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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

प्रतिभाओं की कमी नहीं अवलोकन 2012 (13)



खग कुल कुल स्वर में बोल उठा है 
माँ चिड़िया ने ली है अंगड़ाई 
चिड़े प्रतिभाओं के खनकते दाने उठा रखे हैं चोंच में 
बस एक उड़ान भरने की तैयारी है ....

स्वराज से सुराज तक 
विभाजन से मिलाप तक
मेरी मातृभूमि का अभी
लंबा सफर है बाकी।

तंदूर से उत्थान तक 
अशिक्षा से ज्ञान तक
कई अंधेरे कोनों में 
उजाला फैलाना है बाकी।

तय किए साठ बरस 
सफ़र लंबा था मगर 
ऊँचे-नीचे रास्तों पर अभी 
अनन्त का सफर है बाकी। 

मिलती गई कई मंज़िलें 
ऊँचे रहे हम उड़ते 
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी। 

आवाज़ ...हर आवाज़ के साथ शायद एक रिश्ता होता है....मां के गर्भ में पल रहे छोटे से जीव का पूरा जीवन उस आवाज़ के ज़रिए ही अपनी गति पकड़ रहा होता है...हर आवाज़ की अपनी एक पहचान है....उसमें दर्द है...उल्लास है...प्रेम है...अभिव्यक्ति है....छिपाव है...हिचकिचाहट है पर ....कहीं बहुत महीन पर्तों के भीतर दबी छिपी एक सच्चाई भी है जो मां और बच्चे के रिश्ते की डोर पकड़ती है....जो मां को मां बनाती है और बच्चे के हर बोल में छिपे सार को पहचानती है...

मां की आवाज़ बेशक तेज़ है,तीखी है...पर कई गहरे समंदरों का दर्द समेटे है... 
उसमें बनावट नहीं है.... 
नन्हे बच्चे जैसी निश्चलता है और दुनियादारी को ना समझ पाने की अचकचाहट भी है.... 
उसकी आवाज़ में पूरी कायनात है..... 
हर रंग है....हर अहसास है... 
जब वो बोलती है तो लगता है... 
जैसे कहीं दूर.... 
किसी बावड़ी में गहरे उतरकर, सदियों से शांत पड़े पानी को किसी ने हौले से छू दिया हो....
जिसकी हिलोरो में मैं मीलो दूर होकर भी ठहर जाती हूं..... 
उस गमक से निकलते सुरों में रागिनियां नहीं है..... 
जब वो गाती है तो राग मल्हार नही फूटता....
पर शायद कहीं दूर ...कहीं बहुत दूर...
हज़ारो मील दूर.... 
किसी गहरे दबे-छिपे दर्द की अतल गहराईयां यूं सामने आ जाती है,
जिनके आगे सुरों की सारी बंदिशे बेमानी लगती हैं.... 
उसके सुर मद्धम चांदनी रात में बेचैनी पैदा करते है....
उसके सुरो की चाप उसके सूने जीवन को परिभाषित करती हैं...
उसकी गुनगुनाहट जीवन के रंगो के खो जाने का एहसास कराती है.....
उसकी आवाज़ से निकलता दर्द...जीवन की नीरवता बताता है.....
उसकी आवाज़ से किसी घायल हिरणी की वेदना पैदा होती है.... 
उसके गीतों के बोल उसके जीवन की गिरह खोलते हैं.... 
वो सुंदर नही गाती पर दर्द भऱा गाती है....

मैं कभी गाना नहीं चाहती...... 

मां के पास अनगिनत किस्से हैं...
पर सुनने वाला कोई नहीं... 
उसका घर खाली है....
उसका जीवन भी... 
वो बारिश की फुहारों के बीच अकुलाते पौधे की तरह है....
वो अपनी आवाज़ अपने आप सुनती है....
वो कहानियां कहती है ...और आप ही झुठलाती है......
वो अपना दुख कहती है....और आप ही हंस जाती है.... 
वो दिन भर का किस्सा बताती है और थक जाती है..... 
वो अकेलेपन में भी जीवन तलाशती है..
वो बिना चश्मे के भी देखने का दावा करती है....
वो हर रोज़ मेरे खाना ना खाने पर गुस्सा करती है.....
पर प्यार और मनुहार भी करती है....

मेरे कमरे में मेरी मां रहती है बिना साथ रहे 
मैं सिर्फ चुपचाप सुनती हूं.....बिन कहे 
मेरी वेदना है मेरी मां.... 
उसकी जिंदगी के गिरह ना खोल पाने की वेदना 
उसके हर रोज़ जिंदगी से जूझते देखने की वेदना...
उसकी जिंदगी के अकेलेपन को हर रोज़ महसूस करने की वेदना
उसे खूबसूरत चेहरे को झुर्रियों मे तब्दील होते देखने की वेदना
उसकी खोयी जिंदगी दोबारा उसे ना दे पाने की वेदना
मैं अकेले कमरे मे उसकी आवाज़ को खोलना चाहती हूँ ....
एक एक गाँठ , एक एक बोल और एक एक रेशा
उसको जीवन देना चाहती हूं.... 
उसके पूरे जीवन के साथ मेरी सिर्फ ग्लानि है...
मैं उसे जीवन देना चाहती हूं...।।

The Unspoken: मेरा वजूद...!(प्रीती गर्ग)


