थोड़े लाल अबीर आज भी बचे हैं
कागज़ की छोटी सी पुड़िया में
प्यार दुलार सम्मान के अबरखों के साथ ...
जब हम छोटे थे
युवा हुए ...
तब तक आमों पर आये मंजर की खुशबू
हवा में फागुनी सनसनाहट बरकरार थी
असली रंग तो हवाएं ही लगा जाती थीं !
फागुन के गीत
ढोलक की थाप पर
जब दरवाज़े पर बजते थे
तो खाने का स्वाद
प्यार की भांग से
नशीला हो उठता था
रिश्ते पड़ोस के भी
अपने से अधिक अपने होते थे
रंग लगे प्लेट में खाना
प्रगाढ़ता की मिसाल थी !!
जब धीरे धीरे रिश्ते परदेस गए
तो कागज़ में अबीर भेजकर होली मन जाती थी
फिर अचानक .... बिल्कुल अचानक ही
ये सारे रीति-रिवाज़ बेकार हो गए
पुआ,दहीबड़ा बनाना पहाड़ हो गया
बड़े शहरों में होलिका जली ही नहीं
लोगों का एक-दूजे संग मिलना बंद हो गया
बदले की भावना इस सीख से परे प्रबल हो गई
कि - होली में दुश्मन भी अपने रंग में आ जाते हैं
............. अब !!!
ये अबरखी अबीर उस दिन के इंतज़ार में हैं
कोई तो पहल करेगा लौटने की
फिर खेलेंगे होली
गायेंगे होली
नए नए कपड़ों में बसंत की तरह निकलेंगे
मीठे मीठे रस में भंग के नशे की तरह
शोर मचाएंगे
असली रंग में फिर से रंग जायेंगे
फागुन को फागुन बना जायेंगे !!!.....................
फागुन की बयार बह चली है,रंग बनने लगे हैं,शरारतें मचलने लगी है --------------------- तो एक रंगों से सराबोर बुलेटिन आपके लिए
16 टिप्पणियाँ:
होली के रंग बिखर गए हैं बुलेटिन पर.
बहुत सुन्दर.
होली के सभी रंग मुबारक हों सुन्दर भीगी सी कविता
bahut hi sundar rangon bhara buletin....
पुडि़या में रखे रंग
माँ की धरोहर .....................अनुपम प्रस्तुति
होली न हो भोली अबकी।
holi ke rangon se range blog,,,, bahut sundar aur rangeen ...
होली के रंगों से सराबोर हो गया पूरा बुलेटिन
आज ब्लॉग बुलेटिन पर होली रे रसिया ... :)
मेरे कानों में अभी गूंज रही
जोगी जी और स्र्र्रर्र्र्रर स्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र सारर्र्र्र्र्र्र्र्र
रंग मुबारक हों
सच में देखते-देखते होली के तौर-तरीके कितने बदल गये हैं ...ढ़ोलक की थाप पर होरी गाने का मजा ही कुछ और था और मनुहार करके गुंझिया और ठंडाई पिलाते ...मस्ती में झूमते-गाते ....अजनबी भी मित्र बन जाते थे ...बहुत सटीक बात कही है आपने अपनी रचना में
मेरा ब्लॉग आपके स्वागत में है ....
स्याही के बूटे
होली के रंग में सराबोर सूत्र समेटे आज का ब्लौग |
आशा
पहले से दिन फिर से आने के इन्तजार में होली भी होती होगी आजकल !
होली के रंग बिखर गए
सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
होली का असर दिख रहा है..
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!