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शनिवार, 10 जून 2017

मेरी रूहानी यात्रा और अंशुमाला



रूहानी यात्रा में रूह ने रूह से पूछा,

तू कौन है ?
क्या उद्देश्य है तेरा ?
उसने कहा - 
मेरे ब्लॉग का नाम है 

mangopeople - blogger

मैंगो पीपल यानी हम और आप वो आम आदमी जिसे अपनी हर परेशानी के लिए दूसरो को दोष देने की बुरी आदत है . वो देश में व्याप्त हर समस्या के लिए भ्रष्ट नेताओं लापरवाह प्रसाशन और असंवेदनशील नौकरशाही को जिम्मेदार मानता है जबकि वो खुद गले तक भ्रष्टाचार और बेईमानी की दलदल में डूबा हुआ है. मेरा ब्लाग ऐसे ही आम आदमी को समर्पित है और एक कोशिश है उसे उसकी गिरेबान दिखाने की.  ... "

यानि सत्य की तहें खोलने की !!! अंशुमाला कहूँ या आइना ?
चलिए आपसब तय कीजिये,

इसे कहते है बेटी के लिए अच्छा रिश्ता - - - - - - - - - - mangopeople


पंडित जी ने जैसे ही अपनी तशरीफ़  सोफे में घुसाई अशोक जी की पत्नि शुरू हो गई " पंडित जी कोई अच्छा रिश्ता बताइये इस बार जो हमारे हैसियत और रुतबे के बराबर का हो हमारी तरह ही इज्जतदार सम्मानित हो समाज में | "
" ये पहला लड़का है आबकारी विभाग में बड़ा आफिसर है पिछले साल ही आयकर विभाग का छापा पड़ा था पुरे पचास लाख रुपये कैश बीस लाख के गहने और दो मकान बाहर आये थे " पंडित जी ने फोटो आगे बढ़ाते हुए कहा |
 ये सुनते ही अशोक जी के चहरे पर गुस्सा साफ दिख गया " क्या पंडित जी आप भी कैसे कैसे रिश्ते उठा लाते है कुछ हमारी इज्जत का भी ख्याल रखा कीजिये अब क्या हमारे ऐसे दिन आ गए है की हम अपनी बेटी का विवाह ऐसे घरो में करे दुनिया को क्या मुँह दिखायेंगे, लोगो को क्या जवाब देंगे, हम अपनी बेटी को ऐसे घर में नहीं भेज सकते है | हम उससे प्यार करते है उसके दुश्मन थोड़े ही है " अशोक जी एक साँस में सब बोल गये |
 " तो फिर जजमान ये दूसरा रिश्ता देखिये ये आप को जरुर पसंद आयेगा | बिल्कुल आप के हैसियत के बराबर का है , लड़का कस्टम में बड़ा आफिसर है पिछले साल रेड में इसके पास से दो करोड़ नगद अस्सी लाख के गहने पांच करोड़ की जमीन और चार बंगले मिले थे "
 ये सुनते ही अशोक जी की चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गई " वाह पंडित जी इसे कहते है बेटी के लिए अच्छा रिश्ता आप फटा फट मेरी बेटी की बात यहाँ चलाइये और ये लीजिये मेरी लिस्ट की जब हमारे यहाँ रेड पड़ी थी तो क्या क्या मिला था आयकर विभाग को, लडके वालो को दे दीजियेगा वो भी समझ जायेंगे की हम भी हैसियत में उनसे कम नहीं उनके बराबर है "


कही अनजाने में आप अपने शब्दों से बलात्कार पीड़ित का दर्द तो नहीं बढ़ा रहे है - - - - - - mangopeople
                                   

                            समय के साथ हम सभी ने समाज की कई गलत पुरानी मान्यताओं और सोच को पीछे छोड़ा है और एक नई सोच को बनाया है  उसे अपनाया है | ये देख कर अब अच्छा लगता है की समाज में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो किसी बलात्कार पीड़ित नारी को दोषी की नजर से नहीं देखते है और उसके प्रति सहानुभूति रखते है , मानते है की इस अपराध में उसका कोई दोष नहीं है और उसे फिर से खड़े हो कर अपना नया जीवन शुरू करना चाहिए | मीडिया से ले कर हम में से कई लोगों ने उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए और अपराधियों को सजा दिलाने के लिए आवाज़ उठाई और काफी कुछ लिखा है | पर क्या उनके पक्ष में लिखते और बोलते समय हमने कभी इस बात पर ध्यान दिया है की हम अनजाने में वो शब्द लिखते और बोलते जा रहे है जो पीड़ित के मन में और दुख पैदा कर सकता है उसे फिर से खड़ा होने से रोक सकता है और उसके लिए सजा जैसा हो जायेगा | 
                          जी हा कई बार जब हम इस विषय पर लिखते है तो कुछ ऐसे शब्द और वाक्य भी लिख देते है जिससे कुछ और  ध्वनिया  और अर्थ भी निकलते है | जैसे बलात्कार पीड़ित के लिए हम " उसकी इज़्ज़त लुट गई", " उसकी इज़्ज़त तार तार कर दी " या "उसे कही मुँह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा " जैसे वाक्य लिख देते है | क्या वास्तव में ऐसा ही है कि जिस नारी के साथ बलात्कार हो वो हमारे आप के इज़्ज़त के काबिल ना रहे क्या हम उसे उसके साथ हुए इस अपराध के बाद कोई सम्मान नहीं देंगे क्या वास्तव में वो समाज के सामने नहीं आ सकती, लोगों से नज़रे नहीं मीला सकती है लोगो को अपना मुँह नहीं दिखा सकती | मैं यहाँ ये मान कर चल रही हुं कि हम में से कोई भी ऐसा नहीं सोचता होगा फिर हम इन शब्दों का प्रयोग क्यों करते रहते है और पीड़ित को और दुखी कर देते है उसमे ग्लानी भर देते है | 
               एक बार पीड़ित के तरफ से सोचिये की उस पर उसके लिए लिखे इस शब्दों का क्या असर होगा या ये कहे की उसने तो ये सारे शब्द पहले ही सुन रखे होंगे और उसके साथ हुए इस अपराध के बाद जब वो इस शब्दों को खुद से जोड़ेगी तो उस पर कितना बुरा असर होगा | यही कारण है की कई लड़कियाँ अपने साथ इस तरह के अपराध होने के बाद इस ग्लानी में कि अब उनकी इज़्ज़त लुट गई है उनका कोई सम्मान नहीं करेगा वो कही मुँह दिखाने के काबिल नहीं रही वो परिस्थिति से लड़ने के बजाये आत्महत्या कर लेती है |  
                 ये ठीक है की ये शब्द हमने नहीं बनाये है ये काफी समय पहले से बनाये गए है | रेप के लिए ये शब्दों तब बनाये गए जब समाज की सोच वैसी थी जब समाज इसके लिए कही ना कही स्त्री को ही ज्यादा दोषी मानता था और इस अपराध के बाद उसे अपवित्र घोषित कर दिया जाता था उसे समाज में अलग थलग करके उसे भी सजा दी जाति थी | लेकिन अब हमारी सोच बदल गई है हम मानते है ( कुछ अब भी नहीं मानते ) की इसमे पीड़ित का कोई दोष नहीं है दोष तो अपराध करने वाले का है और सजा उसे मिलनी चाहिए ना की पीड़ित को | जब हमने ये सोच त्याग दिया है तो हमें इन शब्दों को भी त्याग देना चाहिए जो कही ना कही पीड़ित को ही सजा देने वाले लगते है | कुछ शब्दों को हमने पहले ही त्याग दिया है जैसे उन्हें अपवित्र कहना पर अब हमें इस शब्दों को भी त्याग देने चाहिए | ताकि किसी पीड़ित को ये ना लगे की उसने कोई अपराध किया ही य समाज उसे सज दे रह है या वो सम्मान के काबिल नहीं रही | जब ये ग्लानी अपराधबोध नहीं होगा तो उसे अपने दर्द से बाहर आने में और एक नया जीवन शुरू करने में आसानी होगी | 
आशा है मेरी बात सभी पाठक सकारात्मक रूप से लेंगे यदि मेरी सोच में कही कोई गलती हो तो मेरा ध्यान अवश्य दिलाइयेगा मैं उसमे अवश्य सुधार करुँगी और यदि इस मामले में आप की भी कोई राय है तो मुझे अवगत कराये |

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया चयन।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

अंशुमाला जी के ब्लॉग को काफी समय से पढ़ते आ रहे हैं । आम आदमी की ज्वलन्त समस्याओं को बहुत ही धारदार तरीके से उठाने में उनकिंकल्म माहिर है। इस शैली के लेखन वाले कम ही लोग हैं जो बात को धार और करीने से रख पाते हैं। बहुत शुभकामनाएं।
रामराम

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति

anshumala ने कहा…

धन्यवाद रश्मि जी मेरे ब्लॉग की चर्चा करने के लिए | आज लगभग सभी ब्लॉग जगत को भूल चुके है और फेसबुक की दुनिया में व्यस्त है , ऐसे में भी आप लोगो का इसको बनाये रखने के लिए किया कार्य बहुत ही सराहनीय है , धन्यवाद | प्रयास करुँगी की एक बार फिर इस पर कुछ अच्छा लिखती रहु |

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