आज फिर कुछ सवालों का जवाब ढूंढ रही हूँ
खुदसे अपनी ही पहचान पूछ रही हूँ
ख्वाइशो को अपनी कटघरे में खड़ा कर
मैं फिर से उनका अरमान पूछ रही हूँ।

क्यूँ लगता हैं ऐसा के
सकून मेरा खो गया हैं कहीं
जो मेरी आहटें तक पहचानता था
वो दोस्त मेरा खो गया हैं कहीं
आज फिर से अपने ज़ख्मो का हिसाब कर रही हूँ
और मुझसे हुई खताओ की वजह पूछ रही हूँ।

मन को अपने समझाया था मैंने
लाख जतन कर बहलाया था मैंने
नहीं छूटेगा इस बार मुझसे कुछ भी
दिल को ये विश्वास दिलाया था मैंने
पर आज फिर उस टूटे हुए विश्वास के सिरे खोज रही हूँ
आज फिर मैं कुछ सवालों का जवाब ढूंढ रही हूँ।

मैं कर रही थी किनारे का इंतज़ार
होकर कागज़ की कश्ती पे सवार
नादान मैं कहाँ जानती थी...
कागज़ की नाव पार न लगा पायेगी
और खुशियों की पतवार मुझसे फिर छूट जाएगी 
आज मैं उस डूबी हुई नाव का पता ढूंढ रही हूँ
और खुदसे अपनी ही पहचान पूछ रही हूँ।

कैसे चक्रव्यूह में फ़स गयी हूँ मैं
ये किन रस्तों पे उलझ गयी हूँ मैं
मंजिल के इतना करीब पहुँच कर भी
ये किस मोड़ पे आकर रुक गयी हूँ मैं
आज मैं राहो से अपनी ही मंजिल का पता पूछ रही हूँ...
और बेगाने कुछ चेहरों में खोये अपनों का चेहरा ढूंढ रही हूँ...

आज मैं काले घने अँधेरे में रोशिनी की सिर्फ एक किरण ढूंढ रही हूँ...

सुनो जी ! स्वप्न लोक में आज
दिखा मुझे सरोवर एक महान 
देख था गगन रहा निज रूप 
उसी में कर दर्पण का भान

नील थी स्वच्छ वारि की राशि
उदित था उस पार मिथुन मराल
पंख उन दोनों के स्वर्णाभ 
कान्ति की किरणे रहे उछाल 

यथा पावस -जलदो से मुक्त 
नीला नभ -मंडल होवे शांत 
अचानक प्रकटित हो कर साथ 
दिखे युग शरद -शर्वरी -कान्त 

हंस था खोज रहा आहार 
तीव्रतम क्षुधा जनित था त्रास
किन्तु सुँदर सर मौक्तिक हीन 
निरर्थक था सारा आयास 

इसी क्रम में कुछ बीता काल
कंठ  गत हुए हंस के प्राण 
अर्ध मृत प्रियतम दशा निहार 
हंसिनी रोई प्रेम निधान

विलग वह विन्दु विन्दु नयनाम्बु
पतित होता था एक समान 
रश्मि-रवि  की मिल कर तत्काल 
बनाती उसको आभावान 

हंस ने खोले मुकुलित नेत्र 
दिखे उसको आंसू छविमान 
खेलने लगा चंचु-पुट खोल 
भ्रान्ति से उसको मुक्ता मान

हुआ नव जीवन का संचार 
हुई सब विह्वलता भी दूर 
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ? 
प्रेम की बूंदों में भरपूर 

13 टिप्पणियाँ:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

हुआ नव जीवन का संचार
हुई सब विह्वलता भी दूर
निहित अलि ! कहो कौन सा तत्व ?
प्रेम की बूंदों में भरपूर
लाजबाब !!
शुभकामनायें !!

vandana gupta ने कहा…

बेहतरीन लिंक संचयन्।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अवलोकन का यह सफर चलता रहे ... पोस्ट दर पोस्ट ... साल दर साल :)

Maheshwari kaneri ने कहा…

ममता वात्सल्य प्रेम जीवन की कुछ तड़फ से भीगी हुई है सभी रचनाएं..बहुत सुन्दर रश्मि जी इस खोज और प्रयोग के लिए आभार..

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

ohho.... aaaj to Ashish bhaiya bhi...
good to see all the mast mast poems:))

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सभी कवितायेँ अच्छी लगी .सभी के भाव गहन है.-आभार
मेरी नई पोस्ट 'संस्कृति का संक्रमण'

सदा ने कहा…

मेरे कमरे में मेरी मां रहती है बिना साथ रहे
मैं सिर्फ चुपचाप सुनती हूं.....बिन कहे
सभी रचनायें एवं चयन अति-उत्तम ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिये

महुवा ने कहा…

बहुत शुक्रिया :)

Anju ने कहा…

मैं कर रही थी किनारे का इंतज़ार
होकर कागज़ की कश्ती पे सवार
//////////////
मैं अकेले कमरे मे उसकी आवाज़ को खोलना चाहती हूँ ....
एक एक गाँठ , एक एक बोल और एक एक रेशा
उसको जीवन देना चाहती हूं....
उफ्फ्फ्फ़ ...
सभी रचनाएं उम्दा ......

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं दी.....
आभार आपके इन प्रयासों के लिए.
सादर
अनु

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन लिंक्स ...बहुत अच्छी प्रस्तुति ....

Jyoti khare ने कहा…


बहुत बढ़िया रचनायें
















विभूति" ने कहा…

बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

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