वक़्त और बड़ों के द्वारा
बच्चों की मासूम भाषा में
जहाँ जाने की
जो करने की
जो बोलने की
हमें मनाही होती है
वहाँ
हम खुद को अति विनम्र
अति कुशल मानकर जाते हैं
और जब फँस जाते हैं
तो भाग्य की दुहाई देते हैं
बेचारा भाग्य !!!
दिवाली में पटाखों की निरर्थकता - काव्य सुधा - blogger
जो चीज़ें
भीतर बाहर मर गयी हों
उनसे
बड़ी सहजता के साथ
मुक्त होने का नाम है
पतझड़ !
भीतर बाहर मर गयी हों
उनसे
बड़ी सहजता के साथ
मुक्त होने का नाम है
पतझड़ !
कि
जीवन हर मौसम है बस
कल-कल बहता
निर्झर !!
जीवन हर मौसम है बस
कल-कल बहता
निर्झर !!
खाली कमरा
त्यौहारों का मौसम है
घर के दरो दीवार
साफ़ करके चमकाने का वक्त है !
कहीं कोई निशान बाकी न रह जाये
कहीं कोई धब्बा नज़र न आये
कुछ भी पुराना धुराना
बदसूरत दिखाई न दे !
सोचती हूँ बिलकुल इसी तरह
आज मैं अपने अंतर्मन की
दीवारों को भी खरोंच-खरोंच कर
एकदम से नये रंग में रंग दूँ !
उतार फेंकूँ उन सारी तस्वीरों को
जिनके अब कोई भी अर्थ
बाकी नहीं रह गए हैं
मेरे जीवन में
धो डालूँ उन सारी यादों को
जो जीवन की चूनर पर
पहले कभी सतरंगी फूलों सी
जगमगाया करती थीं
लेकिन अब बदनुमाँ दाग़ सी
उस चूनर पर सारे में चिपकी
आँखों में चुभती हैं !
शायद इसलिए भी कि
कोई रिश्ता तभी तक
फलता फूलता और महकता है
जब तक ताज़ी हवा के
आने जाने के लिए
रास्ता बना रहता है !
अपने अंतर्मन के कक्ष से
इन अवांछित रिश्तों की
निर्जीव यादों को हटा कर
मैं मुक्ति का लोबान
जला कर चिर शान्ति के लिए
यज्ञ करना चाहती हूँ !
मैं आज नये सिरे से
दीवाली का पर्व
मनाना चाहती हूँ !
घर के दरो दीवार
साफ़ करके चमकाने का वक्त है !
कहीं कोई निशान बाकी न रह जाये
कहीं कोई धब्बा नज़र न आये
कुछ भी पुराना धुराना
बदसूरत दिखाई न दे !
सोचती हूँ बिलकुल इसी तरह
आज मैं अपने अंतर्मन की
दीवारों को भी खरोंच-खरोंच कर
एकदम से नये रंग में रंग दूँ !
उतार फेंकूँ उन सारी तस्वीरों को
जिनके अब कोई भी अर्थ
बाकी नहीं रह गए हैं
मेरे जीवन में
धो डालूँ उन सारी यादों को
जो जीवन की चूनर पर
पहले कभी सतरंगी फूलों सी
जगमगाया करती थीं
लेकिन अब बदनुमाँ दाग़ सी
उस चूनर पर सारे में चिपकी
आँखों में चुभती हैं !
शायद इसलिए भी कि
कोई रिश्ता तभी तक
फलता फूलता और महकता है
जब तक ताज़ी हवा के
आने जाने के लिए
रास्ता बना रहता है !
अपने अंतर्मन के कक्ष से
इन अवांछित रिश्तों की
निर्जीव यादों को हटा कर
मैं मुक्ति का लोबान
जला कर चिर शान्ति के लिए
यज्ञ करना चाहती हूँ !
मैं आज नये सिरे से
दीवाली का पर्व
मनाना चाहती हूँ !
4 टिप्पणियाँ:
aap sab ke likhne kay trika ka main fan hu
बहुत सुन्दर। भाग्य की भी बेचारगी वाह ।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
सदा की तरह उम्दा प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!