"चंद्रमा", हम और नील आर्मस्ट्रांग
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चंद्रमा का चरखा सपनों का सूत कातता था, जिसमें हम "दूधमोगरे" की लड़ियां पिरोते थे।
चंद्रमा "एक" था। जिस दिन नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर चहलक़दमी की, उसी दिन चंद्रमा "दो" हो गए। एक हमारा चांद, दूजा नील आर्मस्ट्रांग का चांद।
फिर चंद्रमा बारह हुए, फिर अठाइस। चंद्रमा की कलाएं बढ़ती गईं। और एक दिन हमने पाया कि चंद्रमा वहां नहीं था, जहां वह होता था, वैसा नहीं था, जैसा वह दिखता था। वास्तव में, अब सभी के पास अपने-अपने चंद्रमा थे।
एकबारगी हमें लगा नील आर्मस्ट्रांग ने हमारा चंद्रमा छीन लिया है।
अब हम चांदनी के सफ़ेद फूलों से अपनी रातों को नहीं सजा सकते थे। चांद अब केवल धरती का उपग्रह था, एक रूखा-सूखा पिंड, जिसे "अपोलो-11" ने फ़तेह कर लिया था। लेकिन सच पूछो तो हम इसके लिए कभी नील आर्मस्ट्रांग से नाराज़ नहीं हुए।
20 जुलाई 1969 की सुबह तो हमारे रोमांच का कोई ठौर न था। हम चंद्रमा पर थे। नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर हमारा प्रतिनिधि था। हम बेहद ख़ुश थे और अलबत्ता हमारे मन में एक टीस भी थी, पर हम उस टीस को भरसक छुपा गए थे। हम विज्ञान के विजय-पर्व पर ख़ुद को एक बौड़म भाववादी नहीं साबित करना चाहते थे।
उस दिन हम उस चंद्रमा का कोई जिक्र नहीं करना चाहते थे, जिसे हमने चुपचाप अपने भीतर पोसा था।
नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा पर चरखा कातने वाली कोई बुढ़िया नहीं मिली थी। वहां न दूध के समुद्र थे, न रूई के पहाड़। चांद का मुंह तो टेढ़ा था। वह दाग़दार था। वहां केवल धूल के ग़ुबार और बड़े-बड़े गड्ढे थे। "चलो दिलदार चलो" गाने वालों के लिए वह क़तई उपयुक्त जगह नहीं थी।
लेकिन हम उस मीठे अफ़सोस को ख़ामोशी से जज़्ब कर गए। चंद्रमा एक से दो हो गया था, दो से बारह, बारह से अठाइस। उस दिन के बाद चंद्रमा से हमारा रिश्ता बदल गया। उस रिश्ते में एक सहज द्वैत आ गया और हमने इस द्वैत को स्वीकार कर लिया।
लेकिन कविताओं और कल्पनाओं में चंद्रमा को उसके बाद जगह मिलना बंद हो गई, ऐसा नहीं है। हम जानते थे कि चंद्रमा एक भौतिक तथ्य है, धूल-मिट्टी है, तब भी उसे अपने भीतर जगह देते रहे।
चंद्रमा की हक़ीक़तों को हमने साइंस की किताबों तक मेहदूद कर दिया और अपना-अपना चांद बचा लाए : चवन्नी की तरह। चंद्रमा अब भी हमारा कल्पतरु था : रोशनी का एक दरख़्त। हम एक दरपेश सच्चाई को मुंह चिढ़ाने लगे।
हम हमेशा ऐसा करते हैं। हर उस चीज़ के साथ ऐसा करते हैं, जिससे बहुत प्यार करते हैं। हम उसकी तमाम हक़ीक़तों को जानते-बूझते हैं, तब भी उसे अपना चंद्रमा बनाकर मन में बसाते हैं और चुपचाप उसे प्यार करते हैं। कि हम प्यार में ख़ुद को जानबूझकर कितना छलते हैं! छलते नहीं थकते!
साल 2012 में जब नील आर्मस्ट्रांग की मौत हुई, तो वह अपने पीछे चंद्रमा छोड़कर चला गया।
मैं दावे से कह सकता हूं ख़ुदावंद को उसके पास से कोई चांद बरामद नहीं हुआ होगा। चंद्रमा उसका था भी नहीं। चंद्रमा हमारा है। चंद्रमा हर उस शख़्स का है, जो उसके बिम्ब को अपने भीतर जगह देता है : प्यार की चांदनी की तरह, जिसके लिए हमारा दिल एक आंगन है। हमेशा से हमेशा तक।
जिसने कभी चांद पर चलने की कोशिश की थी
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"जैक्सन की मौत नहीं हुई थी, वह केवल अपने प्लैनेट वापस लौट गया था!"
***
ये अफ़वाहों और अंधड़ों की कहानी है!
अजीब बात है, लेकिन इस कहानी की शुरुआत एक जवान मौत के इर्द-गिर्द होती है... और एक क़त्ल के भी. गोया ये अपने आपमें एक 'थ्रिलर' हो. लेकिन सचाई ये ही है कि इस पूरी कहानी पर एक अजब तरह का स्याह रंग छाया हुआ है और इससे भी बड़ी सचाई ये है कि एक निहायत उजले इलाक़े तक भी इस कहानी की तफ़सीलें पहुंचती हैं...दरअसल, ये स्याह और उजले की आपसी कशमकश वाली कहानी है, जिसमें शोहरत के नश्तर हैं, तो प्रतिमाओं का धुंधलका भी...ये अफ़वाहों की क़तरनें जोड़कर बनाई गई एक अजीबोग़रीब कहानी है.
इस कहानी की शुरुआत अटलांटिक के दूसरी तरफ़ से होती है!
जबकि समंदर के इस तरफ़ बीटल्स का वो शीराज़ा बिखर चुका था...योरोप में सन्नाटा था, अमरीका में नई आहटों की महज़ दबी-घुटी आवाज़ें... 'रॉक' संगीत के गिटार की भर्राई हुई आवाज़ मद्धम पड़ती जा रही थी, और 'रिदम एंड ब्ल्यूज़' की अफ्रीकी-अमरीकी ध्वनियों को नई पहचान की तलाश थी. जॉन लेनॅन के क़त्ल की ख़बर तो बाद में आती है, लेकिन ऐल्विस प्रेस्ले की मौत का अफ़सोसनाक वाक़या दुनियाभर के उन लोगों के कलेजे में गड़ा हुआ था, जो मौसिक़ी से मोहब्बत करते हैं.
ऐन इसी दौरान अटलांटिक के उस तरफ़ "जैक्सन फ़ाइव" के कमसिन लड़कों ने गाना-गुनगुनाना शुरू किया था. वे लोग 'न्यू जैक स्विंग' के ताज़ातरीन शगूफ़े में पूरी ताक़त से शुमार थे. इस अफ़साने में डायना रॉस शुरू से ही शामिल रहीं, और क्विन्सी जोन्स तो इस कहानी का आलातरीन क़िरदार है.
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ये कहानी तब शुरू होती है जब जोसेफ़ जैक्सन की बीवी एक दोपहर उसे आकर बताती है कि बग़ल वाले कमरे में माइकल कुछ गुनगुना रहा है... जोसेफ़ एक ठंडी मुस्कराहट के साथ कहते हैं - हां, मैंने सुना... जरमाइन से कह दो कि अपनी गिटार उसे सौंप दे.
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बहुत शुरुआत में इस कहानी में "जैक्सन फ़ाइव" के लड़कों की मासूम आवाज़ें शामिल थीं, जो 'एबीसी', 'आई वांट यू बैक', और फिर 'द लव यू सेव' में नुमायां हुईं. बिलबोर्ड ने इन नवागतों को टॉप चार्ट से नवाज़ा, लेकिन इस ग्रुप के कुल जमा ग्यारह बरस उम्र वाले 'लीड वोकल' को एक नई ज़मीन गढ़ना थी, जिस पर उसे नए क्षितिज रखने थे. 'ऑफ़ द वॉल' तो ख़ैर बाद में आया, लेकिन उसके पीछे की बुनावटें उस लड़के के ज़ेहन में तरतीब लेने लगी थीं. वो 70 के सालों की आख़िरी सुगबुगाहटें थीं.
