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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

कर्म और भाग्य - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

आज फेसबुक पर अनुपम चतुर्वेदी जी की वाल पर एक बेहद उम्दा पोस्ट पढ़ने को मिली ... वही आप सब से आज की बुलेटिन के माध्यम से सांझा कर रहा हूँ |

एक पान वाला था। जब भी पान खाने जाओ ऐसा लगता कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है जल्दी पान लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नही होती।
एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई।
तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैनें सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी देख ही लेते हैं। मैंने एक सवाल उछाल दिया।
मेरा सवाल था कि आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?
और उसके जवाब से मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।
कहने लगा,आपका किसी बैंक में लाकर तो होगा?
उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है। हर लाकर की दो चाभियाँ होती हैं।
एक आप के पास होती है और एक मैनेजर के पास।
आप के पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य।
जब तक दोनों नहीं लगतीं ताला नही खुल सकता।
अाप को अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगा दे। कहीं ऐसा न हो कि ईश्वर अपनी भाग्यवाली चाभी लगा रहा हो और हम परिश्रम वाली चाभी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाये!!

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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हर्ष फायरिंग की अनुमति है ही क्यों ?

निर्बाध,अनवरत ... प्रलाप

लो दिन बीता लो रात गयी -- हरिवंशराय बच्चन

कविता और छंद से ही कहना आये जरूरी नहीं है कुछ कहने के लिये जरूरी कुछ उदगार होते हैं

पनामा पेपर्स के उस्ताद बनाम पिता का ठेला

धन्य-कलयुग

ऊसर में प्रेम

राजनर्तकी की छवि से मुक्ति दिलाने की सार्थक कोशिश है-" एक थी राय प्रवीण"

महेश वर्मा की कविताएं

गर्मी की क्षणिकाएँ

दादासाहब फालके की १४६ वीं जयंती

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

"अमां तुम क्या कर रहे हो !"




हम अक्सर उन्हें खुश करने में लग जाते हैं, 
जो खुश दिखना नहीं चाहते 
हम बिना वजह बोलते जाते हैं 
कहानियाँ सुनाते हैं 
और न जाने क्या क्या 
अचानक एक सन्नाटा घूरता है 
पूछता है -  "अमां तुम क्या कर रहे हो !"


गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

मुद्दे उछले या कि उछले जूते - ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
जूता एक बार फिर उछला. जूते का निशाना एक बार फिर चूका. सवाल उठता है कि जूता अपने निशाने से क्यों भटक जाता है? अब जूता उछला है तो लक्ष्य तक पहुँचना भी चाहिए. न अपने लक्ष्य को भेदता है और न ही उछलने को सिद्ध करता है. एक बात ये भी हो सकती है कि जूते का उछलना सवालों का उछलना हो सकता है. इसके बाद भी सवाल कहीं पीछे रह जाते हैं. आखिर जूता उछालने वाले ने सिर्फ खबरों में आने के लिए तो जूता उछाला नहीं होगा? आखिर उसके जानबूझ कर निशाना चूकने या फिर धोखे से चूक जाने में भी कोई मामला छिपा होगा? कम से कम एक बार उस निशानेबाज से भी जानकारी करनी चाहिए कि आखिर उसने जूते को उछालने का कृत्य क्यों किया? उछलने वाला जूता तुम्हारे अपने ही पैर का था या किसी और के पैर का था? जूते उछालबाज़ी की दुनिया में शायद ये सब निरर्थक सा लगे किन्तु यदि जूता उछालना महज प्रचार था तो फिर एक ही क्यों कई-कई जूते उछाले जा सकते थे? चुनावी मौसम में ही जूते का उछलना क्यों? गौर से देखिये, तो ये सिर्फ जूता उछलने की क्रिया नहीं है वरन मानसिकता के उछलने की क्रिया है. काश कि अबकी जूता उछले तो निशाने पर लगे. काश कि अबकी जूता उछले तो सवालों को हल करता हुए उछले.

चलिए, जूता उछला, कई सारे मसले इस दौरान उछले. उछलते मसलों, मुद्दों के बीच कौन से सही जगह, सही निशाने पर बैठेंगे, ये भविष्य के गर्भ में है. जैसा होगा सामने आएगा, तब तक आप सब आनंद लीजिये आज की बुलेटिन का.

