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शनिवार, 24 अगस्त 2019

कृष्णाजन्माष्टमी के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

वो मोर मुकुट, वो है नंद लाला;
वो मुरली मनोहर, बृज का ग्वाला;
वो माखन चोर, वो बंसी वाला;
खुशियां मनायें उसके जन्म की;
जो है इस जग का रखवाला।

ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से आप सभी को सपरिवार #कृष्णाजन्माष्टमी के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं।


सादर आपका 

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विश्वेश्वर

तुम ही हो पतवार कान्हा !

लिप्सा के शूल मुझे नहीं चुभते

नँद नन्दन कित गये

चुप मत रह एक लप्पड़ मार के तो देख

व्यस्तताओं के जाल में...संजय भास्कर

कृष्ण का प्रेम

जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

लघुकथा : किन्नर मन

आरक्षण और संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार

हरिशंकर परसाई का व्यंग्य: एक मध्यमवर्गीय कुत्ता

अमर शहीद राजगुरु जी की १११ वीं जयंती

शब्दों की माला

अरूण जेटली का निधन : राजनीति का ‘अरुण’ अस्त-

दिल्ली से जयपुर ,उदयपुर ,माउंटआबू ....वाया रोड (तृतीय भाग )

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

जन्माष्टमी - बाजे बधाई मगन हर कोई


 हमारे देश में कई स्थानों पर आज जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. कई अन्य स्थानों पर कल मनेगी कृष्ण के जन्म की अष्टमी...
कृष्ण हमारी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण आधार स्तंभ हैं. हमारा दिन, हमारी शाम, हमारे पर्व,  हमारा खान पान, हमारी परंपरायें ..कौन सी शाखा है इस देश की जहाँ श्रीजी उपस्थित नहीं हैं... किसी के पुत्र, किसी के मित्र, किसी के पति तो किसी के प्रेमी. एक साथ  विभिन्न रूपों में जनमानस को आनंदित किये हुए आम -से  गोपाल तो ज्ञान, कर्म और भक्ति के सिद्धांत को प्रतिपादित करते बुद्धिजीवियों केे योगेश्वर श्रीकृष्ण के लिए ही संभव है.
कृष्ण का आधार पाकर सब जन हर्षित हैं परंतु इन सब दायित्वों को पूर्ण करने में स्वयं अपने से छूट गये कृष्ण की पीड़ा को किसी किसी ने ही समझा. रश्मिप्रभा जी ने इस पीड़ा को आत्मसात किया और शब्दों में व्यक्त भी किया.... क्या खोया क्या पाया में

https://lifeteacheseverything.blogspot.com/2019/08/blog-post_23.html

कृष्ण, माधव, मुरारी टेर लगाई है अनीता जी ने...
http://amrita-anita.blogspot.com/2019/08/blog-post_80.html

हम भारतीयों को अपनी बात विस्तार में कहने की आदत है जबकि कृष्ण ने कर्म करने पर बल दिया है . मगर अपनाया जापानियों नें द्वितीय विश्वयुद्ध की भारी बरबादी के बाद लगातार कर्म करते हुए आज यह देश आधुनिकतम तकनीक की मिसाल है. साहित्य के क्षेत्र में भी बातें कम कार्य अधिक अपनाते हुए 'हाइकू और 'ताँका'  को इजाद किया... इस विधा से सबंधित जानकारी मिलेगी इस ब्लॉग में.

http://pahleebar.blogspot.com/2019/08/blog-post_23.html

कृष्म की बात हो और यमुना का जिक्र न हो, यह संभव ही नहीं.  उफान पर आती यमुना बल कृष्ण के पैर को छूकर शाँंत हो गई. आजकल फिर से यमुना उफान पर है. पर इस बार कारण भिन्न है. ब्लॉग पर बहुत विस्तार से समझाया है. देखे यहाँ...

http://gustakh.blogspot.com/2019/08/blog-post_22.html

समंदर का प्रेम अपने नमकीन स्वाद में किस तरह निखर आता है. रोचक अंदाज में बता रहीं  प्रतिभा कटियार यहाँ...

http://pratibhakatiyar.blogspot.com/2019/08/blog-post_25.html

माण्डूक्योपनिषद अथर्ववेद का एक उपनिषद है। इस पर विस्तृत जानकारी के लिए खंगालिये स्मार्ट इंडियन अनुराग जी का ब्लॉग....

http://pittpat.blogspot.com/2019/08/Mandookya-Upanishad-Summary.html


गुरुवार, 22 अगस्त 2019

बैंक वालों का फोन कॉल - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

बैंक से फोन आया और मुझसे कहने लगे कि... 

"आप 6000/- रूपये प्रति महीना जमा करवाओगे तो रिटायरमेंट पे 1 करोड़ रुपये मिलेंगे!"

मैं बोला कि ... 

"प्लान उल्टा कर दो आप मुझे अभी 1 करोड़ रुपये दे दो और हर महीने 6000/- रुपये लेते रहना मेरे मरने तक!"

कमबख्तों  ने फोन ही काट दिया!

ऐसा मैंने क्या गलत कह दिया !?

सादर आपका 

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कुछ बात बेबात की

कविता : बूँदे भी कुछ कहना चाहती है

भागते रहो

हथकड़ी

माँ

कैंसर-दर-कैंसर(लघुकथा)

बाटला हाउस -------mangopeople

बैलीनो कार ड्राइव

बड़ी भूख है जिंदगी में !!!

उसकी याद

ऐ दोस्त...

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

बुधवार, 21 अगस्त 2019

24वीं पुण्यतिथि - सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को मेरा नमस्कार।
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (जन्म- 19 अक्तूबर, 1910 - मृत्यु- 21 अगस्त, 1995) खगोल भौतिक शास्त्री थे और सन् 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता भी थे। उनकी शिक्षा चेन्नई के प्रेसीडेंसी कॉलेज में हुई। वह नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी. वी. रमन के भतीजे थे। बाद में डा. चंद्रशेखर अमेरिका चले गए। जहाँ उन्होंने खगोल भौतिक शास्त्र तथा सौरमंडल से संबंधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं।

20वीं शताब्दी के महानतम वैज्ञानिकों में से एक वैज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर अपने जीवन काल में ही एक किंवदंती बन गए थे। 'कामेश्वर सी. वाली' चन्द्रशेखर के जीवन के बारे में लिखते हैं कि 'विज्ञान की खोज में असाधारण समर्पण और विज्ञान के नियमों को अमली रूप देने और जीवन में निकटतम संभावित सीमा तक उसके मानों को आत्मसात करने में वह सब से अलग दिखाई देते हैं।' उसके बहुसर्जक योगदानों का विस्तार खगोल - भौतिक, भौतिक - विज्ञान और व्याहारिक गणित तक था। उनका जीवन उन्नति का सर्वोत्तम उदाहरण है जिसे कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है बशर्ते कि उसमें संकल्प, शक्ति, योग्यता और धैर्य हो। उसकी यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें सब प्रकार की कठिनाईयों से जूझना पड़ा। वह एक ऐसा व्यक्तित्व था जिसमें भारत, जहां उनका जन्म हुआ, इंग्लैंड और यू.एस.ए. की तीन अत्यधिक भिन्न संस्कृतियों की जटिलताओं द्वारा आकार मिला।

वह मानवों की साझी परम्परा में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा था, 'तथ्य यह है कि मानव मन एक ही तरीके से काम करता है। इससे हम पुन: आश्वस्त होते है कि जिन चीज़ों से हमें आनन्द मिलता है, वे विश्व के हर भाग में लोगों को आनन्द प्रदान करती है। हम सबका साझा हित है और इस तथ्य से इस बात को बल मिलता है कि हमारी एक साझी परम्परा है।' वह एक महान् वैज्ञानिक, एक कुशल अध्यापक और दुर्जेय विद्वान थे।


आज हम सब महान वेज्ञानिक सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर जी की 24वीं पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुये उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।। 


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~











आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।  

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

हर एक पल को अमर बनाते हैं चित्र - विश्व फोटोग्राफी दिवस और ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
इन्सान ने अपनी भाषा का आविष्कार, शब्दों का निर्माण बाद में किया था सबसे पहले उसने चित्रों का प्रयोग करना शुरू किया था. उनके बीच बातचीत का माध्यम चित्र ही हुआ करते थे. वे चित्र या तो दीवारों पर जिंदा रहे या फिर किसी धातु के टुकड़े पर. ये चित्र मानव मन की कल्पना भी थे, उसके द्वारा देखे गए दृश्य भी थे और विचारों की अभिव्यक्ति भी मगर अनेक बार कई कारणों से ये दीर्घकालिक न रह पाते थे. कालांतर में तकनीक का विकास होता रहा और चित्र भी सदा-सदा को जीवित रहने लगे. कहा भी जाता है कि जिस पल को तस्वीरों के माध्यम से कैद कर लो वो अमर हो जाता है. इंसानों के द्वारा गुजारे गए पल इन्हीं चित्रों के द्वारा अजर-अमर हो जाते हैं. जब भी उसका मन करता है वह इन्हीं चित्रों के सहारे अपने अतीत की यात्रा कर लेता है. वर्तमान दौर की सत्यता यही है कि फोटोग्राफी की तकनीक एक वरदान के रूप में सामने आई है. इंसान के पास जब कैमरे नहीं थे तब भी वह तस्वीरें बनाता था. इनके जरिये उसने अपनी भावी पीढ़ी के लिए ज्ञान का, जानकारी का भंडार भी छोड़ा. बाद में जब कैमरे का आविष्कार हुआ तो फोटोग्राफी इंसान के लिए अपनी रचनात्मकता को प्रदर्शित करने का जरिया बना. 




