बंद करो बोलना
"बेटी बचाओ"
दिलोदिमाग की नसें
ऐंठने लगती हैं ....
पहले तो यह नारा नहीं था
....
यह क्या तमाशा है !!!
इतनी जलन उसके आगे आने से ?
हमने तो कहा था
कहते हैं
बुद्धम शरणम गच्छामि
फिर यह कहने में कौन सी कुंठा ?
यशोधरा शरणम गच्छामि !
बेटा बेटी को जीने दो
सड़े गले लोगों का संहार करो
वह बेटा हो या बेटी हो
उसका बहिष्कार करो
सुनो ऐ नरम दिल लड़कियों
-----------------------------------
रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
जरा सा सख्त भी हो जाओ --वरना
खतम हो जाएगा तुम्हारा वज़ूद
इसी तरह दोयम दर्जे का जीवन जीती रहोगी
याद करो कभी अपने ही घर में सुना होगा न
किसी को बार बार यह कहते
अपनी इज्जत करना सीखो --
जो अपनी इज्जत नहीं करता
दुनिया उसकी परवाह नहीं करती
सुनो ऐ नरम दिल बेवकूफ लड़कियों
कितनी भोली हो तुम नहीं समझी न ?
यह शब्द यह नसीहत यह सीख कुछ भी
तुम्हारे लिए नहीं थी अरे यह सब
तुम्हारे भाइयों के लिए कहा था
भले ही कहने वाली तुम्हारी माँ ही होगी
तुम्हारी नियति तो तय ही कर दी गई थी
सदियों पहले -- वो ही दोयम दर्जे वाली
सब जानते थे आज भी उन्हें पता है
रुई हल्की सी नमी से भीग जाती है
भारी बोझिल हो जाती है ---आंसुओं से
पर वो यह कैसे भूल गए ---कभी कभी
हल्की सी चिंगारी से रुई में आग भड़क जाती है
और भस्म हो जाता है पूरा का पूरा साम्राज्य
उसी रुई से तो बना है तुम्हारा नरम दिल
पर सुनो क्यों नहीं समझती तुम
जब तक तुम खुद नहीं समझोगी
कैसे समझाओगी सबको ----
अब तो समझो ---मत बहो अंधी नदी की धार में
जिसके कगार ढह रहे हों न जाने किस खाड़ी में
ले जाकर पटक देगी तुम्हे और फिर होगा वही
अथाह सागर में विलीन हो जाओगी --
तुम्हे खुद बनाना है अपना बाँध एकजुट हो कर
तभी तो तुम्हारी उर्जा से दिपदिपायेगा --
जगमगायेगा पूरा समाज --और
फिर ऐ रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
बस तनिक सा कठोर हो जाओ ---
अपना सम्मान करना सीख लो
--------दिव्या शुक्ला ---
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रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
जरा सा सख्त भी हो जाओ --वरना
खतम हो जाएगा तुम्हारा वज़ूद
इसी तरह दोयम दर्जे का जीवन जीती रहोगी
याद करो कभी अपने ही घर में सुना होगा न
किसी को बार बार यह कहते
अपनी इज्जत करना सीखो --
जो अपनी इज्जत नहीं करता
दुनिया उसकी परवाह नहीं करती
सुनो ऐ नरम दिल बेवकूफ लड़कियों
कितनी भोली हो तुम नहीं समझी न ?