++++++++++













(चित्र गूगल छवियों से साभार)

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

जोहरा सहगल जी की जयंती और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
जोहरा सहगल जन्मदिन
आज प्रसिद्ध नृत्यांगना और अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री स्व॰ जोहरा सहगल जी की १०४ वीं जयंती है | जोहरा का असली नाम साहिबजादी जोहरा बेगम मुमताजुल्ला खान है। उनका जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के रोहिल्ला पठान परिवार में हुआ। वह मुमताजुल्ला खान और नातीक बेगम की सात में से तीसरी संतान हैं। हालांकि जोहरा का पालन-पोषण सुन्नी मुस्लिम परंपराओं में हुआ, लेकिन वह बचपन से ही विद्रोह मानसिकता की थीं। पूरा लेख यहाँ पढ़े...

हर दिल अज़ीज और अपनी ज़िंदादिली के लिए मशहूर ज़ोहरा सहगल जी को हिंदी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर ...


भयावह जल-संकट की स्थिति में बुन्देलखण्ड

‘जातिगत आरक्षण का विरोध करनेवालों को सस्नेह अर्पित'

युद्धबंदियों के दर्द को उकेरती एक दास्तां

विविध भारती के सेहतनामा में जीवन शैली की बातें...

राष्ट्रपति ने दिये विज्ञान के सबसे प्रतिष्ठित आत्माराम पुरस्कार

पर्यावरण सुधारना है तो कड़ाई करनी ही पड़ेगी

"" ... जल संरक्षण हेतु वाटर हारवेस्टिंग से भी सस्ता घरो में सोकपिट जरुर बनवाये ..""

द राइटर्स डायरी: आपने किसी को आखिरी बार खुश कब देखा था?

हम आदमी बने रहेंगे...

II आओ चलो खो जाएँ II

डीजेवाले बाबू मुझे भी बि‍ठा ले !

आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

श्रीनिवास रामानुजन - गणित के जादूगर की ९६ वीं पुण्यतिथि

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन (22/12/1887 - 26/04/1920)
महज 32 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए रामानुजन, लेकिन इस कम समय में भी वह गणित में ऐसा अध्याय छोड़ गए, जिसे भुला पाना मुश्किल है। अंकों के मित्र कहे जाने वाले इस जुनूनी गणितज्ञ की क्या है कहानी?
 
जुनून जब हद से गुजरता है, तो जन्म होता है रामानुजन जैसी शख्सियत का। स्कूली शिक्षा भी पूरी न कर पाने के बावजूद वे दुनिया के महानतम गणितज्ञों में शामिल हो गए, तो इसकी एक वजह थी गणित के प्रति उनका पैशन। सुपर-30 के संस्थापक और गणितज्ञ आनंद कुमार की मानें, तो रामानुजन ने गणित के ऐसे फार्मूले दिए, जिसे आज गणित के साथ-साथ टेक्नोलॉजी में भी प्रयोग किया जाता है। उनके फार्मूलों को समझना आसान नहीं है। यदि कोई पूरे स्पष्टीकरण के साथ उनके फार्मूलों को समझ ले, तो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से उसे पीएचडी की उपाधि आसानी से मिल सकती है।
 
अंकों से दोस्ती
 
22 दिसंबर, 1887 को मद्रास [अब चेन्नई] के छोटे से गांव इरोड में जन्म हुआ था श्रीनिवास रामानुजन का। पिता श्रीनिवास आयंगर कपड़े की फैक्ट्री में क्लर्क थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, लेकिन बच्चे की अच्छी परवरिश के लिए वे सपरिवार कुंभकोणम शहर आ गए। हाईस्कूल तक रामानुजन सभी विषयों में अच्छे थे। पर गणित उनके लिए एक स्पेशल प्रोजेक्ट की तरह था, जो धीरे-धीरे जुनून की शक्ल ले रहा था। सामान्य से दिखने वाले इस स्टूडेंट को दूसरे विषयों की क्लास बोरिंग लगती। वे जीव विज्ञान और सामाजिक विज्ञान की क्लास में भी गणित के सवाल हल करते रहते।
 
