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रविवार, 4 जून 2017

मेरी रूहानी यात्रा अंकिता चौहान



जहाँ परियों का मेला हो 
जहाँ एहसासों की नदियाँ बहती हों 
जहाँ शब्दों के स्रोत हों 
वहाँ मैं अपनी चाहत न पूरा करूँ 
यह कैसे संभव है ?!

चाह है तो राह है, अंकिता चौहान हैं :)




https://www.youtube.com/watch?v=CwXHJsGBwLo

3 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

नीलेश जी का कहानी पेश करना चार चाँद लगा देता है । बहुत सुन्दर।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी परिचय प्रस्तुति

Ankita Chauhan ने कहा…

Such a surprise. Thank you :)

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