ब्लॉग बुलेटिन आपका ब्लॉग है.... ब्लॉग बुलेटिन टीम का आपसे वादा है कि वो आपके लिए कुछ ना कुछ 'नया' जरुर लाती रहेगी ... इसी वादे को निभाते हुए लीजिये पेश है हमारी नयी श्रृंखला "मेहमान रिपोर्टर" ... इस श्रृंखला के अंतर्गत यह सोचा गया था कि हर हफ्ते एक दिन आप में से ही किसी एक को मौका दिया जायेगा बुलेटिन लगाने का ... पर आप सब के सहयोग को देखते हुए अब से हफ्ते में २ दिन हमारे मेहमान रिपोर्टर अपनी पोस्ट लगाया करेंगे ... तो अपनी अपनी तैयारी कर लीजिये ... हो सकता है ... अगला नंबर आपका ही हो !
जनवरी का ये सप्ताह बड़ा ही खास है..कम से कम मेरे लिए तो है ही.पिछले साल ही 23 जनवरी को मेरी बहन की शादी हुई और दो साल पहले, 21 जनवरी 2010 को मैंने अपने इनैक्टिव पड़े ब्लॉग "My Space My Blog" को फिर से एक्टिव करने का फैसला किया था और इसी दिन मैंने ब्लॉग का नाम बदल कर "मेरी बातें" रख दिया था.मैंने अपना यह ब्लॉग बहुत पहले बनाया था(साल 2007 में), लेकिन लिखता बहुत कम था, और ज्यादातर अंग्रेजी में ही लिखता था.प्रशांत प्रियदर्शी(हिंदी ब्लॉग-जगत के सुपरस्टार ब्लॉगर :P)से मुझे हिंदी में ब्लॉग लिखने की प्रेरणा मिली.वैसे तो अब इसके नखरे और टैन्ट्रमस इतने हैं की मत पूछिए, लेकिन फिर भी उन दिनों इसने मुझे अच्छे से गाईड किया, अच्छे अच्छे ब्लॉगर जो बहुत अच्छा लिखते हैं उनके बारे में भी विस्तार से इसने मुझे बताया.मेरी खुस्किमती रही की बहुत कम समय में बहुत अच्छे अच्छे लोगों से मुलाकात भी हो गयी और बहुतों से एक पारिवारिक रिश्ता भी बन गया.उसी साल जनवरी के इसी हफ्ते में मैंने अपने एक और इनैक्टिव पड़े ब्लॉग "Love Immortal" का नाम बदल 'एहसास प्यार का' रखा था.फिर कुछ दिनों बाद इस ब्लॉग पे भी पोस्ट लिखना मैंने शुरू किया.पिछले एक सालों से इस ब्लॉग में मैं बहुत कम लिखता हूँ, लेकिन जब भी लिखता हूँ तो पूरी शिद्दत के साथ.
2010 में ही मैंने एक और ब्लॉग शुरू किया "कार की बात", जिसका उद्देश्य था कारों के बारे में हिंदी में अच्छी और सही जानकारी देना.देखा जाता है की अक्सर हिंदी में कारों के बारे में बहुत से तर्क-हीन और उलटे पुलते खबरे हमारे सामने आती हैं.ये मेरा एक प्रयास था की कारों के बारे में बहुत सी जानकारियां लोगों के सामने अपनी भाषा में लाऊं.लेकिन कारों के बारे में हिंदी में लिखना, हिंदी में जानकारी देना थोडा कठिन था.,फिर भी मैंने कोशिश की और समय समय पर कुछ न कुछ इस ब्लॉग पे पोस्ट करते ही रहा.सच कहूँ तो शुरू शुरू में मुझे ये उम्मीद बिलकुल नहीं थी की लोग इस ब्लॉग को पढेंगे भी..लेकिन ब्लॉग पर आने जाने वाले मुसाफिरों को देख कर लगता है की ब्लॉग-जगत में रफ़्तार के दीवाने बहुत हैं जो अक्सर मेरे कार वाले ब्लॉग पर सैर करने चले आते हैं.इस ब्लॉग का आईडिया भी प्रशांत का ही दिया हुआ था.उसने मुझे कहा की हिंदी में कारों के विषय में ब्लॉग नहीं हैं, तो तुम एक ऐसा ब्लॉग बनाओ जो सिर्फ करों पर केंद्रित हो.प्रशांत की बात मुझे अच्छी लगी और मैंने आख़िरकार 'कार की बात' की शुरुआत कर ही दी.शायद अब भी ये कारों के बारे में हिंदी का एकमात्र ब्लॉग है(अगर कोई दूसरा भी आपको पता है, तो कृपया उसका लिंक देने का कष्ट करें).
