"कुछ बातें हैं तर्क से परे...
कुछ बातें अनूठी है!
आज कैसे
अनायास आ गयी
मेरे आँगन में...
अरे! एक युग बीता...
कविता तो मुझसे रूठी है!!"
इन्हीं रूठी कविताओं का अनायास प्रकट हो आना,
"अनुशील...एक अनुपम यात्रा" को शुरुआत दे गया! ... अनुपमा पाठक
अनुशील
कुछ लोग एहसासों के मामले में समंदर का विस्तार होते हैं, लहरों की तरह हम तक आते हैं, लौट जाते हैं - और हम उसे पकड़ने को दौड़ते हैं ... घंटों उसके आगे गुजार देते हैं
ध्येय चाहिए!
बहती रहे कविता
सरिता की तरह
बने यह
कई लोगों के लिए
जुड़ने की वजह
मानव जीवन को
और क्या
श्रेय चाहिए!
जीने के लिए बस हमें
पावन एक
ध्येय चाहिए!!
अकेले
चले थे हम
शब्दों की
मशाल लेकर!
मिले राह में हमें
ऐसे भी लोग
जो
इस ठहराव में
स्वयं
गति की पहचान हैं;
सजाये शब्द हमने
उनसे ही
हौसलों की ताल लेकर!
इस ताल पे देखो अब
कितने भाव नाच उठते हैं
आपकी आवाज़ जुड़ी
तो कितने ही छन्द
स्वयं
कविता से आ जुड़ते हैं;
ऐसे ही चलें हम
स्वच्छ मन
और कुछ सवाल लेकर!
साथ
अनेकानेक कड़ियाँ
जुड़ती जाए
और उत्तर की भी
सम्भावना जन्मे;
स्वस्थ विचारों का
आदान प्रदान हो
समझ की
वृहद् थाल लेकर!
चलते
चलें हम
शब्दों की
मशाल लेकर!
बहती रहे कविता
सरिता की तरह
बने यह
कई लोगों के लिए
जुड़ने की वजह
मानव जीवन को
और क्या
श्रेय चाहिए!
जीने के लिए बस हमें
पावन एक
ध्येय चाहिए!!
विस्मित हम!
कैसे जुड़ जाते हैं न मन!
कोई रिश्ता नहीं...
न कोई दृष्ट-अदृष्ट बंधन...
फिर भी
तुम हमारे अपने,
और तुम्हारे अपने हम...
भावों का बादल सघन
बन कर बारिश,
कर जाता है नम...
उमड़ते-घुमड़ते
कुछ पल के लिए
उलझन जाती है थम...
जुदा राहों पर चलने वाले राहियों का
जुदा जुदा होना,
है मात्र एक भरम...
एक ही तो हैं,
आखिर एक ही परमात्म तत्व
समाहित किये है तेरा मेरा जीवन...
भावातिरेक में
कह जाते हैं...
जाने क्या क्या हम...
सोच सोच विस्मित है,
अपरिचय का तम....
कैसे जुड़ जाते हैं न मन!
कितना लिखना है,
कितना लिख गयी...
और जाने
क्या क्या लिखेगी...
ज़िन्दगी! तुम्हारी ही तो है न
ये कलम...!!!
4 टिप्पणियाँ:
एक और सुन्दर आयाम रूहानी यात्रा का ।
sundar rachna .........badhai
http://hindikavitamanch.blogspot.in/
बहुत अच्छी प्रस्तुति ..
रश्मि जी, रूठी हुई कवितायेँ कभी नहीं लौटती जो इस राह में आप जैसे वटवृक्ष न होते... !!
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