छिन गई स्कॉलरशिप
 
चमकती आंखों वाले छात्र रामानुजन को अटपटे सवाल पूछने की आदत थी। जैसे विश्व का पहला पुरुष कौन था? पृथ्वी और बादलों के बीच की दूरी कितनी होती है? बेसिर-पैर के लगने वाले सवाल पूछने वाले रामानुजन शरारती बिल्कुल भी नहीं थे। वह सबसे अच्छा व्यवहार करते थे, इसलिए स्कूल में काफी लोकप्रिय भी थे। दसवीं तक स्कूल में अच्छा परफॉर्म करने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप तो मिली, लेकिन अगले ही साल उसे वापस ले लिया गया। कारण यह था कि गणित के अलावा वे बाकी सभी विषयों की अनदेखी करने लगे थे। फेल होने के बाद स्कूल की पढ़ाई रुक गई।
 
कम नहीं हुआ हौसला
 
अब पढ़ाई जारी रखने का एक ही रास्ता था। वे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। इससे उन्हें पांच रुपये महीने में मिल जाते थे। पर गणित का जुनून मुश्किलें बढ़ा रहा था। कुछ समय बाद दोबारा बारहवीं कक्षा की प्राइवेट परीक्षा दी, लेकिन वे एक बार फिर फेल हो गए। देश भी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा था और उनके जीवन में भी निराशा थी। ऐसे में दो चीजें हमेशा रहीं-पहला ईश्वर पर अटूट विश्वास और दूसरा गणित का जुनून।
 
नौकरी की जद्दोजहद
 
शादी के बाद परिवार का खर्च चलाने के लिए वे नौकरी की तलाश में जुट गए। पर बारहवीं फेल होने की वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिली। उनका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था। बीमार हालात में जब भी किसी से मिलते थे, तो उसे अपना एक रजिस्टर दिखाते। इस रजिस्टर में उनके द्वारा गणित में किए गए सारे कार्य होते थे। किसी के कहने पर रामानुजन श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले। अय्यर गणित के बहुत बड़े विद्वान थे। यहां पर श्री अय्यर ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उनके लिए 25 रुपये मासिक छात्रवृत्ति का प्रबंध भी कर दिया। मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में भी क्लर्क की नौकरी भी मिल गई। यहां काम का बोझ ज्यादा न होने के कारण उन्हें गणित के लिए भी समय मिल जाता था।
 
बोलता था जुनून
 
रात भर जागकर वे गणित के नए-नए सूत्र तैयार करते थे। शोधों को स्लेट पर लिखते थे। रात को स्लेट पर चॉक घिसने की आवाज के कारण परिवार के अन्य सदस्यों की नींद चौपट हो जाती, पर आधी रात को सोते से जागकर स्लेट पर गणित के सूत्र लिखने का सिलसिला रुकने के बजाय और तेज होता गया। इसी दौरान वे इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी के गणितज्ञों संपर्क में आए और एक गणितज्ञ के रूप में उन्हें पहचान मिलने लगी।
 
सौ में से सौ अंक
 
ज्यादातर गणितज्ञ उनके सूत्रों से चकित तो थे, लेकिन वे उन्हें समझ नहीं पाते थे। पर तत्कालीन विश्वप्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने जैसे ही रामानुजन के कार्य को देखा, वे तुरंत उनकी प्रतिभा पहचान गए। यहां से रामानुजन के जीवन में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। हार्डी ने उस समय के विभिन्न प्रतिभाशाली व्यक्तियों को 100 के पैमाने पर आंका था। अधिकांश गणितज्ञों को उन्होने 100 में 35 अंक दिए और कुछ विशिष्ट व्यक्तियों को 60 अंक दिए। लेकिन उन्होंने रामानुजन को 100 में पूरे 100 अंक दिए थे।
उन्होंने रामानुजन को कैंब्रिज आने के लिए आमंत्रित किया। प्रोफेसर हार्डी के प्रयासों से रामानुजन को कैंब्रिज जाने के लिए आर्थिक सहायता भी मिल गई। अपने एक विशेष शोध के कारण उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की उपाधि भी मिली, लेकिन वहां की जलवायु और रहन-सहन में वे ढल नहीं पाए। उनका स्वास्थ्य और खराब हो गया।
 
अंतिम सांस तक गणित
 
उनकी प्रसिद्घि बढ़ने लगी थी। उन्हें रॉयल सोसायटी का फेलो नामित किया गया। ऐसे समय में जब भारत गुलामी में जी रहा था, तब एक अश्वेत व्यक्ति को रॉयल सोसायटी की सदस्यता मिलना बहुत बड़ी बात थी। और तो और, रॉयल सोसायटी के पूरे इतिहास में इनसे कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है। रॉयल सोसायटी की सदस्यता के बाद वह ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने।
करना बहुत कुछ था, लेकिन स्वास्थ्य ने साथ देने से इनकार कर दिया। डॉक्टरों की सलाह पर भारत लौटे। बीमार हालात में ही उच्चस्तरीय शोध-पत्र लिखा। मौत की घड़ी की टिकटिकी तेज होती गई। और वह घड़ी भी आ गई, जब 26 अप्रैल, 1920 की सुबह हमेशा के लिए सो गए और शामिल हो गए गौस, यूलर, जैकोबी जैसे सर्वकालीन महानतम गणितज्ञों की पंक्ति में।
 
महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की 125वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार द्वारा वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष और हर साल 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई थी|
 
गणित के जादूगर - श्रीनिवास रामानुजन को उनकी ९६ वीं पुण्यतिथि पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हमारा शत शत नमन !
सादर आपका
शिवम् मिश्रा 
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26 / 04 / 2016

कौन हो माई लार्ड! किस- किसका दबाव है

निदा फाजली की नज्मों, गजलों, यादों में डूबी एक शाम

वे हमें, हम उन्हें पीटते हैं

तीस्ता

वामपंथ कि चाल

हर इन्सान की दुनिया में इक जैसी कहानी है

ये जाति वंश का भेद

इस प्यार को क्या नाम दूँ...?

तुम बिन माँ !

श्वासों का अनुप्रास 

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!! 

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

विश्व मलेरिया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन



सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।।
'विश्व मलेरिया दिवस' का लोगो
विश्व मलेरिया दिवस सम्पूर्ण विश्व में '25 अप्रैल' को मनाया जाता है। 'मलेरिया' एक जानलेवा बीमारी है, जो मच्छर के काटने से फैलती है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को यदि सही समय पर उचित इलाज तथा चिकित्सकीय सहायता न मिले तो यह जानलेवा सिद्ध होती है। मलेरिया एक ऐसी बीमारी है, जो हज़ारों वर्षों से मनुष्य को अपना शिकार बनाती आई है। विश्व की स्वास्थ्य समस्याओं में मलेरिया अभी भी एक गम्भीर चुनौती है। पिछले दो दशकों में हुए तीव्र वैज्ञानिक विकास और मलेरिया के उन्मूलन के लिए चलाए गए वैश्विक कार्यक्रमों के बावजूद इस जानलेवा बीमारी के आंकड़ों में कमी तो आई है, लेकिन अभी भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। 

'विश्व मलेरिया दिवस' पहली बार '25 अप्रैल, 2008' को मनाया गया था। यूनिसेफ़ द्वारा इस दिन को मनाने का उद्देश्य मलेरिया जैसे ख़तरनाक रोग पर जनता का ध्यान केंद्रित करना था, जिससे हर साल लाखों लोग मरते हैं। इस मुद्दे पर 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' का कहना है कि मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम चलाने से बहुत-सी जानें बचाई जा सकती हैं।




अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर..........














आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

रविवार, 24 अप्रैल 2016

पप्पू की संस्कृत क्लास - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

संस्कृत की क्लास मे गुरूजी ने पूछा, "पप्पू, इस श्लोक का अर्थ बताओ। 'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।"

पप्पू: राधिका शायद रस्ते में फल बेचने का काम कर रही है।

गुरू जी: मूर्ख, ये अर्थ नही होता है। चल इसका अर्थ बता, 'बहुनि मे व्यतीतानि, जन्मानि तव चार्जुन'।

पप्पू: मेरी बहू के कई बच्चे पैदा हो चुके हैं, सभी का जन्म चार जून को हुआ है।

गुरू जी: अरे गधे, संस्कृत पढता है कि घास चरता है। अब इसका अर्थ बता, 'दक्षिणे लक्ष्मणोयस्य वामे तू जनकात्मजा'।

पप्पू: दक्षिण में खडे होकर लक्ष्मण बोला जनक आज कल तो तू बहुत मजे में है।

गुरू जी :अरे पागल, तुझे 1 भी श्लोक का अर्थ नही मालूम है क्या?

पप्पू: मालूम है ना।

गुरु जी: तो आखिरी बार पूछता हूँ इस श्लोक का सही सही अर्थ बताना, 'हे पार्थ त्वया चापि मम चापि!' क्या अर्थ है जल्दी से बता?

पप्पू: महाभारत के युद्ध मे श्रीकृष्ण भगवान अर्जुन से कह रहे हैं कि...

गुरू जी उत्साहित होकर बीच में ही कहते हैं, "हाँ, शाबाश, बता क्या कहा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से?

पप्पू: भगवान बोले, 'अर्जुन तू भी चाय पी ले, मैं भी चाय पी लेता हूँ। फिर युद्ध करेंगे'।

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

केलकुलेटर का धोखा - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक डॉक्टर के पास एक बेहाल मरीज़ गया।
मरीज़: डॉ. साहब पेट में बहुत दर्द हो रहा है।
डॉ: अच्छा, ये बताओ आखिरी बार खाना कब खाया था?
मरीज़: खाना तो रोज ही खाता हूँ।
डॉ: अच्छा-अच्छा, (2 ऊँगली उठाते हुए ) आखिरी बार कब गए थे?
मरीज़: जाता तो रोज ही हूँ पर होता नहीं है।
डॉकटर समझ गए कि कब्ज़ है। अन्दर बहुत सारी बोतलें पड़ी थी उस में से एक उठा लाये और साथ ही केल्क्युलेटर भी लेते आये। फिर पूछा, "घर कितना दूर है तुम्हारा?"
मरीज़: 1 किलोमीटर।
डॉक्टर ने केलकुलेटर पे कुछ हिसाब किया और फिर बोतल में से चार चम्मच दवाई निकाल कर एक कटोरी में डाली।
डॉ: गाडी से आये हो या चल कर?
मरीज़: चल कर।
डॉ: जाते वक्त भाग के जाना।
डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से बाहर निकाल ली।
डॉ: घर कौन सी मंज़िल पे है?
मरीज़: तीसरी मंज़िल पे।
डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली।
डॉ: लिफ्ट है या सीढियाँ चढ़ के जाओगे?
मरीज़: सीढियां।
डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली।
डॉ: अब आखिरी सवाल का जवाब दो। घर के मुख्य दरवाजे से टॉयलेट कितना दूर है?
मरीज़: करीब 20 फुट।
डॉक्टर ने फिर से केलकुलेटर पे हिसाब किया फिर थोड़ी दवाई कटोरी में से और बाहर निकाल ली।
डॉ: अब मेरी फीस दे दो मुझे पहले फिर ये दवाई पियो और फटाफट घर चले जाओ, कहीं रुकना नहीं और फिर मुझे फोन करना।
मरीज़ ने वैसा ही किया। आधे घंटे बाद मरीज़ का फोन आया और एकदम ढीली आवाज में बोला, "डॉक्टर साहब, दवाई तो बहुत अच्छी थी आपकी पर आप अपना केलकुलेटर ठीक करवा लेना। हम 10 फुट से हार गये।

सादर आपका
शिवम् मिश्रा
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400 साल बाद भी जिंदा हैं शेक्सपियर

मनुष्यजाति और प्राकृतिक पर्यावरण - २

ह्रदय का रखवाला - फ्लेक्स ऑईल

मेरी प्रिया की आँखें - (शेक्सपियर के सोंनेट 130 का भावानुवाद )

मुस्लिम का मतलब 'वोट' और 'आतंकवाद ' है ?

शासन करना बहुत आसन है, पर देश हित में कार्य करना बहुत मुश्किल .

'काँच के शामियाने ' पर गंगा शरण सिंह जी के विचार

लालच की प्यास

एक पत्नी का रोजनामचा

एक चुकी विरासत का शहजादा

स्व॰ सत्यजित रे जी की २४ वीं पुण्यतिथि

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

कहानियों का जादू बहुत अलग होता है …




साँसों की अंतिम किताब लिखना 
सच में बड़ा मुश्किल है 
सपने कभी दम नहीं तोड़ते 
उम्मीदों की उड़ान भरते हैं 
किस्म किस्म के गुब्बारों की शक्ल लिए
बेटा बेटी को पढ़ा लूँ 
सँवार लूँ उनका भविष्य 
शादी कर दूँ 
जो सपने अधूरे थे 
बेरंग थे 
उसमें रंग भर दूँ  … 
रंगों से सना गुलबुला चेहरा 
.... जीने की वजहें होती ही जाती हैं 


गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

अन्धविश्वास पर विश्वास भरी ब्लॉग-बुलेटिन

जमाना चाहे केतना भी एड्भांस हो जाए, अंधबिस्वास खतम नहीं होता है. अऊर अंधबिस्वास भी अजीब-अजीब तरह का पालता है लोग जिसका कोनो सिर पैर नहीं होता है. अब बताइए कि दही खाकर काम करने से ऊ काम सफल होता है, त सफलता में दही का हाथ है कि अदमी के मेहनत का! करिया बिलाई रस्ता काट दे त काम बिगड़ जाता है. अऊर कहीं बिलाइये का एक्सीडेण्ट हो जाए त कौन दोसी. घर से निकलते कोई छींक दिया त काम खराब. अऊर काम अच्छा हो गया तब?