इतने लोग इस ब्लॉग-जगत में मुझे मिले हैं, की सबका नाम लेना मुमकिन ही नहीं है लेकिन कुछ वैसी पोस्ट आपके सामने जरूर लाना चाहूँगा जो मेरे लिए अलग अलग कारणों से खास है और जिनके कुछ टुकड़े मैंने सुरक्षित रख भी लिए हैं अपने पास..
शिखा दी के स्पंदन से - बर्फ के फाहे और वेनिस की एक शाम
रश्मि दी के 'अपनी उनकी सबकी बातें' से - कुछ 'वैलेंटाइन डे'...ऐसे भी, गुजरते हैं और भाई-बहन के निश्छल स्नेह के कुछ अनमोल पल
प्रशांत की 'मेरी छोटी सी दुनिया से - ये बूढ़ी पहाड़ियां अक्सर उदास सी क्यों लगती हैं? और अब भी उसे जब याद करता हूं, तो बहुत शिद्दत से याद करता हूं
पूजा जी की 'लहरें' से - सोचिये तो लगता है भीड़ में हैं सब तनहा और यूँ जिंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर
पंकज के 'होकर भी न होना' से - स्टेचू और चंद मुलाकातों की है दिल कि कहानी!!
स्वप्निल भाई के 'कोना एक रुबाई का' से बादल ओढ़े धूप खड़ी है और तुम आओ तो
चचा जी के 'चला बिहारी ब्लॉगर बनने' से मन का टीस और हमरा ब्लॉग परिवार
पुराने पोस्टों से अब थोडा रुख करते हुए चलते हैं कुछ और खूबसूरत पोस्टों के तरफ...
[१] हथकढ - घास की बीन
-किशोर चौधरी
क्यों एक दिन हो जाता है इश्क़ मुल्तवी, सौदा ख़ारिज,
क्यों ताजा खूं की बू आती है, क्यों परीशां परीशां हम हैं?
[२] हथकढ - हसरतों के बूमरेंग
-किशोर चौधरी
ये दो स्वप्न ताज़ा रील के टुकड़े हैं. इस यात्रा में कथानक और दृश्य अक्सर जम्प करते हुए नए स्थानों पर पहुच जाते हैं. इन्हें अपने इस रोज़नामचे में इसलिए दर्ज़ कर रहा हूँ कि कुछ भी बिना वजह नहीं होता है. मौसम में कल रात का सुरूर बाकी है. ज़िन्दगी, जंगल में भटक रहा एक शिकारी है, जिसकी बन्दूक में समय नाम का बारूद भरा है. मेरी मैगज़ीन में हसरतों के बूमरेंग रखे हैं. बेआवाज़ लौट लौट कर आते हैं, मेरे पास...
[३] शाद्वल - ये खूबसूरत-सी बेख्याली
-स्मृति सिन्हा
तहें लगाऊं इस दुपट्टे कि कुछ इस तरह कि ये छींटें ऊपर से किसी को नज़र न आयें, अन्दर की तहों में चले जायें. पर ज्यादा अन्दर नहीं. बस इतना भर कि जब ऊपर कि तहों को एक कोने से पकड़ के उठाऊं तो अन्दर वाली तह में वो छींटें दीख पाएं. हाँ वही! कोरे दुपट्टे पर आसमानी से! उनपर उँगलियाँ फेरती हुई मन ही मन सोचा करूंगी तुम्हे. कि तुम तो अब भी डूबे होगे उन्हीं रंगों में .बैठे होगे बहुत-से रंग भरे हौजों के बीच में, किसी पागल लड़की का कोरा दुपट्टा लिए हाथों में...पेशानी पे बल और दो-एक उलझी लटें लिए...खोये से...दुनिया से बेख्याल इस ख्याल में डूबे कि किस दुपट्टे को कौन-सा रंग देना है- गुलाबी,आसमानी,धानी,चम्पई,सुरमई.
