आज और अभी जैसा एक आम भारतीय को महसूस हो रहा है , उससे तो लगता है कि , चलो अच्छा हुआ जो वर्ष 2012 , के ये 365 दिन अब खत्म होने को हैं । देश के आज जो हालात हैं और उससे भी ज्यादा दुखद ये कि इन हालातों में भी देश के सियासतदां पहले से ज्यादा निर्लज्ज संवेदनहीन और गैरजिम्मेदार हो गए हैं । इस वर्षांत पर मन कह रहा है कि देश ने , बुरे से भी बहुत बुरा देख लिया और अब भी अगर समाज निष्क्रिय और प्रतिक्रियाहीन रहा तो सबसे बुरा भी बहुत जल्द ही देखने को मिल जाएगा , किंतु मस्तिष्क कह और देख रहा है कि जिस तरह से आम लोगों की संवेदना आक्रोश और कंधे आपस में मिल कर समाज व्यवस्था को बदलने के लिए उठ खडे हुए हैं ,यदि उसके साथ ही लोग खुद को भी बदलने का संकल्प लें ले तो यकीनन वर्ष 2013 के आने वाले 365 दिनों में देश और समाज को सकारात्मक परिवर्तन देखने को जरूर मिलेगा ।
अंतर्जाल और हिंदी अंतर्जाल के लिए भी ये अच्छी बात है कि अब ज्यादा से बहुत ज्यादा लोग अपनी प्रतिक्रियाएं देने के लिए , विभिन्न प्लेटफ़ार्मों पर आ रहे हैं और जितना ज्यादा वे लिख पढ रहे हैं उतने ही निडर और कुछ हद तक निरंकुश भी हो रहे हैं , बेशक ये सरकार और सियासत के लिए किसी खतरे से कम नहीं है खासकर जहां चंद चुने चुनाए हुए लोग और कानून की व्याख्या करने वालों की आलोचना कभी भी अभिव्यक्ति को प्रकट करने के दायरे से मानहानि और अपमान के दायरे में चली जाती है । सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कुछ कुप्रवृत्तियां बेशक देखने को मिली हों किंतु सुखद बात ये है कि ब्लॉगिंग का दायरा और ब्लॉगों की संख्या बढ रही है , बेशक पाठकों की संख्या में कमी सी लगती है वो भी सिर्फ़ इसलिए कि पाठकों की टिप्पणी कम दिखाई देती है , हालांकि ऐसा शायद है नहीं । बहरहाल , ब्लॉग बुलेटिन से जुडे हम सब ब्लॉगर जाते हुए इस साल में आपसे ये सूचना साझा करना चाहते हैं कि आने वाले दिनों में आप न सिर्फ़ ब्लॉग बुलेटिन की टीम में बदलाव पाएंगे , बल्कि बुलेटिन के स्वरूप और बुलेटिन की प्रस्तुति में भी अलग अलग प्रयोग देखने को मिलेंगे । रश्मि प्रभा दीदी , सलिल दादा , कुलवंत हैप्पी जी ,भाई शिवम मिश्रा , देव कुमार झा के साथ मैं अजय कुमार झा अगले वर्ष बुलेटिन टीम का जिम्मा संभालेंगे और कोशिश करेंगे कि आप पाठकों तक पोस्टों को इस अंतर्जालीय पन्ने से साझा करते रहें ।
आइए अब कुछ पोस्टों के सूत्र देते हैं आपको :
जला दे रात की परतें , जरा शबनम सुलगने दे
सब कुछ छोड छाड के इस पोस्ट को पढने दे
चीनी खिलौने-जितने सस्ते, उतने बेकार
फ़िर काहे इन सबसे ,भरे हैं , मुएं बाज़ार
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वे कठघरे में हैंसुना है लोकतंत्र के प्रहरी खुद पहरे में हैं
भानु अथैया का तमाचा
कब किसके गाल पे बजाया
कोमा में जा चुकी मन:स्थिति
अफ़सोस कि आज यही है नियति
नया साल मनाने का यह भी एक तरीका सच पूछा जाए तो है ये ही असली सलीका
साल की आखिरी चि्ट्ठी: बच्चों के नाम
क्या है , आप भी जरूर देखें ये पैगाम
औरतों को लेकर मिथक:थोडी हकीकत ज्यादा फ़साना
आज इसी बहस में देखो न कैसे लगा है जमाना
2012 की घुमक्कडी का लेखा जोखा
ब्लॉगर भी खरा और ब्लॉग भी चोखा
मर्ज़ कहीं और , ईलाज कहीं और
यही विडंबना है , कहीं ठिकाना कहीं ठौर
बलात्कार की संस्कृति और राजसत्ता दोनों ही समाज को आज बता रहीं धत्ता
आंख पर पट्टी रहे और अक्ल पर ताला रहे
उस देश में हमेशा ही अन्याय की जलती ज्वाला रहे
कुछ भी तो नहीं बदला है
हां , शायद कोई नहीं संभला है
ये दुनिया मर्दों की नहीं
सच कही बात ये सौ टका सही
प्रधानमंत्री जी , डायलॉग डिलिवरी मत कीजीए
बाद में कहें ठीक है , पहले पर्चा तो पढिए
दामिनी को गूगल की श्रद्धांजलि
उफ़्फ़ जाने कब तक दी जाती रहेगी बेटियों की बलि
आज के लिए इज़ाज़त दें , मिलते हैं कल फ़िर एक नए पन्ने के साथ आपकी खूबसूरत और प्रभावी पोस्टों के सूत्र के साथ