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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

आम आदमी का अंतिम भोज - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों ,
प्रणाम !

आप मे से बहुत से लोगो ने लियोनार्डो दा विन्सी की 'द लास्ट सप्पर' पेंटिंग जरूर देखी होगी जिस में ईसा मसीह को अपने अनुयायियों के साथ अंतिम भोज करते दिखाया गया है।

आज आप को उस पेंटिंग का एक अलग रूप दिखा रहा हूँ ... आर के लक्ष्मण साहब के एक कार्टून के रूप मे ... जहां ईसा मसीह की जगह लक्ष्मण साहब का आम आदमी है और उसके साथ विभिन्न राजनेता !


आप सब से अनुरोध है कि इस कार्टून को केवल एक कार्टून के रूप मे ही लें ... धर्म का इस से कोई लेना देना नहीं है ... पर इस के बाद भी अगर धर्म आहत होता है तो फिर मेरी राय मे वो धर्म नहीं !

सादर आपका 


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"वाह वाह ताऊ क्या लात है?" में श्री सतीश सक्सेना

ताऊ रामपुरिया at ताऊ डाट इन
हाय...अंक्ल्स...आंटीज... भैयाज एंड दीदीज...मैं मिस रामप्यारी, *"ताऊ टीवी फ़ोडके चैनल"* के होली कार्यक्रम *"वाह वाह ताऊ क्या लात है?"* में अपने कैमरामैन रामप्यारे के साथ आपका बादाम बजा लाती हूं. आप सोच रहे होंगे कि ये मिस रामप्यारी अचानक कहां से आ टपकी? तो चिंता मत किजिये मैं दिमाग खाने और फ़ालतू बकवास करने का हाई डिग्री कोर्स करने विदेश गई थी जहां से अपना कोर्स पूरा करके वापस आ गई हूं. अब मैं अक्सर आपका दिमाग खाती ही रहुंगी. वैसे तो लोग कहते हैं कि मिस. रामप्यारी को चूहे खाने में बहुत मजा आता है पर सच बताऊं, मुझे जो मजा लोगों का दिमाग खाने में आता है ना...उससे ज्यादा स्वाद... more »

अनुमति से सेक्स आयु कम करने की वास्तविकता

पिछले कुछ दिनों से देश भर की मीडिया सहमति के आधार शारीरिक सम्बन्ध बनाये जाने की आयु को 16 वर्ष किये जाने की ख़बरें बड़ी मुस्तैदी से प्रसारित कर रहा है. मीडिया के सभी अंग पूरी तन्मयता से ये दिखाने में लगे रहे (अभी भी लगे हैं) कि मंत्रियों का समूह इस उम्र को 18 वर्ष से 16 वर्ष करने पर सहमत हो गया है. मीडिया द्वारा इस पर देशव्यापी बहस सी छेड़ दी गई है. मीडिया के साथ-साथ सोशल मीडिया पर सक्रिय लोग भी इस प्रस्ताव पर सहमति-असहमति व्यक्त करते देखे जा रहे हैं. इस पूरे घटनाक्रम पर वो मंत्री समूह भी अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है जिसके निर्णय से इस संशोधन सम्बन्धी प्रस्ताव को पारित होना है.... more »

कुछ क्षणिकायें

उपेन्द्र नाथ at सृजन _शिखर
१. हथियारों के दलाल खा गए सब हथियार सुना है कि फौजी लड़ते है लाठी और गुलेल से।। २. कुछ गरीब और आदिवासी रोजी रोटी के लिए फ़ौज में भर्ती हुए थे सुना है कि उनकी शहादत पर उनके झोपड़े को आलिशान महल बना देने की तयारी है।। ३. ना कोई हंगामा हुआ ना किसी ने पत्थर फेंके ना कर्फ्यू लगाने की जरुरत पड़ी और ना ही किसी ने मोमबत्तियाँ जलायी सुना है कि अभी अभी कुछ फौजियों की अंतिम यात्रा यहाँ से गुजरी है।। ४. आज भारत बंद नहीं है सिर्फ कुछ जवान ही तो मरे है सुना है कि धर्मनिरपेक्ष और मानवतावादी कुछ दिनों की छुट्टियों पर आराम फरमाने निकल पड़े है थक गए थे बेचारे वैसे भी ... more »

साधू कौन ?

