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मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

कैसे कैसे लोग ???

नमस्कार दोस्तों 

सबसे पहले आप सबसे माफ़ी चाहूँगा कि पिछले दो दिन १५ - १६ दिसम्बर को बुलेटिन आप तक नहीं पहुँच पाई | कुछ तकनीकी कारणों के चलते बुलेटिन लगा पाने में असमर्थ रहे | खैर चलिए आज बहुत समय बाद बुलेटिन लगाने का अवसर प्राप्त हुआ है | पिछले दिनों रश्मि दी ने जो अवलोकन कर पोस्ट लगाई वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण रहीं | उनके अवलोकन के कारण सभी को बहुत हौसला प्राप्त हुआ | अपनी-अपनी लेखनी में और ज्यादा परिपक्वता लाने और सुधार करने का भी मौका मिलेगा | आज आप सभी के साथ मैं अपना एक निजी अनुभव साँझा करना चाहता हूँ | उम्मीद करता हूँ आप सबके विचार और बहुमूल्य टिप्पणियां ज़रूर प्राप्त होंगी | 


अभी हाल ही में एक बहुत ही गहन अनुभव हुआ | जीवन में हम सब को बहुत से उतार चढ़ाव और विषम परिस्थितियों से गुज़ारना पड़ता है | ऐसी परिस्थियों में हमें अपना संयम बनाये रखने की आवश्यकता होती है | अपनी बुद्धि, विवेक और चेतना के सहारे से ही ऐसे कठिन समय में  अपने निर्णय लेने होते हैं | ऐसे समय में हमारा सामना और संपर्क अनेक प्रकार के लोगों से भी होता है | उनमें से कुछ लोग हमारा मनोबल तोड़ने की कोशिश करते हैं, कुछ हमें सांत्वना देते नज़र आते हैं, कुछ अपनी बातों से आपका अपमान भी करते हैं, कुछ अपने अनुभवों के आधार पर हमें नए रास्ते दिखने की कोशिश करते हैं, कुछ हमारे ऊपर दोषारोपण करते हैं, कुछ लोग हमें इस्तेमाल करना चाहते हैं, कुछ ना जानते हुए भी हमें परखने लगते हैं, कुछ सिर्फ अनुमान के बल पर अपना मत देने लग जाते हैं और कुछ दोस्ती का झूठा चोगा पहन कर आप से आपकी निजी ज़िन्दगी के बारे में सब कुछ जानने की कोशिश करते हैं और सब कुछ जान लेने पर वह आपका उपभोग करना चाहते हैं या अपनी कटीली विचारधारा से आपको चोट पहुंचाते हैं | आज ऐसे ही कुछ लोगों के बारे में मैं आपके ख्याल जानने की इच्छा से यह लेख आप तक पहुंचा रहा हूँ | 

ऐसे लोग दरअसल दो मुंहे सांप की तरह होते हैं | जो आपकी तकलीफ़ में अपने आनंद को ढूंढते हैं और अपनी संकीर्ण मानसिकता के चलते या फिर अपने झूठे अहम के चलते आपकी हर बात को गलत ठहराने मैं लगे रहते हैं और आपको छोटा महसूस करा नीचा दिखने का प्रयास करते हैं | एक तरफ वो दोस्ती का दम भरते हैं और दूसरी ओर आपको ही चोट पहुँचाने की चेष्टा करते हैं | कुछ जान बूझ कर और कुछ अनजाने में भी ऐसा करते हैं | 

