1995 के बाद से आत्महत्या करने वाले किसानों की कुल संख्या 2,70,940 हो चुकी है. महाराष्ट्र में एक बार फिर आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज की गयी है. महाराष्ट्र में 2010 के मुकाबले 2011 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 3141 से बढ़कर 3337 हो गई. (2009 में यह संख्या 2872 थी). बीते एक साल से राज्य स्तर पर आंकड़ों के साथ की जा रही भारी छेड़छाड़ के बावजूद यह भयावह आंकड़ा सामने आया है. आंकड़ों को कम कर बताने के लिए ‘किसान’ शब्द को फिर से परिभाषित भी किया गया. साथ ही सरकारों और प्रमुख बीज कंपनियों द्वारा मीडिया और अन्य मंचों पर महंगे अभियान भी चलाये गये थे जिसमें यह प्रचार किया गया कि उनके प्रयासों से हालात बहुत बेहतर हुए हैं. महाराष्ट्र एक दशक से भी अधिक समय से एक ऐसा राज्य बना हुआ है जहां सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है.

 



34.

छूटती, किताब..

रहती तो ढेरों, उनकी गिनती का अंत नहीं, मगर असल वाली, मन के भीतर घुमड़ती बिछलती, भागती रेल की खिड़कियों से क्षण भर को अपना रुप दिखाके, भड़भड़ाते पीछे छूटते पुल के शोर के पार पेड़ों, जंगल के उतरते तिलिस्‍म में फिर अपने को छिपाये जाती, असल बहुरुप शैतान, हाथ कहां आती. जैसे मन हमेशा साथ रहता. छोटी लाईन के पटरियों से लगी गिट्टि‍यों पर सावधानी से पैर धरने के इशारे बताता, भीड़भरे उजड़े प्‍लेटफार्म की स्‍थूल निर्मम, महीन (प्रकट एक-एक और छिपी हज़ार) उदासियां गिनाता, उन्‍हीं अंतरंग उदासियों में कुछ बहुत खुद भी नहाये हुए, मुंह पर रुमालधरे मुस्‍कि‍याता, लजाता, मगर मन की ठीक-ठीक दशाकथा क्‍या है किस पेड़ पर रहती और किसके थाल में कब खाती, कभी कहां बताता. पिटे मौसम औ’ अव्‍यस्थित जीवन की धार छाती के भीतर हड्डियों में किसी घबराये कफ़ सी बजती, मानो कोई पुकारता हो दूर से.

35.

कामिनी कामायनी की कहानी : विरक्त

विरक्त
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मध्यम वय के हैडमास्टर गोरे चिट्ट़े सक्रिय खुश मिजाज़ चुंबकीय व्यक्तित्व के सामाजिक और उपकारी जीव थ़े। सबके मदद के लिए सदैव तत्पर। घमंड नाम के विषाणु से परम दूर। अपने सहकर्मियों पर कभी उन्होंने बिना जरूरत अपनी राय नही थोपी। अनुशासन और अध्ययन के क्षेत्र में स्कूल उनके समय में ख्याति के चरम शिखर पर पहॅुच गया था। पूरे शहर ही नहीं बल्कि आस पडोस क़े दूर दराज के इलाकों के लोग भी अपने बच्चों को उस स्कूल में भेजने के लिए लालायित रहते थे।
वहॉ साधारण प्रतिभा के छात्रों में भी कुछ न कुछ विशिष्टता देखकर उन्हें विभिन्न अवसर और प्रोत्साहन प्रदान किए जाते जिससे विज्ञार्थी कुछ न कुछ नवीन कर दिखाते और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी वे अव्वल आते। गरीब और अमीर जैसा भयंकर प्रदूषण कारी तत्व उस विद्या मंदिर से सैकडों मील दूर। नूतन पुरातन शिक्षा का अपूर्व संगम।



36.

मैंने माण्डू नहीं देखा

मेरे ऐन सामने खड़े होकर उसने कहा-

मैंने मांडू नहीं देखा

यह मुझे बोला गया उसका दूसरा वाक्य था। पहले में नाटक कोर्टमार्शल की प्रशंसा की थी। मैंने छोटा सा थैंक्स कहा। यह वाक्य कि मैंने मांडू नहीं देख मेरे मस्ष्तिक पर अंकित नहीं हुआ। क्योंकि अभी तक मेरे सारे सन्दर्भ कोर्टमार्शल से जुड़ु हुए थे।

मुझे अवाक देख समझ गयी कि मैं नहीं समझा। मेरा सामान्य ज्ञान बढ़ाया- मांडू मध्य प्रदेश में रानी रूपमति और बाज बहादुर का महल है।

जब बोली तो संयोग से मुझे उसके दाँत दिख गए, तारों के से चमकते। मैं चौकस और चौकन्ना उसे ध्यान से पहली बार देखा। रीतिकालीन कवियों के नायिका भेद समझ भी गए, याद भी गए। उसका सर मेरे कन्धे तक। मैंने पुलोवर डाल रखा था, जो नवम्बर में डालना चाहिए। उसने साड़ी डाल रखी थी। काटन की साड़ी जो नवम्बर में नहीं डालनी चाहिए थी। अभी तक अपने अन्दर से कोई खतरा सिगनेल नहीं मिला। हालाँकि माथे में रखा हैंड-गेनेड हिला जरूर।

37.

...हो ही नहीं पाता


गेरुये, धानी, पियरे सगरे बादलों को
नीले आकाश में टाँक दूँ चकतियों की तरह और
कहूँ कि कपड़ों से तुम्हारा रूप झाँकता है पूरनवासी के चन्दा सा
आभास देता सुगोल सुपुष्ट निर्दोष गोलाभ का
मगर हो नहीं पाता कि पाता हूँ बादल हटे तो चन्दा वैसे ही रहे
पर कपड़े हटें तो लरज उठती है तरलता मात के नीर सी
आँसू ले बड़े रूप थन हो किलक उठते हैं
नल पर नहाती माँ उभर आती है आँखों में माँगती तौलिया
एकदम सहज सी अनावृत्त जैसे बछरू के संग गइया
कैसे वे भाव उकेरूँ? हो ही नहीं पाता।




38.

शीर्षक :- बचपन


दो साल का बच्चा होते देर नहीं....
इस छोटे से बचपन में,
कापियाँ और किताबों का भार....
हमारे सर बांध देते हैं,
बचपन की जिन्दगी तो....
खेलने की होती है,
लेकिन हमारे माँ बाप....
खेलने कहाँ देते हैं,
बस उनका तो एक ही सपना होता है....
मेरा बेटा आगे चलकर इंजीनियर बनेगा,


39.

"बचाओ बचाओ शेर आ गया "

आज रुद्र "लायन" बन कर स्कूल  गया .हम दोनों (रूद्र के माँ पापा ) उसके संग गए .रूद्र घर से कॉस्टयूम  पहन कर नहीं गया था .माँ ने उसे क्लास में ही पीछे ले जा कर झटपट पहना  दी क्लास में और बच्चे भी थे एक मुर्गा बना था एक कृष्ण बना था और हाँ एक बच्चा "तेंदुआ बन कर आया था .मगर  सब चुपचाप अपनी जगहों पर  जा कर बैठ गए थे .और जैसे ही ध्रुवऔर सागर(ये दोनों उसके साथ वैन में  हैं और अक्सर उसे बुली करते हैं)  ने उसे शेर बना देखा ...खेल शुरू .रूद्र शेर की तरह उनके पीछे पीछे भाग रहा  था और  डरते हस्ते भाग रहे थे "बचाओ बचाओ शेर आ गया "माँ ने उसका वीडिओ भी बना लिया .(मगर जाने क्यूँ मोबाइल से कंप्यूटर पर लोड नहीं हो पा  रहा,कनेक्ट ही नहीं हो रहा)एक आंटी ने तो रूद्र की अपने बेटे (जो मुर्गा बना था ) के साथ फोटो  भी ली . फिर माँ पापा ने मैम से पूछा " हम रुक कर परफोर्मेंस देख सकते हैं मगर मैम बोली "सॉरी "


