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रविवार, 1 अक्तूबर 2017

आविष्कार हो या परिवर्तन लाभ-हानि होते ही हैं !


तर्क, मान्यता , तर्क  ... कुछ समय बाद मान्यताओं की धज्जियाँ और कुतर्क 
कभी रुका है क्या ?
जो कुछ सोलहवीं सदी में था 
वह सतरहवीं में था क्या ?  .... वक़्त के साथ आविष्कार, परिवर्तन आदि होते ही रहते हैं , 
और आविष्कार हो या परिवर्तन 
लाभ-हानि होते ही हैं !


2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

" तर्क, मान्यता , तर्क ... कुछ समय बाद मान्यताओं की धज्जियाँ और कुतर्क कभी रुका है क्या ?"

जी सही फरमाया । कभी नाव गधों पर कभी गधे नाँव के ऊपर समय कुतर्कों का है किये जा रहे हैं :)
आभार आज की छोटी सी बुलेटिन में 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये रश्मि प्रभा जी।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ..

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