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शनिवार, 30 मार्च 2013

क्योंकि सुरक्षित रहने मे ही समझदारी है - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

रिजर्व बैंक ने एक बार फिर से बेहतर सुरक्षित चेक सिस्टम सीटीएस को बैंकिंग प्रणाली में पूरी तरह से लागू करने के लिए समय सीमा को 31 जुलाई तक के लिए टाल दिया है। पहले यह समय सीमा 31 मार्च तय की गई थी। एक निवेशक के तौर पर आपके लिए इस नए चेक सिस्टम के बारे में जानना जरूरी है। अगर आप सीटीएस यानी चेक ट्रंकेशन सिस्टम वाले चेक का इस्तेमाल करते हैं तो आपका काम जल्दी भी होता है और यह आर्थिक लेनदेन की प्रक्रिया 100 फीसद सुरक्षित होती है। अब आपके चेक को क्लीयर होने के लिए एक बैंक से दूसरे बैंक नहीं जाना होगा।
सभी जरूरी जानकारियों समेत उसकी एक इलेक्ट्रॉनिक इमेज संबंधित पार्टी को भेज दी जाएगी। ये चेक ज्यादा सुरक्षित इसलिए होते हैं, क्योंकि नए चेक सिस्टम में बाएं हिस्से पर, अकाउंट नंबर वाले खाने से ठीक नीचे वॉयड पैन्टोग्राफ होता है, जिसको कॉपी कर पाना अथवा स्कैन कर फर्जी चेक बनाना असंभव है। साथ ही, जहां आप अमाउंट भरते हैं, वहां अब रुपये का सिंबल (प्रतीक) अंकित होगा। पूरे चेक पर बैंक का अदृश्य लोगों होगा, जो कॉपी करने की दशा में आसानी से पकड़ में आ जाएगा।
अब भी 75 से 80 फीसद लेनदेन चेक के जरिये ही होता है। चेक के फर्जी इस्तेमाल के कई मामले आने के बाद आरबीआइ इसे जरूरी बनाने जा रहा है।
सीटीएस के फायदे:
-सीटीएस चेक की क्लीयरिंग 24 घंटे में संभव।
-ऐसे चेक का फर्जी इस्तेमाल असंभव।
-चेक के गुम होने की संभावना नहीं।
-देश में किसी भी जगह किसी भी बैंक में क्लीय़रिंग की सुविधा।
-सभी बैंकों द्वारा मानक चेक सिस्टम को शुरू किया जाना।

उम्मीद है कि आप सब को अब तक अपने अपने बैंक से इस नई प्रणाली से जुड़ी चेकबुक मिल गई होगी ... पर अगर अब भी आप के पास नई चेकबुक नहीं है तो अपने बैंक से संपर्क कर इस सुविधा का लाभ उठाएँ और अपनी बैंकिंग प्रणाली को और सुरक्षित करें !

सादर आपका 

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परिभाषाएं...( ३)

रिश्ते वह विश्वास ! जो अदम्य है .. अगाध है ... अद्भुत है ... जो उस खिलखिलातेबच्चे में जिसे आसमान में उछालाहै , लोकने के लिए....!! वह लक्ष्मण रेखा जो तै करतीहै सीमाएं आचरण की ... व्यवहार की... और उनसे जुड़ेसही गलत की.... वह बोझ ..! जिसे कभी चाहकर.... कभी मजबूरी में ... सहना है खुशी.... और कड़वाहटओं के बीच...!! वह सौगातें ...! जो धरोहर सी.... महफूज़ रखते हैंकभी .. और कभी... कूड़े के ढेरपर छोड़ आतेहैं ....!!! नाज़ुक से ... कभी कांच से... रेशम के धागेसे कभी ... पर बला कीकूवत संजोये रहते हैं...!!!