40.
कुछ टूटा फ़ूटा 
जिनके कट्टा
उनकी सत्ता
ये फेटें सट्टे पे सत्ता
सत्ता की छत्ता में
ये घुमड़े मदमत्ता
हाथ में साधे छूरी चाकू
मुंह में चांपे पान का पत्ता
संसद में भरे कुलांचे
भये इकठ्ठा सारे लत्ता
जनता के दुःख सुख खट्टा मिट्ठा
मुद्दे हो गए दही और मट्ठा



41.इसलिए तो ये आरक्षण है

 आज सुबह मैंने फेस बुक पर एक पोस्ट देखी जिसमे आरक्षण का विरोध किया गया था मैं भी वर्तमान समय में दिए जा रहे आरक्षण का समर्थक नहीं हूँ आरक्षण जातिगत न होकर योग्यता और आर्थिक स्थिति के आधार पर होना चाहिए. पर फिर भी आज कुछ मन कर रहा है इस मुद्दे पर कहने को, जो लोग आरक्षण विरोधी है वो मेरी जाति को देख कर मुझे भी गालियाँ देगे, और शायद ये भी कहे कि तुम तो ये बोलोगे ही…क्योकि मैं भी उस आरक्षण प्राप्त तथाकथित निम्न वर्ग से ही हूँ……….फिर भी अपनी सोच आपके सामने रखने का एक प्रयास कर रहा हूँ …..कि …. आज जो भी ग्रुप आरक्षण के विरोध में एफ़० बी० पर है उनके अधिकांश सदस्य बिना चिन्तन के इस मुद्दे पर आरक्षण प्राप्त निम्न वर्ग के सदस्यों को अभद्र भाषा से नवाजते रहते है यहाँ पर मैं उनसे सवाल करना कहता हूँ कि क्या इस नीति का जिम्मेदार सिर्फ आरक्षण प्राप्त तथाकथित निम्न वर्ग ही है? और जवाब अगर हाँ है तो…………फिर भी मैं उन लोगों से सर्व प्रथम माफ़ी चाहता हूँ जो लोग मेरी बात से समत नहीं है………मुझे पता हैं कि जो लोग आरक्षण के धुर विरोधी है— वे हाथी नहीं गणेश के उपासक हैं, मैं चाहता हूँ कि वो लोग थोड़ी बुद्धि की भिक्षा भगवान् गणेश से अपने लिए भी मांग ले :)

42.शायद मेरी आयु पूरी हो गई 

देहरादून की सुंदर घाटी में स्थित प्राचीन टपकेश्वर मन्दिर , शांत वातावरण और उस पावन स्थल के पीछे कल कल बहती अविरल पवित्र जल धारा, भगवान आशुतोष के इस निवास स्थल पर दूर दूर से ,आस्था और विशवास लिए ,पूजा अर्चना करने हजारो लाखों श्रदालु हर रोज़ अपना शीश उस परमेश्वर के आगे झुकाते है और मै इस पवित्र स्थान के द्वार पर सदियों से मूक खड़ा हर आने जाने वाले की श्रधा को नमन कर रहा हूँ |लगभग पांच सौ साल से साक्षी बना मै वटवृक्ष इसी स्थान पर ज्यों का त्यों खड़ा हूँ |आज मेरी शाखाओं से लटकती ,इस धरती को नमन करती हुई ,मेरी लम्बी लम्बी जटायें जो समय के साथ साथ मेरा स्वरूप बदल रहीं है , मुझे अपना बचपन याद दिला रही है ,उस बीते हुए समय की,जब इस पवित्र भूमि का सीना चीर कर ,मै अंकुरित हुआ था ,अनगिनत आंधी तूफानों ,जेष्ठ आषाढ़ की तपती गर्मियों और सर्दियों की लम्बी ठंडी सुनसान रातों की सर्द हवाओं के थपेड़े सहते सहते मै आज भी वहीँ पर,चारो ओर ,अपनी लम्बी जड़ों के सहारे ,टहनियां फैलाये हर आने जाने वाले भक्तजन को ,चाहे तपती धूप हो यां बारिश हो ,कैसा भी मौसम हो ,उनको अपनी घनी शाखाओं की ठंडी छाया देता हुआ अटल सीना ताने खड़ा हूँ |





43.भ्रष्ट कौन सत्ता या समाज

भ्रष्ट कौन – सत्ता या समाज — आज पूरे देश में हाहाकार मचा है भ्रष्टाचार,अनैकतिकता,अराजकता ,व्यभिचार,का..कोई जुटा है भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन में और कोई अनैतिकता,व्यभिचार मिटाने के नाटक में.. क्या है ये सब ??? और क्यों ??? कितनी सचाई है इन सब में ??? क्या ये जो नेता दिखा रहे है वो सत्य है ? नहीं ..हर अनशन में स्वार्थनिहित है जिसमे वो लोग जनता का भला नहीं कर रहे अपनी दबी हुई इच्छाओं लोभ मोह को पूर्ण करते है “ भ्रष्टाचार हटाओ “कह देने से क्या भ्रष्टाचार मिट जायेगा ??? नहीं .. मेरा तो कहना है कि भ्रष्टाचार , अनैकतिकता ,व्यभिचार,अराजकता मिटाना है तो ये नेताओ और राजनैतिक लोगो के वश में नहीं क्यूंकि वो पूर्णता लिप्त है इन्ही बुराइयों में.. सो इन को दूर करने के लिए जनता को आगे आना होगा इन बुराईयों को दूर करने का बीड़ा उठाना होगा क्योंकि जनता ही जब इन बातो के प्रति जागरूक होगी तभी क्रांति आएगी सबसे महतवपूर्ण ये है कि देशवासियो को अपने “मौलिक अधिकारों “ का पूर्ण ज्ञान होना जरुरी है अपने मौलिक अधिकारों कि जानकारी जनता को होगी तभी उन्हें ज्ञात होगा कि जिन नेताओ कि तरफ जनता अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने जिन हको को को पाने के लिए नेताओ के ऊपर आश्रित है



44.हमारी बला से हम खुश हैं


कहते हैं भूत तो महान था भविष्य भी महान है आप यदि संभाल लें उसे जो वर्तमान है. यह कथन सत्य एवं सर्वमान्य है और इसमें संशय की कोई गुंजाईश नहीं है ऐसे वाक्य दैनिक जीवन में हम जैसे आम लोगों को प्रेरित करने के लिए ही ठीक हैं. किन्तु यदि देश के बारे में बात की जाये, देश को चलाने और तमाम सुधारों की बात की जाये तो व्यवस्थाओं के मद्देनजर प्रथम पंक्ति में कही हुयी बातें किसी भी कोण से ठीक नहीं उतराती हैं. किसी इतिहासकार से वार्ता कीजिये तो भारत की गौरव गाथा सुनकर अत्यंत ही आत्मिक शांति और सुकून मिलेगा, अंग्रेजों के खिलाफ हम ऐसे लड़े वैसे लड़े. लेकिन अक्सर मैं सोचने पर मजबूर हो जाती हूँ कि आखिर हम गुलाम हुए ही क्यों, आखिर ऐसा क्या था अंग्रेजों में जो सात समंदर पार से आकर वर्षों तक हमको गुलाम बनाकर रखा मुठ्ठी भर लोगों ने जबकि उस समय तो आज के समय के हिसाब से तकनीकी दृष्टि से दुनिया बहुत पीछे थी. ना ही संचार के साधन थे और ना ही परिवहन के इतने साधन थे फिर सात समंदर पार से चंद लोग आकर हमीं को हमारे ही देश में गुलाम बनकर रहने पर मजबूर कर दिया. आखिर क्या कमी थी उस समय के भारत में और हमारे पूर्वजों में?



45.स्त्रियों पर अंकुश लगाता लोकतांत्रिक समाज

 जिस दिन भारत में एक पंचायती फरमान महिलाओं की स्वतन्त्रता पर अंकुश लगा रहा था उसके दूसरे ही दिन अमेरिका अपने देश की एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटा था . उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक खाप पंचायत द्वारा महिलाओं पर लगाए गए अंकुश और अमेरिका में एक महिला को अन्तरिक्ष में भेजने की घटना विकसित और विकासशील देशो के बीच मुद्दों में अंतर को रेखांकित करता है . भारतीय मूल की 46 वर्षीय अमेरिकी अन्तरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स दूसरी बार अन्तरिक्ष में कदम रखने जा रही है और दूसरी ओर बागपत जिले के खाप पंचायत का फरमान है कि 40 वर्ष से कम उम्र की महिला बाजार में नहीं जा सकती है . क्या हम कल्पना कर सकते है कि सुनीता विलियम्स अगर भारत में होती तो क्या कर रही होती ?