'रॉक विद यू' सुनकर स्टीफ़न स्पिलबर्ग ने एक नए चमत्कार के साक्षी होने की बात कही थी, अगरचे वो भी एक दूसरी कहानी मानी जाए, तब भी 'थ्रिलर' तक आते-आते उस चमत्कार को हक़ीक़त में तब्दील होते सभी ने देखा. 82 के साल में सामने आया 'थ्रिलर' कई मायनों में एक फ़िनामिना था, और उसने पॉपुलर संगीत की पिछली तमाम परिभाषाएं बदलकर रख दीं. अब इसमें रॉक, या जैज़, या ब्ल्यूज़ का इकहरापन नहीं था...इसमें शामिल थीं फ़ंक, सोल, गोस्पेल और बैलेड तक की ख़राशें. बीटल्स के सॉफ़्ट रॉक और हार्ड रॉक भी इसमें शुमार थे. बाद में न्यू जैक स्विंग का हिपहॉप भी इसमें जुड़ा.
अब चौबीस बरस के हो चुके उस लड़के के क़दमों के नीचे से ज़मीन को फिसलते हुए 'मोटाउन 25' में पूरी दुनिया ने देखा. उसके पैरों में बिजलियां थीं और उसने 'ज़ीरो ग्रेविटी' को झुठला दिया था. इस कहानी में 80 के दशक का गर्म ख़ून और मांस के दरिया की मचलती मछलियां शामिल थीं. 'बिली जीन' और 'बीट इट' पश्चिमी पॉप के नए सूत्रगान बन चुके थे. लड़के की आवाज़ के पीछे म्यूजिक वीडियोज़ के तिलिस्मी परदे लहराते रहे. देखने-सुनने वालों ने अचरज के साथ ये तमाम नई चीज़ें देखीं और उस सितारे का नाम अच्छी तरह से अपने ज़ेहन में टांक लिया.
'वी आर द वर्ल्ड' के साथ उसने बहुत शुरुआत में ही दुनिया-जहान की आदमियत से एक वादा कर लिया था. उसके बाद उसने उस वादे को हर बार निभाया. रियो-डी-जेनेरियो की संकरी गलियों में बच्चों के साथ और उनके लिए 'दे डोंट रियली केयर अबाउट अस' गाते-गुनगुनाते हमने उसे देखा था, तो नेवरलैंड के परियों के संसार में भी वो हमें मिला. 'मैन इन द मिरर' के बाद वो 'हील द वर्ल्ड' लेकर आया, तो सबसे आख़िर में आत्मा की अतल गहराइयों से उपजा हुआ 'अर्थ सॉन्ग'...जिसके बाद अब उसका कोई अंत नहीं था. उसे सुनने वाली अवाम अपनापे से भरे उस चेहरे को हमेशा पहचानती रही...आंसुओं में सबसे ज़्यादा.
उसका संगीत वक़्त के साथ गाढ़ा होता गया. 'यू आर नॉट अलोन' को उसने एक अनचीन्हीं मिठास से भर दिया, तो 'रिमेंबर द टाइम' में उसने गति और ठहराव के नए आयाम खोजे. 'जैम' और 'डर्टी डायना' में उसने अपनी उद्दाम कामुकता को उघाड़कर सामने रख दिया था, तब भी, 'स्ट्रेंजर इन मॉस्को' की बेपनाह तनहाइयों में उसकी रूह तड़कती रही. वो पिघला हुआ शीशा सभी ने देखा... ये शीशा उसके गले में शहद बन जाया करता था...और उसकी आवाज़ हमारा आइना. 'बैड' और 'डेंजरस' के साथ वो आवाज़ों के नए-नए मौसम गढ़ता रहा, और 'हिस्ट्री' तक पहुंचते-पहुंचते उसका संगीत एक लाजवाब शराब बन गया.
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ये शोर और भीड़ के बीचोबीच वाले अकेलेपन की एक कहानी है... ये लांछन, पराजय और अफ़वाहों से भरा एक अफ़साना है, जिसमें रोशनी के तेज़गाम साये सरकते रहे, बेलगाम चीख़ें और बेहोशियां गुमी रहीं... वो चमत्कार हमारी नज़रों के सामने ही हुआ, वो मिथक उठा, और फिर उसे कीचड़ में लथपथ होते देख एक चीप और मीडियाकॅर क़िस्म की ख़ुशी भी हमने ही हासिल की.
वो उस सब के लायक़ था, जो कुछ उसने हासिल किया... और जो कुछ उसे मिला.
