शनिवार, 30 जून 2018
लिखे की यात्रा ... 2
शुक्रवार, 29 जून 2018
लिखे की यात्रा ...
एक आदत सी है,
लिखे की यात्रा ...
तीर्थयात्रा कह लो
या दुनिया की सैर।
मेरे लिए यही शिमला,
नैनीताल,
स्विट्ज़रलैंड,
सिंगापुर ... जो भी मान लो !
अटक जाती हूँ,
शब्द शब्द गटक जाती हूँ।
चलिए एक छोटी सी मुलाक़ात करवाऊँ
- शायद आपको भी कुछ सुकून मिल जाए ...
मैं एक कहानी हूँ ...
मैं एक कहानी हूँ ... ठीक ठीक तो नहीं कह सकता पर एक बुलबुला जैसा था, पानी का नहीं सिर्फ रौशनी का ,रौशनी के बारें में कुछ भी बता पाना मुमकिन ही नहीं बस इतना ही कह सकते है की कुछ ऐसी रौशनी जो पहले कभी कही ना देखी गयी हो, सोची भी ना गयी हो, जो सूरज जैसी चमकती हो पर चाँद जैसी शांत हो जिसको देर तक देख सके, और जिसको लगातार देखने से भी आँखें ना दुखे ,ऐसी ही रौशनी के कुछ बुलबुले अपनी पसंद से कुछ और बुलबुलों के साथ आपस में मिल जाते थे एक गुच्छे में , फिर इधर उधर पूरे कायनात में तैरा करते थे , उड़ा करते थे जिस्मों के कोई वज़न नहीं होते वहाँ और भावनाओं के वजूद भी नहीं, बातें बिना कहे ही हो जाती थी ,और सिर्फ एक ही एहसास था ,उड़ान का, परवाज़ का, आज़ादी का ,जब दिल करता था तो हम रूहें लंबी नींदों में चली जाया करती थी ,नींद भर सोने के बाद, मर्ज़ी से गर वापसी करनी हो तो उस लंबी काली सुरंग को पार करके नीचे आना पड़ता है ,ज़्यादातर रूहें दोबारा भी अपनी सरज़मीं के आस पास ही आना पसंद करती थी और मैंने भी वैसा हीं किया. यूं तो हम अपनी मर्ज़ी से अपनी माँ के आस पास थोडा पहले से भी टहलना शुरू कर देते है पर हममे से कुछ गर्भ के दौरान ही आते है, पर मैंने तो अपनी पसंद के माँ पापा चुने थे उनके घर में चुपचाप जाकर रहने लगा था , कुछ दिनों बाद ही माँ जान पाई थी मै उनका होने वाला हूँ और उनके पास आ चूका हूँ . माँ की हंसी बहुत अच्छी है और पापा मेरे, बोलते वक़्त एक होंठ तिरछा कर लेते है और बात बात पर ताली बजाते है तब और भी प्यारे लगते है ,ये घर भी अच्छा है खुला खुला सा है , इसीलिए यहाँ आया हूँ ...
पिछली बार क्या हुआ था याद है, मुझे लिवाने मेरी दादी आई थी फिर मुझे लेकर निकल गयी थी बड़े ऊपर , पहले हमने वो गहरी काली सुरंग पार की थी उसके ख़तम होते ही नूर की तो जैसे बरसात ही शुरू हो गयी थी , दूधियाँ एकदम उजली, पिघले पारे जैसी रौशनी थी हर कहीं ,उसको अब भी बता नहीं पा रहा हूँ मै ,वो कैसी जगह थी खुशी और गम इन सबसे बहुत ऊपर ,वहाँ कई दिनों तक रहा , रहने के बाद अब वापिस आया हूँ धरती पर , और फिर से उन नौ महीनो की यात्रा शुरू हो चुकी है मेरी , आजकल माँ के अन्दर ही दुबका पड़ा रहता हूँ मेरा जिस्म बनने लगा है और दिल में धड़कन भी आ गयी है ,पर पेट में पड़ें पड़ें अब भी याद भी किया करता हूँ अपनी उस दुनिया को , उन रूहों को, उस रौशनी को, उस आजादी को भी .
कुछ दिनों की बात है फिर बाहर भी आ जाऊंगा , और वैसे भी ज़ोर शोर से तैयारियां चल रही है , मोज़ो से लेकर टोपो तक कुछ बचा नहीं है , गाडी झूला गद्दे तकिये बोतल खिलोने सब आ चूके है बस मुझे ही आना बाकी है , आते ही उलझ जाऊंगा इन सब में, इतना सख्त इंतज़ाम है जो है मुझे गुमराह करने का ,धीरे धीरे करके सब भूलता जाऊँगा , वो सब जो याद है अभी तो मै सब कुछ देख सकता हूँ उस खुदा को भी उसके नूर को भी , जिंदगी को भी मौत को भी उन रूहों को भी जो हमे मरते वक़्त लेने आती है कभी कभी कुछ चेहरे पहनकर कभी तो सिर्फ एहसास बनकर ,पर वक़्त के साथ ये सब मेरे अंदर ही दफ़न होता जाएगा और वक़्त की आंधी इन्हें धूल की सौ परतें के भीतर जमा देगी , मै भूल जाऊंगा ये सारे राज़ ,पर मै भूलना नहीं चाहता और कोशिश ज़रूर करूँगा याद रखने की.
पर करूँ भी तो क्या ? ये तो हमेशा से होते आया है , और आगे भी होता रहेगा , मै चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता , और अब मै बन चूका हूँ, आँखें मेरी , बाल मेरे, नाख़ून भी आ गए है ,सभी पुर्ज़े तैयार है अब मुझे जाना होगा , बड़े ज़ोर का झटका लगता है इस दुनिया में कदम रखते ही ,ये झटका , मौत के झटके से भी कहीं ज़्यादा होता है .
कल पूरी रात तंग किया माँ को ,आज मै अस्पताल में हूँ ... और अब बाहर , अभी तो जिस्म का कोई एहसास नहीं है मुझे , सर्दी गर्मी भी नहीं लगती , बस कुछ ही समय में सब शुरू हो जाएगा, तीन चार दिनों में अपने घर और फिर वहीँ सब , जो हर जनम में होते आया है , भूलने भुलवाने का रिवाज़ जारी रहेगा ,मगर मै खुश हूँ ,माँ हंस रही है और पापा भी , मेरी आँखें तो बंद है पर सुन सकता हूँ , माँ की गोंदी का एहसास है और भूंख ने भी हाथ पाँव पटकना शुरू कर दिया है , आस पास की आवाजों ने शान्ति व्यवस्था भंग कर रखी है. सोते जागते वक़्त मेरा हसता रोता चेहरा देखकर घर वाले हैरान है , कोई सपना होगा , चौंका होगा , भगवान् जी आये होंगे , कुछ भी कहते रहते है , हकीक़त तो ये है , मै अभी बीच में हूँ आ गया हूँ यहाँ , पर वहाँ भी हूँ जहां से आया हूँ , अभी कुछ और वक़्त तक चलेगी ये कश्मकश ....
पिछले कई दिनों से अपने घर में हूँ , कुछ महीनो का हो चूका हूँ , पर याददाश्त अभी तक सलामत है , नूर और नूरानी , रूह और रूहानी सभी बातें ज़हन में है. मरी सेवा में सब कोई लगा रहता है और मै अपनी यादों में खोया रहता हूँ , दिल नहीं लगता अभी मेरा , पर क्यूकी “गु गु गा गा “ शुरू हो चुकी है मेरी तो सबका दिल बहलाने लगा हूँ , महीनो पर महीने चढ़ते जा रहे है और मै दिन पे दिन दुनियाबी होता जा रहा हूँ , मेरी चंचलता देखने लायक है , आस पास मोहल्ले वाले भी आ जाते है , मुझे देखकर अजीब अजीब सी हरकतें करते है , मै उनकी हालत देखकर हसता हूँ वो कुछ और ही समझ बैठते है और लगे रहते है बड़ी देर तलक ... मेरी बहन मुझे प्यारी लगती है , मुझसे ज़्यादा बड़ी नहीं , पर माँ उन्हें मेरे पास अकेले आने नहीं देती , डरती है कहीं वो मुझे कोई तकलीफ न दे दे क्युकी अभी वो भी छोटी है मेरे आने के बाद नुक्सान सिर्फ उन्ही का हुआ है , उनके लाड़ में कमी आ गयी है , पर वो मुझे सच में प्यार करती है , मै जानता हूँ , पर ये सब नहीं समझते क्यूकी ये बहुत बड़े हो गए है उस पर शक करते है . एक दिन की बात है वो सब से छुपते छुपाते आई थी मेरे कमरें में जब मै सोया था , जगाकर बोली ,” ओ भैया उठ ना , बता ना ,वो ऊपरवाला अब कैसा दिखता है , क्यूकी अब मै भूलने लगी हूँ पर तुम्हे तो याद होगा हैना , तो फिर बताओ न ?”
बात असल में यह है की मेरी आँखों में अभी चमक है और चालाकी मैंने अभी सीखी नहीं, वजह यहीं है की मै अभी तक ऊपरवाले की निगरानी में ही चल रहा हूँ, उसके साया मुझ पर अब तक है क्युकी मै अभी बच्चा हूँ , भोला हूँ , सादा हूँ सीधा हूँ , हसंता हूँ तो रोता भी हूँ पूरी शिद्दत से ,भूंख लगती है तो मांग लेता हूँ अपने तरीके से कोई शर्म नहीं , झूठ नहीं बोल पाता अभी , लालच भी नहीं आता , क्या पहना है क्या नहीं कोई फ़रक नहीं ,कुछ भी पहनाओगे तो ठीक है , नहीं पहनाओगे तो भी ठीक है , कहाँ जाना है,कहाँ नहीं , कही भी चल दूंगा ,जो भी नाम दे दोगे ले लूंगा, जो धर्म ज़ात पहना दोगे वो भी पहन लूंगा..
क्यूकी मै बच्चा हूँ. पर बहुत जल्द मै बदलने वाला हूँ , बड़ा हो जाऊँगा , सब गुन सिख जाऊँगा और भूल भी जाऊँगा वो सब जो याद है मुझे अब तक , की मै उसका हिस्सा हूँ , उसकी रौशनी हूँ , ,वो रौशनी कहीं जा नहीं सकती है रहेगी तो मुझमे ही, बस उमर की चादर से ढँक जायेगी , जिंदगी ,समय का दुशाला ओढ़ कर मेरे बचपन को ,इस रौशनी को कहीं बहुत पीछे फेंक देगी . और मै लाख सर पटक लू , तो भी उस रौशनी को देख नहीं पाऊंगा ,पर मैंने सुना है की अगर पूरी लगन से कोई इसे दुबारा देखना चाहे उमर के किसी भी पड़ाव पर , तो ऐसा हो भी सकता है ..
पर वक़्त तो आंधी से भी ज़्यादा तेज़ दौड़ता है , मै बड़ा हो गया हूँ , अब मुझे कुछ याद भी नहीं , जिंदगी के समुन्दर में आती जाती लहरों के थपेड़ो ने मुझे सभी इल्म सिखा दिए है , उलझ के रह गया हूँ किसी उन के गोले की तरह ,पर जब बहुत थक जाता हूँ तो समुन्दर की ऊपरी लहरों से बचकर उसकी गहराई में जाकर कुछ वक़्त को पनाह ले लेता हूँ , पर लाख कोशिश करने पर भी मुझे याद कुछ भी नहीं आता , अपनी छोटी सी बच्ची की आँखों में भी झाँका करता हूँ , शायद कोई सुराग मिल जाए पर कभी कुछ मिला नहीं उसके टूटे फूटे शब्दों में कुछ अर्थ मिल जाए , कहीं तो कोई बात बन जाए , पर कुछ हुआ हीं नहीं , घर दफ्तर बस इन्ही का हो के रह गया हूँ .जब से होश संभाला है या होश गवायाँ है बस जिंदगानी की हर एक ख्वाहिश को पूरा करता आया हूँ , इस कोशिश में की शायद मुझे वो मिल जाए जो अब तक नहीं मिला , बच्चे से बड़ा हो गया पर दिल में एक खाना ख़ाली था , फिर शादी बच्चे सब हुआ पर तब भी वो खाना खाली ही था , कुछ चाहिए था मुझे शुरू से ,एक तृप्ति की चाहत की थी, पर वो कहीं मिली नहीं .
मगर अब सावन भादव सब देख चूका हूँ और पतझड़ के दिन भी आ गए है , और बढती उमर में अपनो के बीच बड़ा अच्छा लगता है , सुकून तो है पर एक खोज भी पता नहीं किस चीज़ की और एक दिन यू हीं ,अचानक रात में सोते वक़्त , दिल में कुछ घबराहट और फिर से वही सुरंग , फिर से वही बुलबुला , पहुँच गया वही पर , जहां पर एक ही एहसास है , उड़ान का , परवाज़ का , आज़ादी का .....
गुरुवार, 28 जून 2018
टोपी, कबीर, मगहर और ब्लॉग बुलेटिन
नमस्कार
साथियो,
गुजरात
के टोपी विवाद के बाद उत्तर प्रदेश में भी टोपी को विवाद बनाया जा रहा है. कबीरदास
की पाँच सौवीं पुण्यतिथि के अवसर पर प्रधानमंत्री के मगहर भ्रमण को लेकर होने वाली
तैयारियों एवं अन्य स्थितियों का जायजा लेने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ वहाँ पहुँचे. मगहर में बनी कबीरदास की मजार में पहुँचने पर योगी जी को टोपी
पहनाने की कोशिश की गई. योगी जी ने टोपी पहनने से इंकार कर दिया. इसके बाद भी उस
टोपी को उनको पकड़ाने का प्रयास किया जाता रहा. मीडिया को जैसे इसी मौके की तलाश
थी. अब उसके लिए देश भर से, उत्तर प्रदेश से सारे मुद्दे समाप्त हो गए हैं. सभी
जगह एकमात्र मुद्दा योगी जी का टोपी न पहनना बना हुआ है.
मगहर
में जिन कबीरदास जी के अंतिम संस्कार को लेकर हिन्दू-मुस्लिम विवाद हुआ था और कहते
हैं कि इस विवाद के बाद कबीरदास जी के पार्थिव शव के स्थान पर फूल ही मिले,
जिन्हें हिन्दू-मुस्लिम ने आपस में बाँट कर अपने-अपने धार्मिक तरीके से उनका अंतिम
संस्कार किया. मगहर में आज भी दोनों धर्मों के प्रतीक एक स्थल पर बने हुए हैं. 27 एकड़
में फैले इस समाधि स्थल में कबीरदास की आदमकद प्रतिमा ने बरबस ध्यान आकर्षित करती
है. एक तरफ मजार कबीर साहब की इबारत लिखी इमारत थी, जो अपने आपमें स्पष्ट संकेत दे रही थी इस्लामिक मजहबी होने का. इस इमारत के
भीतर दो मजारें, एक कबीरदास की तथा दूसरी उनके बेटे की
बताई जाती है. इसी इमारत के दूसरी तरफ एक छोटी सी दीवार पार करने पर बनी इमारत के प्रवेशद्वार
पर सदगुरु कबीर समाधि का लिखा होना और भीतर कबीर की मूर्ति का
होना उसके स्वतः ही हिन्दू धर्मावलम्बियों के होने के संकेत देती है. इस विस्तृत समाधि
प्रांगण के एक तरफ पुस्तकालय, दूसरी तरफ कबीर साहित्य विक्रय
हेतु उपलब्ध है.
लेखक
ने स्वयं मगहर में इस स्थान का भ्रमण किया है. एक प्रांगण में दो धर्मों, मजहबों की इमारतों को अलग-अलग रूपों में देखने के बाद जहाँ एक तरफ ख़ुशी का
एहसास हुआ वहीं मन में एक खटका सा भी लगा कि क्या मुसलमानों ने कबीर को वर्तमान में
अपने मजहब का नहीं माना है? क्या मुसलमानों में कबीर-साहित्य
के प्रति अनुराग नहीं है? हिन्दू धर्म के साथ-साथ इस्लाम की आलोचना
करने वाले कबीर को क्या वर्तमान मुसलमानों ने विस्मृत कर दिया है? दोनों इमारतों की स्थिति, वहाँ आने वाले लोगों की स्थिति,
दोनों तरफ की व्यवस्थाओं को देखकर, दोनों इमारतों
में सेवाभाव से कार्य करने वालों को देखकर लगा कि आज के समय में कबीर भी धार्मिक विभेद
का शिकार हो गए हैं. वो और बात रही होगी जबकि उनके अंतिम संस्कार के लिए आपस में हिन्दू-मुस्लिम
में विवाद पैदा हुआ होगा किन्तु मगहर में स्थिति कुछ और ही दिखाई पड़ी. इस्लामिक इमारत
के नीचे मजार के रूप में कबीर नितांत अकेलेपन से जूझते दिखाई दिए. जहाँ बस एक इमारत,
एक सेवादार, नाममात्र को रौशनी और चंद हरे-भरे
पेड़-पौधे उनके आसपास हैं. किसी समय में तत्कालीन सामाजिक विसंगतियों पर बेख़ौफ़ होकर
बोलने वाले कबीर आज इस विभेद पर गहन ख़ामोशी ओढ़े लेटे दिखे. उस स्थल को और बेहतर
बनाने, कबीरदास की स्वीकार्यता मुस्लिमों में भी बनाने, कबीरदास के साहित्य का
प्रचार-प्रसार मुस्लिमों के बीच करने के बजाय वहाँ के सेवादार आने वाले को टोपी
पहनाने को आतुर दिखे.
++++++++++
लेबल:
28-06-2018,
कबीरदास,
कुमारेन्द्र,
गुरुवार,
ब्लॉग बुलेटिन,
मगहर,
विवाद
बुधवार, 27 जून 2018
पंचम दा - राहुल देव बर्मन और ब्लॉग बुलेटिन
सभी हिंदी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार।
हिन्दी फिल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार राहुल देव बर्मन का जन्म 27 जून, 1939 ई. कोलकाता ( पश्चिम बंगाल ) में हुआ था। राहुल देव बर्मन के पिता सचिन देव बर्मन (एस. डी. बर्मन) भी हिन्दी फिल्मों के जाने - माने संगीतकार थे। राहुल देव बर्मन जी को आर. डी. बर्मन, पंचम और पंचम दा के नाम से भी जाना जाता है। राहुल देव बर्मन जी को फिल्म जगत में पंचम नाम से पुकारा जाता था।
आज राहुल देव बर्मन यानि पंचम दा के 79वें जन्मदिवस पर हिन्दी ब्लॉगजगत और ब्लॉग बुलेटिन टीम उन्हें और उनके संगीत को याद करते हुए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करते है। सादर।।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
फील्ड मार्शल सैम 'बहादुर' मानेकशॉ की १० वीं पुण्यतिथि
43 बरस बाद के हालात ने इमरजेन्सी की परिभाषा ही बदल दी
43 बरस बाद के हालात ने इमरजेन्सी की परिभाषा ही बदल दी
Richard Benjamin Harrison Jr- The Old Man (PAWN STAR)
तलाश किसी रोते हुए बच्चे की
विश्वकप फुटबॉल से चुनाव और इम्तिहानों तक सीखा जा सकता है
तलाश किसी रोते हुए बच्चे की
विश्वकप फुटबॉल से चुनाव और इम्तिहानों तक सीखा जा सकता है
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
मंगलवार, 26 जून 2018
आपातकाल की याद में ब्लॉग बुलेटिन
नमस्कार
साथियो,
आपातकाल
के लिए 25 जून को याद किया जाता है. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा
गाँधी ने भले ही आपातकाल की नींव 25 जून 1975 की रात्रि को रखी हो किन्तु इसका असर
अगले दिन यानि 26 जून 1975 से दिखाई
देना शुरू हुआ था. इसी दिन सुबह छह बजे इंदिरा गाँधी ने सभी मंत्रियों को बैठक के लिए
बुलाया. बैठक के तुरंत बाद ही उन्होंने रेडियो पर अपने भाषण के द्वारा आपातकाल
लगाये जाने की जानकारी देश को दी. उस समय फ़ख़रुद्दीन अली अहमद देश के राष्ट्रपति
थे. कैबिनेट की बैठक में आपातकाल के प्रस्ताव को स्वीकृति मिल चुकी थी. उस पर अंतिम
मुहर राष्ट्रपति को लगानी थी. इंदिरा और सिद्धार्थ शंकर ने राष्ट्रपति भवन पहुँच
राष्ट्रपति को देश के हालात के बारे में अवगत कराया और आपातकाल की उपयोगिता बताई.