{ २५७ } आशाओं के दीप जलाओ

गोपाल कृष्ण शुक्ल at पाँखुरी
आशाओं के दीप जलाओगे जब चहुँ ओर प्रकाश ही प्रकाश होगा। यदि टूट गये हों सपने तो क्या यदि छूट गये हों अपने तो क्या सबके सब चलते अपनी राहों पर उजियारी- मतवारी चाहों पर। पर राहों मे फ़ूल बिखराओगे जब चहुँ ओर सुगन्ध-सुवास होगा।।१।। मौसम भी तो बदले तेवर दिशाहीन हो उडते कलेवर रक्त गँध पूरित हवायें आती छाती को चीर-चीर कर जाती। पर बसन्त के गीत गुनगुनाओगे जब चहुँ ओर मन-मुदित मधुमास होगा।।२।। कल क्या होगा किसने देखा क्यों डाल रहे माथे पर तिरछी रेखा कामना ही सबको यहाँ छलती है वर्तिका वेदना की ही जलती है। पर प्रेम का संगीत बजाओगे जब चहुँ ओर प्रेम-हास-परिहास होगा।।३।। ......................... more »

मेरा परिचय

प्रवीण पाण्डेय at न दैन्यं न पलायनम्
आज से पहले अपना इतना विस्तृत परिचय किसी को नहीं दिया है। रश्मि प्रभाजी का आदेश आया तो सोच में पड़ गया, उन्हें कुछ कविताओं के साथ मेरा परिचय व चित्र चाहिये था। किसी भी लेखक को लग सकता है कि उनका लेखन ही उनकी अभिव्यक्ति है, वही उनका परिचय है। सच है भी क्योंकि लेखन में उतरी विचार प्रक्रिया व्यक्तित्व का ही तो अनुनाद होती है। जो शब्दों में बहता है वह लेखक के व्यक्तित्व से ही तो पिघल कर निकलता है। यद्यपि मैं लेखक होने का दम्भ नहीं भर सकता, पर प्रयास तो यही करता रहता हूँ कि जो कहूँ वह तथ्य से अधिक व्यक्तित्व का प्रक्षेपण हो। यदि व्यक्तित्व पूरा न उभरे तो कम से कम उसका आभास या सारांश तो ब... more »

मन

प्रतिभा सक्सेना at शिप्रा की लहरें
जान रही हूँ तुम्हें ,समझ रही हूँ , तुम वह नहीं जो दिखते हो! वह भी नहीं - ऊपर से जो लगते रूखे ,तीखे,खिन्न! चढ़ती-उतरती लहरों के आलोड़न , आवेग-आवेश के अथिर अंकन अंतर झाँकने नहीं देते ! * तने जाल हटते हैं जब, आघातों के वेगहीन होने पर , सारी उठा-पटक से परे, एक सरल-निर्मल सतह की ओझल खोह से झाँक जाता है, शान्त क्षणों में बिंबित दर्पण सा मन ! ऊपरी तहों में लिपटे भी , कितने समान हम ! *

राजस्थान के सूखे मेवे : केर, सांगरी, कुमटिया

Ratan singh shekhawat at ज्ञान दर्पण
राजस्थान में वर्षा की कमी व सिंचाई के साधनों की कमी की वजह से हरी सब्जियों की पहले बहुत कमी रहती थी वर्षा कालीन समय में जरुर लोग घरों में लोकी,पेठा आदि उगा लिया करते थे व ग्वार, मोठ की फली आदि खेतों में हो जाया करती थी पर वर्षा काल समाप्त होने के बाद सब्जियों की भयंकर किल्लत रहती थी| हालाँकि आज सिंचाई के साधनों व यातायात के साधन बढ़ने के चलते अब पूर्व जैसी परिस्थितियां नहीं है| पर पहले सब्जियों के मामले में राजस्थानी गृहणियों को बहुत कमी झेलनी पड़ती थी| प्रकृति ने राजस्थान में ऐसे कई पेड़ पौधे उगाकर राजस्थान वासियों की इस कमी को पूरा करने के लिए केर, सांगरी व कुमटिया आदि सूखे मेवों की ... more »

