नमस्कार साथियो,
पक्ष-विपक्ष, सहमति-असहमति के साथ पश्चिमी संस्कृति से आये
हुए अनेकानेक दिवसों, आयोजनों को हम भारतवासी भी किसी न किसी रूप में मनाने लगे
हैं. जून माह का तीसरा रविवार ‘फादर्स डे’ यानि कि ‘पितृ दिवस’ के रूप में मनाया
जा रहा है. माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया
गया. इसके पीछे भी एक कहानी है. सोनेरा डोड नाम की एक बच्ची जब नन्ही सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया. उसके पिता
विलियम स्मार्ट ने सोनेरो को कभी माँ की कमी महसूस नहीं होने दी. एक दिन सोनेरा को
ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? उसने
19 जून 1910 को फादर्स डे मनाया. इसके
बाद 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे मनाये जाने पर अपनी सहमति
दी. सन 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने
की आधिकारिक घोषणा की. धीरे-धीरे समूचा विश्व फादर्स डे मनाने लगा है. भारत में भी
इसके आयोजन अपने-अपने स्तर पर किये जाने लगे हैं.
भारतीय संस्कृति में सदैव से माता-पिता को सर्वोच्च
स्थान प्राप्त रहा है. माता को जहाँ त्याग, प्यार, स्नेह, वात्सल्य की प्रतिमूर्ति
माना जाता है वहीं पिता को सख्त स्वभाव का, अनुशासन पसंद, अपनी संतानों से कम
बोलने वाला माना जाता रहा है. वैश्वीकरण के दौर में अनेक सामाजिक मान्यताओं, सोच
में परिवर्तन आने से पिता की भूमिका में भी बदलाव देखने को मिले हैं. अब पिता का
अपने बच्चों के साथ मित्रवत रिश्ता देखने को मिल रहा है. किसी समय का अनुशासित माहौल
स्वच्छंद रूप में दिखाई देने लगा है. आपसी संकोच की दीवार गिरकर स्वतंत्रता में
बदल गई है. ये परिवर्तन आज भले देखने को मिल रहे हों मगर पिता की भूमिका कभी भी
नकारात्मक रूप में नहीं रही है. देश की अन्तरिक्ष यात्री बेटी कल्पना चावला को जब
एरोनॉटिक्स इंजीनीयरिंग में प्रवेश नहीं मिल रहा था तो उसके पिता ने ही अपनी नौकरी
को दाँव पर लगाकर उसे प्रवेश दिलवाया था. प्रसिद्द गायिका सुनिधि चौहान के पिता ने
उसको स्थापित करने के लिए अपनी नौकरी छोड़कर मुंबई प्रस्थान किया था. विश्व स्तर की
बैडमिन्टन खिलाड़ी सायना नेहवाल की सफलता के पीछे उसके पिता ही हैं. प्रसिद्द टेनिस
खिलाड़ी लिएंडर पेस अपनी सफलता का श्रेय अपने पिता को देते हैं. इनके अलावा अनेक
सफल व्यक्तियों की सफलता में उनके पिता की भूमिका स्पष्ट रूप से देखने को मिलती
है.
पिता के सख्त अनुशासन में या फिर आज के मित्रवत रिश्ते
में बेटे-बेटियाँ अपने भविष्य को निखारते रहे हैं. पिता के निर्देशन में सफलता
प्राप्त करने से जहाँ लोगों को ख़ुशी मिलती है वहीं पिता को भी गर्व की अनुभूति
होती है. कुछ ऐसा ही गर्व उन तीन पिताओं को भी हो रहा होगा जिनकी बेटियों ने
भारतीय सैन्य संसार में इतिहास रच दिया है. अवनी चतुर्वेदी, भावना कांत और मोहना सिंह ने सफल प्रशिक्षण
के बाद शनिवार को कमीशन प्राप्त किया. वे देश की पहली महिलाएं हैं जो वायुसेना के लड़ाकू
विमानों की पायलट बनी हैं. ऐसी सभी बेटियों और उनकी सफलता में प्रभावी भूमिका
निभाने वाले सभी पिताओं को समर्पित है आज की बुलेटिन.
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6 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर पितृ दिवस बुलेटिन । सभी पिताओं, माताओं और सन्तानों को पितृ दिवस की शुभकामनाएं ।
सम सामयिक संकलन...
अभेद्य गढ़ को भेद दिया आपने
सादर
अच्छे लेखों के लिंक मिले । ब्लॉग बुलेटिन को जारी रखने के लिए आभार ।
सभी को शुभकामनाएँ! सुन्दर सूत्र समायोजन !
बहादुर बेटियों को दिल से बधाई!
हमारी रचना को स्थान देने के लिए आभार !
बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार।
पितृ दिवस के अवसर पर बेहद सार्थक बुलेटिन प्रस्तुत किया आपने राजा साहब ... आभार आपका |
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