इसके बाद राष्ट्रपति ने इंदिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत आपातकाल की घोषणा कर दी. यह अपने आपमें विचित्र स्थिति है कि आपातकाल
की घोषणा रेडियो पर पहले कर दी गई बाद में उस पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए थे. आपातकाल
के बाद देश भर में गिरफ़्तारियों का दौर शुरू हुआ. खास बात यह रही कि महज तीन नेताओं
की गिरफ़्तारी की इजाजत नहीं दी गई थी. ये तीन नेता तमिलनाडु के कामराज, बिहार के जयप्रकाश नारायण के साथी गंगासरन सिन्हा और पुणे के एसएम जोशी
थे.
इंदिरा
गाँधी ने आपातकाल का सहारा लेकर राजनैतिक विरोधियों को नियंत्रण में लेने का
प्रयास किया. स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद काल रहा. आपातकाल में
चुनाव स्थगित हो गए थे. नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई. इंदिरा गांधी
के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया. प्रेस को प्रतिबंधित कर दिया गया था. उनके
बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर नसबंदी अभियान चलाया गया. जयप्रकाश
नारायण ने इसे भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि कहा था. आपातकाल लागू करने
के बाद इंदिरा गाँधी के राजनैतिक विरोधी और अधिक सक्रिय हो गए. विरोध की लगातार
बढ़ती तीव्रता के कारण लगभग दो साल बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा
भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी. चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस
के लिए घातक साबित हुआ. इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं. संसद में
कांग्रेस 153 पर सिमट गई और केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. जनता
पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. कांग्रेस को
उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली. नई सरकार ने आपातकाल के दौरान
लिए गए फ़ैसलों की जाँच के लिए शाह आयोग का गठन किया.
देश
में यह पहली स्थिति नहीं थी जबकि आपातकाल लगाया गया हो. देश ने 1962 में चीन के साथ एवं 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध
के दौरान आपातकाल का सहा था. देश में आंतरिक अशांति का खतरा होने पर, किसी बाहरी देश के आक्रमण होने पर अथवा वित्तीय संकट की स्थिति दिखाई देने
पर आपातकाल लगाया जा सकता है. इंदिरा गाँधी द्वारा आंतरिक अशांति के नाम पर अनुच्छेद
352 का सहारा लेकर 25 जून 1975 की मध्यरात्रि
जो आपातकाल लगाया गया वह 21 मार्च 1977 तक लागू रहा. यह विशुद्ध राजनैतिक हथकंडा था और यह लोकतान्त्रिक तानाशाही
का सशक्त उदाहरण बनकर सामने आया.
++++++++++
लेबल:
26-06-2018,
26/06/1975,
आपातकाल,
कुमारेन्द्र,
ब्लॉग बुलेटिन,
मंगलवार
सोमवार, 25 जून 2018
जन्म दिवस - विश्वनाथ प्रताप सिंह और ब्लॉग बुलेटिन
सभी हिंदी ब्लॉगर्स को सादर नमस्कार।
विश्वनाथ प्रताप सिंह (जन्म- 25 जून, 1931, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 27 नवम्बर, 2008, दिल्ली) भारत के आठवें प्रधानमंत्री थे। राजीव गांधी सरकार के पतन के कारण बने विश्वनाथ प्रताप सिंह ने आम चुनाव के माध्यम से 2 दिसम्बर, 1989 को प्रधानमंत्री पद प्राप्त किया था। सिंह बेहद महत्त्वाकांक्षी होने के अतिरिक्त कुटिल राजनीतिज्ञ भी कहे जाते हैं। विश्वनाथ प्रताप सिंह का जन्म 25 जून, 1931 उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद ज़िले में हुआ था। वह राजा बहादुर राय गोपाल सिंह के पुत्र थे। उनका विवाह 25 जून, 1955 को अपने जन्म दिन पर ही सीता कुमारी के साथ सम्पन्न हुआ था। इन्हें दो पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई। सिंह ने इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में 'गोपाल इंटरमीडिएट कॉलेज' की स्थापना की थी।
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
आज भारत के महान राजनेता और पूर्व प्रधानमंत्री श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी के 87वें जन्म दिवस पर हम सभी उनके योगदान को स्मरण करते हुए शत शत नमन करते हैं। सादर।।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
रविवार, 24 जून 2018
वीरांगना रानी दुर्गावती का ४५४ वां बलिदान दिवस
प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
महारानी दुर्गावती (5 अक्टूबर, 1524 – 24 जून, 1564) कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल
की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की
दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही
तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।
दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी
दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा
संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी
पुत्रवधू बनाया था।
दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस
समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही
गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा
धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने
अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान
आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया।
रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम
में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद
हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास
भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी |
इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोण्डवाना
साम्राज्य पर हमला कर दिया। एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार
उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत
कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा
स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल
सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार क्षति हुई थी।
अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला। आज रानी का पक्ष
दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया।
तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका। दूसरे तीर ने उनकी
आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी।
तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया।
रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी
तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी
कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं।
महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने
से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था।
जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला
है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां गोण्ड
जनजाति के लोग जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर में स्थित रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।
ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से वीरांगना रानी दुर्गावती को शत शत नमन |
सादर आपका
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हुण मैं अनहद नाद पजाया.. अपने दिल का हाल सुनाया
25 जून 1975 से 25 जून 2018 तक 43 साल बाद ( विडंबना ) डॉ लोक सेतिया
चमकते बिहार को टूटा हुआ तारा बना डाला
कलात्मक चेतना और कला - १
साहित्य में उठाने गिराने का खेल
हर अदा कमसिन
तराशे हुए बाजुओं का सच
सामने दिखती ढलान
जिंदगी
आप के इंतजार में ख्वाब ...
मुझसे बातें करती जाती है
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
शनिवार, 23 जून 2018
आप,आप, आप और आप - ब्लॉग बुलेटिन
प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप आप.... 1. आप इतने आलसी हैं कि आपने पूरे आप नही पढ़े! 2. आपने ये भी नहीं देखा कि मैने आप के बीच में अप भी लिखा है! 3. अभी आपने अप के लिये देखा! 4. अब आप हँस रहे हैं क्योंकि आपको अप नही मिला और आप मूर्ख बन गये! मैं आपके बारे में 10 बातें जानता हूँ: 1. आप के पास एक एक्टिव इंटरनेट कनैक्शन है ! 2. आप अभी ब्लॉग बुलेटिन पर हैं ! 3. अभी आप इसे पढ़ रहे हैं! 4. आप अपने होंठों को बिना मिलाये 'प' नही बोल सकते! 5. अभी आपने ऐसा करने का प्रयास किया! 7. इस समय आपके चेहरे पर मुस्कराहट है! 8. आप ने 6 नम्बर का प्वाइंट छोड़ दिया! 9. आपने अभी चेक किया कि 6 नम्बर तो वहाँ है ही नहीं! 10. अब आप हस रहे हैं क्योंकि मैंने आपको फिर से अपनी बातों में उलझा दिया! सादर आपका शिवम् मिश्रा
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क्या बिटिया की लाज अलग है?वृद्ध वही जो पूर्ण तृप्त होहिंदी प्रेमक्या आप सदैव निगेटिव कमेंट मारते हैं?बिखरा आशियाना...३१४.महाराजा२३ जून समर्पित है राष्ट्रभक्तों कोहिन्दुस्थान फिर गुलाम होने लगता हैकुछ बातें इतिहास के पन्नों में दब कर गुम हो जाती हैं --आ_अमदावाद_छे!तेरे प्यार का पंचनामा -------mangopeople
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
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