विश्व फोटोग्राफी दिवस को मनाने के पीछे भी एक कहानी है. दरअसल फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेक्स और मेंडे डाग्युरे ने सबसे पहले सन 1839 में फोटो तत्व की खोज की थी. ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने निगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस का आविष्कार किया और सन 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर की खोज करके खींची गई फोटो को स्थायी रूप में रखने में मदद की.  फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो की फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए लिखी गई एक रिपोर्ट को तत्कालीन फ्रांस सरकार ने खरीदकर 19 अगस्त 1939 को आम लोगों के लिए फ्री घोषित कर दिया था. इसी उपलब्धि की याद में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.



यह दिवस वैसे तो कल मना लिया गया किन्तु आज आपके लिए खुद की क्लिक की गई कुछ फोटो लाये हैं. उनके साथ आज की बुलेटिन का आनंद लीजिये.

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सोमवार, 19 अगस्त 2019

इनाम में घोड़ा लेंगे या सेव - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक राजा था,,,उसने एक सर्वे करने का सोचा कि
मेरे राज्य के लोगों की घर गृहस्थी पति से चलती है या पत्नि से...??
🤷🏻‍♂🤷🏻‍♂

उसने एक ईनाम रखा कि "  जिसके घर में पति का हुक्म चलता हो, उसे मनपसंद घोडा़ ईनाम में मिलेगा और जिसके घर में पत्नि की सरकार हो वह एक सेब ले जाए.. ।
🐴🍎

एक के बाद एक सभी नगरजन सेब उठाकर जाने लगे ।
राजा को चिंता होने लगी.. क्या मेरे राज्य में सभी जगह पत्नी का हुक्म चलता है,,🤔🤔
इतने में एक लम्बी लम्बी मूछों वाला, मोटा तगडा़ और लाल लाल आखोंवाला जवान आया और बोला
" राजा जी मेरे घर में मेरा ही हुक्म चलता है .. घोडा़ मुझे दीजिए .."

राजा खुश हो गए और कहा जा अपना मनपसंद घोडा़ ले जा ..।😀😀
जवान काला घोडा़ लेकर रवाना हो गया ।

घर गया और फिर थोडी़ देर में दरबार में वापिस लौट आया।

राजा: " क्या हुआ जवामर्द ? वापिस क्यों आया..??"

जवान : " महाराज, घरवाली कहती है काला रंग अशुभ होता है, सफेद रंग शांति का प्रतिक होता है तो आप मुझे सफेद रंग का घोडा़ दीजिए।

राजा: " घोडा़ रख ..और सेब लेकर चलता बन,,,

इसी तरह रात हो गई ...दरबार खाली हो गया,, लोग सेब लेकर चले गए ।

आधी रात को महामंत्री ने दरवाजा खटखटाया,,,

राजा : " बोलो महामंत्री कैसे आना हुआ ?"

महामंत्री : " महाराज आपने सेब और घोडा़ ईनाम में रखा ,इसकी जगह एक मण अनाज या सोना वगेरह रखा होता तो लोग  कुछ दिन खा सकते या जेवर बना सकते थे,,,

राजा :" मुझे तो ईनाम में यही रखना था लेकिन महारानी ने कहा कि सेब और घोडा़ ही ठीक है इसलिए वही रखा,,,,

महामंत्री : " महाराज आपके लिए सेब काट दुँ..!!

राजा को हँसी आ गई और पुछा यह सवाल तुम दरबार में या कल सुबह भी पुछ सकते थे तो आधी रात को क्यों आये ??

महामंत्री : " मेरी धर्मपत्नी ने कहा अभी जाओ और पुछ के आओ,,,सच्ची घटना का पता चले।

राजा ( बात काटकर ) : " महामंत्री जी , सेब आप खुद ले लोगे या घर भेज दिया जाए ।"

सादर आपका
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लोहे का घर-56

३७६. इतवार

कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ, क‍िसी की आंख में हमको भी इंतज़ार द‍िखे ….Gulzar

बलिदानी मदन लाल ढींगरा

डॉ शंकर दयाल शर्मा - सदैव श्रद्धेय व्यक्तित्व

विश्वास है

आने वाले कल के लिए

तस्वीर तेरी आँखों में बसाया.......

भाव जगेंं जब अनुपम भीतर

जाने क्यों आँखें रहती नम नम ...

उठ लखन लाल प्रिय भाई - राम की आकुलता पर आधारित सुन्दर गीत

कविता की रेसिपी

थेथर से होते थे न दोस्त

एक सफ़र स्त्री मन का खुद से बातें करते हुए ...

#विश्व_फोटोग्राफी_दिवस #लघुकथा #कैमरा

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अब आज्ञा दीजिए ...

जय हिन्द !!!