संभावना

देवेन्द्र पाण्डेय at बेचैन आत्मा
अटके हो किसी के आस में तो झरो! जैसे झरते हैं पत्ते पतझड़ में रूके हो किनारे साथी की तलाश में तो बहो! तेज धार वाली नदी में बिन माझी के नाव की तरह धऱती पर पड़े हो तो उड़ो! जैसे उड़ती है धूल बसंत में हाँ तुमसे भी कहता हूँ... वृक्ष हो तो नंगे हो जाओ! माझी हो तो संभालो अपनी पतवार! आँधी हो तो समझ जाओ! तुम उखाड़ नहीं पाओगे कभी भी किसी को समूल! जर्रे-जर्रे में होती है आग, पानी, हवा, मिट्टी या फिर.. आकाश बनने की संभावना। ................

घोटू के दोहे

Ravindra Prabhat at परिकल्पना
*(1)* नए नए हम सीरियल ,देखा करते नित्य । किसको फुर्सत है भला ,पढ़े नया सहित्य ॥ *(2)* ना तो मीठे बोल है,ना सुर है ना तान । चार दिनों तक गूंजते ,फिर खो जाते गान ॥ *(3)* वो गजलों का ज़माना,मन भावन संगीत । अब भी है मन में बसे ,वो प्यारे से गीत ॥ *(4)* साप्ताहिक था धर्मयुग ,या वो हिन्दुस्थान । गीत,लेख और कहानी,भर देते थे ज्ञान ॥ *(5)* कवि सम्मलेन रात भर,श्रोता सुनते मुग्ध । प्रहसन ,सस्ते लाफ्टर ,कर देते है क्षुब्ध ॥ *(6)* अंगरेजी का गार्डन ,फूल रहा है फ़ैल । एक बरस में एक दिन,बोते हिंदी बेल ॥ *(7)* छोटे छोटे दल बने,सब में है बिखराव । तो फिर कैसे आयेगा ,भारत में बदलाव ॥ ... more »

डर

स्याह सी खामोशियों के इस मीलों लंबे सफ़र में तन्हाइयों के अलावा .. साथ देने को दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आता . जी में आता है कि कहीं तो एक उम्मीद दिखे कोई तो हो हमक़दम जिसके हाथों को थाम के चलें. पर फिर वही डर...वही खटका मन का ... कि गर कोई मिल भी गया तो.................. बीच राह में वो छोड़ कर न जाए मुझे कुछ और खाली कुछ और अधूरा सा न कर जाए . उनका क्या हो जो लोग जन्मते ही हैं ...ज़िंदगी का सारा खालीपन और उदासी अपने में समेटने के लिए .

Bhimashankar Jyotirlinga Temple भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मन्दिर

भीमाशंकर-नाशिक-औरंगाबाद यात्रा-05 SANDEEP PANWAR मन्दिर के पास वाली दुकानों से मावे की बनी मिठाई खरीदने के बाद हमने मन्दिर प्रांगण में प्रवेश किया। हमने पहले वहाँ एक परिक्रमा रुपी भ्रमण किया ताकि वहाँ के माहौल का जायजा लिया जा सके। उसके बाद वहाँ नहाने के लिये एक कुन्ड़ तलाश लिया। कुंड़ के सामने ही एक सामान बेचने वाली मराठी महिला बैठी हुई थी। पहले मैंने कुंड़ में घुस कर स्नान किया उसके बाद सामान के पास खड़ा होने की मेरी बारी थी तब तक विशाल भी कुंड़ में स्नान कर आया। लोगों ने अंधी श्रद्धा के चक्कर में स्नान करने के कुंड़ ... more »

