Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

बुधवार, 12 दिसंबर 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (10)



सारे बक्से खोलकर बैठी हूँ 
दिनों से महीनों से या वर्षों से .... मैं खुद भी नहीं जानती !
सारे देवी देवताओं को गुनती हूँ (किसे कम मान लूँ!)
सभी रिश्तों को सोचती हूँ 
और यहाँ रचनाओं के हर बक्से से कोई मुझे बुलाता है 
खुद में सहमी रहती हूँ ....
भूले से किसी को भूल गई तो !!!
भगवान् असमर्थ हो जाते कई बार 
मैं तो भगवान् की एक सूक्ष्म कृति हूँ 
तो मुझसे शिकायत मत रखना 
एक सच बताना -
जो भी मैं लायी हूँ 
वे असली नगीने हैं न ?


यादो के दिए फिर से जल गए 
आज अचानक से एक मोड़ पर 
वो फिर से मिल गए 
एक वक्त के लिए सब ठहर गया 
बस हवा चलती रही  ,,,और झोंको से मैं
 खिसकती रही उनके पास 
आँखे तो एक टक उन्हें देखती ही रह गई
और इन खुली आँखों में यादो की वो तस्वीर सी चल गई 
वो पहली मुलाकात से लेकर जुदाई
 तक की सारी यादे घूमने लगी 
सहसा एक दुसरे की मिली जो नजर 
लब थे खामोश पर बाहें मिलने को बेसबर 
वो प्यार के हरपल याद आने लगे 
वो रूठना - मनाना 
वो चीखना - चिल्लाना 
वो हँसना - मुस्कुराना 
सहसा वो गीत भी कानो में गुजने लगा 
जो उसने गाए थे कभी सिर्फ मेरे लिए 
"अभी न जाओ छोड़कर के दिल अभी भरा नहीं"...
वो मेरी तस्वीर जो उसने बनाई थी कभी ,,,,,
जिसे वक्त के दर्द ने और उसकी जुदाई की तड़प ने
धुमील सा कर दिया ,,
आज वो आँखों के सामने रंग बिखेरते से लगे....
उनको देखा तो सब कुछ सुहाना सा हो गया 
काली स्याह रात में भी रोशनी छाने लगी
पर हवाओ के साथ उडता एक तिनका आया
जिसके स्पर्श ने मुझे झकझोर कर रख दिया 
और आज के हकीकत से मिला दिया 
की ये वही शख्स है 
जिसने स्वार्थ और बड़प्पन में तुझे भुला दिया था,,,
क्या करती मै अपनी सारी यादों और खुशियों 
को समेट कर रास्ता बदलने के सिवाय 
क्या करती मैं ???? 

हवाओं की टूटी पेंसिलें 
टूटे चित्र आँकती है तन पर 
काली स्याही से रंगे सोचों की 
साबुत सी प्रदर्शनी लगा ली...
...........
इक तू सजेगा और इक मैं 
पन्नों की दीवारों पर 
कोरे दिलों की लगेगी बोलो ,
नीलामी दो उम्र की होगी.....
..............

आज मदर्स डे नहीं हैफिर भी...

(
(शेखर सुमन)

