ब्लॉग बुलेटिन का ख़ास संस्करण -
अवलोकन २०१३ ...
कई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
तो लीजिये पेश है अवलोकन २०१३ का २३ वाँ भाग ...
अकेले रहने की
या दर्द की आदत नहीं होती
पर अकेलापन ही सहयात्री बन जाए
दर्द बन जाए स्पर्श .... तो !!!
चलना तो है न ....
बेहतर है
अकेलेपन से अपने दर्द की बातें करो
कैसा होता है स्पर्श दर्द का
- उसे सुनाओ
कोई दर्द भरा गीत गुनगुनाओ
अकेलापन भर जाए तुम्हारी गुनगुनाहट से
प्रतिध्वनि बन तुम्हारी आवाज़ का
तुम्हें सहलाने लगे
धीरे से कहने लगे -
अकेलेपन में ही सत्य है
पहचान है
'मैं' कौन हूँ
मेरी अहमियत क्या है - इसका ज्ञान है !!! .......
(शोभा मिश्रा)
अवसाद के क्षणों में
ढूँढने लगती हूँ,
तितलियों का 'घर '
देखतीं हूँ
रंग-बिरंगी तितलियों को
फूलों संग अंगीकार होते हुए
'फूल' तितलियों के घर नहीं होते
एक ऋतु तक रहतीं हैं ,
तितलियाँ उनके संग
आसमां छत
पंखुरियाँ बिछौना
सुगंधित बयार दीवारें
खेलतीं हैं तितलियाँ
कब सोतीं हैं
कब जागती है
सोचती हुई
रंग तितलियों के
अपने होठों के कोर में
........ ढूंढ लेतीं हूँ
(अना)
चुप हूँ मैं.…पर उदास नहीं
सपने ओझल हुए पर बुझे नहीं
है अनोखी सी ये ज़िन्दगी
और ये गुज़रते वक़्त का साथ ॥
दिन-दोपहर-रात..... एक सा !
आँखों में फैला एक धूआं सा ,
छांव की तलाश में है आँखें उनींदी ,
जाने कोई पकड़ ले वक़्त का हाथ !!
शहद सी मीठी जीवन की आस ,
पर लम्हों से जुड़े है वक़्त की शाख़ ,
काल-दरिया में बहना न चाहूँ मैं ,
इश्क़ का मोहरा ग़र दे दे साथ ॥
एकाकी जीवन रोशन कर ली मैंने ,
सूरज को आँचल में छुपाया है मैंने ,
चांदनी की छटा भी समेट लिया है ,
अमावस में बिखेरूँगी जगमगाता प्यार !!
(नीलिमा शर्मा)
क्रोध!!
आक्रोश!!
मेरे दिल और
मेरी आत्मा में
अंदर तक विद्यमान
कभी आवेग कम
तो कभी प्रचंड
कभी रहती में शांत सी
तो कभी निहायत उद्दंड
सब कर्मो का आधार ये
सब दर्दो का प्रकार ये
उद्वेग
जो कारण उग्र होने का
आवेश
जो कारण
उष्ण होने का
आक्रोश
करता है अलग
आवेश
बनाता हैं अवाक्
क्रोध
जो घर किये है
भीतर
क्रोध
जो भीतर छिपा है
हमेशा के लिए
रोम रोम में
असहाय
विकराल रूप में
मुझे में भी
तो तुझ में भी
विवशता उसके हाथ में
खेलने की
कभी रुलाता हैं
तो कभी विध्वंसता
की तरफ खीचता सा
कभी पापी
कभी पागल
खून से भीगी बारिश
आंसुओ की रिमझिम सा
कभी सकारात्मक
तो कभी नकारात्मक
अंत में हमेशा रहा हैं खाली हाथ ...
यह क्रोध
आवेश
उद्वेग
आक्रोश
खून की बारिश
आंसुओ की बाढ़
कोई कुछ न कर पाया
आज भी है तुम्हारे मेरे भीतर
दामिनिया आज भी लुट रही हैं
पूरे जोरो शोरो से ....
और हम गुस्से में हैं .........
13 टिप्पणियाँ:
अकेलेपन को समझने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता ...बहुत सुन्दर लिंक्स ..हमेशा कि तरह !!
बहुत खूबसूरत दिल को छूती रचनायें
सभी बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचनाए ....!आभार
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नई पोस्ट-: चुनाव आया...
बहुत सुन्दर लिंक्स !
बढ़िया हैं ...सभी कवितायें!
एक से बढ़कर एक !
सुन्दर सूत्र, रोचक और पठनीय।
बहुत ख़ूबसूरत रचनाएँ!
अकेले हैं चले आइये
आपको हम ढूंढते हैं,
हमें दिल ढूंढता हैं ना
bahut badhiya links.......meri rachana ko sthan dene ke liye shukriya
अनेकों रंग लिए चल रही है यह श्रंखला ... अवलोकन २०१३ की ... आभार दीदी आपका |
विविध भाव... विविध रंग... सभी बहुत उम्दा.
आभार .मेरी रचना को यहाँ शामिल किये जाने के लिय .उम्दा लिनक्स
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