ये सनसनीख़ेज़ ख़बरों सरीखी दिलचस्प तफ़सीलों वाली कहानी है, जिससे सालोंसाल अख़बारनवीसों की रूहें तस्क़ीन पाती रहीं... और फिर उसकी मौत के बाद भी. सुइयों से छिदी उसकी देह दवाइयों की तेज़ गंध में गुमती रही...'इनविंसिबल' के बाद वो जो डूबा, तो फिर उबर नहीं सका... उसकी आख़िरी मेहफ़िलों के लिए मेहमान सब जुट चुके थे, लेकिन वो ग़ैर-मौजूद रहा... वो अब वहां कभी नहीं पहुंच सकेगा.
ये एक बहुत-बहुत स्याह, और एक बहुत-बहुत उजली कहानी है...उसकी चमड़ी के बदलते रंग सरीखी... जैसे दिन और रात के एकसाथ सच होने की कोई तिलिस्माई तरक़ीब हो...बहरा कर देने वाले उन्मादी शोर के बीच हम उसे देख रहे हैं...सुन रहे हैं... और वक़्त? वो कहीं नहीं है!
##
ये मौत के आख़िरी दरवाज़े के पीछे से झांकते माइकल जैक्सन की कहानी है, जिसने कभी चांद पर चलने की कोशिश की थी...वो आज भी चुपचाप चांद की वो गिटार बजा रहा है- जो जरमाइन ने एक बहुत पुरानी दोपहर आंसू और ख़ून के विरसे के साथ उसे सौंपी थी!
***
[ जून जैक्सन का महीना है. जून में जैक्सन की बहुत याद आती है. वो आज होता तो साठ का हो जाता. यह लेख आठ साल पहले लिखा था. कच्ची लिखावट है फिर भी लगा रहा हूँ. जैक्सन पर नया लिखने की वक़अत अब नहीं. बाय द वे, सुशोभित ने जैक्सन पर एक पूरी किताब लिखी है, इंशाअल्ला जिस दिन वो छपेगी, हंगामा बरपेगा ]
"चंद्रमा", हम और नील आर्मस्ट्रांग
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चंद्रमा का चरखा सपनों का सूत कातता था, जिसमें हम "दूधमोगरे" की लड़ियां पिरोते थे।
चंद्रमा "एक" था। जिस दिन नील आर्मस्ट्रांग ने चंद्रमा पर चहलक़दमी की, उसी दिन चंद्रमा "दो" हो गए। एक हमारा चांद, दूजा नील आर्मस्ट्रांग का चांद।
फिर चंद्रमा बारह हुए, फिर अठाइस। चंद्रमा की कलाएं बढ़ती गईं। और एक दिन हमने पाया कि चंद्रमा वहां नहीं था, जहां वह होता था, वैसा नहीं था, जैसा वह दिखता था। वास्तव में, अब सभी के पास अपने-अपने चंद्रमा थे।
एकबारगी हमें लगा नील आर्मस्ट्रांग ने हमारा चंद्रमा छीन लिया है।
अब हम चांदनी के सफ़ेद फूलों से अपनी रातों को नहीं सजा सकते थे। चांद अब केवल धरती का उपग्रह था, एक रूखा-सूखा पिंड, जिसे "अपोलो-11" ने फ़तेह कर लिया था। लेकिन सच पूछो तो हम इसके लिए कभी नील आर्मस्ट्रांग से नाराज़ नहीं हुए।
20 जुलाई 1969 की सुबह तो हमारे रोमांच का कोई ठौर न था। हम चंद्रमा पर थे। नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर हमारा प्रतिनिधि था। हम बेहद ख़ुश थे और अलबत्ता हमारे मन में एक टीस भी थी, पर हम उस टीस को भरसक छुपा गए थे। हम विज्ञान के विजय-पर्व पर ख़ुद को एक बौड़म भाववादी नहीं साबित करना चाहते थे।
उस दिन हम उस चंद्रमा का कोई जिक्र नहीं करना चाहते थे, जिसे हमने चुपचाप अपने भीतर पोसा था।
नील आर्मस्ट्रांग को चंद्रमा पर चरखा कातने वाली कोई बुढ़िया नहीं मिली थी। वहां न दूध के समुद्र थे, न रूई के पहाड़। चांद का मुंह तो टेढ़ा था। वह दाग़दार था। वहां केवल धूल के ग़ुबार और बड़े-बड़े गड्ढे थे। "चलो दिलदार चलो" गाने वालों के लिए वह क़तई उपयुक्त जगह नहीं थी।
