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रविवार, 3 जून 2018

दिल से : रिश्तोंं की ब्लॉग-बुलेटिन

बचपने से सोचते थे कि बिहार के पूरब में पश्चिम बंगाल है, त आखिर पूर्वी बंगाल कहाँ है? पता चला पूर्वी बंगाल कहीं नहीं है, जो था आजकल पूर्वी पाकिस्तान कहलाता है. त बेकारे न बंगाल को पश्चिम बंगाल कहते हैं अऊर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान बन गया बांगला देस. तबो पश्चिम बंगाल का नाम ओही रहा. आखिर में हम हार मान कर मन में बईठा लिए कि एही नाम सही है. लेकिन बोलने से त कोनो हमको रोक नहिंए सकता था, एही से आज तक बंगाल बोलते हैं.

का मालूम था कि एही बंगाल का राजधानी में हमको छः साल काम करना पड़ेगा. अऊर इहो मालूम नहीं था कि ई सहर पटना अऊर इलाहाबाद के बाद हमरे जीवन का हिस्सा बनने वाला तिसरा सहर हो जाएगा. इतिहास, आजादी का लड़ाई, साहित्य, संगीत, संस्कृति, शिल्प, कला अऊर का बोलें. बंगाल का जोगदान ई देस भुला नहीं सकता है.

मक्खन में से तेज छूरी डालकर निकाल लीजिए, तबो छूरी पर मक्खन का निसान रहिए जाता है. ओही तरह से कलकत्ता छूटने के बाद भी हमरे अंदर कलकत्ता रहिए गया. संस्कृति चीजे अईसा है कि जेतना उसमें समाइएगा, ओतने उसी रंग में रंगते जाइएगा. अईसहीं संस्कृति आगे बढता है, एक हाथ से दूसरा हाथ अऊर एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ी.

नारी जाति के सम्मान का गजब तरीका है बंगाल का. बेटी को माँ कहकर पुकारते हैं. सच भी है. बंगाल के समाज में आज भी बहुत सा लड़की लोग बिना सादी किए देखाई देती है. कारन सादी के बाद ससुराल चल जाने से घर पर बूढ़ा माँ बाप को कौन देखेगा. माँ के तरह सेवा करती है बेटी अपने माँ बाप का.

दोसरा बात, साथ में काम करने वाले पुरुष को दादा, माने भाई, अऊर स्त्री को दीदी कहना. लेकिन एहीं से एगो समस्या सुरू हुआ हमरे साथ. कोई भी उमर का स्त्री अगर आपके साथ काम करती है त उसको दीदी कहकर बोलाया जाता है बंगाल में. एही से बिबेकानंद जी अमेरिका में ‘ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स ऑफ अमेरिका” कहे थे, जो इतिहास है. हम भी ओही रंग में रंग गए. अशोक दा, शुप्रभात दा, मानस दा अऊर शोनाली दी, डालिया दी, शुभ्रा दी, अंजलि दी.

समस्या अंजलि दी से सुरू हुआ. अंजलि दासगुप्ता, उमर 55 साल, हमरे उमर से डेढ़ गुना, एक बेटा जिसका उमर हमरे उमर से कुछ कम... हमरे ठीक बगल में बैठती थीं. एक दिन उनको कोई बात कहने के लिए हम घूमे, अऊर उनके तरफ देखकर बोले, “अंजलि दी!” अऊर एतना बोलते साथ हमारा आवाज बंद हो गया. हमको उनका अंदर एक माँ का चेहरा देखाई देने लगा. तब हम तुरत अपना बतवा भुला कर उनसे बोले, “अंजलि दी! आमि आपनाए दीदी बोलते पारबो ना. आपना के दीदी ना, मम्मी बोला उचित.” उनका आँख में लोर भर गया. बाकि हम जेतना दिन कोलकाता में रहे, उनको मम्मी बोलते रहे. पूरा ऑफिस में लोग उनको हमरा मम्मी के रूप में जानता था! आज भी हमरा फोन में उनका नम्बर अंजलि मम्मी के नाम से है अऊर रोज उनका संदेस व्हाट्स ऐप्प पर मिलता है! लगभग बीस साल बाद भी ओही प्यार, ओही स्नेह है उनके मन में अऊर हमरे दिल में!

आज उनके जन्मदिन पर उनको इयाद कर रहे हैं! हैप्पी बर्थडे मम्मी!!
                             
                                                                                                       - सलिल वर्मा
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5 टिप्पणियाँ:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

आपकी लिखी भूमिका आँखें नम करती है

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

शुभकामनाएं अंजलि जी के जन्मदिन पर उनके लिये।

कविता रावत ने कहा…

मर्म को छू जाती है आपकी प्रस्तुति, लगता है जैसे वहीँ-कही घूम फिर रहे थे
अंजलि मम्मी जी को हमारी ओर से भी हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित बुलेटिन और उससे भी खूबसूरत एवं हृदयग्राही अंजलि मम्मी का परिचय ! जन्मदिन की उन्हें मेरी ओर से भी अनंत अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं ! मेरी रचना को आज के बुलेटिन में स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार सलिल जी !

शिवम् मिश्रा ने कहा…

माँ को सादर प्रणाम।

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