यह शब्द यह नसीहत यह सीख कुछ भी
तुम्हारे लिए नहीं थी अरे यह सब
तुम्हारे भाइयों के लिए कहा था
भले ही कहने वाली तुम्हारी माँ ही होगी
तुम्हारी नियति तो तय ही कर दी गई थी
सदियों पहले -- वो ही दोयम दर्जे वाली
सब जानते थे आज भी उन्हें पता है
रुई हल्की सी नमी से भीग जाती है
भारी बोझिल हो जाती है ---आंसुओं से
पर वो यह कैसे भूल गए ---कभी कभी
हल्की सी चिंगारी से रुई में आग भड़क जाती है
और भस्म हो जाता है पूरा का पूरा साम्राज्य
उसी रुई से तो बना है तुम्हारा नरम दिल
पर सुनो क्यों नहीं समझती तुम
जब तक तुम खुद नहीं समझोगी
कैसे समझाओगी सबको ----
अब तो समझो ---मत बहो अंधी नदी की धार में
जिसके कगार ढह रहे हों न जाने किस खाड़ी में
ले जाकर पटक देगी तुम्हे और फिर होगा वही
अथाह सागर में विलीन हो जाओगी --
तुम्हे खुद बनाना है अपना बाँध एकजुट हो कर
तभी तो तुम्हारी उर्जा से दिपदिपायेगा --
जगमगायेगा पूरा समाज --और
फिर ऐ रुई के फाहों सी नरम दिल लड़कियों
बस तनिक सा कठोर हो जाओ ---
अपना सम्मान करना सीख लो
--------दिव्या शुक्ला ---
पेंटिग गूगल से
कंगन लुटाने वाले सोहर भाई के लिए गाये गए
जब भाई घर की छत से कागज के हवाई जहाज बनाता
हम आंगन के परात भर पानी में कागज की नांव बहाते
जो हर कोने से टकरा कर भी सधी हुई सी चलती
जब भाई नई मिली सायकिल पर कैची मारता हुआ रास्ते पर आगे बढ़ जाता हम मुस्कराते
अक्सर खड़ी हुई सायकिल के पीछे बैठ हम गीतों के देश की सैर करते फिर उतर जाते
हम आंगन के परात भर पानी में कागज की नांव बहाते
जो हर कोने से टकरा कर भी सधी हुई सी चलती
जब भाई नई मिली सायकिल पर कैची मारता हुआ रास्ते पर आगे बढ़ जाता हम मुस्कराते
अक्सर खड़ी हुई सायकिल के पीछे बैठ हम गीतों के देश की सैर करते फिर उतर जाते
वो पतंग उडाता हम मंझा सुलझाते
फटी पतंग को दुरुस्त करते
भाई फिर उड़ जाता
फटी पतंग को दुरुस्त करते
भाई फिर उड़ जाता
भाई पिता का जूता पहन कमाने जाता
हम अम्मा की साड़ी में घर सँभालते
हमारे पास रसोई वाला खेल उसके पास डॉक्टर सेट
हमारी कपड़े की गुडिया उसकी बैटरी वाली मोटर
कमोबेश जिन्दगी का सबक सीखती सिखाती उम्र
हम अम्मा की साड़ी में घर सँभालते
हमारे पास रसोई वाला खेल उसके पास डॉक्टर सेट
हमारी कपड़े की गुडिया उसकी बैटरी वाली मोटर
कमोबेश जिन्दगी का सबक सीखती सिखाती उम्र
एक लडकी थी बुआ
जिनसे परात भर पानी और सायकिल वाली यात्रा भी छीन ली गई
जिनसे परात भर पानी और सायकिल वाली यात्रा भी छीन ली गई
अब बस बड़ी सी साड़ी लपेट बुआ मंझे सुलझाती हैं......
जब
खो जाते हैं शब्द
तब भी
चलता ही है जीवन
खो जाते हैं शब्द
तब भी
चलता ही है जीवन
जो कभी
टूट भी जाए
संवादों का पुल
तब भी
जुड़े ही रहते हैं
जो जुड़े हुए थे मन
टूट भी जाए
संवादों का पुल
तब भी
जुड़े ही रहते हैं
जो जुड़े हुए थे मन
कि
यही जुड़ाव
बनाये रखता है
सांसों का तारतम्य
बनाये रखता है
सांसों का तारतम्य
और
उठते-गिरते
चलते रहते हैं हम
चलते रहते हैं हम
चलता रहता है जीवन !
3 टिप्पणियाँ:
सटीक। बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
उम्दा, सदा की तरह
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!