लेकिन हम उस मीठे अफ़सोस को ख़ामोशी से जज़्ब कर गए। चंद्रमा एक से दो हो गया था, दो से बारह, बारह से अठाइस। उस दिन के बाद चंद्रमा से हमारा रिश्ता बदल गया। उस रिश्ते में एक सहज द्वैत आ गया और हमने इस द्वैत को स्वीकार कर लिया।
लेकिन कविताओं और कल्पनाओं में चंद्रमा को उसके बाद जगह मिलना बंद हो गई, ऐसा नहीं है। हम जानते थे कि चंद्रमा एक भौतिक तथ्य है, धूल-मिट्टी है, तब भी उसे अपने भीतर जगह देते रहे।
चंद्रमा की हक़ीक़तों को हमने साइंस की किताबों तक मेहदूद कर दिया और अपना-अपना चांद बचा लाए : चवन्नी की तरह। चंद्रमा अब भी हमारा कल्पतरु था : रोशनी का एक दरख़्त। हम एक दरपेश सच्चाई को मुंह चिढ़ाने लगे।
हम हमेशा ऐसा करते हैं। हर उस चीज़ के साथ ऐसा करते हैं, जिससे बहुत प्यार करते हैं। हम उसकी तमाम हक़ीक़तों को जानते-बूझते हैं, तब भी उसे अपना चंद्रमा बनाकर मन में बसाते हैं और चुपचाप उसे प्यार करते हैं। कि हम प्यार में ख़ुद को जानबूझकर कितना छलते हैं! छलते नहीं थकते!
साल 2012 में जब नील आर्मस्ट्रांग की मौत हुई, तो वह अपने पीछे चंद्रमा छोड़कर चला गया।
मैं दावे से कह सकता हूं ख़ुदावंद को उसके पास से कोई चांद बरामद नहीं हुआ होगा। चंद्रमा उसका था भी नहीं। चंद्रमा हमारा है। चंद्रमा हर उस शख़्स का है, जो उसके बिम्ब को अपने भीतर जगह देता है : प्यार की चांदनी की तरह, जिसके लिए हमारा दिल एक आंगन है। हमेशा से हमेशा तक।
जिसने कभी चांद पर चलने की कोशिश की थी
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"जैक्सन की मौत नहीं हुई थी, वह केवल अपने प्लैनेट वापस लौट गया था!"
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ये अफ़वाहों और अंधड़ों की कहानी है!
अजीब बात है, लेकिन इस कहानी की शुरुआत एक जवान मौत के इर्द-गिर्द होती है... और एक क़त्ल के भी. गोया ये अपने आपमें एक 'थ्रिलर' हो. लेकिन सचाई ये ही है कि इस पूरी कहानी पर एक अजब तरह का स्याह रंग छाया हुआ है और इससे भी बड़ी सचाई ये है कि एक निहायत उजले इलाक़े तक भी इस कहानी की तफ़सीलें पहुंचती हैं...दरअसल, ये स्याह और उजले की आपसी कशमकश वाली कहानी है, जिसमें शोहरत के नश्तर हैं, तो प्रतिमाओं का धुंधलका भी...ये अफ़वाहों की क़तरनें जोड़कर बनाई गई एक अजीबोग़रीब कहानी है.
इस कहानी की शुरुआत अटलांटिक के दूसरी तरफ़ से होती है!
जबकि समंदर के इस तरफ़ बीटल्स का वो शीराज़ा बिखर चुका था...योरोप में सन्नाटा था, अमरीका में नई आहटों की महज़ दबी-घुटी आवाज़ें... 'रॉक' संगीत के गिटार की भर्राई हुई आवाज़ मद्धम पड़ती जा रही थी, और 'रिदम एंड ब्ल्यूज़' की अफ्रीकी-अमरीकी ध्वनियों को नई पहचान की तलाश थी. जॉन लेनॅन के क़त्ल की ख़बर तो बाद में आती है, लेकिन ऐल्विस प्रेस्ले की मौत का अफ़सोसनाक वाक़या दुनियाभर के उन लोगों के कलेजे में गड़ा हुआ था, जो मौसिक़ी से मोहब्बत करते हैं.
ऐन इसी दौरान अटलांटिक के उस तरफ़ "जैक्सन फ़ाइव" के कमसिन लड़कों ने गाना-गुनगुनाना शुरू किया था. वे लोग 'न्यू जैक स्विंग' के ताज़ातरीन शगूफ़े में पूरी ताक़त से शुमार थे. इस अफ़साने में डायना रॉस शुरू से ही शामिल रहीं, और क्विन्सी जोन्स तो इस कहानी का आलातरीन क़िरदार है.
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ये कहानी तब शुरू होती है जब जोसेफ़ जैक्सन की बीवी एक दोपहर उसे आकर बताती है कि बग़ल वाले कमरे में माइकल कुछ गुनगुना रहा है... जोसेफ़ एक ठंडी मुस्कराहट के साथ कहते हैं - हां, मैंने सुना... जरमाइन से कह दो कि अपनी गिटार उसे सौंप दे.
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बहुत शुरुआत में इस कहानी में "जैक्सन फ़ाइव" के लड़कों की मासूम आवाज़ें शामिल थीं, जो 'एबीसी', 'आई वांट यू बैक', और फिर 'द लव यू सेव' में नुमायां हुईं. बिलबोर्ड ने इन नवागतों को टॉप चार्ट से नवाज़ा, लेकिन इस ग्रुप के कुल जमा ग्यारह बरस उम्र वाले 'लीड वोकल' को एक नई ज़मीन गढ़ना थी, जिस पर उसे नए क्षितिज रखने थे. 'ऑफ़ द वॉल' तो ख़ैर बाद में आया, लेकिन उसके पीछे की बुनावटें उस लड़के के ज़ेहन में तरतीब लेने लगी थीं. वो 70 के सालों की आख़िरी सुगबुगाहटें थीं.
'रॉक विद यू' सुनकर स्टीफ़न स्पिलबर्ग ने एक नए चमत्कार के साक्षी होने की बात कही थी, अगरचे वो भी एक दूसरी कहानी मानी जाए, तब भी 'थ्रिलर' तक आते-आते उस चमत्कार को हक़ीक़त में तब्दील होते सभी ने देखा. 82 के साल में सामने आया 'थ्रिलर' कई मायनों में एक फ़िनामिना था, और उसने पॉपुलर संगीत की पिछली तमाम परिभाषाएं बदलकर रख दीं. अब इसमें रॉक, या जैज़, या ब्ल्यूज़ का इकहरापन नहीं था...इसमें शामिल थीं फ़ंक, सोल, गोस्पेल और बैलेड तक की ख़राशें. बीटल्स के सॉफ़्ट रॉक और हार्ड रॉक भी इसमें शुमार थे. बाद में न्यू जैक स्विंग का हिपहॉप भी इसमें जुड़ा.
अब चौबीस बरस के हो चुके उस लड़के के क़दमों के नीचे से ज़मीन को फिसलते हुए 'मोटाउन 25' में पूरी दुनिया ने देखा. उसके पैरों में बिजलियां थीं और उसने 'ज़ीरो ग्रेविटी' को झुठला दिया था. इस कहानी में 80 के दशक का गर्म ख़ून और मांस के दरिया की मचलती मछलियां शामिल थीं. 'बिली जीन' और 'बीट इट' पश्चिमी पॉप के नए सूत्रगान बन चुके थे. लड़के की आवाज़ के पीछे म्यूजिक वीडियोज़ के तिलिस्मी परदे लहराते रहे. देखने-सुनने वालों ने अचरज के साथ ये तमाम नई चीज़ें देखीं और उस सितारे का नाम अच्छी तरह से अपने ज़ेहन में टांक लिया.
'वी आर द वर्ल्ड' के साथ उसने बहुत शुरुआत में ही दुनिया-जहान की आदमियत से एक वादा कर लिया था. उसके बाद उसने उस वादे को हर बार निभाया. रियो-डी-जेनेरियो की संकरी गलियों में बच्चों के साथ और उनके लिए 'दे डोंट रियली केयर अबाउट अस' गाते-गुनगुनाते हमने उसे देखा था, तो नेवरलैंड के परियों के संसार में भी वो हमें मिला. 'मैन इन द मिरर' के बाद वो 'हील द वर्ल्ड' लेकर आया, तो सबसे आख़िर में आत्मा की अतल गहराइयों से उपजा हुआ 'अर्थ सॉन्ग'...जिसके बाद अब उसका कोई अंत नहीं था. उसे सुनने वाली अवाम अपनापे से भरे उस चेहरे को हमेशा पहचानती रही...आंसुओं में सबसे ज़्यादा.