46.तेरे मेरे दरम्यां

गुज़र गया वो जो लम्हा चुप
तेरे मेरे दरम्याँ बात उसकी
अब क्यूँ करे आके मेरे दायरे
जुस्तजू जिसकी हमेशा दिल
लिए बैठा रहा ख्वाहिशे दिल
हमेशा कब हो रही मुकम्मल
ज़ज्बात की आंधी में दौड़ा जो
जुनूं अब कहाँ भीड़ सी दिखती
हमेशा गिर्द तेरे ही सदा चाहतों
का मजमा लगा अब तो करता
रात दिन भूले से जो याद आये



47.हर बार नया बहाना तो कैसे पकडे
 हर बार नया बहाना, तो कैसे पकड़े जमाना। बात-बात पर बहाना बनाने वाले भी कमाल के होते हैं। उनके पास बहानों की लंबी सूची होती है। वे हर बार नया प्रयोग करते हैं और बहाना बनाने में कामयाब हो जाते हैं। वैसे तो बहाने बनाने के लिए कोई विषय निर्धारित नहीं होता। कई बार तो व्यक्ति जरूरत पड़ने पर मजबूरन बहाना बनाता है और कई की बहाना बनाने की आदत ही बन जाती है। सरकारी दफ्तर हों या निजी संस्थान। कहने को सभी में कर्मचारियों की छुट्टी व साप्ताहिक अवकाश की सुविधाएं होती हैं, लेकिन कई बार कर्मचारियों को साप्ताहिक अवकाश से लाले तक पड़ जाते हैं। एक साथ कई कर्मचारियों के छुट्टी पर जाने से अन्य की छुट्टी निरस्त कर दी जाती है। ऐसे में बहाना बनाने वाले ही अपनी चालों से विपरीत परिस्थितियों में छुट्टी लेने में कामयाब हो जाते हैं।


48.साधु संतों का बडा अपमान

यहाँ होता
साधू-संतो का बड़ा अपमान…!
फिर भी न जाने
केसे है मेरा ये देश महान…?
कोंग्रेस साधुओ कि सुध ले,
ये हो सकता नही
और भाजपा इनकी सुनले
ये अब होगा नही …?
वोटों के खातिर हमने
बेच दिया अपना इमान और धर्म…!
शायद इस लिए
राजनेता कहलाते बेशर्म ….?

49.शरीर के हर जोड दर्द का कारण यूरिक एसिड नहीं होता

यूरिक एसिड मेडिकल साइंस के सबसे बड़े खलनायकों में से एक माना जाता है . कई डॉक्टर यूरिक एसिड के भौकाल से मरीजों को डराते हैं . कमर में दर्द या जाँघों में सूजन , दोष यूरिक एसिड के मत्थे मढ़ा जाता है . दर्द का शिकार चाहे चार साल का बच्चा हो या चौबीस साल की औरत , सम्बन्ध यूरिक एसिड से ही जोड़ा जाता है .
यूरिक एसिड की मेडिकल साइंस में वही बेईज्ज़ती है जो भारतीय राजनीति में पाकिस्तान की है . भारत में हर कुख्यात घटना के लिए पाकिस्तान ज़िम्मेदार माना जाता है . बदन में चाहे जहाँ दर्द हो डॉक्टर साहब यूरिक एसिड ज़रूर कराते हैं और फिर यूरिक एसिड पर दर्द का दोष मढ़ देते हैं . मरीज़ को नफरत करने की वजह मिल जाती है .