अब केतना गिनाया जाए. जेतना समाज, ओतना अंधबिस्वास. कहाँ से सुरू हुआ, अऊर कब से चला आ रहा है ई सब, कोई नहीं जानता है. अब देखिए न, हम नोएडा में जो अपार्टमेंट में रहते थे,  उसमें फ्लैट नं. 419 के बाद 421 नम्बर फ्लैट है. बास्तव में 420 नम्बर मिटा के भाई लोग 421 बना दिया है. अब सोचिए त, नम्बर 420 होने से कहीं अदमी दू नम्बरी हो जाता है? मगर का कीजियेगा, मन का भरम का कोनो ईलाज नहीं.

एही नम्बर का बात से एगो अऊर बात याद आ गया. होस्पिटल में देखे हैं, 13 नम्बर बेड नहीं होता है. 12 नम्बर के बाद 12—ए होता है. अरे भाई तेरह नम्बर का पावर एतना तगड़ा हो गया कि डाक्टर का काबलियत भी हार जाता है! कमाल है!! अब इम्तेहान में रोल नम्बर 13 हो गया, त इस्टुडेण्ट पढाइए छोड़ कर बईठ जाएगा?
 
एगो मजेदार बात बताते हैं..सायद बहुत सा लोग को मालूम होगा. बाकी जो लोग नहीं जानता है उनको बताते हैं. चंडीगढ शहर का खासियत है कि ओहाँ इलाका सेक्टर में बिभाजित है अऊर रोड का नाम कोनो नेता अऊर महापुरुस के नाम पर नहीं है. मगर आस्चर्ज का बात है कि ओहाँ 13 सेक्टर नहीं है. इहो अंधबिस्वास का नतीजा है. लेकिन इसमें भी खूब सुंदर अंधबिस्वास छिपा है. 
13 के अलावा जेतना सेक्टर है, उसका नम्बर एतना हिसाब से बइठाया हुआ है कि आप कोनो आमने सामने वाला दूगो सेक्टर का नम्बर जोड़िए त ऊ 13 का गुणक होगा. जैसे 44 सेक्टर का सामने 34 सेक्टर...  दुनो का जोड़ हुआ 44+34=78 अऊर 78= 13X6. अब ई सब सेक्टर के नम्बर पर लागू होता है.

अब ई जिसका भी दिमाग का उपज है उसको सलाम करने का मन होता है. 13 नम्बर भी निकाल दिया अऊर एतना खुबसुरती से 13 नम्बर को सब सेक्टर के नमबर के बीच में डाल दिया जइसे माला के बीच में धागा, ऊपर से देखाई नहीं देता है अऊर सब मोती को बाँधकर माला में समेटे रहता है.

अब ई बुलेटिन भी त ओइसने धागा है जो आपलोग को एतना साल से मोती के तरह बाँधकर अऊर प्यार से समेटकर रखे हुये है. अऊर प्यार प्यार में हम पहुँच गये हैं 1300 के आँकड़ा पर. त पीठ ठोंकिये हमारा अऊर धन्यवाद कीजिये अपना सब का कि आपको हमरा तेरवीं देखने का माफ कीजियेगा तेरहसौवीं बुलेटिन पढने का अवसर मिला. आप प्यार बरसाते जाइये अऊर हम जीरो लगाते जाएँगे!

