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शुक्रवार, 3 जून 2016

वक़्त का कमाल




आत्मा की हम नहीं सुनते 
उसे अनदेखा,अनसुना कर 
उसे मृतात्मा बना देते हैं 
पर वक़्त का कमाल,
एक दिन हम अपनी मृत आत्मा में प्राणप्रतिष्ठा करते हैं 
और उसी पल से कलम आग उगलती है !
चेतावनी =
उस आग से मत खेलना
जलोगे ही नहीं सिर्फ
ख़ाक हो जाओगे




बेनाम रिश्ते
बेनाम से
इस रिश्ते की गहराई
तब ले आती है
मेरे उदास होंठो पर
एक मीठी सी मुस्कान
जब तुम किसी
"पुराने टोटके" की तरह
अपनी बेख्याल, बेवजह बातों को
सिर्फ "मुझे"
अपने जहन में सोच कर
एक पल हंसाने को
लिखते हो
कहते हो !!

हरकीरत हीर 
ग़ज़ल
********
बुझता हुआ चिराग़, ये बता गया मुझे
लड़ना ही ज़िंदगी है' वो सिखा गया मुझे
यादें न आज तक कभी मिटा सकी मैं' क्यूँ
वो जाने' किस तरह से' ,यूँ भुला गया मुझे
इक आरजू रही कि मिल सकूँ मैं' आपसे
बस इंतज़ार आपका , थका गया मुझे
थी ग़मज़दा बड़ी ये' रात बेकरार सी
लो फ़िर ख़याल आपका हँसा गया मुझे
वो करवटें,वो बेकसी,वो बेकली, सभी
बेचैनियों का' राज़ दिल, बता गया मुझे
शेरोसुख़न में' बात दिल की' आप कह गये
अंदाज़ आपका यही तो' भा गया मुझे
वो आके' ज़िंदगी में', 'हीर' यूँ समा गया
यादों की' कैद से रिहा करा गया मुझे

2 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति हमेशा की तरह ।

कविता रावत ने कहा…

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

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