अभी हाल ही में मेरा भी एक ऐसे व्यक्ति से सामना हुआ | हालाँकि वह पुराने परिचित थे | परन्तु कई सालों बाद उनसे मुलाक़ात हुई | शुरू शुरू में वार्तालाप बहुत सुखद रहा | वक़्त गुज़रते बातों का सिलसिला बढ़ा और निजी ज़िन्दगी के अनुभवों का आदान प्रदान होना शुरू हुआ | मुझे उन्हें समझकर और उनकी मानसिकता को देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि उन्हें मेरे जीवन के बारे में जानने में ज्यादा दिलचस्पी थी बनिज्बत अपने बारे में बताने और बात करने के | बात बात पर दोस्ती का उलाहना दिया जाता और जताया जाता कि वह मेरे कितने घनिष्ट है | परन्तु जब भी उनसे उनके विषय में कोई सवाल किया जाता तो वह तुरंत बात को घुमा देते, या उस दौरान हो रही बातचीत से पलायन कर लेते या फिर सवाल के जवाब में एक और सवाल खड़ा कर देते | हमेशा खुश रहने वाले, ज़िंदादिल और जीवंत रहने का दिखावा करने वाला वह प्राणी मुझे मानसिक रूप से बहुत ही बीमार प्रतीत हुआ | धीरे धीरे उन्होंने अपने खयालातों को शब्दों को चाशनी में भिगो भिगो कर परोसना प्रस्तुत किया और यह दर्शाना प्रस्तुत किया कि वह कितने बड़े विद्वान् हैं | उन्हें मेरी हर बात काटने में बेहद ख़ुशी होने लगी | उनकी बातों से ऐसा प्रतीत होने लगा जैसे वो मुझे अपने समक्ष कितना तुच्छ और अज्ञानी समझते हैं | किसी बात पर यदि उन्हें ज़िरह या चर्चा करने या उनके विचार जानने की इच्छा जताई तो तुरंत बात को वहीँ खत्म कर देने की कवायत शुरू हो गई | मुझे आश्चर्य हुआ कि इतनी किताबें पढने वाला व्यक्ति भला ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है | हर बात में अपनी बातों को सिद्ध करना, तर्क-वितर्क तो छोड़िये तुरंत कुतर्क पर उतर आना और बहस में पड़ जाना किसी समझदार और शिष्ट इंसान के व्यक्तित्त्व पर प्रश्न चिन्ह अंकित कर ही देता है | खैर नतीजा यह सामने आया के मैंने उनके समक्ष हाथ जोड़ दिए और उनसे अब किनारा कर लिया है | 

मेरा सवाल सभी से बस इतना है कि ऐसे लोग जो सोशल मीडिया साइट्स पर या निजी जीवन में आपसे जुड़ते हैं या आप उनकी पोस्ट्स पढ़कर उन्हें जोड़ते हैं या अपना दोस्त बनाते हैं, वह कहाँ तक सही होता हैं ? क्या ऐसे लोगों के साथ अपने निजी अनुभवों को बांटा जाना चाहियें ? क्या जो सामग्री वह पोस्ट करते हैं उनकी मानसिकता भी वैसी ही होती है ? क्या जो चेहरा वह लोगों को दिखाते हैं वह उनका असली चेहरा होता है ? क्या वह अपने को दूसरों से ऊपर समझते हैं और श्रेष्टता मनोग्रन्थि रुपी बीमारी उनसे चिपकी होती है ? क्या सोशल मीडिया के ज़रिये वह अपने मानसिक स्तर से विपरीत आचरण करते हैं ? क्या अपनी खीज, खिन्नता और अपने जीवन में मिले खालीपन को भरने की कोशिश करने के लिए वह यहाँ जुड़ते हैं और दूसरों से दोस्ती करते हैं ? क्या दूसरों की ज़िन्दगी में झाँकने, उन्हें अपमानित करने और दूसरों की परिस्थितियों का मज़ाक बनाना उनका शौक होता है ? ऐसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना उचित होगा ? ऐसे लोगों की मानसिक संतुलन के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे ? ऐसे लोगों को मानवीयता की किस श्रेणी में रखा जाना चाहियें ? 

