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शुक्रवार, 21 जून 2013

इस दुर्दशा के जिम्मेदार हम खुद है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम !
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये !
हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं ! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते २ शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज कि रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे !
रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर २ से चिल्लाने लगा।
हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद !
यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी,मेरे साथ जा रही है !
उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है !
लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पञ्च लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों कि जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है !
यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया। उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई - ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ?
उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है । यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पञ्च रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !
शायद ६६ साल की आजादी के बाद भी हमारे देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हमने हमेशा अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाया है। इस देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं।

सादर आपका 

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इस दुखद समय में हमारी संवेदनाये उनके साथ हैं

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जागृति

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अब आज्ञा दीजिये ... 

जय हिन्द !!!

13 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

हम ही जिम्मेदार हैं.

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut hi dhukhad ghatna ..............

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma ने कहा…

kahani bahut samsamyik ...........sach main ullu hi rah rahe hain ab is desh main ......... meri post ko shamil karne ke liy dhanywad.. sundar links sanjoye aapne dheere dheere sabko padhti hun .........

Anupama Tripathi ने कहा…



आभार शिवम भाई ....ब्लॉग बुलेटिन में मेरे हाइकु को स्थान दिया ....!!आपका ब्लॉग बुलेटिन सदा उत्कृष्ट और सार्थक लिंक्स लिए रहता है ...!!अपने हाइकु देख कर कुछ शांत सा है मन .....हालकि बड़ी बिपदा की घड़ी है समस्त मुल्क पर ....!!
मैं आपसे पूर्णतया सहमत हूँ कि इस दुर्दशा के जिम्मेदार हम खुद हैं ...!!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सच.... जिम्मेदारी हमारी है....
अब भी नहीं सुधरेंगे ये भी जान लो....
:-(

लिंक्स अच्छे हैं..शुक्रिया शिवम्
सस्नेह
अनु

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

सटीक....बेहतरीन कहानी....इस बार आउल बाबा चुन आया तो थू है जनता पर....सोच समझ कर चुनना होगा अक्ल लगा कर....आखिर ज़िम्मेदारी हमारी है | बढ़िया बुलेटिन लिनक्स बाद में देखूंगा :) | जय हो मंगलमय हो |

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सन्नाट कथा, सुन्दर सूत्र...

ashokkhachar56@gmail.com ने कहा…

सन्नाट कथा,बहुत ही सुन्दर लिंक्स सजाए हैं

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

जिम्मेदारी तो हमारी ही बनती है !!

मीनाक्षी ने कहा…

हमारी जिम्मेदारी है ...जानते हुए भी हम क्या करते हैं..सोचने की ज़रूरत है... लिंक एक एक करके पढ़ रहे हैं...

रश्मि शर्मा ने कहा…

मेरी रचना शामि‍ल करने के लि‍ए आभार आपका....इस आपदा के लि‍ए हम ही जि‍म्‍मेदार हैं...ये बात समझे और अमल करें....आवश्‍यक है।

Pallavi saxena ने कहा…

हम ही हैं जिम्मेदार

HARE RAM MISHRA ने कहा…

हमारी पर्यावरण के प्रति उदासीनता का ही परिणाम है, विद्वतजन, वैज्ञानिक, शिक्षाविद एवं सम्बंधित अधिकारिओं का राजनीतिज्ञों के सामने समर्पण भी है, कुर्सी के लिए धरतीमाता का भी बलिदान देने से नहीं हिचकते। माफिया ठेकेदारी अदि भी इसमें शामिल हैं पर किसे परवाह है।

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