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शनिवार, 7 जुलाई 2012

भारत और इंडिया के बीच पिसता हिंदुस्तान : ब्लॉग बुलेटिन

आज पत्नी के साथ बाहर निकले.... मुम्बई में बारिश हो रही थी.... और एक व्यक्ति सड़क के किनारे धीरे धीरे अपने कपडे सँभालते हुए जा रहा था.... मध्यम वर्ग का एक साधारण सा प्राणी लग रहा था.... सफ़ेद रंग की कमीज और ग्रे पैंट पहने हुए शायद किसी इंटरव्यू में जा रहा है ऐसा प्रतीत हो रहा था..... उसके पीछे एक दो लोग... बारिश से बचते हुए... धीरे धीरे चल रहे थे... तभी एक तेज़ गति से आती हुई कार ने गढ्ढे में पड़े पानी पर अपनी कृपा कर दी.... और गन्दा पानी सड़क पर चलते हुए सभी लोगों को साफ़ कर गया..... मन में बड़ी कुढ़न हुई.... लेकिन इस फर्क ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया..... भारत और इण्डिया.... भारत जो सड़क पर खड़ा उस इण्डिया को कोस रहा था जिसने कपडे ख़राब कर दिए थे और शायद तेज़ गति से एसी कार में चलता हुआ इण्डिया भी भारत को देख कर नाक मुंह सिकोड़ रहा होगा.....  क्या है यह.....


मित्रों भारत और इण्डिया के बीच के इस फर्क को समझना कितना मुश्किल है... इण्डिया जो डालर की कीमत घटने बढ़ने से परेशान हो जाता है, सेंसेक्स के लाल होने मात्र से उसे पसीने छूटने लगते हैं... जिसे केवल इस बात से फर्क पड़ता है की कितनी विदेशी मुद्रा में लेन देन हो सकता है और कैसे बाहर से पैसा अपने देश में आ सकता है.. आज़ादी के बाद गाँधी देश में ग्रामीण विकास चाहते थे, बल्कि नेहरु उद्योगीकरण के रास्ते तरक्की के रास्ते की सीढियां चढ़ना चाहते थे... गांधी और नेहरु के बीच का एक बड़ा फर्क था जिसे देश को कितना फायदा हुआ और विकास के इस माडल पर सरकारी फार्मूला कितना सफल हुआ, यह एक बहस का मुद्दा ज़रूर हो सकता है लेकिन इस फर्क ने हिन्दुस्तान और इण्डिया के बीच के फर्क और अंतर को एक खाई के जितना कर दिया...  आज देश कार्पोरेट की तरक्की में अपने विकास के रास्ते खोज रहा है और उसे लगता है की कार्पोरेट और बाज़ार की तरक्की में ही असली तरक्की है... अब ज़रा एक सच्चाई पर भी नज़र डाल ले तो पता चलेगा की देश का पचहत्तर फीसदी गरीबी की रेखा से नीचे बसर करता है... जिसे लिए सरकार और कार्पोरेट के इस खेल में एक कठ-पुतली बने रहने के अलावा कोई चारा भी नहीं है..

आइये एक नज़र डालते हैं, महात्मा गाँधी के आखिरी वसीयत नामे पर....  जिसे गांधीजी ने 29 जनवरी, 1948 को अपनी मृत्‍यु के एक ही दिन पहले बनाया था, यह उनका अन्तिम लेख था... गाँधी जी ने इसमें भारत के विकास के एक माडल का ज़िक्र किया था... शहरों और कस्‍बों से भिन्‍न उसके सात लाख गांवो की दृष्टि से हिन्‍दुस्‍तानी की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आजादी हासिल करना अभी बाकी है। लोकशाही के मकसद की तरफ हिन्‍दुस्‍तान की प्रगति के दरमियान फौजी सत्‍ता पर मुल्‍की सत्‍ता को प्रधानता देने की लडा़ई अनिवार्य है। 