देवेन्द्र पाण्डेय at चित्रों का आनंद

किसी ने मुझे इत्तला दी है कि मैं ज़िंदा हूँ अभी

RAJIV CHATURVEDI at Shabd Setu
"किसी ने मुझे इत्तला दी है कि मैं ज़िंदा हूँ अभी क्या तुम भी ज़िंदा हो ? तो बोलते क्यों नहीं ? यही कि हमने धर्म बनाया है धर्म ने हमको नहीं यही कि जम्मू -कश्मीर में इस्लामिक आतंकवाद से लाखों हिन्दू पलायन कर गए हैं और सैकड़ों मार दिए गए हैं यही कि गोधरा काण्ड में 67 हिन्दुओं को ज़िंदा जलाने पर भड़के थे गुजरात के दंगे यही कि अगर मूर्तिभंजन या बुतशिकनी जायज है तो औरंगजेब से अब तक दस हजार से अधिक मंदिर तोड़ना जायज था और यह भी कि बाबरी मस्जिद का तोड़ना भी जायज था यही कि अगर मुहम्मद साहब का कार्टून बनाना नाजायज था तो किसी हुसैन ने देवी देवताओं की तश्वीर से क्या किया ? अगर उबेदुल्ला या वैसा ही कोई कठमु... more »

अथ श्री लड़ाई- झगडा पुराणम !!

वाणी गीत at ज्ञानवाणी
बचपन शब्द याद आते ही जो सबसे पहली बात जबान से निकलती है वह है...वह बचपन का लड़ना- झगड़ना. . बचपन की मासूमियत और निष्पाप हृदय को अभिव्यक्ति करती है ये पंक्तियाँ "बच्चो सी मुहब्बत कर लो मुझसे *लड़ना* -*झगड़ना*,* *रूठना-मनाना. दिन भर खेलना कूदना शाम पड़े पर घर जाना और सब कुछ भूल जाना सुनो. मानो बचपन का नाम ही लड़ना झगड़ना हो . और ऐसा होता भी है . कैरम ,सितोलिया , गिल्ली डंडा , कंचे , क्रिकेट आदि खेलते हुए कई बार झगडे होंगे बचपन में , जाओ नहीं खेलते तुम्हारे साथ , तुमने बेईमानी की और खेल वही समाप्त हो जाता . मगर अगले ही दिन जब खेल का समय हो तो आवाज़ लगते ही सारे एक साथ दौड़े चले आत... more »

संस्कार

noreply@blogger.com (Ratan singh shekhawat) at ज्ञान दर्पण
पुर्व उपराष्ट्रपति स्व.भैरोंसिंह शेखावत के मुख्यमंत्री काल में एक बार उनके विरोधी दल ने एक बड़े नेता चौधरी कुम्भाराम आर्य किसी बात को लेकर एक दिन सुबह सुबह मुख्यमंत्री आवास के सामने भूख हड़ताल पर बैठ गए थे| दोपहर एक बजे खाने का समय होते ही मुख्यमंत्री जी की पुत्री रतन कँवर घर से निकलकर धरना स्थल पर आई और भूख हड़ताल पर बैठे नेता चौधरी कुम्भाराम जी के चरण स्पर्श कर भोजन करने हेतु आमंत्रित करते हुए कहा- बाबा भोजन तैयार है , घर के अंदर चलिए और भोजन कीजिये| चौधरी कुम्भाराम ने आशीर्वाद देते हुए कहा- बाईसा ! मैं भूख हड़ताल पर बैठा हूँ सो अन्न जल कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? पर रतन कँवर ने हठ करते ... more »

