बेचैन आत्मा - दुनिया, प्रकृति ... क्या से क्या हो गई ! आत्मा स्तब्ध
चिंतन में है, कभी किसी यात्रा के दरम्यान, कभी शून्य में विस्तार को
देखते और मापते हुए
नदी - बेचैन आत्मा - blogger
देवेंद्र पाण्डेय
नदी
अब वैसी नहीं रही
नदी में तैरते हैं
नोटों के बंडल, बच्चों की लाशें
गिरगिट हो चुकी है
नदी!
माझी नहीं होता
नदी की सफाई के लिए जिम्मेदार
वो तो बस्स
इस पार बैठो तो
पहुँचा देगा
उस पार
नदी
के मैली होने के लिए जिम्मेदार हैं
इसमें गोता लगाने
और
हर डुबकी के साथ
पाप कटाने वाले
पाप ऐसे कटता है?
ऐसे तो
और मैली होती है नदी।
तुम क्या करोगे मछेरे?
अपने जाल से
नदी साफ करोगे?
तुम्हारे जाल में
छोटी, बड़ी मछलियाँ फसेंगी
नदी साफ होने से रही।
नदी को साफ करना है तो
इसके प्रवाह को, अपने बन्धनों से
मुक्त कर दो
चौपायों को सुई लगाकर, दुहना बन्द करो
जहर से
चौपाये ही नहीं मरते
मरते हैं
गिद्ध भी
नदी
तुम्हारी नीतियों के कारण मैली हुई है
नदी
तुम्हारी नीतियों के कारण
गिरगिट हुई है
अब यह तुमको तय करना है
कि अपना
हाथ साफ करना है या
साफ करनी है
नदी।
5 टिप्पणियाँ:
आभार आपका
कटु सत्य !
बहुत ही सुन्दर।
अपना हाथ साफ़ करने वाले ही सफाई के नाम पर नैया डुबोते हैं बार-बार
बहुत अच्छी प्रस्तुति
nice
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