50.टिप्पणी मनमोहन बनाम टाइम

इसमें कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा| पहला कि हम प्रधान-मंत्री को किस नज़र से देखते हैं, दूसरा कि हम मीडिया को किस नज़र से देखते हैं| जिस दिन PM साहब का बयान आया, “…मैं मनमोहन सिंह और मैं भारत का प्रधान-मंत्री..” शायद ही ये बयान किसी को याद हो, उस दिन मैं समझ गया कि कुर्सी को हम जिस नाम से बुलाएं पर उसपर बैठने वाला गरम खून वाला इंसान बिलकुल नहीं है! जब हमने कई तरह की ख़बरों पर लिखा, यथा, महंगाई, भ्रष्टाचार, सुरक्षा, विदेश-नीति और विकास इत्यादी तो कभी भी प्रशंसा का एक भी शब्द, गलती से भी नहीं कहा! भारत में मीडिया को हमने paid-media कहना सीखा है, लेकिन प्रशसा है कि ऐसे लोग भी राजनैतिक छल-छंदों को छुपायें पर भारत-निर्माण की बातें कहनें में उनकी जुबान फिसलती है|


आइए अब चलते हैं रैपिड फ़ायर राउंड पर :


51.अपने चेहरे पे ज्यादा न रीझा करें :न ही दूसरों के मेकअप पर खीजा करें


52.हसरतों की नुमाइश : और मुहब्बत की फ़रमाईश ...की नहीं जाती


53.नज़र अपनी अपनी :   चश्मा अपना अपना


54.बापू नहीं सिर्फ़ मोहनदास कहो :   जैसा चाहो वैसा रहो


55.करप्ट नेताओं की बाप की हो ठुकाई :    वाह वाह वाह वाह , क्या तरकीब है बताई


56.18 साल बाद के लिए खाने की तैयारीअठारह साल बाद , इहां तो अभी ही मची है मारामारी


57.क्या श्रमजीवी राज्य के नागरिक नहीं : आयं , क्या किसी ने ऐसा सुना है कहीं


58.खटमल करेंगे रक्तदान :    तैयार हैं न आप श्रीमान


59.समाज का वीभत्स चेहरा मानेसर :     हाय लील गया इक जीवन देखो , क्रोध का अजगर  


60.आज मौसम (विभाग )बडा बेइमान है :    इसका कसूरवार तो इंसान है


61.खिलाडी होते हैं सबसे बडे सुपर हीरो :     जीते तो हीरो , नहीं तो ज़ीरो


62.पर मेट्रो की बाकी लाइनों की गारंटी कौन लेगा :     वही जो पैसे लेकर मेट्रो की टिकट देगा


63.अहसान किया, अहसान किया :   मान लिया जी मान लिया  


64.क्यों इतना शोर मचा रखा है भाईबाल काटने के क्या ज्यादा पैसे मांग रहा है नाई   


65.जिंदगी की रेस :      करते जाइए फ़ेस


66.सुधरो अब तो सुधर जाओ :    या इधर जाओ , या उधर जाओ


67.राहुल जी का  अभिषेक :     क्या कोई पाएगा देख


68.तफ़रीह की चीज़ बन गई है तीज़ :   मलमल की धोती , खद्दर की कमीज़


69.राजेश खन्ना :   सुपर स्टार


70.कसौटी पर असफ़ल , अंडरग्राउंड राहुल गांधी :    अंडरएचीवर से अंडरग्राउंड तक चल रही बस एक ही आंधी


71.कबाडी जी आखिर लंदन जा ही पहुंचे :     अमां कौन से खेल में भाग लेने के लिए


72.महिला पुरूषों के बराबर ...कभी नहीं :   आप माने ये भी अभी नहीं


73.गधे बने रहो : हाय हाय , ऐसा न कहो


74.सिव द्रोही मम भगत कहावा :सुंदर सुंदर पोस्ट पढावा


75.मेरे सपनों की बारिश कब आओगी तुम : जल गए , फ़ुंक गए , हाय और कित्ता तडपाओगी तुम


76.तुम नहीं तो कोई गीत नहीं है : मन का कोई मीत नहीं है


77.माफ़  कीजीएगा अर्जुन मुंडा जी :      काम आपने किए हैं , जैसे करे कोई गुंडा जी


78.बालकृष्ण की गिरफ़्तारी कारण और परिणाम :   आम के आम , गुठलियों के दाम


79.आम आदमी क्या होता है :   बस एक बटाटा वडा होता है


80.प्रेमांजलि : एक महकपोस्ट रही है गमागम गमक


81.परत दर परत :उधेड डाला रे बाप


82.खुदा भी आसमां से जब जमीं पर देखता होगा :    पक्का एक बार खुद को लानत भेजता होगा