आज़ादी मिली लेकिन गाँधी जी के चेलों ने वाकई में किया क्या? अजी गांधी के चेलों ने देश की दुर्दशा करके रख दिया...  और हम अंग्रेजों के चंगुल से छूटकर देसी और काले अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गए..... आज कल का दौर कारपोरेट की चका-चौंध का तरक्की और हाई-फाई लाइफ का दौर है... ज़रा सी उलझन और ज़रा सी गड़बड़ पसीने छुड़ा देता है.... फिर बड़े पैमाने पर नौकरी में कमी और सरकारी बार-गेनिंग का दौर चलता है... इसका असली चेहरा जानकर भी हम अनजान बने रहना चाहते हैं.... यह कारपोरेट केवल पैसा बनाना जानते हैं... केवल और केवल पैसा.... कारपोरेट इण्डिया सोचता है की भारत को जीने के लिए केवल छब्बीस रूपये पर्याप्त हैं.... असली भारत के बारे में सोचने की उसे फुरसत नहीं...

असली भारत तो आज भी निराश है, वह आज भी फंसा है... रेल और बस के धक्कों में....  दो जून की रोटी और परिवार को पालने में.... बिजली और साफ़ पानी जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी कर पाना भी उसके लिए बहुत कठिन है.... शौचालय, पीने का साफ़ पानी... परिवार के लिए बरसात में बिना टपकती हुई छत की जुगाड़ ही उसके लिए मुश्किल है... उम्मीद का कोई रास्ता नहीं.... सरकारें आती हैं, जाती हैं.... वह वहीँ का वहीँ रह जाता है....  कहने के इण्डिया अपने को दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थ-व्यवस्था कहता है लेकिन भारत की हालत पर उसे तरस भी तो नहीं आता.... असली भारत को सरकारी बैलेंस शीट से क्या लेना देना.... उसे तो अपनी बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति करने की लड़ाई में ही भिड़ते रहना है.... 

जब तक आवाम और सरकारें इस दिशा में पूरी इमानदारी से नहीं सोचती.... इण्डिया और भारत के बीच का यह फर्क नहीं मिटेगा... सोचियेगा ज़रा .... 

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आतंकवादियों की गोली से एक जवान शहीद.

Kusum Thakur at आर्यावर्त
दक्षिण कश्मीर के पंपोर में बिल्कुल करीब से आतंकवादियों ने सेना के दो जवानों पर गोलियां चलाई, जिसमें एक शहीद हो गया, जबकि दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया। पिछले पांच दिनों में दक्षिण कश्मीर में इस तरह की यह तीसरी गोलीबारी है। पुलिस ने बताया कि यहां से करीब 16 किलोमीटर दूर श्रीनगर जम्मू राष्ट्रीय राजमार्ग पर कडालबाल में दो सैनिक तीन बजकर 10 मिनट पर एटीएम ऐ पैसे निकाल रहे थे, उसी दौरान आतंकवादियों ने पिस्तौल से उन पर हमला किया। सिपाही दीपक कुमार की अस्पताल ले जाते समय मौत हो गयी, जबकि उसके साथी का इलाज चल रहा है। दीपक के गले में गोली लगी थी। सैनिकों पर गोलियां चलाने के तुरंत बाद आतंक... more »

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क्या वो आपको मंजूर होगा ??

(अप्रैल माह में मैंने यह पोस्ट लिखी थी, लेकिन आज फिर इसकी ज़रुरत नज़र आई, इसलिए दोबारा डाल  रही हूँ। )   सच पूछा जाए तो, ब्लॉग लिखना आत्मसंतुष्टि का परिचायक है, हम आत्मिक ख़ुशी के लिए ब्लॉग लिखते हैं, कुछ हद तक, ये हमारे अहम् को भी तुष्ट करता है, कुछ अलग सा करने की  प्रेरणा भी देता है,  जैसा हर जगह देखने को मिलता और अब तो हम सभी जानते हैं, ब्लॉगिंग, 'आत्माभिव्यक्ति' का एक सशक्त साधन  है .

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समय तेज गति से भाग रहा है !

ऐसे बैंक की कल्पना कीजिए, जो आपके खाते में प्रतिदिन ८६,४००/- जमा करता हो ! इस खाते में अगले दिन के लिए कोई राशी शेष नहीं रहती हो ! यह आपको पूरी रकम खर्च करने की अनुमति देता है तथा दिनभर में खर्च न की गई रकम को प्रत्येक शाम समाप्त कर देता हो ! तब आप क्या करेंगे ? निश्चित रूप से आप सारा धन नीकाल लेंगे ! हम सभी के पास ऐसा बैंक है ! इसका नाम "समय" है ! प्रतिदिन सुबह आपके जीवन में ८६,४०० सेकेण्ड समय जमा हो जाता है ! इसमें से जितना समय आपने भले काम में खर्च नहीं किया, उसे प्रत्येक शाम को हानि के रूप में खाते में से हटा दिया जाता है ! इसमें कुछ भी शेष या अतिरिक्त नहीं रहता ! प्रतिदिन सुबह ... more »

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"दोहा पच्चीसी" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) at उच्चारण
*(**१)*** *"**चिड़िया बैठी गा रही**, **करती यही पुकार।*** *सदा महकता ही रहे**, **जीवन का संसार।।"*** *(**२)*** *"**गेहूँ की है दुर्दशा**, **महँगाई की मार।*** *देख रही है शान से**, **भारत की सरकार।।"*** *(**३)*** *"**धरती प्यासी थी बहुत**, **जन-जीवन बेहाल।*** *धान लगाने के लिए**, **लालायित गोपाल।।"*** *(**४)*** *"**माँगा पानी जब कभी**, **लपटें आयीं पास।*** *जलते होठों की यहाँ**, **कौन बुझाये प्यास।।*** *(**५)*** *"**बात-बात में हो रही**, **आपस में तकरार।*** *प्यार-प्रीत की राह में**, **आया है व्यापार।।"*** *(**६)*** *"**उमड़-घुमड़कर आ रहे**, **अब नभ में घनश्याम।*** *दुनिया को मिलने लगा**, *... more »

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तुम्ही सो गयीं, दास्ताँ सुनते सुनते - सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
*आज रश्मिप्रभा जी की एक रचना अभिमन्यु पढकर अनायास अभिमन्यु की पीड़ा याद आ गयी ! वैज्ञानिक तथ्य है कि बच्चे गर्भ से ही शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं ! महाभारत काल की यह घटना बहुत मार्मिक है , काश उस दिन सुभद्रा को नींद न आयी होती तो शायद कथाक्रम कुछ और ही लिखा जाता ! * *अभिमन्यु ,माँ के गर्भ में, पिता को सुनते हुए,चक्रव्यूह भेदना समझ चुके थे मगर इससे पहले कि अर्जुन पुत्र को बाहर निकलने का रास्ता बताते, माँ सुभद्रा को नींद आ चुकी थी !पिता के अधूरे रहते पाठ के कारण, अभिमन्यु चक्रव्यूह से कभी बाहर न निकल सके ! * *पांडवों को, कृष्णा की वह नींद बहुत भारी पड़ी थी ! **एक पुत्र का व्यथा चित... more »

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हमें तो पता नहीं भैया, तुम्हें पता हो तो बता दो

क्या होती है राजनीति ? कैसे चलते हैं चालें? हमें तो पता नहीं भैया तुम्हें पता हो तो बता दो कैसे करते हैं घोटाला ? कैसे लेते हैं रिश्वत ? हमें तो पता नहीं भैया तुम्हें पता हो तो बता दो कैसे करवाते हैं दंगे? कैसे होती है हड़ताल ? हमें तो पता नहीं भैया तुम्हें पता हो तो बता दो कैसे करते हैं झूठ को सच ? कैसे करते हैं काले को सफ़ेद ? हमें तो पता नहीं भैया तुम्हें पता हो तो बता दो कैसे रखते हैं बोरियों में पैसे ? कैसे भेजते हैं विदेश? हमें तो पता नहीं भैया तुम्हें पता हो तो बता दो क्यों करते हो दिमाग खराब ? क्यों हम से पूछ रहे हो ? पूछना है तो किसी नेता से पूछ लो वो ही करता है सब वही बताएगा सच... more »

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ये पोस्ट मै जन हित मे जारी कर रही हूँ .

रचना at नारी , NAARI
ये पोस्ट मै जन हित मे जारी कर रही हूँ . एक संझा ब्लॉग पर महिला ब्लॉगर के चित्र पोस्ट में डाले जाते हैं और फिर उस पोस्ट को बार बार क्लिक करके "ज्यादा पढ़ा हुआ " वाले विजेट के जरिये टेम्पलेट पर साइड बार मे दिखाया जाता हैं . चित्र के साथ सेक्स , यौन , सम्भोग , इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जा रहा हैं . ब्लॉग एक इस्लाम धर्म के अनुयायी का हैं और चित्र केवल और केवल हिन्दू धर्म की अनुयायी महिला ब्लोगर्स के हैं . इस साँझा ब्लॉग के कुछ सदस्यों से बात की तो उन्होने विरोध दर्ज करते हुए अपनी सदस्यता उस ब्लॉग से ख़तम कर दी हैं वहाँ जो भी विरोध का कमेन्ट कर रहा हैं उसको अपशब्द कहे जा रहे हैं... more »

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कविता: पेड़ और धर्म

संगीता तोमर at सादर ब्लॉगस्ते!
चित्र गूगल बाबा से साभार बस्ती के हर आँगन में पेड़ हो बड़ा खूब हो घना खुशबूदार फूल हों फल मीठे-आते हों लदकर. छाँव उसकी बड़ी दूर तक जाए खुशबू की कहानियाँ हों घर-घर हवा के झोंके में झरते रहें फल उठाते-खाते गुजरते रहें राहगीर ऐसा एक पेड़ बस्ती के हर आँगन में लगाना ही होगा लोग भूल गए हैं -धर्म पेड़ों को बताना ही होगा.

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9. कोणार्क सूर्यमन्दिर : अपरा इतिहास

गिरिजेश राव, Girijesh Rao at एक आलसी का चिठ्ठा 
*भाग 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7 और 8 से आगे...* [image: four-suns]परा इतिहास से अब हम अपरा इतिहास की ओर चलते हैं। नरसिंह से मिलते जुलते रूप में सूर्य का उकेरण मेक्सिको की एज़्टेक सभ्यता में भी मिलता है। अपनी तीखी ताप के कारण वहाँ भी सूर्य उग्र रूप में चित्रित है और उसका एक प्रकार सिंह जाति का प्राणी जगुआर है। इन्द्रद्युम्न की पहचान दसवीं-ग्यारहवीं सदी के राजा इन्द्ररथ से की गई है। उड़ीसा में यह समय आदिम सूर्यपूजा, बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त, वैष्णव आदि के समन्वय का था। इन्द्ररथ से पहले के सैलोद्भव राजाओं ने माधव आराधना को प्रसार दिया था और नियाली माधव, कंटिलो आदि की स्थापना उनके समय में हुई ... more »

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चक्रव्यूह ....... !!!

रश्मि प्रभा... at मेरी भावनायें...
चक्रव्यूह ....... !!! कोई विशेष कला न जाने की थी न आने की ! निष्ठा थी आन की ..... अभिमन्यु ने उसी निष्ठा का निर्वाह किया और चक्रव्यूह में गया ... पर निकलना निष्ठा नहीं थी न निकलने का मार्ग अभिमन्यु ने ढूँढा ! चक्रव्यूह से परे कटु सत्य का तांडव अभिमन्यु की हार बना जिसे इतिहास भी अपने पन्नों पर कह न सका ! 5 ग्राम ! कृष्ण ने दूत बनकर यही तो माँगा था और ' *नहीं* ' के एवज में कुरुक्षेत्र का मैदान सजा था !!! सत्य जो भी हो - राज्य , शकुनी की चाल या द्रौपदी का अपमान ... चक्रव्यूह बने जो खड़े थे वे सब अभिमन्यु के मात्र सगे नहीं थे एक आदर्श थे पर - जिन हाथों में कभी दुआओं के स्पर्श थे ... more »

