प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |
यदि संत कबीर जिन्दा होते तो आज के दौर मे उन के दोहे शायद कुछ इसी प्रकार के होते :
प्रणाम |
यदि संत कबीर जिन्दा होते तो आज के दौर मे उन के दोहे शायद कुछ इसी प्रकार के होते :
नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात;
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात;
पानी आँखों का मरा, मरी शर्म औ लाज;
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज;भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास;
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास;मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश;
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश;बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान;
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान;पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग;
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे, प्यासे लोग;फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर;
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर;पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप;
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप।
(व्हाट्सअप से साभार)
सादर आपका
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की कीजिये सैरकाम की जानकारी के लिए आभारपर उस दिन के बिना अपनी हस्ती नहींपर जब बोलते है तो राज़ खुलते हैंहम किनारे किनारे चलते रहेकिसे फ़ुर्सत मिली अपने ग़मों सेदूर लंदन मे बैठा लिखे कोई छंदअचला - अनन्ता - रसा - विश्वम्भरा - स्थिराआफ़त या राहतयह कौन चित्रकार हैपाठक भी अत्याधुनिक ही हो
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अब आज्ञा दीजिये ...
जय हिन्द !!!
6 टिप्पणियाँ:
सटीक सामयिक दोहों के साथ सार्थक बुलेटिन लिंक्स प्रस्तुति हेतु आभार!
कबीर की उलटबाँसी किसी से हो पायेगी संदेह है फिर भी बहुत सुंदर प्रयास है । सुंदर बुलेटिन शिवम जी ।
दुःखद... इस परिस्थिति पर तो कबीर भी रो पड़ेंगे!!
तहे दिल से शुक्रिया आपका मेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में शामिल करने का । सुंदर लिंक्स। आज के समय पर खरे होते दोहे ।
सुंदर सूत्रों से सजा बुलेटिन..आभार !
आप सब का बहुत बहुत आभार |
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