ज़िन्दगी से मुलाक़ात

तुषार राज रस्तोगी at तमाशा-ए-जिंदगी
आओ बतलाऊं दिल की बात आज दिन था कितना खास ज़िन्दगी से एक मुलाक़ात बढ़ी गुफ्तगू की सौगात कैसे सुबह से शाम हो गई दिल की बातें आम हो गईं जादू झप्पी से हुआ आगाज़ कितना सुन्दर रहा रिवाज़ शब्दों को भी पकड़ जकड़ दिए उलाहने अगर मगर सवालात कुछ आम हुए मियां मुफ्त सरनाम हुए कुछ तस्वीरें कुछ तकरीरें मिल बांटी हाथों की लकीरें थोड़ी खुशियाँ थोड़े ग़म सांझे किये कर आँखें नम फिर आगे ये गज़र चली कुदरत संग ये जा मिली नदी, फूल, तितली के रंग साथ खिले बातों के संग गपियाने के जब दौर चले जाने किस किस ओर चले विचार, सुन्दरता, आकर्षण अनावरण, भावना, विकर्षण कर जीवंत आत्मा का मंथन क्या खूब किया था विश्लेषण हृदय द्... more »

मैं कुछ नहीं........मैं बस तुम हूँ!!!!!

मैं कुछ नहीं, मात्र, एक पिघला हुआ धुआँ हूँ जो तुम्हारे इर्द-गिर्द फैला है, एक आभामंडल कि भांति, लाख प्रयासों से भी तुम उड़ा नहीं सकते मुझे। ... मैं कुछ नहीं एक ‘याद’ भर हूँ जो निहत्थी और निडर होकर आती है तुम्हारे समीप, एक हथियार कि तरह, और तुम पराजित हो जाते हो बिना मुझसे युद्ध किए। मैं कुछ नहीं चंद ‘तारीख़’ हूँ जो लटकी पड़ी हैं तुम्हारे, जीवन कि दीवार पर। कुछ तारीख़ें वह हैं जिनके संग मिलकर मैंने और तुमने मधुर पल बिताए..... और कुछ तारीख़ें वह हैं जिनमे हम कभी नहीं मिल पाये। मैं कुछ नहीं एक ‘अनहोनी’ हूँ जो बस घट गई तुम्हारे जीवन में!!!! और छोड़ गई कुछ और होने का अंदेशा!!! क्यूंकी ‘होन... more »

जीता जागता इंसान

Brijesh Singh at Voice of Silent Majority
उकता गया हूं वही चेहरे देखदेख सुबह शाम वही सपाट चेहरे भावहीन किसी रोबोट कीतरह बस चलायमान कभी दर्द नहींछलकता इनकी आंखों में कभी कभी मुंह थोड़ा फैलजाता है उबासी लेते हुए कभी कभी लगताहै जैसे मुस्करा रहे हैं ये न बोलतेहैं न सोचते हैं बस चलायमान हैं किसी साफ्टवेयर से संचालित कभी सोचता हूं कब तक देखनाहोगा इन मशीनी चेहरों को क्या कभी कोई सुबह कोई शाम कोई किरन कोई हवा भर पायेगी इनमें भी जीवन के अंश कि अचानक ठहाके मार केहंस पड़ें ये चीख पड़ें जब चोट लगेइन्हें कभी तो होऐसा काश आदमी फिर सेबन जाए एक जीता जागताइंसान! - बृजेश नीरज

मैने तो उसमें लिखा माँ से जो मिला मुझको...

अपने मज़हब के पैंतरे न तू सिखा मुझको... बना सकेंगी क्या हदें कभी खुदा मुझको... कितने चीरे थे चीथड़े, कोई सबूत भी दो... कितनी लाशों में मिला राम या खुदा तुमको... मैं लिख रहा था जिसे वो ही मुझे पढ़ न सका... अपनी किस्मत से बस यही रहा गिला मुझको... हिन्दी, उर्दू के नाखुदा में शुमारी क्या है... मैने तो उसमें लिखा माँ से जो मिला मुझको...
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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

7 टिप्पणियाँ:

Archana Chaoji ने कहा…

फिर कुछ नये लिंक्स मिले ... आभार ...
होली का असर भी दिखा ...

Gyan Darpan ने कहा…

शानदार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सूत्र

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत उपयोगी लिंक्स मिले, आभार.

रामराम.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

बहुत सुन्दर !

Soniya Gaur ने कहा…

इस अंक में मुझे स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद :) :) :) :) :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार !

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