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बरस रे मेघा

*खुशियों की फुहार..* 

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आपको आम अच्छे लगते हैं...आखिर किसे अच्छे नहीं लगेंगें. फलों का रजा आम तो मुझे बहुत पसंद है. अंडमान में तो साल भर में तीन बार आम की फसल होती थी, खूब आम खाती थी. यहाँ इलाहाबाद में भी खूब आम खा रही हूँ. दो आम के पेड़ तो हमारे लान में ही लगे हुए हैं. उनके सारे आम तोड़कर हजम कर चुकी हूँ. आम को बौर से लेकर अमिया और फिर पीले-पीले पकना देखना बड़ा अच्छा लगा. इसी बहाने मैंने यह भी जाना कि आम की फसल पैदा कैसे होती है. आपको पता है कि आज 'मैंगो-डे' है. लेकिन इसका मतलब यह थोड़े ही है कि इसे सिर्फ आज के दिन ही खाना है. जब भी मन में आए, खूब आम खाइए..मैं तो चली आम खाने ...!! 
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मनोज कुमार at मनोज
*फ़ुरसत में ... **107* *दिल की उलझन*** *मनोज कुमार*** फ़ुरसत में हूं ... मन में प्रश्न आता है कि यह ज़िंदगी हमेशा सरल और सुंदर-सुंदर ही क्यों नहीं होती? हर रोज़ एक नया बखेड़ा, उसके विरुद्ध जीने की ज़िद, ज़िद से उत्पन्न जद्दो-जहद। एक उबड़-खाबड़ मैदान में लगता है कि सौ मीटर की बाधा दौड़ का हिस्सा बन गया हूं। क्यों? ऐसा क्यों? प्रश्न ख़ुद से जब किया है, तो उत्तर भी तो ख़ुद को ही देना पड़ता है। दिमाग ने यह प्रश्न किया था। दिमाग प्रश्न करता है। इसलिए करता है क्यों कि तर्क, वितर्क और कुतर्क भी तो वही करता होता है। आदत है उसकी। आदत से वह बाज़ आने से रहा। प्रश्न दिमाग करे जवाब दिल से दे... more »

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वीर बहूटी और हरियाली जैसा गहना-‘कजरी’

Akanksha Yadav at शब्द-शिखर 
प्रतीक्षा, मिलन और विरह की अविरल सहेली, निर्मल और लज्जा से सजी-धजी नवयौवना की आसमान छूती खुशी, आदिकाल से कवियों की रचनाओं का श्रृंगार कर, उन्हें जीवंत करने वाली ‘कजरी’ सावन की हरियाली बहारों के साथ तेरा स्वागत है। मौसम और यौवन की महिमा का बखान करने के लिए परंपरागत लोकगीतों का भारतीय संस्कृति में कितना महत्व है-कजरी इसका उदाहरण है। प्रतीक्षा के पट खोलती लोकगीतों की श्रृंखलाएं इन खास दिनों में गज़ब सी हलचल पैदा करती हैं, हिलोर सी उठती है, श्रृंगार के लिए मन मचलता है और उस पर कजरी के सुमधुर बोल! सचमुच वह सबकी प्रतीक्षा है, जीवन की उमंग और आसमान को छूते हुए झूलों की रफ्तार है। शहनाईयों क... more »

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इज़त सरजलिक : सरायेवो में किस्मत

मनोज पटेल at पढ़ते-पढ़ते
*इज़त सरजलिक की एक और कविता... * * * * * *सरायेवो में किस्मत : इज़त सरजलिक * (अनुवाद : मनोज पटेल) सब कुछ मुमकिन है सरायेवो की १९९२ की बसंत ऋतु में: कि आप खड़े हों एक कतार में ब्रेड खरीदने के लिए और पहुँच जाएं किसी इमरजेंसी वार्ड में अपनी टाँगे कटवाए हुए. और तब भी कह सकें कि किस्मतवाले रहे आप. :: :: :: 

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प्रारब्ध / कहानी / मुंशी प्रेमचंद

संगीता स्वरुप ( गीत ) at राजभाषा हिंदी 
जन्म - 31 जुलाई 1880 निधन - 8 अक्तूबर 1936 लाला जीवनदास को मृत्युशय्या पर पड़े 6 मास हो गये हैं। अवस्था दिनोंदिन शोचनीय होती जाती है। चिकित्सा पर उन्हें अब जरा भी विश्वास नहीं रहा। केवल प्रारब्ध का ही भरोसा है। कोई हितैषी वैद्य या डॉक्टर का नाम लेता है तो मुँह फेर लेते हैं। उन्हें जीवन की अब कोई आशा नहीं है। यहाँ तक कि अब उन्हें अपनी बीमारी के जिक्र से भी घृणा होती है। एक क्षण के लिए भूल जाना चाहते हैं कि मैं काल के मुख में हूँ। एक क्षण के लिए इस दुस्साध्य चिंता-भार को सिर से फेंक कर स्वाधीनता से साँस लेने के लिए उनका चित्त लालायित हो जाता है। उन्हें राजनीति से कभी रुचि नहीं रही।... more » 

