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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

भूले रास्तों का पता - 5




न सत्य मिटता है,न परम्परा खत्म होती है - बीज कहीं न कहीं रहता है,
अंकुरित हो फैलता है  … ब्लॉग का अंकुरण आज भी है, प्रस्फुटित टहनियाँ, स्वादिष्ट फल फेसबुक, ट्विटर तक फैले हुए हैं  … जड़ों से नाता बना रहे, इसलिए -



6 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति में मेरी ब्लॉग पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
सबको शरद पूर्णिमा एवं वाल्मीकि जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

शिवम् मिश्रा ने कहा…

कम से कम इसी बहाने उन पुराने रस्तों दोबारा चलने को तो मिला ... आभार दीदी |

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ।

कौशल लाल ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ....

सदा ने कहा…

Bhulon k raste ...... Jahan kitni yaden hain

Asha Joglekar ने कहा…

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