बस आज इस बात को लेकर मेरा चर्चा करने का मन है | मेरे सवालों के जवाब आपकी टिप्पणियों के रूप में मिलें तो बहुत अच्छा लगेगा |  

आज की कड़ियाँ 












अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

14 टिप्पणियाँ:

रविकर ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन-
आभार
आदरणीय तुषार --

अनुपमा पाठक ने कहा…

अक्सर, हम जैसे दीखते हैं... वैसे होते नहीं...
यही सच है...
चाहे वो वास्तविक जीवन हो... या आभासी मंच!
हाँ, सच्चे लोग भी हैं जिनके बल बूते टिकी है यह दुनिया...!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

तुषार जी ये तो आम जीवन में भी होता है 100% यही सब ! मेरी राय में सच सच होता है और हमेशा सच होता है झूठ को आदत होती है सच का लबादा ओढ़ने की और वो उसकी मजबूरी होती है यहाँ आभासी दुनिया में वही लोग हैं जो आपके घर में आपके मौहल्ले में आपके आफिस में और आपके शहर में होते हैं सबके पास अपने अपने आईने होते हैं और सब अपने अपने चेहरे देखते हैं अपने आईने में ! मुझे लगता है हमें यहाँ भी वही सोच रखनी चाहिये जो हमारी है आम जिंदगी की बाकी सामने वाला अपने आप अपने को एक्स्पोज कर ही देता है कभी ना कभी और उससे उसको कोई फर्क नहीं पड़्ता है ! इसलिये आप भी चलते रहिये मुस्कुराते हुऐ अपने हाथ हिलाते हुऐ बाकी सामने वाला अपने हिसाब से करे मन आये तो सोचे ना आये तो खिसिया के खम्बा नोचे ! जयादा कह दिया हो तो भी कह दिया तो कह दिया :)

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आप सभी ने बहुत अच्छे विचार प्रकट किये | आपका बहुत बहुत आभार | उम्मीद है और लोग भी अपने विचार व्यक्त करने में सक्षम होंगे | इंतज़ार रहेगा |

रश्मि शर्मा ने कहा…

बढ़ि‍या बुलेटि‍न....मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए धन्‍यवाद...

Archana Chaoji ने कहा…

सच में बहुत तरह के लोग होते हैं, और हम उनसे सोशल साईट्स पर या निजी जीवन में जुड़ते रहते हैं, मेरा उद्देश्य सिर्फ़ यही रहता है कि खुद के जीवन में सुधार करती रहूं ...
बाकि अनुभवों को बाँटना न बाँटना अपना निजी निर्णय होता है...हम निरन्तर कुछ न कुछ सीखते ही हैं .... सीखते रहना चाहिए ....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

देखे,अनुमानित रिश्ते
अनदेखे रिश्ते जैसे ही होते हैं - निजी अनुभव की एक मानसिक स्थिति होती है और पारदर्शी पालन-पोषण का असर भी .
चाल चलनेवाले पारदर्शिता नहीं पा सके तो उन जैसा गरीब कोई नहीं .
किससे कैसा माध्यम है बात करने का, यह मायने रखता है .
यूँ कब किसकी क्या असलियत होगी,इसे जानना-समझना थोड़ी टेढ़ी खीर है

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

sabhi links behtarin......................aapke anubhav ko padh kar yahi kah sakti hu ki ye bhi jeevan ka ek sach hai .............

बेनामी ने कहा…

nahi aise logon ke sath vahi karna chahiye jo aapne kafi der se kiya ..jai raam ji ki .

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

सादर धन्यवाद् अपना बहुमूल्य समय देने और अमूल्य विचार प्रकट करने के लिए | बहुत बहुत आभार | जय हो :)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक व पठनीय सूत्र।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है!! लेकिन उत्तर अपेक्षित नहीं आये!! कोई बात नहीं!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जय हो ! काफी है ! बाकी चाय बनाने के लिये किसने बोला था ?

वाणी गीत ने कहा…

आभासी दुनिया में भी वास्तविक जीवन के लोग ही हैं , इसलिए सारे गुण अवगुण भी वैसे ही। हम में से अधिकांश के अनुभव आप जैसे ही हैं , क्या कीजे ! बस इन्ही अनुभवों से सीखता रहा जाए !

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