[४] अगड़म बगड़म स्वाहा - अथ श्री "कार" महात्म्य!!!
-देवांशु निगम
मुझे लगता है कि कारें भी शो-रूम में जाने से पहले बाटलीवाला, पेगवाला टाइप किसी ज्योतिषी को अपने टायर दिखा के भविष्य पूंछती होंगी कि बाबा बताओ मैं पर्सनल प्रोपर्टी बनूंगी या किराये की ? बाबा उन्हें यज्ञ , हवन, माला, अंगूठी टाइप चीजों का आइडिया देते होंगे | कहते होंगे नाम में १०-१२ ई , १५-२० ए घुसेड़ लो , मनचाहा मालिक या मालकिन मिलेगी | हफ्ते में किसी एक दिन अपने अपने इष्ट देव के मंदिर भी जाते होंगी ये सब कार|
[५]सोचालय - मेरी पीठ पर एक तिल है, अंदाज़ा लगाओ तो फिसल जाता है
-सागर
मैं थकने लगा हूं। पैर बस घिसट रहे हैं। नट वोल्टों का भी अब तेज़ी के घूमते देखना अब बंद हो गया है। वहां कुछ स्टील जैसा है बस वो चमक रही है। बेतहाशा हांफते रहा हूं, दिल की धड़कन असामान्य हो चली है, शायद नापना संभव नहीं है, सामान्यतया मैं मुंह बंद करके दौड़ता हूं यह इस वक्त फेफड़े को किसी समंदर के उपर मंडराती जितनी हवा चाहिए। 'हांफना' नामक यह क्रिया मेरे नाक तो नाक, मुंह, आंख और कान तक से निकल रहा है। पिंजरे के नीचे और कमर के बची की खाली जगह पर जोरों का दर्द हो रहा है। मेरे दोनों हाथ वहां चले गए हैं। मालूम होता है किडनी अपने जगह पर नहीं रही। कहीं गिर गई है। मैं वो जगह ज़ोर से पकड़ दबाए हुए हूं।
[७]हथकढ-ऑक्सफोर्ड टो वाले शू
-किशोर चौधरी
और ऐसे ही किसी दिन न भूल पाने की बेबसी में
एक से दूसरे कमरे में टहलता रहता हूँ
याद की खिड़कियों पर सुस्ताती गिलहरियों को देखता
बेसबब वार्डरोब को खोले चुप खड़ा सोचता हूँ,
दीवार... दराजें... स्याही... कुहासा...शहर और वीराना
एक विलंबित लय में लौट आता हूँ बिस्तर पर...
फिर
समय की धूल से भरे तकिये पर सर रखे सोचता हूँ
कि रिसाले और किताबें नहीं दे पाते हैं सीख, तुम्हें भूल पाने की
[८]लहरें-दिल्ली- याद का पहला पन्ना
-पूजा उपाध्याय
मुझे कोई खबर नहीं कि मैं रोई क्यूँ...ख़ुशी से दिल भर आया था...सारी यादें ऐसी थीं कि दिल में उजली रौशनी उतर जाए...एक एक याद इतनी बार रिप्ले हो रही थी कि लगता था कि याद की कैसेट घिस जायेगी...लोग धुंधले पड़ जायेंगे, स्पर्श बिसर जाएगा...पर फिलहाल तो सब इतना ताज़ा धुला था कि दिल पर हाथ रखती थी तो लगता था हाथ बढ़ा कर छू सकती हूँ याद को.
और चलते चलते आखिर में पूजा जी की ही खूबसूरत आवाज़ में सुनिए ये पॉडकास्ट
[९]पूजा नॉनस्टॉप - कच्ची आवाजें
-पूजा उपाध्याय
अब आज्ञा दीजिये ... फिर मिलेंगे ...
