Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 21 जून 2016

मन तो एक है




मन तो एक है,
पर उसके भीतर कई द्वार,
कई कमरे ..... 
विचारों के अविरल उद्वेग 
कई बार भ्रमित करते हैं ! 
एक ही मन हिरण सा कुलांचे भरता है 
कभी खरगोश,कभी कछुआ 
कभी अजगर
विचारों का सैलाब जो उठता है
उसके एक नहीं 
अनगिनत स्रोत हैं
दुविधा कोई और नहीं
अपना ही मन देता है
फिर वही मन डूबने से बचाता है !!!
प्रश्न किसी व्यक्तिविशेष से सम्भव नहीं
प्रश्नों की चारदीवारी अपना ही मन खड़े करता है
उत्तर के लिए सर पटकता है
मकसदों के प्रेरक मंत्र जपता है
..... यात्रा यूँ ही चलती जाती है बंधू

अनुनाद: संजय चौधरी की कविताएं - चयन, मराठी से अनुवाद ...

Search Results

लड़की धुएँ से टांक देती उसकी सफ़ेद शर्ट्स में अपना ...


राजपथ पर योगाभ्यास
*********************
समुद्र सूख रहा है
और तलहटी में बिलबिला रही हैं
सुनहरी , हरी , नीली मछलियाँ
कोई उद्यम नहीं करना अब
जिंदा रहने को जरूरी है पानी
और पानी
आज सूख चुका है
हर नदी तालाब और कुओं से
फिर क्या फर्क पड़ता है
इन्सान और इंसानियत के पानी पर
कोसने के लतीफे गढ़े जाएँ
फफोलों का पानी काफी है जीने के लिए
ये चुकने का समय है
इंसान कहलाने वाले दानव का
पानी कोसों दूर, न था न है
बस शर्मसारी को थोक में बेचा गया बाज़ार में
अब खाली लोटे लुढ़क रहे हैं
टन टन की आवाज़ के साथ
और टंकारों से अब नहीं होतीं क्रांतियाँ
ये आँख का पानी मरने का समय है
ये चुल्लू भर पानी में डूबने का समय नहीं
तो क्या हुआ जो सूख रहा है समुद्र
तुम्हारी संवेदनाओं का
आशाओं का
विश्वास का
पानी समस्या नहीं
इंसानियत जिंदा थी, है और रहेगी
बिना पानी भी
फिनिक्स सी ...
ये समय है
दरकिनार करने का
छोटी मोटी बातों को
कि
स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का विकास संभव है
काया का निरोगी होना जरूरी है
बिना पानी भी
आओ राजपथ पर करें योगाभ्यास

इक पुरानी रचना
वो जो देतें हैं
साया चिड़ियों को
घर बनाने का
वो उस घर का किराया नहीं लेतें
यह पेड़ ही हैं -----
जो बसा लेतें हैं पूरी दुनिया
अपने सायें तले
पर भूल के भी अहसान
दिखाया नहीं करते
हम जलातें हैं चिरागों को
अपने घर के लिए .'
यह रौशनी कभी
चाँद सितारें नहीं लेतें
वो जो चलतें हैं
रास्ते खुद बन जातें हैं
पर किसी राह को
वो अपना नहीं कहतें .

5 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!

vandana gupta ने कहा…

वाह क्या बात है दी ..........मन की कितनी सुन्दर व्याख्या की आपने .........मेरी कविता को ब्लॉग बुलेटिन पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut sundar prastuti .....

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

यात्रायें यूँ हीं जारी रहें । सुन्दर बुलेटिन ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

यात्रा यूं ही चलती रहे ...

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार