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मंगलवार, 12 मार्च 2013

फागुन आने को है



थोड़े लाल अबीर आज भी बचे हैं 
कागज़ की छोटी सी पुड़िया में 
प्यार दुलार सम्मान के अबरखों के साथ ...
जब हम छोटे थे 
युवा हुए ... 
तब तक आमों पर आये मंजर की खुशबू 
हवा में फागुनी सनसनाहट बरकरार थी 
असली रंग तो हवाएं ही लगा जाती थीं !
फागुन के गीत 
ढोलक की थाप पर 
जब दरवाज़े पर बजते थे 
तो खाने का स्वाद 
प्यार की भांग से 
नशीला हो उठता था 
रिश्ते पड़ोस के भी 
अपने से अधिक अपने होते थे 
रंग लगे प्लेट में खाना 
प्रगाढ़ता की मिसाल थी !!
जब धीरे धीरे रिश्ते परदेस गए 
तो कागज़ में अबीर भेजकर होली मन जाती थी 
फिर अचानक .... बिल्कुल अचानक ही 
ये सारे रीति-रिवाज़ बेकार हो गए 
पुआ,दहीबड़ा बनाना पहाड़ हो गया 
बड़े शहरों में होलिका जली ही नहीं 
लोगों का एक-दूजे संग मिलना बंद हो गया 
बदले की भावना इस सीख से परे प्रबल हो गई 
कि - होली में दुश्मन भी अपने रंग में आ जाते हैं 
............. अब !!!
ये अबरखी अबीर उस दिन के इंतज़ार में हैं 
कोई तो पहल करेगा लौटने की 
फिर खेलेंगे होली 
गायेंगे होली 
नए नए कपड़ों में बसंत की तरह निकलेंगे 
मीठे मीठे रस में भंग के नशे की तरह 
शोर मचाएंगे 
असली रंग में फिर से रंग जायेंगे 
फागुन को फागुन बना जायेंगे !!!.....................

फागुन की बयार बह चली है,रंग बनने लगे हैं,शरारतें मचलने लगी है --------------------- तो एक रंगों से सराबोर बुलेटिन आपके लिए 











16 टिप्पणियाँ:

shikha varshney ने कहा…

होली के रंग बिखर गए हैं बुलेटिन पर.
बहुत सुन्दर.

sangita ने कहा…

होली के सभी रंग मुबारक हों सुन्दर भीगी सी कविता

Pallavi saxena ने कहा…

bahut hi sundar rangon bhara buletin....

सदा ने कहा…

पुडि़या में रखे रंग
माँ की धरोहर .....................अनुपम प्रस्‍तुति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

होली न हो भोली अबकी।

shalini rastogi ने कहा…

holi ke rangon se range blog,,,, bahut sundar aur rangeen ...

vandana gupta ने कहा…

होली के रंगों से सराबोर हो गया पूरा बुलेटिन

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आज ब्लॉग बुलेटिन पर होली रे रसिया ... :)

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

मेरे कानों में अभी गूंज रही
जोगी जी और स्र्र्रर्र्र्रर स्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र सारर्र्र्र्र्र्र्र्र

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

रंग मुबारक हों

Unknown ने कहा…

सच में देखते-देखते होली के तौर-तरीके कितने बदल गये हैं ...ढ़ोलक की थाप पर होरी गाने का मजा ही कुछ और था और मनुहार करके गुंझिया और ठंडाई पिलाते ...मस्ती में झूमते-गाते ....अजनबी भी मित्र बन जाते थे ...बहुत सटीक बात कही है आपने अपनी रचना में
मेरा ब्लॉग आपके स्वागत में है ....
स्याही के बूटे

Asha Lata Saxena ने कहा…

होली के रंग में सराबोर सूत्र समेटे आज का ब्लौग |
आशा

वाणी गीत ने कहा…

पहले से दिन फिर से आने के इन्तजार में होली भी होती होगी आजकल !

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

होली के रंग बिखर गए

Dinesh pareek ने कहा…


सादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )

Amrita Tanmay ने कहा…

होली का असर दिख रहा है..

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