रविवार, 18 अगस्त 2019

विराट व्यक्तित्व नेता जी की रहस्यगाथा : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
कहते हैं कि जो आया है वो जायेगा ही मगर कोई आने वाला जाने के बजाय विलुप्त हो जाये तो? क्या ऐसा भी होता है कि आने वाला विलुप्त हो जाये? यदि ऐसा होता भी है तो वह विलुप्त क्यों हुआ? यदि खुद अपनी मर्जी से विलुप्त नहीं हुआ तो फिर किसने विलुप्त करवाया? उसके खुद विलुप्त होने में, किसी के द्वारा विलुप्त करवाए जाने में लाभ किसका? विश्व की तमाम रहस्यगाथाओं से ज्यादा बड़ी और रहस्यमयी गाथा नेता जी के विलुप्त होने की गाथा है. यह रहस्यमयी इसलिए भी है कि नेता जी का व्यक्तित्व जितना विराट और चुम्बकीय रहा है, उसी अनुपात में या कहें उससे भी अधिक जनमानस के बीच उनकी गाथा तैरती रही है, आज के दिन यानि 18 अगस्त 1945 को उनके गायब हो जाने की. कोई कुछ भी कहे मगर तमाम सारे घटनाक्रम, अनेक तथ्य इशारा इस तरफ करते हैं कि आज के दिन हुई तथाकथित विमान दुर्घटना में नेता जी की मृत्यु नहीं हुई थी.


उनकी मृत्यु को जिस विमान दुर्घटना में हुआ प्रचारित किया जाता है, कहा जाता है कि उस दिन कोई विमान दुर्घटना ताइवान में हुई ही नहीं. इसका ऐतिहासिक प्रमाण यह है कि 03 सितंबर 1945 को अमेरिकी सेना ने जापानी सेना को हराकर ताइवान पर क़ब्ज़ा कर लिया था. इसके बाद उसकी ख़ुफिया एजेंसी सीआईए ने अपनी रिपोर्ट में साफ़-साफ़ कहा था कि ताइवान में पिछले छह महीने से कोई विमान हादसा नहीं हुआ था. यहां यह गौर करने वाली बात है कि अपनी कथित मौत से दो दिन पहले 16 अगस्त 1945 को नेताजी वियतनाम के साइगॉन शहर से भागकर मंचूरिया गए थो जो उस समय रूस के क़ब्ज़े में था. नेता जी की मौत के रहस्य पर क़िताबें लिखने वाले और मिशन नेताजी के संस्थापक पत्रकार-लेखक अनुज धर ने अपनी लिखी क़िताबों में ताइवान सरकार के हवाले से दावा किया है कि 15 अगस्त से 05 सितंबर 1945 के दौरान कोई विमान हादसा नहीं हुआ था.

ऐसी चर्चाएँ बराबर बनी रहीं कि नेता जी रूस चले गए जहाँ से बाद में उनको भारत आने का सुरक्षित रास्ता प्रदान किया गया. भारत में उनके प्रवास की सर्वाधिक चर्चा फ़ैजाबाद के गुमनामी बाबा के रूप में रही हैं. यद्यपि बहुत से लोगों का मानना है कि नेता जी का व्यक्तित्व जिस तरह का था वैसे में संभव नहीं कि वे गुमनामी में अपना जीवन व्यतीत कर देते. इसके बाद भी सम्बंधित व्यक्ति को लेकर लोगों में विश्वास बना हुआ है कि गुमनामी बाबा और कोई नहीं बल्कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ही थे. गुमनामी बाबा के निधन के बाद उनके नेताजी होने की बातें फैलने लगीं तो नेताजी की भतीजी ललिता बोस कोलकाता से फैजाबाद आईं. वे गुमनामी बाबा के कमरे से बरामद सामान देखकर यह कहते हुए फफक पड़ी थीं कि यह सब कुछ उनके चाचा का ही है. इसके बाद स्थानीय लोगों ने आन्दोलन करना शुरू कर दिया. लम्बे समय तक चले सामाजिक और न्यायिक प्रयासों के बाद मामले की सुनवाई करते हुए 31 जनवरी 2013 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया था कि गुमनामी बाबा के सामान को संग्रहालय में रखा जाए ताकि आम लोग उन्हें देख सकें.

गुमनामी बाबा के सामान से मिली नेता जी की तस्वीर 

लखनऊ बेंच ने अपने फैसले में स्पष्ट तौर पर कहा था-
ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की स्मृति या उनकी धरोहर आने वाली नस्लों के लिए प्रेरणादायक है. अगर फैजाबाद में रहने वाले गुमनामी बाबा, जिनके बारे में लोगों का विश्वास था कि वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस हैं और उनके पास आने-जाने वाले लोगों व उनके कमरे में मिली तमाम वस्तुओं से इस बात का तनिक भी आभास होता है कि लोग गुमनामी बाबा को नेताजी के रूप में मानते थे तो ऐसे व्यक्ति की धरोहर को राष्ट्र की धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा जाना चाहिए.

नेता जी की मृत्यु की जांच से सम्बंधित बने आयोगों की अपनी-अपनी रिपोर्ट्स रही हैं. जिस तरह का रहस्य, जिस तरह की गोपनीयता नेता जी की मृत्यु को लेकर बनाई जाती रही है, वैसी ही गुमनामी बाबा के निधन और उनके अंतिम संस्कार को लेकर बनाई गई. यह सब इस रहस्य को और गहरा करता है. अंतिम सत्य क्या है यह तो उसी सत्य को भोगने वाला ही जानता है मगर एक सत्य यह है कि जनमानस को विश्वास है कि नेता जी की मृत्यु आज के दिन बताई जाने वाली तथाकथित विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी. उनकी मौत का रहस्य अभी भी रहस्य है. जब तक यह रहस्य उजागर नहीं होता तब तक उनकी मौत को स्वीकारना नेता जी के अस्तित्व को, उनकी विराटता को नकारना ही होगा. आज के दिन वे विलुप्त हुए हैं, मृत नहीं और यह भी अपने आपमें परम सत्य है कि विलुप्त होने वाले मरते नहीं वरन अमरत्व को प्राप्त कर जाते हैं. महाकाल बन जाते हैं.
जय हिन्द

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शनिवार, 17 अगस्त 2019

ब्लॉग लेखन में साहित्य की धमक कम नहीं....

हिंदी ब्लॉग लेखन से लेखक/लेखिकाओं की बढ़ती दूरियों पर बहुत बात होती है मगर ब्लॉग बुलेटिन के लिए ब्लॉग पोस्ट के चयन करते समय यह मिथ्या बयानी लगती है. आज की बुलेटिन में एक से एक दिग्गज ब्लॉगर्स जो साहित्य एवं पत्रकारिता में एक अच्छा मुकाम हासिल करने के बाद भी ब्लॉग लेखन से विमुख नहीं हुए हैं.  लिखने वाले ने लिख दिये हैं, अब पाठक की जिम्मेदारी कि पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया भी दे.....

बरखा सावन में खूब बरस कर भादो में भी जलवे बिखेर रही अपने. इस मौसम की एक रोमांटिक कथा अंशुमाला पिरो रहीं अपने शब्दों में. वस्तुत: यह कथा नहीं उस विवाहित जोड़े की गाथा है जो हर मौसम में अच्छा समय चुराने का मौका निकाल लेता है.
http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2019/08/blog-post_16.html?m=1

शिखा वार्ष्णेय जानी मानी ब्लॉगर हैं. रूस से जर्नलिज्म कोर्स करने के बाद लंदन में बसे होने के बाद भी विशुद्ध भारतीय शिखा पत्रकारिता के साथ रेडियो पर अपनी विशिष्ट रेसीपीज बनाना भी सिखाती हैं. "स्मृतियों में रूस" में अपने रूस प्रवास के अनुभव साझा करने के बाद हाल ही में अपनी पुस्तक "देशी चश्मे से लंदन डायरी" में लंदन को अपनी नजर से दिखाती हैं. उनके इस दिखाने को  एक और जानी मानी ब्लॉगर वंदना अवस्थी दुबे  ने अपने ब्लॉग पर समीक्षा के रूप में साझा किया है यहाँ पर...

http://wwwvandanablog.blogspot.com/2019/08/blog-post.html

उलूक टाइम्स पर सुशील जोशी अपने विशेष अंदाज में लिखने के पैमाने और लिखने के नशे पर लिख लिख कर ही दिखा रहे हैं....
https://ulooktimes.blogspot.com/2019/08/blog-post_17.html?m=1

बुलंद आवाज में भी शास्त्रीयता की धाक जमाने वाली शुभा मुद्गल से कौन परीचित नहीं होगा. ब्लॉगर और जानी मानी लेखिका प्रतिभा जी की कविता " ओ अच्छी लड़कियों " पर शुभा जी और अनीस जी की चर्चा को संस्मरण में लिखा खूबसूरत अंदाज में...

https://pratibhakatiyar.blogspot.com/2019/08/blog-post_17.html

निर्मल शुक्ल के नवगीत संग्रह पर शशि पुरवार जी ने मुहावरों का मुक्तांगन एक अरण्य काल (एक अध्ययन) में बहुत विस्तार से लिखा है...

http://sapne-shashi.blogspot.com/2019/08/blog-post_16.html

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

"मैं ऐसे भारत का सपना देखता हूँ जो समृद्ध और मजबूत है। ऐसा भारत जो दुनिया के महान देशों की पंक्ति में खड़ा हो..."

- पूर्व प्रधानमंत्री स्व॰ अटल बिहारी वाजपेयी

भारत के एक नागरिक के तौर पर मेरा प्रयास रहेगा कि आप के सपनों के भारत की तरक़्क़ी में मेरा भी योगदान हो।

ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से प्रथम पुण्यतिथि पर परम आदरणीय स्व॰ अटल बिहारी वाजपाई जी को सादर नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि।

🙏🙏

सादर आपका 

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अलख जगाते कलमकार ही

इन्द्रधनुष के रंग

अज़नबी

इच्छा

जरा याद उन्हें भी कर लो ...!

गांधीजी का पत्र वल्लभभाई पटेल को

अभिनय सम्राट

भाषा में जड़ा समाजशास्त्र

अब चीन के सामने खडी हो रही “वाल ऑफ़ इंडिया”

कहानी : उफान

फुहारें

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अब आज्ञा दीजिए ... 

जय हिन्द !!!

गुरुवार, 15 अगस्त 2019

स्वतंत्रता और रक्षा की पावनता के संयोग में छिपा है सन्देश : ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
स्वतंत्रता दिवस की और पावन पर्व रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.

इस वर्ष का सावन माह अपने आपमें अभूतपूर्व घटनाओं का गवाह रहा है. इस अभूतपूर्व स्थिति में इए सुखद और पावन संयोग ही कहा जायेगा कि स्वतंत्रता का महोत्सव और भाई-बहिनों के स्नेह का पर्व एक दिन ही मनाया जा रहा है. इसी को किसी न किसी रूप में हम सभी संयोग कहते हैं, सितारों की चाल कहते हैं, सौभाग्य कहते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि यदि हम सावन माह की गतिविधियों को देखें तो देशहित में कई सारे निर्णय संपन्न हुए.


देश के वैज्ञानिकों की सफल यात्रा चंद्रयान के रूप में आरम्भ हुई. इस यात्रा की कमान देश की मातृशक्ति के हाथ में थी, यह भी अपने आपमें गौरवशाली क्षण था. इस अभियान के द्वारा जो कदम अन्तरिक्ष क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकता रखने जा रही है, वैसा आज तक किसी भी देश द्वारा उठाया नहीं गया है.


चंद्रयान से शुरू वैज्ञानिक सफलता यात्रा अभी आरम्भ ही  हुई थी, देशवासी अभी इस उमंग की सराबोर से उबरे भी न थे कि एक कदम सामाजिक भेदभाव दूर करने के लिए उठाया गया. तीन तलाक की समाप्ति भले ही एक समुदाय विशेष से संदर्भित हो मगर इसके समाप्त होने से देश की मातृशक्ति को समानता का अधिकार प्रदान किया गया, उनके व्यक्तित्त्व को एक इन्सान समझने की परिभाषा से अलंकृत किया गया.


इसके ठीक एक सप्ताह बाद ही एक देश, एक संविधान के विधान को स्पष्ट स्वरूप प्रदान किया गया. किसी समय राजनैतिक प्रतिस्थितियों के चलते उठाया गया कदम कालांतर में न केवल राजनैतिक विभेद का कारक बना बल्कि देश के भूभाग को भी एक तरह से अलग-थलग किये रहा. धारा 370 की समाप्ति के साथ ही दो राज्यों का निर्माण होने ने राजनैतिक सजगता की दिशा में कदम बढ़ाया तो देश को वास्तविक रूप में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक होने का सन्देश दिया. यह भी देश की स्वतंत्रता के प्रति सार्थकता कही जा सकती है.


इन घटनाओं का होना शायद पूर्व-निर्धारित रहा होगा, शायद एक संयोग रहा होगा कि स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन एकसाथ, एक दिन मनाने का अवसर मिला. इसको एक सन्देश के रूप में देखने की आवश्यकता है. रक्षाबंधन को महज भाई-बहिन के पवित्र प्रेम के रूप में, सुरक्षा के रूप में देखने से इतर अब व्यापकता में देखने की आवश्यकता है. सरकारी स्तर पर स्वतंत्रता के सच्चे अर्थ स्पष्ट करते हुए वैज्ञानिकता को स्थापित किया, सामाजिकता को मान्यता दी और राष्ट्रीयता को एकता प्रदान की. अब हम सभी नागरिकों की जिम्मेवारी बनती है कि इस स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करें. अपने कार्यों से, अपनी जिम्मेवारियों से, अपने कर्तव्यों से देश को, समाज को, नागरिकों को सफलता की राह प्रदान करें, सुरक्षा की भावना का विकास करें, उनको आज़ादी का भान बना रहने दें.


आशा है कि हम सभी स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन के एकसाथ मनाये जाने के सन्देश को समझेंगे, इसमें अन्तर्निहित भावना को आपस में मिलकर और पुष्ट करेंगे. यदि हम ऐसा कर पाते हैं तो निश्चित ही हम सभी स्वतंत्रता का महोत्सव को सही आयाम प्रदान करेंगे, रक्षाबंधन की पवित्रता को अक्षुण्य रख सकेंगे. इसी पावन भावना के साथ आइये आज की बुलेटिन का आनंद उठायें और एक कदम समानता, भाईचारे, स्नेह, सुरक्षित स्वतंत्रता की ओर बढ़ाएं.

जय हिन्द

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बुधवार, 14 अगस्त 2019

73 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति कोविंद का राष्ट्र को संबोधन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 73 वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर आज राष्ट्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने शाम लगभग सात बजे राष्ट्र के नाम संबोधन शुरू किया और इसे आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के सभी केंद्रों से प्रसारित किया गया  सबसे पहले राष्ट्रपति कोविंद ने अपना संबोधन हिन्दी भाषा मेें किया, इसके तुरंत बाद इसका अंग्रेजी संस्करण प्रसारित किया गया। संबोधन का हिन्दी और अंग्रेजी में प्रसारण होने के बाद दूरदर्शन सभी क्षेत्रीय भाषाओं में भी इसका प्रसारण करेगा। 
आकाशवाणी से भी राष्ट्रपति के संबोधन का क्षेत्रीय भाषाओं में प्रसारण आज ही शाम आठ बजे से होगा।

संबोधन की मुख्य बातें -
  • हमारी संस्कृति की यह विशेषता है कि हम सब प्रकृति के लिए और सभी जीवों के लिए प्रेम और करुणा का भाव रखते हैं। पूरी दुनिया के जंगली बाघों की तीन-चौथाई आबादी को हमने सुरक्षित बसेरा दिया है — राष्ट्रपति कोविन्द
  • भारत युवाओं का देश है। हमारे युवाओं की ऊर्जा खेल से लेकर विज्ञान तक और ज्ञान की खोज से लेकर सॉफ्ट स्किल तक कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा बिखेर रही है।- राष्ट्रपति कोविन्द
  • लोगों के जनादेश में उनकी आकांक्षाएं साफ दिखाई देती हैं। इन आकांक्षाओं को पूरा करने में सरकार अपनी भूमिका निभाती है। मेरा मानना है कि 130 करोड़ भारतवासी अपने कौशल, प्रतिभा, उद्यम तथा इनोवेशन के जरिए, बहुत बड़े पैमाने पर, विकास के और अधिक अवसर पैदा कर सकते हैं— राष्ट्रपति कोविन्द
  • मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि संसद के हाल ही में संपन्न हुए सत्र में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों ही सदनों की बैठकें बहुत सफल रही हैं — राष्ट्रपति कोविन्द
  • मुझे विश्वास है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के लिए हाल ही में किए गए बदलावों से वहां के निवासी बहुत अधिक लाभान्वित होंगे — राष्ट्रपति कोविन्द
  • 2019 का यह साल, गुरु नानक देवजी का 550वां जयंती वर्ष भी है। वे भारत के सबसे महान संतों में से एक हैं। गुरु नानक देवजी के सभी अनुयायियों को मैं इस पावन जयंती वर्ष के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं — राष्ट्रपति कोविन्द
  • 2 अक्टूबर को हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाएंगे। गांधीजी, हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। वे समाज को हर प्रकार के अन्याय से मुक्त कराने के प्रयासों में हमारे मार्गदर्शक भी थे — राष्ट्रपति कोविन्द
  • हम अपने उन असंख्य स्वतन्त्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों को कृतज्ञता के साथ याद करते हैं, जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाने के लिए संघर्ष, त्या‍ग और बलिदान के महान आदर्श प्रस्तुत किए — राष्ट्रपति कोविन्द
  • तिहत्तरवें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर आप सभी को मेरी हार्दिक बधाई! यह स्वाधीनता दिवस भारत-माता की सभी संतानों के लिए बेहद खुशी का दिन है, चाहे वे देश में हों या विदेश में। राष्ट्रपति कोविन्द
संबोधन  का वीडियो - 

 
 सादर आपका

मंगलवार, 13 अगस्त 2019

अंग दान दिवस और ब्लॉग बुलेटिन

सभी हिंदी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
अंग दान दिवस (अंग्रेज़ी: Organ Donation Day) भारत में प्रतिवर्ष '13 अगस्त को मनाया जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंग दान के महत्व को समझने के साथ ही अंग दान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी संगठन और दूसरे व्यवसायों से संबंधित लोगों द्वारा हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है। अंग दान-दाता कोई भी हो सकता है, जिसका अंग किसी अत्यधिक जरुरतमंद मरीज को दिया जा सकता है। मरीज में प्रतिरोपण करने के लिये आम इंसान द्वारा दिया गया अंग ठीक ढंग से सुरक्षित रखा जाता है, जिससे समय पर उसका इस्तेमाल हो सके। किसी के द्वारा दिये गये अंग से किसी को नया जीवन मिल सकता है।


~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~ 













आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

सोमवार, 12 अगस्त 2019

ढाई हज़ारवीं ब्लॉग-बुलेटिन बनाम तीन सौ पैंसठ

सायद एही साल का बात है या लास्ट ईयर का. समय पुस्तक मेला का था, इसलिये साल चाहे जो भी हो, हम तब तक दिल्ली से निकाले नहीं गये थे. पुस्तक मेला का तमाम गहमा-गहमी के बीच मेला घूमना अऊर बहुत सा किताब खरीदना त होबे किया, एगो अलग अनुभब ई हुआ कि ब्लॉग के पुराना समय के दोस्त लोग से मिलना-मिलाना भी हुआ. अऊर हमारे लिये त भतीजा अभिसेक अऊर बेटी झूमा को लेकर घूमने का एगो अलगे मजा है. किताब खरीदने के साथ-साथ उसका समीच्छा भी साथे साथ हो जाता है.

ई सबके साथ एगो बात जो ई पुस्तक मेला का आकर्सन होता है, ऊ होता है अपने दोस्त लोग के किताब का बिमोचन. उसमें भाग लेना, किताब को खरीदकर पढ़ना अऊर उनके साथ अपना नाम भी जुड़ा होने का एगो अलगे आनन्द है. तनी देर के लिये हम भी ऊ लोग के साथ सेलेब्रिटी का स्टैटस पा लेते हैं. बाकी हमको कभी ई बात का मलाल नहीं हुआ कि हमरा कोनो किताब कभी नहीं छपा. बहुत लोग बोला, लेकिन हमरा मुस्कुराने के अलावा कोई जवाब नहीं रहा.

आज अर्चना तिवारी जी से भी एही बात हो रहा था. हम उनको बोले कि हम जेतना अच्छा पाठक हैं, ओतने खराब लेखक हैं, इसलिये किताब लिखने के तरफ कभी ध्यान नहीं गया.  हाँ ई बात अऊर है कि मार्केट में हमसे भी खराब लिखने वाला लोकप्रिय लोग है, इसलिये कभी-कभी हमको भी अपना लिखा अच्छा लगता है.  हम अऊर अर्चना जी एक दूसरा के बात से सहमत थे कि अभी हमलोग को किताब के तरफ से ध्यान हटा लेना चाहिये. 

वैसे भी हम आजकल लघुकथा के तर्ज पर लघु-कबिता लिखने का कोसिस कर रहे हैं. अब काहे कि ई कोसिस है इसलिये  बहुत कम लोग को इसके बारे में पता है. हमारा बुलेटिन का टीम में भी रश्मि दी, वाणी जी अऊर शिवम बाबू को सायद इसका खबर होगा. बाकी त जब तक छप नहीं जाते, तब तक छिपे रहने में भलाई है. ई कबिता लिखने का काम भी हम रोज का एगो कबिता के हिसाब से करते हैं अऊर कमाल का बात है कि मजाक मजाक में साल भर में 365 से जादा हो गया है हमरा ई टाइम पास.  

खैर, ई सब त बात से निकला बात है. असली बात जो हम आप लोग को बताने जा रहे हैं ऊ एही साल का फरवरी का घटना है सायद. एक रोज हम अभिसेक को फोन लगाकर बोले
-      अभिषेक! अब तैयार हो जाओ विमोचन के लिये!
-      किसका विमोचन चचा?
-      विमोचन किताब का होता है, तो किताब का ही होगा न!
-      बताइये कहाँ चलना है और कब... किनके किताब का विमोचन है?
-      अभी तय नहीं हुआ है!
-      मतलब??
-      देखो विमोचन का तारीख पक्का है 14 फरवरी और जगह भी तय है – इण्डिया गेट!
-      ठीक है चचा, लेकिन किनके किताब का विमोचन है, ये तो बताइये!
-      तुम्हारे चचा का किताब अभी फाइनल नहीं हुआ है, जिस दिन हो गया उस दिन इसी डेट और वेन्यु पर तुम्हारे हाथों विमोचन होगा.
-      आप मजाक कर रहे हैं चचा, आपका बर्थ-डे तो 12 फरवरी को होता है, चौदह को तो वैलेंटाइन डे होता है.
-      वही तो. सोचते हैं अपनी कबिता का किताब छपवा ही देते हैं और कीमत होगा पचास रुपया. इण्डिया गेट पर तुम्हारे हाथों विमोचन होगा, क्योंकि मेरी कविताओं को जितनी इज़्ज़त तुमने दी है शायद किसी ने नहीं दी. ऐसे में अनावरण तुम्हारे हाथों होगा और हमलोग इण्डिया गेट पर आये हुये वैलेंटाइन डे के जोड़ों को कहेंगे कि दूसरे दिन सूख जाने वाले गुलाब से अच्छा है कि ये ताज़ी कविता की किताब दो अपने चाहने वाले को जिसकी ख़ुशबू वो ज़िंदगी भर महसूस करेगा/ करेगी.
-      अच्छा आइडिया है चचा!

अभिसेक भी हमरे हाँ में हाँ मिला दिया जइसा ऊ हमरे हर बेसिर पैर के बात के साथ करता है. लेकिन हमरे बात में भी दम था. कुछ समय बाद अनुराग शर्मा जी भी अमेरिका से आए तो मिलने आए और किताब का नाम भी सुझाए – तीन सौ पैंसठ! 

अब कास्मीर से 370 खतम हो गया है,  त हमरा 365 भी आजाद होइये जाएगा. देखिये न 365 केतना छोटा संख्या है उस संख्या के आगे जहाँ तक हमारा ब्लॉग-बुलेटिन पहुँच गया है – अढ़ाई हज़ार यानि पच्चीस सौ! 


जय हो!!!


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शिव मंदिर, जटोली का

डॉ॰ विक्रम साराभाई की १०० वीं जयंती

मिलन

प्रेम और प्रकृति

कश्मीर में फिर महकेगी अमन की फिजा। जगदीश बाली

आज स्यापा या खामोशी?

रोज़ प्रातः बोलते हैं विश्व का कल्याण हो ...

युद्ध तुम्हारा शेष रहेगा समतल जब तक राह न होगी....

बैलेंस्ड-डाइट

पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 15 से 14 अगस्त क्यों हुआ?

सुषमा स्वराज ----- देश की आम स्त्रियों के लिए प्रेरणादायी व्यक्तित्व

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