अपने रिश्ते यानि खून के रिश्ते हों
या पानी से बनाए गए रिश्ते हों
पूरी ज़िंदगी का एक टुकड़ा
कहानी नहीं होता
कोई एक दिन की घटना
परिणाम नहीं होती
!!!!
अच्छी,प्यारी,मीठी बातों को साझा न किया जाए
अपना पक्ष हटा दिया जाए
और ... जीतने के लिए
कुछ भी सुना दिया जाए
तो ...
अप्रिय सत्य की मौत कितनी बार होती है
कितनी बार वह एक बूंद पानी के लिए
संघर्ष करता है
और
प्रिय झूठ से बने वाणों की शय्या से
मुक्ति चाहता है
....
क्या यह ज़रूरी नहीं
कि जिसने उस अप्रिय सत्य को जन्म दिया
उसका हिसाब
सिर्फ वक़्त नहीं
तुम भी करो
???
कैकेई को उजागर करना
क्या कोई मीठा सत्य था ?
भरत के कदमों ने
उस अप्रिय सत्य को धिक्कारा
सबके सामने मौन भाव से
उनसे दूर हुए
माँ थी कैकेई
तब भी पक्षपात करते हुए
मनगढ़ंत प्रिय सत्य की रचना नहीं की !
यूँ प्रिय सत्य सर्वविदित था
कि माँ कैकेई राम से अधिक स्नेह रखती थीं
.....
एक विशेष घड़ी में
जो हुआ
जिस ढंग से हुआ
वह सब बहुत ही भयानक था
जिसके केंद्र में उनका हर स्नेह
जलकर राख हो गया
अपनों ने
पूरी दुनिया ने धिक्कारा
तभी
कैकेई ने स्वीकारा
.... सारांश इतना है
कि जिस अप्रिय सत्य से
मन खण्डहर होने लगे
उसे धूल की तरह झाड़ो
समेटो
कचरे में फेंक दो
छुपाने से कोई हल नहीं निकलता
!!!
2 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर। सुन्दर सूत्र चयन के साथ बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
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