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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

भूले रास्तों का पता - 3




मानती हूँ समय द्रुत गति से भागता है 
पर समय के असर से परे जो लम्हें ठहर जाते हैं - उन्हें भी तो मानना होगा 


रजनीश का ब्लॉग: व्यथा

5 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति । आभार 'उलूक' के एक बहुत पुराने संदेश का सूत्र आज की बुलेटिन में देने के लिये ।

जमशेद आज़मी ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन प्रयास।

shashi purwar ने कहा…

sundar links rashmi di

शिवम् मिश्रा ने कहा…

यादों का यह सफ़र चलता रहे ... :)

सदा ने कहा…

Aap k prayaas sab k liye prerna bn jate hain......
Sadar

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