सादर आपका
-अभि
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एक तो दिल्ली और उसपे दिल्ली की सर्दी...कुछ भी काम करने का दिल नहीं कर रहा और ऐसे में शिवम भईया ने कहा कि ब्लॉग-बुलेटिन पर आगाज करो..वैसे तो वो कम खुराफाती नहीं हैं लेकिन साफ़ दिल के मालिक भी हैं, तो उनकी बात मुझे रखनी पड़ी.सोचा तो था कि जिस दिन उन्होंने कहा उसी दिन यहाँ पोस्ट लगा दूँगा लेकिन कुछ काम में ऐसा फंसा कि ये पोस्ट टालता ही गया.आज फुर्सत मिली तो सोचा आराम कर लूँ, कल बुलेटिन लिख दूँगा...लेकिन फिर पता नहीं कहाँ से उड़ते उड़ते एक 'फेमस' मुहावरा मेरे दिमाग में बैठ गया.."कल करे सो आज कर..आज करे सो अब". वैसे तो मैं इस मुहावरे में कुछ खास यकीन रखता नहीं(आलसी हूँ), लेकिन फिर भी सोचा कि एक तो वैसे ही देर हो गयी और कम से कम ब्लॉग-बुलेटिन के लिए तो इस मुहावरे का मान रख ही लेना चाहिए, तो बस फिर क्या था..किबोअर्ड उठाया और ब्लॉग-बुलेटिन की अपनी पहली पोस्ट लिखना शुरू कर दिया...जनवरी का ये सप्ताह बड़ा ही खास है..कम से कम मेरे लिए तो है ही.पिछले साल ही 23 जनवरी को मेरी बहन की शादी हुई और दो साल पहले, 21 जनवरी 2010 को मैंने अपने इनैक्टिव पड़े ब्लॉग "My Space My Blog" को फिर से एक्टिव करने का फैसला किया था और इसी दिन मैंने ब्लॉग का नाम बदल कर "मेरी बातें" रख दिया था.मैंने अपना यह ब्लॉग बहुत पहले बनाया था(साल 2007 में), लेकिन लिखता बहुत कम था, और ज्यादातर अंग्रेजी में ही लिखता था.प्रशांत प्रियदर्शी(हिंदी ब्लॉग-जगत के सुपरस्टार ब्लॉगर :P)से मुझे हिंदी में ब्लॉग लिखने की प्रेरणा मिली.वैसे तो अब इसके नखरे और टैन्ट्रमस इतने हैं की मत पूछिए, लेकिन फिर भी उन दिनों इसने मुझे अच्छे से गाईड किया, अच्छे अच्छे ब्लॉगर जो बहुत अच्छा लिखते हैं उनके बारे में भी विस्तार से इसने मुझे बताया.मेरी खुस्किमती रही की बहुत कम समय में बहुत अच्छे अच्छे लोगों से मुलाकात भी हो गयी और बहुतों से एक पारिवारिक रिश्ता भी बन गया.उसी साल जनवरी के इसी हफ्ते में मैंने अपने एक और इनैक्टिव पड़े ब्लॉग "Love Immortal" का नाम बदल 'एहसास प्यार का' रखा था.फिर कुछ दिनों बाद इस ब्लॉग पे भी पोस्ट लिखना मैंने शुरू किया.पिछले एक सालों से इस ब्लॉग में मैं बहुत कम लिखता हूँ, लेकिन जब भी लिखता हूँ तो पूरी शिद्दत के साथ.
2010 में ही मैंने एक और ब्लॉग शुरू किया "कार की बात", जिसका उद्देश्य था कारों के बारे में हिंदी में अच्छी और सही जानकारी देना.देखा जाता है की अक्सर हिंदी में कारों के बारे में बहुत से तर्क-हीन और उलटे पुलते खबरे हमारे सामने आती हैं.ये मेरा एक प्रयास था की कारों के बारे में बहुत सी जानकारियां लोगों के सामने अपनी भाषा में लाऊं.लेकिन कारों के बारे में हिंदी में लिखना, हिंदी में जानकारी देना थोडा कठिन था.,फिर भी मैंने कोशिश की और समय समय पर कुछ न कुछ इस ब्लॉग पे पोस्ट करते ही रहा.सच कहूँ तो शुरू शुरू में मुझे ये उम्मीद बिलकुल नहीं थी की लोग इस ब्लॉग को पढेंगे भी..लेकिन ब्लॉग पर आने जाने वाले मुसाफिरों को देख कर लगता है की ब्लॉग-जगत में रफ़्तार के दीवाने बहुत हैं जो अक्सर मेरे कार वाले ब्लॉग पर सैर करने चले आते हैं.इस ब्लॉग का आईडिया भी प्रशांत का ही दिया हुआ था.उसने मुझे कहा की हिंदी में कारों के विषय में ब्लॉग नहीं हैं, तो तुम एक ऐसा ब्लॉग बनाओ जो सिर्फ करों पर केंद्रित हो.प्रशांत की बात मुझे अच्छी लगी और मैंने आख़िरकार 'कार की बात' की शुरुआत कर ही दी.शायद अब भी ये कारों के बारे में हिंदी का एकमात्र ब्लॉग है(अगर कोई दूसरा भी आपको पता है, तो कृपया उसका लिंक देने का कष्ट करें).
इतने लोग इस ब्लॉग-जगत में मुझे मिले हैं, की सबका नाम लेना मुमकिन ही नहीं है लेकिन कुछ वैसी पोस्ट आपके सामने जरूर लाना चाहूँगा जो मेरे लिए अलग अलग कारणों से खास है और जिनके कुछ टुकड़े मैंने सुरक्षित रख भी लिए हैं अपने पास..
शिखा दी के स्पंदन से - बर्फ के फाहे और वेनिस की एक शाम
रश्मि दी के 'अपनी उनकी सबकी बातें' से - कुछ 'वैलेंटाइन डे'...ऐसे भी, गुजरते हैं और भाई-बहन के निश्छल स्नेह के कुछ अनमोल पल
प्रशांत की 'मेरी छोटी सी दुनिया से - ये बूढ़ी पहाड़ियां अक्सर उदास सी क्यों लगती हैं? और अब भी उसे जब याद करता हूं, तो बहुत शिद्दत से याद करता हूं
पूजा जी की 'लहरें' से - सोचिये तो लगता है भीड़ में हैं सब तनहा और यूँ जिंदगी गुज़ार रहा हूँ तेरे बगैर
पंकज के 'होकर भी न होना' से - स्टेचू और चंद मुलाकातों की है दिल कि कहानी!!
स्वप्निल भाई के 'कोना एक रुबाई का' से बादल ओढ़े धूप खड़ी है और तुम आओ तो
चचा जी के 'चला बिहारी ब्लॉगर बनने' से मन का टीस और हमरा ब्लॉग परिवार
पुराने पोस्टों से अब थोडा रुख करते हुए चलते हैं कुछ और खूबसूरत पोस्टों के तरफ...
[१] हथकढ - घास की बीन
-किशोर चौधरी
क्यों एक दिन हो जाता है इश्क़ मुल्तवी, सौदा ख़ारिज,
क्यों ताजा खूं की बू आती है, क्यों परीशां परीशां हम हैं?
[२] हथकढ - हसरतों के बूमरेंग
-किशोर चौधरी
ये दो स्वप्न ताज़ा रील के टुकड़े हैं. इस यात्रा में कथानक और दृश्य अक्सर जम्प करते हुए नए स्थानों पर पहुच जाते हैं. इन्हें अपने इस रोज़नामचे में इसलिए दर्ज़ कर रहा हूँ कि कुछ भी बिना वजह नहीं होता है. मौसम में कल रात का सुरूर बाकी है. ज़िन्दगी, जंगल में भटक रहा एक शिकारी है, जिसकी बन्दूक में समय नाम का बारूद भरा है. मेरी मैगज़ीन में हसरतों के बूमरेंग रखे हैं. बेआवाज़ लौट लौट कर आते हैं, मेरे पास...
[३] शाद्वल - ये खूबसूरत-सी बेख्याली
-स्मृति सिन्हा
तहें लगाऊं इस दुपट्टे कि कुछ इस तरह कि ये छींटें ऊपर से किसी को नज़र न आयें, अन्दर की तहों में चले जायें. पर ज्यादा अन्दर नहीं. बस इतना भर कि जब ऊपर कि तहों को एक कोने से पकड़ के उठाऊं तो अन्दर वाली तह में वो छींटें दीख पाएं. हाँ वही! कोरे दुपट्टे पर आसमानी से! उनपर उँगलियाँ फेरती हुई मन ही मन सोचा करूंगी तुम्हे. कि तुम तो अब भी डूबे होगे उन्हीं रंगों में .बैठे होगे बहुत-से रंग भरे हौजों के बीच में, किसी पागल लड़की का कोरा दुपट्टा लिए हाथों में...पेशानी पे बल और दो-एक उलझी लटें लिए...खोये से...दुनिया से बेख्याल इस ख्याल में डूबे कि किस दुपट्टे को कौन-सा रंग देना है- गुलाबी,आसमानी,धानी,चम्पई,सुरमई.