फ़ेसबुकिया फ़ागुन

ताऊ टीवी चैनल से ताऊ जी से मिला होली का पिरसाद …..ग्रहण करिए पिछले कुछ सालों में होली के आसपास लकडी पानी बचाने का घनघोर नारा लगाने का रिवाज़ चल निकला है , तो इसका भी तोड है न म्हारे फ़ोडू के पास , देखिए हमारे सूरमाओं ने होली पे हो हल्ला मचा के रख दिया है ..झेलिए इस फ़ेसबुकिया फ़ागुन को ……………. DrKavita Vachaknavee रंगों से खेले लगभग 15 वर्ष हो गए.... और चाह कर भी खेलना संभव नहीं। यहाँ तो अभी कल व परसों भी हिमपात का दिन है। होली आप सब के जीवन में अनन्त खुशियों के रंग भरे। अपने मित्रों परिजनों के साथ आप सौ बरस और रंग खेलें और आप पर बीस-पचास रंग हर बरस डलते रहें ... :) रंग भरी... more »

लौटना गब्बर का फिर रामगढ़

गगन शर्मा, कुछ अलग सा at कुछ अलग सा
*वह तो हफ्ते दस दिन में मंदिर, गुरुद्वारे के लंगर से चार-पांच दिन का बटोर लाता हूँ तो ज़िंदा हूं, तुमसे तो वह भी नहीं होगा. हमारे विगत को जानते हुए कोइ हमारा स्मार्ट कार्ड या आधार कार्ड भी नहीं बनाएगा. तुमने जो किया है उससे बुढापे की पेंशन भी मिलने से रही। इसलिए पर्वों-त्योहारों खासकर होली को तो भूल ही जाओ जिसने हमारी यह गत बना दी थी* * *रामगढ़ की एतिहासिक लड़ाई के बाद सब कुछ मटियामेट हो चुका था. ना डाकुओं का दबदबा रहा, ना वो हुंकार, आदमी ही ना रहे तो गिनती क्या पूछनी. ले दे कर सिर्फ सांभा बचा था, वह भी चट्टान के ऊपर किसी तरह छिपा रह गया था, इसलिए। वर्षों बाद जेल काट तथा बुढापा ओ... more »
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

14 टिप्पणियाँ:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन लिंक्स मिले, चेक बुक का काम हमारा तो हो चुका, जानकारी बहुत उपयोगी है, आभार.

रामराम.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

..आभार।

Gyan Darpan ने कहा…

अच्छी जानकारी के साथ बढ़िया लिंक्स

Jyoti khare ने कहा…

वाह बहुत सुंदर सार्थक संग्रह
बढ़िया संयोजन
सभी रचनाकारों को बधाई
उत्कृष्ट प्रस्तुति

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बढ़िया संयोजन
new postकोल्हू के बैल

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सूत्र।

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बेहतरीन लिंक चयन और भाई आपने जो लेख लिखा वो तो बहुत ही शिक्षाप्रद और ज्ञान वृद्धि का स्रोत है | शुक्रिया | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

रोचक सूत्र.ऊपर जो पाँच लोगों का होली रँगा फ़ोटो है उसमें भी कितनी मिलावट!

Nidhi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया...मेरी रचना को शामिल करने हेतु.
सरे लिंक्स पढ़े..अच्छे लगे ..कुछ बहुत अच्छे लगे.ज्ञान वर्धन भी हुआ...
सभी रचनाकारों को बधाई .

Nidhi ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया...मेरी रचना को शामिल करने हेतु.
सरे लिंक्स पढ़े..अच्छे लगे ..कुछ बहुत अच्छे लगे.ज्ञान वर्धन भी हुआ...
सभी रचनाकारों को बधाई .

Saras ने कहा…


बहुत सुन्दर लिंक्स ...और मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक आभार शिवम् जी

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन लिंकों का चयन,आभार.

***Punam*** ने कहा…

बढ़िया संयोजन...!
उत्कृष्ट प्रस्तुति...!!
बधाई....!!!

Swapnil Shukla ने कहा…

बेहद सराहनीय पोस्ट . आभार
visit : http://swapnilsaundarya.blogspot.in/2013/04/life-of-artist.html

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