83.कुत्ता चले अगाडी , हम तो चलें पिछाडी :   किसी तरह बस चलती रहे ये गाडी


84.अपनी को आप किन कपडों में देखना चाहेंगे :    जिनमें उन्हें सहूलियत हो


85.मीडिया बिकाऊ है :   और , बहुत ही पकाऊ है


86.क्या मुर्दे भी कभी सोचते हैं :    कभी कभी तो बोलते हैं


87.नसीरुद्दीन शाह : अभिनय के "सर" :      आजकल कर रहे ऊलाला मगर


88.जीना है तो इसे छोड दे :      बांह पकड के मोड दे


89.मरने वाले मरते रहें , आप कविता कहानी करते रहें : दोनों ही हालत में टैक्स जरूर भरते रहें


90.प्रात: की सैर , शाम की सैर : तभी करें जब दुरूस्त हों पैर


91.गीदडों वाला तालाब : जरूर डुबकी मारें जनाब


92.कान एक विशाल समुद्र तट है :    इस हिसाब से आंख फ़िर चित्रपट है


93.एकांत :    दृष्टांत


94.देसी विदेसी कॉकटेल :   स्वाद का घालमघेल


95. परिवर्तन का बोझ :    हाय ! कौन उठाए रोज


96.उन्हें सिर्फ़ सत्ता चाहिए : गरीबों  को कपडा लत्ता चाहिए


97.ट्रेन से भारत परिक्रमा :    ज्यों धरती का चक्कर काटे है ये चंद्रमा


98.हरियाली तीज़ : देखिए प्लीज़


99.नए ऑफ़िस 2013 को भी आज़मा के देखिएफ़टाफ़ट ही किसी को इस ऑफ़िस में भेजिए


100.पंडित चंद्रशेखर आज़ाद की १०६वीं जयतीं पर विशेष : हमारा भी नमन उन्हें जो थे नर श्रेष्ठ


101.एक हुआ करता था रविवार :   अरे ये तो अपनी पोस्ट है यार

11 टिप्पणियाँ:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत रोचक बुलेटिन..धीरे धीरे पढते हैं..

समय चक्र ने कहा…

बुलेटिन की सबसे अच्छी विशेषता यह लगी की इसमे काफी ब्लागरों की पोस्टों को सम्मिलित किया गया है इस हेतु आप धन्यवाद के पात्र हैं ... अच्छा लगा की समयचक्र की पोस्ट को आपने शामिल किया है ..... आभार

shikha varshney ने कहा…

बाबा रे आप तो गज़ब ही कर देते हैं...जैसे ब्लॉग जगत का इनसाइक्लोपीडिया ही खुल जाता है.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बाप रे बाप !!!! इतने लिंक ! शतक भी पार हो गया ..अगले रविवार तक बहुत सामग्री है ...मेरी पोस्ट के लिए शुक्रिया

Bharat Bhushan ने कहा…

आपका यह सद्प्रयास ब्लॉग्स का एक समृद्ध आर्काइव बनेगा अजय जी. शुभकामनाएँ.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कैसी धूमधाम से रेलगाड़ी आई .... सजग करती, सीख देती , कुछ मुस्कान ... और बहुत कुछ लिंक्स में संजोकर लायी

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आपके श्रम को नमन करता हूँ अजय भाई और आपको भी !

सदा ने कहा…

आपके इस प्रयास एवं श्रमसाध्‍य कार्य की लिंकशतक एक्‍सप्रेस का बहुत-बहुत स्‍वागत है ...

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

बहुत जुलुम करते हो कभी-कभी !
अब इत्ता पढ़ने की खातिर तो धरती-आसमान एक करना होगा.पता नहीं,आप कैसे सटा लेते हो ?

बहुतै आभार !

रौशन जसवाल विक्षिप्त ने कहा…

शानदार प्रस्‍तुति

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति. मेरी रचना (हाइकु) ''हरियाली तीज'' को यहाँ शामिल करने के लिए बहुत धन्यवाद.

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