उसका संगीत वक़्त के साथ गाढ़ा होता गया. 'यू आर नॉट अलोन' को उसने एक अनचीन्हीं मिठास से भर दिया, तो 'रिमेंबर द टाइम' में उसने गति और ठहराव के नए आयाम खोजे. 'जैम' और 'डर्टी डायना' में उसने अपनी उद्दाम कामुकता को उघाड़कर सामने रख दिया था, तब भी, 'स्ट्रेंजर इन मॉस्को' की बेपनाह तनहाइयों में उसकी रूह तड़कती रही. वो पिघला हुआ शीशा सभी ने देखा... ये शीशा उसके गले में शहद बन जाया करता था...और उसकी आवाज़ हमारा आइना. 'बैड' और 'डेंजरस' के साथ वो आवाज़ों के नए-नए मौसम गढ़ता रहा, और 'हिस्ट्री' तक पहुंचते-पहुंचते उसका संगीत एक लाजवाब शराब बन गया.
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ये शोर और भीड़ के बीचोबीच वाले अकेलेपन की एक कहानी है... ये लांछन, पराजय और अफ़वाहों से भरा एक अफ़साना है, जिसमें रोशनी के तेज़गाम साये सरकते रहे, बेलगाम चीख़ें और बेहोशियां गुमी रहीं... वो चमत्कार हमारी नज़रों के सामने ही हुआ, वो मिथक उठा, और फिर उसे कीचड़ में लथपथ होते देख एक चीप और मीडियाकॅर क़िस्म की ख़ुशी भी हमने ही हासिल की.
वो उस सब के लायक़ था, जो कुछ उसने हासिल किया... और जो कुछ उसे मिला.
ये सनसनीख़ेज़ ख़बरों सरीखी दिलचस्प तफ़सीलों वाली कहानी है, जिससे सालोंसाल अख़बारनवीसों की रूहें तस्क़ीन पाती रहीं... और फिर उसकी मौत के बाद भी. सुइयों से छिदी उसकी देह दवाइयों की तेज़ गंध में गुमती रही...'इनविंसिबल' के बाद वो जो डूबा, तो फिर उबर नहीं सका... उसकी आख़िरी मेहफ़िलों के लिए मेहमान सब जुट चुके थे, लेकिन वो ग़ैर-मौजूद रहा... वो अब वहां कभी नहीं पहुंच सकेगा.
ये एक बहुत-बहुत स्याह, और एक बहुत-बहुत उजली कहानी है...उसकी चमड़ी के बदलते रंग सरीखी... जैसे दिन और रात के एकसाथ सच होने की कोई तिलिस्माई तरक़ीब हो...बहरा कर देने वाले उन्मादी शोर के बीच हम उसे देख रहे हैं...सुन रहे हैं... और वक़्त? वो कहीं नहीं है!
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ये मौत के आख़िरी दरवाज़े के पीछे से झांकते माइकल जैक्सन की कहानी है, जिसने कभी चांद पर चलने की कोशिश की थी...वो आज भी चुपचाप चांद की वो गिटार बजा रहा है- जो जरमाइन ने एक बहुत पुरानी दोपहर आंसू और ख़ून के विरसे के साथ उसे सौंपी थी!
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[ जून जैक्सन का महीना है. जून में जैक्सन की बहुत याद आती है. वो आज होता तो साठ का हो जाता. यह लेख आठ साल पहले लिखा था. कच्ची लिखावट है फिर भी लगा रहा हूँ. जैक्सन पर नया लिखने की वक़अत अब नहीं. बाय द वे, सुशोभित ने जैक्सन पर एक पूरी किताब लिखी है, इंशाअल्ला जिस दिन वो छपेगी, हंगामा बरपेगा ]
1 टिप्पणियाँ:
वाह बहुत सुन्दर एक अलग आयाम।
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