       माँ, पता नहीं क्यूँ आज आपकी बहुत याद आ रही है, मुझे पता है आपसे मिलकर भी आपसे कुछ नहीं बोलूँगा... लेकिन फिर भी बस आपको देखने का मन कर रहा है... मुझे यूँ टुकड़ों में बिखरता देखकर शायद एक बार, बस एक बार मुझे गले से लगा कर कह दो, कोई बात नहीं विक्रम.. सब ठीक हो जाएगा, मैं हूँ न... मुझे यूँ रात रात भर जागता देखकर शायद आपका दिल भी पिघल जाए, और अपनी गोद में सर रख कर मुझे सोने दो... मुझे तो याद भी नहीं आपकी गोद में सर रखकर पिछली बार कब सोया था, कभी सोया भी था या नहीं... जानता हूँ आप उन माओं की तरह नहीं जो अपने बच्चों से अपना प्यार जतलाती रहती हैं, लेकिन फिर भी... शायद मेरी उचटती नींद को मनाने के लिए एक बार, बस एक आखिरी बार मुझे फिर से उसी सुकून से सोने दो... 
        मेरा बचपन तो बस यूँ देखते देखते ही गुज़र गया, याद है माँ, मैं हमेशा आपका आँचल पकड़े पकड़े चलता था, सब कहते थे मैडम इसको कब तक यूँ ही चिपका कर चलते रहिएगा... आखिर एक दिन आपने मुझसे अपना आँचल छुडवा ही लिया... मुझे आज भी याद है मैं उस दिन कितना रोया था, तब से आज तक बस रोता ही रहा हूँ... न जाने कितनी जगह वही सुकून, वही छावँ ढूँढता हूँ, लेकिन ऐसा कहीं हो सका है भला... यहाँ तो चारो तरफ बड़ी तेज धूप है, मेरा शरीर मेरी आत्मा सब कुछ झुलसी जा रही है... 
      या खुदा तू इस फेसबुक से कुछ सीखता क्यूँ नहीं, देखो न ये कितने परिवर्तन लाता रहता है... और ये टाईम-लाईन  का ऑप्शन तो हमलोग को भी मिलना चाहिए... मुझे देखना है वो वक़्त जब माँ मुझे अपनी गोद में उठाए घूमती होगी, जब पापा की ऊँगली थामे मैंने चलना सीखा होगा... जब मेरे रोने की आवाज़ सुनकर सब मुझे दुलारने लगते होंगे... जब दुनिया की इन समझदारी भरी बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं था, जब खुशियों का मतलब केवल माँ की वो मुस्कराहट थी... 
       मुझे शिकायत है तुम्हारी ज़िन्दगी की इस बनावट से... इसमें बैक डोर से इंट्री का कोई ऑप्शन क्यूँ नहीं... ओ खुदा  तुमने "क्यूरियस केस ऑफ़ बेंजामिन बटन" नहीं देखी क्या ?? ऐसा ही कुछ संशोधन अपनी किताब में भी लाओ न... मैं भी यहाँ से रिवर्स में जीना चाहता हूँ... बस अब बहुत हुआ, अब और आगे नहीं जाना... मुझे फिर से माँ की वही गोद चाहिए, पापा के कंधे की सवारी और आस पास मेरा ख्याल रखने वालों की भीड़...
      
       माँ आपकी फेवरेट प्रार्थना याद है न आपको... 
हम न सोचें हमें क्या मिला है,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों के बांटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाए मधुवन...
अपनी करुणा का जल तू बहाके,
कर दे पावन हर एक मन का कोना..
       ए भगवान् अगर सबको एक न एक दिन मरना ही है तो, मेरी एक आखिरी ख्वाईश कबूल कर लो न प्लीज.... माँ का आँचल पकडे ही मैं अपनी सांस की आखिरी गिरह खोलना चाहता हूँ...

क्या तुम्हें याद है....?(रश्मि तारिका)


             क्या तुम्हें याद है....?
क्या तुम्हें याद है उस दिन की वो हसीं शाम
जब तेरे साथ चंद  पलों को जिया था
जब लहरों की अठ्केलिओं को
एक दूजे के मन से निहारा था
जब तेरे कंधे पर सर रख कर
डूबते  सूरज को देखा था .....
डूबते सूरज ने जैसे कुछ इशारा किया था

हमसे उसने फिर आने का वादा किया था
उसी सूरज की लाली जैसी तेरी सुर्ख आँखे थीं
उन आँखों में कुछ शरारत सी थी
महकती  मदमस्त हवा थी मदहोश समां था
धडकनों पे हमारी इख्तियार न था
कभी पहले यूँ दिल बेक़रार न था
क़स कर  हाथ मेरा तुने थाम लिया था
बिन कहे ही बहुत कुछ जान लिया था
लहरों से भीगी किनारे की रेत थी.......
खामोश अलसाई सी हमारी चाल थी
हम  एक दूजे की बाहों में खोये  से थे
काश ये पल ये वक़्त यही रुक जाये
हम सदा एक दूजे के हो जाये
बिन कहे ही एक दूजे से वादे लिए थे
''खुदा ''से बस ये ही  एक दुआ की थी
बिखरी चांदनी की गवाही ली थी
तारो से भी साथ देने की ताकीद की थी
खामोश सागर से एक इल्तिजा की थी
गर तुझे भी प्यार है अपनी  लहरों से
गर जनता है तू भी प्यार की गहराई को
दुआ करना न  सहना पड़े कभी जुदाई को
जुदा गर हम हो गए तो दोष किसे देंगे
खुद को,''खुदा'' को या ''उसकी खुदाई '' को ?


एक रोज़ कभी मिलना ...

सोचेंगे , कहाँ , कैसे
दीवारें उग आयीं !
देखेंगे गए वक़्त की
धुंधलाती सी परछाईं .

एक रोज़ कभी मिलना .

शायद बहुत ज़रूरी था
दूरियों का आना ...
और हाथ भर की दूरी से
खुद को देख पाना .

एक रोज़ कभी मिलना .

अभी जेहन में ताज़ा है
खरोंच , ठहर जायें ..
कुछ वक़्त गुज़र जाए
कुछ हम भी संभल जायें

फिर एक रोज़ ...

...... कभी मिलना .

18 टिप्पणियाँ:

Nirantar ने कहा…

achhee rachnayein

Akash Mishra ने कहा…

बहुमुखी चयन |
चाहे वो रश्मि जी की कविता हो या शेखर जी का पत्र या फिर रीना जी और मीता जी की रचनाएं |

सादर

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

:)... kitna mehnat karte ho didi..
saari bahumukhi pratibhoan ko chhan chhan kar la rahe ho:)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएँ पढ़वाईं हैं दी....
सभी रचनाकार लाजवाब हैं....
आभार आपका.
अनु

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनायें सहेजी हैं।

सदा ने कहा…

सभी रचनाएं एक से बढ़कर एक ... सभी रचनाकारों को बधाई उत्‍कृष्‍ट लेखन की, आपका आभार इनके चयन एवं प्रस्‍तुति के लिये
सादर

Anupama Tripathi ने कहा…

एक सच बताना -
जो भी मैं लायी हूँ
वे असली नगीने हैं न ?
बिलकुल असली नगीने हैं दी ......
सभी रचनाएँ बहुत सुंदर ...

मुकेश पाण्डेय चन्दन ने कहा…

Subdar chayan

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

सभी एक से बढ़कर एक
बहुत बढिया

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

badhiya rachnayen. pura kalekshan bdhiya ban raha hai..

अजय कुमार झा ने कहा…

सभी टुकडे खूबसूरत और सहेजनीय , रश्मि दीदी । सुंदर श्रंखला चल रही है

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बेहतरीन लिंक्स में अपनी रचना को
देखकर बहुत अच्छा लगा...
आभार रश्मि जी...
:-)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपकी पसंद लाज़वाब है।

Jyoti khare ने कहा…

भावुक रचनायें------खास बात यह है की सभी रचनाकारों का अपना एक तेवर है
जो बेहद प्रभावित करता है------उम्दा संग्रह------सभी को बधाई

प्रवीण यादव ने कहा…

भावनाओं से लबरेज पोस्ट.......
रश्मि दीदी का आभारी हूँ ......

Anju ने कहा…

सभी बेहतरीन ....अपने अपने अंदाज़ में ....चुन कर लाना अपने आपमें बहुत मायने रखता है ....ग्रेट.....

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बढिया चयन, बधाई।

recent post हमको रखवालो ने लूटा

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ब्लॉग सागर से अनमोल मोती चुनने की यह अनोखी श्रंखला यूं ही चलती रहे ... आभार रश्मि दीदी !

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार