नमस्कार साथियो,
कहते हैं कि जो आया
है वो जायेगा ही मगर कोई आने वाला जाने के बजाय विलुप्त हो जाये तो? क्या ऐसा भी
होता है कि आने वाला विलुप्त हो जाये? यदि ऐसा होता भी है तो वह विलुप्त क्यों
हुआ? यदि खुद अपनी मर्जी से विलुप्त नहीं हुआ तो फिर किसने विलुप्त करवाया? उसके
खुद विलुप्त होने में, किसी के द्वारा विलुप्त करवाए जाने में लाभ किसका? विश्व की
तमाम रहस्यगाथाओं से ज्यादा बड़ी और रहस्यमयी गाथा नेता जी के विलुप्त होने की गाथा
है. यह रहस्यमयी इसलिए भी है कि नेता जी का व्यक्तित्व जितना विराट और चुम्बकीय
रहा है, उसी अनुपात में या कहें उससे भी अधिक जनमानस के बीच उनकी गाथा तैरती रही
है, आज के दिन यानि 18 अगस्त 1945 को उनके गायब हो जाने की. कोई कुछ भी कहे मगर तमाम सारे घटनाक्रम, अनेक
तथ्य इशारा इस तरफ करते हैं कि आज के दिन हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में नेता जी
की मृत्यु नहीं हुई थी.
उनकी मृत्यु को जिस
विमान दुर्घटना में हुआ प्रचारित किया जाता है, कहा जाता है कि उस दिन कोई विमान
दुर्घटना ताइवान में हुई ही नहीं. इसका ऐतिहासिक प्रमाण यह है कि 03 सितंबर 1945 को अमेरिकी सेना ने जापानी सेना को हराकर ताइवान पर क़ब्ज़ा कर
लिया था. इसके बाद उसकी ख़ुफिया एजेंसी सीआईए ने अपनी रिपोर्ट
में साफ़-साफ़ कहा था कि ताइवान में पिछले छह महीने से कोई विमान हादसा नहीं हुआ था.
यहां यह गौर करने वाली बात है कि अपनी कथित मौत से दो दिन पहले 16 अगस्त 1945 को नेताजी
वियतनाम के साइगॉन शहर से भागकर मंचूरिया गए थो जो उस समय रूस के क़ब्ज़े में था. नेता
जी की मौत के रहस्य पर क़िताबें लिखने वाले और मिशन नेताजी के संस्थापक पत्रकार-लेखक
अनुज धर ने अपनी लिखी क़िताबों में ताइवान सरकार के हवाले से दावा किया है कि 15 अगस्त
से 05 सितंबर 1945 के दौरान कोई विमान हादसा नहीं हुआ था.
ऐसी चर्चाएँ बराबर
बनी रहीं कि नेता जी रूस चले गए जहाँ से बाद में उनको भारत आने का सुरक्षित रास्ता
प्रदान किया गया. भारत में उनके प्रवास की सर्वाधिक चर्चा फ़ैजाबाद के गुमनामी
बाबा के रूप में रही हैं. यद्यपि बहुत से लोगों का मानना है कि नेता जी का
व्यक्तित्व जिस तरह का था वैसे में संभव नहीं कि वे गुमनामी में अपना जीवन व्यतीत
कर देते. इसके बाद भी सम्बंधित व्यक्ति को लेकर लोगों में विश्वास बना हुआ है कि
गुमनामी बाबा और कोई नहीं बल्कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ही थे. गुमनामी बाबा के निधन
के बाद उनके नेताजी होने की बातें फैलने लगीं तो नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता
से फैजाबाद आईं. वे गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान देखकर यह कहते हुए फफक पड़ी
थीं कि यह सब कुछ उनके चाचा का ही है. इसके बाद स्थानीय लोगों ने आन्दोलन करना
शुरू कर दिया. लम्बे समय तक चले सामाजिक और न्यायिक प्रयासों के बाद मामले की सुनवाई
करते हुए 31 जनवरी 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश
सरकार को निर्देश दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को संग्रहालय में रखा जाए ताकि
आम लोग उन्हें देख सकें.
गुमनामी बाबा के सामान से मिली नेता जी की तस्वीर |
लखनऊ बेंच ने अपने फैसले
में स्पष्ट तौर पर कहा था-
ऐसे महान स्वतंत्रता
संग्राम सेनानी की स्मृति या उनकी धरोहर आने वाली नस्लों के लिए प्रेरणादायक है. अगर
फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा, जिनके बारे में लोगों का
विश्वास था कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस हैं और उनके पास आने-जाने वाले लोगों व उनके
कमरे में मिली तमाम वस्तुओं से इस बात का तनिक भी आभास होता है कि लोग गुमनामी बाबा
को नेताजी के रूप में मानते थे तो ऐसे व्यक्ति की धरोहर को राष्ट्र की धरोहर के रूप
में सुरक्षित रखा जाना चाहिए.
नेता जी की मृत्यु
की जांच से सम्बंधित बने आयोगों की अपनी-अपनी रिपोर्ट्स रही हैं. जिस तरह का
रहस्य, जिस तरह की गोपनीयता नेता जी की मृत्यु को लेकर बनाई जाती रही है, वैसी ही
गुमनामी बाबा के निधन और उनके अंतिम संस्कार को लेकर बनाई गई. यह सब इस रहस्य को
और गहरा करता है. अंतिम सत्य क्या है यह तो उसी सत्य को भोगने वाला ही जानता है
मगर एक सत्य यह है कि जनमानस को विश्वास है कि नेता जी की मृत्यु आज के दिन बताई
जाने वाली तथाकथित विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. उनकी मौत का रहस्य अभी भी
रहस्य है. जब तक यह रहस्य उजागर नहीं होता तब तक उनकी मौत को स्वीकारना नेता जी के
अस्तित्व को, उनकी विराटता को नकारना ही होगा. आज के दिन वे विलुप्त हुए हैं, मृत
नहीं और यह भी अपने आपमें परम सत्य है कि विलुप्त होने वाले मरते नहीं वरन अमरत्व
को प्राप्त कर जाते हैं. महाकाल बन जाते हैं.
जय हिन्द
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5 टिप्पणियाँ:
सुंदर बुलेटिन बेहतरीन रचनाएं मेरी रचना को बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय
नेता जी अमर हैं भारत की आत्मा की तरह ...
"मृतक ने तुमसे कुछ नहीं लिया | वह अपने लिए कुछ नहीं चाहता था |
उसने अपने को देश को समर्पित कर दिया और स्वयं विलुप्तता मे चला गया |"
- 'महाकाल'
नेताजी के जीवन की इस महत्वपूर्ण भाग पर अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी पुनः पढकर अच्छा लगा। शुभकामनाएं स्वीकार करें ।
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