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त्याग भोग के बीच कहीं पर

(प्रवीण पाण्डेय) at न दैन्यं न पलायनम् 
उर्वशी पढ़ने बैठा तो एक समस्या उठ खड़ी हुयी। पता नहीं, पर जब भी श्रृंगार के विषय पर उत्साह से लगता हूँ, कोई न कोई खटका लग जाता है, कामदेव का इस तरह कुपित होने का कारण समझ ही नहीं आता है। पिछले जन्मों में या तो किसी ऋषि रूप में कामदेव के प्रयासों को व्यर्थ किया होगा जो अभी तक बदला लिया जा रहा है, या तो इन्द्रलोक में ही साथ रहते रहते कोई प्रतिद्वन्दिता पनप गयी होगी , या तो उर्वशी ही कारण रही होगी। तप में विघ्न पहुँचाने, इन्द्र द्वारा भेजी अप्सराओं की सुन्दरता का उपहास उड़ाने के लिये ऋषि नरनारायण ने अपनी उरु (जाँघ) काट कर उन सबसे कई गुना अधिक सुन्दर उर्वशी को बना दिया था और उसे वापस इ... more »

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 अंत में चलते चलते बेदाग़ की परिभाषा भी जान लीजिये...  

जली को आग कहते है;
 बुझी को राख कहतें हैं;
 जिनके सरे सबूत जल जायें;
 उन नेताओं को बेदाग़ कहते है!

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मित्रों आशा है की आपको आज का बुलेटिन पसंद आया होगा... मिलते हैं एक ब्रेक के बाद... तब तक के लिए देव बाबा को इज़ाज़त दीजिये... 

जय हिंद....

16 टिप्पणियाँ:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

पसंद आया।

मनोज पटेल ने कहा…

बढ़िया लिंक्स...
आभार!!

मनोज कुमार ने कहा…

आपने बहुत ही बेहतरीन लिंक से बुलेटिन (सु)बनाया है।
हमारे पोस्ट्स को स्थान देने के लिए आभार।

Satish Saxena ने कहा…

बेहतरीन और नायाब लिंक ...आभार आपका !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन .... गांधी जी की वसीयत पढ़ी ... भारत और इंडिया का फर्क भी महसूस किया ।

Asha Lata Saxena ने कहा…

अच्छी लिंक्स के साथ ब्लॉग बुलेटिन की क्या बात है |अच्छा बुलेटिन |
आशा

Suman ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुती के साथ लिंक्स भी बढ़िया ....
आभार मेरी रचना को स्थान दिया है !

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

aapka dhanywaad...saare links bahut acche hain..
mujhe is yogy samjha, aabhaari hun..

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह , बहुत ही सार्थक चिंतन करती हुई प्रस्तावना देव बाबा । लिंक्स चयन भी बहुत गजबे हैं । जमा दिए हैं आप बुलेटिन को । आते हैं सब लिंक पकड के पोस्ट सब पर टहल के

संगीता तोमर Sangeeta Tomar ने कहा…

सुंदर बुलेटिन.....आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो देव बाबू आपकी प्रस्तावना ने तो बुलेटिन मे जान भर दी सच है हिंदुस्तान और एक आम हिंदुस्तानी आज पिसता ही दिखता है इंडिया और भारत के बीच ... :(

मेरी पोस्ट को यहाँ शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

भारत और इंडिया .............. फर्क तो हवाओं में है भाई . यह भारत आज भी निराश है ... पढ़ने को सार्थक लिंक्स मिले हैं

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बढिया बुलेटिन
अच्छे लिंक्स

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

सभी लिंक्स बहुत ही बेहतरीन और ज्ञानवर्धक है...
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार :-)

vandana gupta ने कहा…

काफ़ी बढिया लिंक्स मिले ……आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन के सूत्र..

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