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

दीपा तुम चमको दीपक सी - ब्लॉग बुलेटिन की शुभकामनाएँ

नमस्कार साथियो,

मन को दुखी करने वाली अनेकानेक खबरों के बीच एक खबर ने सुखद अनुभूति कराई है. इसी वर्ष 2016 में होने वाले रियो डि जनेरियो में होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए दीपा करमाकर ने भारत की तरफ से पहली महिला जिमनास्ट के रूप में क्वालिफाई किया है. 9 अगस्त 1993 को अगरतला के त्रिपुरा में जन्मीं दीपा ने ओलंपिक क्वालीफ़ाईंग इवेंट में 52.698 अंक हासिल कर ओलंपिक का टिकट हासिल किया. इससे पहले भारत के 11 पुरुष जिमनास्ट ओलंपिक में खेल चुके हैं. 1952 के ओलंपिक में दो, 1956 के ओलंपिक में तीन और 1964 के ओलंपिक में भारत के छह एथलीट जिमनास्टिक प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं. 1964 के बाद अर्थात 52 साल बाद यह मौका आया है जब कोई भारतीय जिमनास्टिक में मेडल की रेस में शामिल होगा. उनके कोच बिश्वेश्वर नंदी को आज भी वह दिन याद है कि जब अगरतला के स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के सेंटर में ट्रेनिंग ले रही छह साल की एक बच्ची के प्रदर्शन को देखकर उनको अहसास हो गया था कि यह बच्ची भविष्य में राज्य और देश का नाम ऊंचा करेगी. 22 साल की दीपा ने ओलंपिक के लिए क्वालीफ़ाई करके उनके एहसास को सच साबित कर दिया. 



इससे पहले दीपा करमाकर ने सन 2007 में जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में जीत दर्ज की थी. इसके बाद सन 2014 में ग्लासगो में हुए राष्ट्रकुल खेलों में तथा जापान के हिरोशिमा में सन 2015 में हुई एशियन चैंपियनशिप्स में कांस्य पदक हासिल किया. वे भारत की अकेली महिला और कुल मिलाकर दूसरी जिमनास्ट हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है. इसके बाद से उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 77 मेडल जीते हैं जिनमें 67 गोल्ड मेडल शामिल हैं. 2015 में अर्जुन अवॉर्ड जीत चुकी दीपा यहां तक पहुंचने का श्रेय केवल कोच को देती हैं. जिमनास्टिक्स में वे दुनिया की तीसरी महिला एथलीट हैं जिसने प्रोदुनोवा वॉल्ट नामक स्पर्धा में महारथ प्राप्त है.

दीपा को उनके सफलतम भविष्य एवं स्वर्णिम ओलम्पिक के लिए शुभकामनाओं और मंगलकामनाओं के साथ आज की बुलेटिन.

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मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

यात्रा




यात्रा रास्तों की होती है एक दिशा में 
यात्रा मन की होती है किसी और दिशा में 
यात्रा जीवन को रास्ते देते हैं 
यात्रा मन को निष्कर्ष और अनगिनत भावनाओं का स्रोत देते हैं 
यात्रा है जन्म 
एक यात्रा ही है मृत्यु  ... 
कुछ प्रत्यक्ष - कुछ अप्रत्यक्ष 



हत्यारे वक़्त का कोलाज़ 
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एक

बच्चे मासूम नहीं रहे 
बच्चे अब बच्चे नहीं रहे 
बच्चों का बच्चा बने रहना 
हमरे समय की 
सबसे बड़ी चुनौती है 

दो 

नदी रेगिस्तान है 
जल ज्वालामुखी 
प्रेम प्रलय 
और मैं ...?

तीन 

रचने से पहले मरना होगा 
मर-मर कर रचना होगा 
रचने के लिए 
मरना होगा बार-बार 

चार

चार्ली चैपलिन की मुस्कान मुझे 
सिर्फ गुदगुदाती नहीं 
हौसला देती है 
विषम हालात में लड़ने का 
बताती है तरीका 
दर्द को कला बनाने का 
जैसे आँसू बीच मुस्कान 

पांच

जब-जब क्रौंच वध हुआ 
पक्षी के साथ वाल्मीकि भी मरे 
कविता जन्मी 
उदय हुआ कवि का 
मृत्यु से उपजती है कविता



छोटी सी बात
कई बार
जब हो जाते हैं
हम
मैं और तू
छोटी छौटी बातों पर
कर देते हैं रिश्ते
कचरा कचरा
तर्क---वितर्क
तकरारें--
आरोप--प्रत्यारोप
छिड जाता है
महाँसंग्राम
अतीत की डोर से
कटने लगती है
भविश्य की पतंग
और खडा रह जाता है
वर्तमान
मौन, निशब्द
पसर जाता है
एक सन्नाटा
उस सन्नाटे मे
कराहते हैं
छटपटाते हैं
और दम तोड देते हैं
जीवन के मायने
ओह!
रह जाते हैं
इन छोटी- छोटी बातों मे
जीने से
जीवन के बडे बडे पल

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