तर्क, मान्यता , तर्क ... कुछ समय बाद मान्यताओं की धज्जियाँ और कुतर्क
कभी रुका है क्या ?
जो कुछ सोलहवीं सदी में था
वह सतरहवीं में था क्या ? .... वक़्त के साथ आविष्कार, परिवर्तन आदि होते ही रहते हैं ,
और आविष्कार हो या परिवर्तन
लाभ-हानि होते ही हैं !
2 टिप्पणियाँ:
" तर्क, मान्यता , तर्क ... कुछ समय बाद मान्यताओं की धज्जियाँ और कुतर्क कभी रुका है क्या ?"
जी सही फरमाया । कभी नाव गधों पर कभी गधे नाँव के ऊपर समय कुतर्कों का है किये जा रहे हैं :)
आभार आज की छोटी सी बुलेटिन में 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये रश्मि प्रभा जी।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति ..
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