साँसों में सूरज लेकर चलती हूँ
बंजारन हूँ न
कब कहाँ रात हो
कहाँ बसेरा बनाना हो
कौन जाने !
ज़िन्दगी को गुलाब बनाते हुए
नुकीले काँटों का काजल लगाती हूँ
कब कहाँ शस्त्र की ज़रूरत हो
कौन जाने !
आँचल में
लोरी और दुआओं की
सौगात रखती हूँ
कब कहाँ सपनों की सीढ़ियाँ बनानी हो
कौन जाने !
3 टिप्पणियाँ:
एक सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह।
लाजवाब संकलन ...
बहुत सुंदर सूत्र संयोजन हमेशा की तरह
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!