[४] अगड़म बगड़म स्वाहा - अथ श्री "कार" महात्म्य!!!
-देवांशु निगम
मुझे लगता है कि कारें भी शो-रूम में जाने से पहले बाटलीवाला, पेगवाला टाइप किसी ज्योतिषी को अपने टायर दिखा के भविष्य पूंछती होंगी कि बाबा बताओ मैं पर्सनल प्रोपर्टी बनूंगी या किराये की ? बाबा उन्हें यज्ञ , हवन, माला, अंगूठी टाइप चीजों का आइडिया देते होंगे | कहते होंगे नाम में १०-१२ ई , १५-२० ए घुसेड़ लो , मनचाहा मालिक या मालकिन मिलेगी | हफ्ते में किसी एक दिन अपने अपने इष्ट देव के मंदिर भी जाते होंगी ये सब कार|
[५]सोचालय - मेरी पीठ पर एक तिल है, अंदाज़ा लगाओ तो फिसल जाता है
-सागर
मैं थकने लगा हूं। पैर बस घिसट रहे हैं। नट वोल्टों का भी अब तेज़ी के घूमते देखना अब बंद हो गया है। वहां कुछ स्टील जैसा है बस वो चमक रही है। बेतहाशा हांफते रहा हूं, दिल की धड़कन असामान्य हो चली है, शायद नापना संभव नहीं है, सामान्यतया मैं मुंह बंद करके दौड़ता हूं यह इस वक्त फेफड़े को किसी समंदर के उपर मंडराती जितनी हवा चाहिए। 'हांफना' नामक यह क्रिया मेरे नाक तो नाक, मुंह, आंख और कान तक से निकल रहा है। पिंजरे के नीचे और कमर के बची की खाली जगह पर जोरों का दर्द हो रहा है। मेरे दोनों हाथ वहां चले गए हैं। मालूम होता है किडनी अपने जगह पर नहीं रही। कहीं गिर गई है। मैं वो जगह ज़ोर से पकड़ दबाए हुए हूं।
[७]हथकढ-ऑक्सफोर्ड टो वाले शू
-किशोर चौधरी
और ऐसे ही किसी दिन न भूल पाने की बेबसी में
एक से दूसरे कमरे में टहलता रहता हूँ
याद की खिड़कियों पर सुस्ताती गिलहरियों को देखता
बेसबब वार्डरोब को खोले चुप खड़ा सोचता हूँ,
दीवार... दराजें... स्याही... कुहासा...शहर और वीराना
एक विलंबित लय में लौट आता हूँ बिस्तर पर...
फिर
समय की धूल से भरे तकिये पर सर रखे सोचता हूँ
कि रिसाले और किताबें नहीं दे पाते हैं सीख, तुम्हें भूल पाने की
[८]लहरें-दिल्ली- याद का पहला पन्ना
-पूजा उपाध्याय
मुझे कोई खबर नहीं कि मैं रोई क्यूँ...ख़ुशी से दिल भर आया था...सारी यादें ऐसी थीं कि दिल में उजली रौशनी उतर जाए...एक एक याद इतनी बार रिप्ले हो रही थी कि लगता था कि याद की कैसेट घिस जायेगी...लोग धुंधले पड़ जायेंगे, स्पर्श बिसर जाएगा...पर फिलहाल तो सब इतना ताज़ा धुला था कि दिल पर हाथ रखती थी तो लगता था हाथ बढ़ा कर छू सकती हूँ याद को.
और चलते चलते आखिर में पूजा जी की ही खूबसूरत आवाज़ में सुनिए ये पॉडकास्ट
[९]पूजा नॉनस्टॉप - कच्ची आवाजें
-पूजा उपाध्याय
अब आज्ञा दीजिये ... फिर मिलेंगे ...
सादर आपका
-अभि